कन्यादान -योग्य स्थान व कन्यादानाधिकारी
कन्यादान का फल शास्त्रों में अनन्त कहा गया है ।कन्यादान को सभी दस दानों में श्रेष्ठदान , महादान कहा है । माता पिता के द्वारा गुण श्रेष्ठ वर के हाथों कन्या का दान किया जाता है ।किस स्थान पर कन्यादान करने से कन्यादान का फल दुगना हो जाता है । जिसके करने से जीव को सभी दानों का पुण्य प्राप्त होता है। इसलिये कन्यादान का स्थल बहुत महत्व पूर्ण है । जो निम्नवत है ।
१ -स्वगृह --
अपने घर में कन्यादान करने से कुलदेवता ,पितृदेव प्रसन्न हो आशीर्वाद देते है। कन्यादाता पितृ ऋण से मुक्त होता है ।
२ - गौशाला --
गौशाला में कन्यादान करने का दसगुना गुना फल मिलता है ।
३ - शिवालय --
शिवालय में कन्यादान करने से हजार गुना फल मिलता है ।
४ -विष्णु मन्दिर --
विष्णु मन्दिर में कन्यादान करने से दसहजार गुना फल है ।
तीर्थ,देवस्थान ,समुद्र तट पर भी कन्यादान सम्पन्न होता है ।
कन्यादान के लिए स्थान का चुनाव सतर्कता से करना चाहिए ।
कन्यादानाधिकारी --
विवाह संस्कार में जब कन्यादान का शुभ मुहूर्त आता है और कन्यादाता कन्या का हाथ थाम के कन्यादान का संकल्प लेते है। वह क्षण माता पिता को दुख भी देता है और सुख भी देता है ।
कन्यादान के समय पिता के उपस्थित नही रहने पर दादा ,भाई, चाचा ,सगोत्री नातेदार , नाना नानी ,मामा आदि कन्यादान कर सकते है । परस्थितियाँ के अनुसार माता भी कन्यादान कर सकती है ।
धर्म सिंधु में लिखा है।"सर्वाभावे जननी"
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
ज्योतिषाचार्य
वसई