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रविवार, 21 जनवरी 2024

मानव सभ्यता का विकास या ह्रास हो रह है

मतलब की दुनिया, मतलब का प्यार है ।

माया तू नही रही , तो सब निराधार है ।।


संसरति इति संसार:

संसार जब रंग बदल सकता है ,तो मानव भी बदल सकता है । दोनो में एक समानता है ? संसार समय समय पर खिसकता है मानव का नव नया करता है ।ये दोनो समय समय पर रंग बदलते है ।



मानव की कल्पना के आगे शायद भगवान भी सोचते होंगे मेरे बनाए नियमों का उलंघन करता है जिसके फल स्वरूप दुनिया में अशांति का माहौल बनने लगता है।



इतिहास गवाह है जब जब इस वसुंधरा पर विद्वानों का प्रादुर्भाव हुवा उन्होंने समाज को भ्रमित ही किया है या यू कह सकते अपनी रोटी सेकी और समाज को तोड़ मरोड़ कर संसार से चले गए ।सनातन सभ्यता से ही कितनी सभ्यताओं ,धर्मो, पंथों का जन्म हुआ ,उसके कारण जनक कॉन थे _? । 












ॐ जय गौरी नंदा

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