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सोमवार, 17 अगस्त 2020

कुशोत्पाटिनी अमावस्या व सती पूजा

कुशोत्पाटिनी अमावस्या व सती पूजा

          ( भाद्रपद अमावस्या ) 

हर दिन अपने आप मे श्रेष्ठ होता है ,वैसे ही भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या भी श्रेष्ठ है,इस दिन जंगल व खेत से  कुशा ग्रहण किया जाता है।इसलिए इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहते है,'ॐ हूं फट' मंत्र से कुशा ग्रहण करना चाहिये।आज लाया गया कुशा पूरे साल भर काम देता है।

 यों तो प्रत्येक अमावस्या को ही पितरों को तर्पण करने का शास्त्रों में विधान है , परन्तु श्राद्ध पक्ष के पन्द्रह दिन पूर्व पड़ने वाली भाद्रपद मास की इस अमावस्या को तो पित्तरों का पूजन एवं तर्पण विशेष विधि - विधान से किया जाता है । कुशा नामक घास का एक छल्ला बनाकर अंगूठी के समान दाहिने हाथ की उंगली में पहनकर और अंजली में जल एवं काले तिल लेकर किया जाता है पितरों का तर्पण ।

पुरुष आज के दिन प्रातःकाल पित्तरों हेतु तर्पण करते हैं तो महिलाएं सतीजी का व्रत रखती हैं । भगवान शिव भार्या सती जी की पूजा आराधना की जाती है । सतीजी अथवा पार्वती की मूर्ति पर जल चढ़ाकर , रोली - चावल , फूल , धूप - दीप , नैवेद्य फल से उनकी पूजा की जाती है । सतीजी को नारियल , चूड़ियां , सिन्दूर , सुहाग का सभी सामान वस्त्र और लड्डू अर्पित किए जाते हैं और दक्षिणा चढाई जाती है । 

ॐ जय गौरी नंदा

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