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बुधवार, 18 नवंबर 2020

देवोत्थानी ( देव - उठानी )

 देवोत्थानी ( देव - उठानी )

एकादशी ( कार्तिक शुक्ला एकादशा ) 

दीपावली के पश्चात् कार्तिक शुक्ला एकादशी को देवात्थान या देवठान होता है । इस दिन सारे घर को लीप पोत कर साफ करना चाहिये । आंगन को खड़िया मिट्टी और गेरू से काढ़ना चाहिये । 

आंगन के बीचोबीच या फिर एक ओखली में गेरू से चित्र ऋतुफल आर गन्ना उस स्थान पर रखकर एक परात अथवा डलिया से ढक दिया है तथा एक दीपक भी जला दिया जाता है । रात्रि में परिवार के सभी वयस्क सदस्य तथा बालक और महिलाएं देवताओं की भगवान् विष्णु सहित पूजा और भजन कीर्तन भी करते हैं । इसके साथ ही घड़ियाल बजाकर या थाली बजाकर इस प्रकार कहें। 

  उठो देवा , बैठो देवा , आंगुरिया चटकाओ देवा ।

 यह एकादशी देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है । आषाढ़ शुक्ला एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक शुक्ला एकादशी के दिन देव उठते हैं । इसीलिये इस एकादशी को देवोत्थानी या देव - उठानी एकादशी कहा जाता है । इस एकादशी से ही सभी शुभ कार्य , विवाह , उपनयन इत्यादि प्रारम्भ हो जाते हैं ।

कुछ धार्मिक व्यक्ति देवोत्थान के दिन तुलसी और सालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं । तुलसी के वृक्ष और सालिग्राम की यह शादी पूरे धूमधाम से उसी प्रकार की जाती है जिस प्रकार सामान्य विवाह । जिन दम्पत्तियों के कन्या नहीं होती , वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें , ऐसी शास्त्रों की मान्यता है ।

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ॐ जय गौरी नंदा

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