दैनिक दिनचर्या
प्रातः जागरण
मनुष्य को पूर्ण स्वस्थ रहने के लिये व्यक्ति को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में शय्या का त्याग करना चाहिए ।उषः काल की बड़ी महिमा है।ब्रह्म मुहर्त में उठने वाला मनुष्य स्वास्थ्य धन विद्या बल और तेज से पूर्ण होता है ।जो सूर्योदय के समय सोता है ।उसकी उम्र व शक्ति में ह्रास होता है ।तथा नाना प्रकार की बीमारियों का शिकार होता है।
॥ करदर्शन।।
प्रातः काल जब उठते है तो शय्या पर ही सर्वप्रथम अपने करतल का दर्शन करने का विधान है।करतल का दर्शन करते हुए निम्न श्लोक का पाठ करना चाहिए।
कराग्रे वसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती ।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम,।।
इस श्लोक में धन की अधिष्ठात्री लक्ष्मी विद्या की देवी सरस्वती व कर्म के देव ब्रह्मा जी की स्तुति की है।
॥ भूमि वंदना।।
कर वंदना के बाद व्यक्ति को भूमि प्रार्थना करनी चाहिये।पृथ्वी सबकी माता है।धरित्री है।जिहोने सबको धारण किया है। वे सभी के लिए पूज्य है।विष्णु जी की दो पत्नी है एक लक्ष्मी दूसरी पृथ्वी।निद्रा त्याग के बाद पृथ्वी माता में पॉव रखना पड़ता है। तो अपनी माताके ऊपर कौन ऐसा कर सकता है जो पाव रखे।विवशता के कारण माँ पृथ्वी की वन्दना की जाती है।पॉव रखने के पूर्व प्रार्थना करें।
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व में।।
इसका भाव यह है।कि हे पृथ्वी माँ आप समुद्ररूपी वस्त्रो को धारण करने वाली तथा पर्वत रुप स्तनों से युक्त पृथ्वी देवी ।तुम्हे नमस्कार है। मेरे पाद स्पर्श को क्षमा करें।
॥॥मंगल स्मरण व देव गुरु अभिवादन॥॥
प्रातः काल जागरण के बाद मंगल चिन्हों का दर्शन जैसे गौ गंगा तुलसी देवता गुरुजन अपने से बडों का अभिवादन प्रणाम करने से शुभ होता है।अभिवादन करने से व्यक्ति में चार प्रकार के बल की वृद्धि होती है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।।
आयु, विद्या, यश, बल कि प्राप्ति होती है ।
शौंचादि कृत्य से निवृत होकर देवताओं तथा महापुरुषों का स्मरण तथा उनकी प्रार्थना करनी चाहियें।
स्नान करते समय इस मंत्र का पाठ करे।
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्या सरितस्तथा।
आगच्छन्तु पवित्राणि स्नान काले सदा मम।।
गंगे च यमुनै चैव ,गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी ,जलेस्मिन सन्निधिम कुरु।।
।सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान मंत्र।
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगतपते ।
अनुकम्पय माँ भक्त्या ग्रहणार्घ्य दिवाकर।।
बहुत जन्मों के बाद मनुष्य जन्म मिलता है।उस जीवन का सार्थक प्रयोग करना चाहिये। सभी कार्यों को करते हुए।माया पति परमात्मा का चिन्तन स्मरण पूजन नित्य होना चाहिए।जिससे कि हमारे इस शरीर में दाग न लगे।साबुन रूपी भगवान का नाम जप तप दान से मनुष्य शुद्ध हो जाता है।
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