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रविवार, 16 अगस्त 2020

ऋषि - पंचमी

     

         ऋषि - पंचमी 

              ( भाद्रपद शुक्ला पंचमी )

 यह व्रत स्त्री - पुरुष दोनों ही कर सकते हैं । जाने या अनजाने किये हुए पापों के प्रायश्चित की कामना से यह व्रत किया जाता है । व्रत आरम्भ करने से पहले निकट के किसी नदी या तालाब में स्नान करना चाहिए । फिर घर आकर वेदी बनाकर और उसे गोबर से लीपकर और अनेक रंगों से सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर उस पर तांबे या मिट्टी का घड़ा रखना चाहिए । उसी स्थान पर अष्टदल कमल बनाकर अरुन्धती और सप्त - ऋषियों की मूर्ति बनाकर विधिपूर्वक उनकी पूजा करनी चाहिए । पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन और आचार्य को पूजा की सामग्री दे देनी चाहिए । इस व्रत की कथा ब्रह्म पुराण में इस प्रकार है

 कथा - प्राचीनकाल में सिताश्व नाम के एक राजा थे । उन्होंने एक बार ब्रह्माजी से पूछा कि पितामह ! सब व्रतों में श्रेष्ठ और तुरन्त फल देने वाले व्रत का वर्णन आप मुझसे कहिए । ब्रह्माजी ने कहा - हे राजन् ! ऋषि - पंचमी का व्रत सब व्रतों में श्रेष्ठ और सब पापों को नष्ट करने वाला है । विदर्भ में उत्तक नाम एक सदाचारी ब्राह्मण के घर में दो सन्तानें थीं - एक पुत्र और एक कन्या । विवाह योग्य होने पर उसने समान कुल - शील वाले गुणवान् वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया । पर कुछ ही दिनों बाद वह कन्या विधवा हो गई । उसके दुःख से अत्यन्त दुःखी हो ब्राह्मण - दम्पति अपनी उस कन्या समेत गंगाजी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे । एक दिन सोती हुई कन्या के शरीर में अचानक कीड़े पड़ गए । अपनी यह दशा देखकर कन्या ने माता से अपना दुःख कहा । माता सुशीला ने जाकर पति से सब बातें कहीं और पूछा कि देव ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है ।

उत्तक ने समाधि लगाकर इस घटना के कारण पर विचार किया और अपनी पत्नी को बतलाया कि पूर्वजन्म में यह कन्या ब्राह्मणी थी । इसने रजस्वला होते हुए भी घर के बर्तनों को छुआ तथा इस जन्म में भी और लोगों को ऋषि - पंचमी का व्रत करते हुए देखकर भी स्वयं नही किया।इसी कारण इसके शरीर मे कीड़े पड़ गए है। धर्मशास्त्रों में लिखा है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी के समान , दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी के समान और तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र रहती है । फिर चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है । यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि - पंचमी का व्रत करेगी तो इसका दुःख छूट जायगा और यह अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकेगी । पिता की आज्ञा से कन्या ने विधिपूर्वक ऋषि - पंचमी का व्रत किया और वह व्रत के प्रभाव से सारे दुःखों से मुक्त हो गई । अगले जन्म में उसने अटल सौभाग्य , धन - धान्य और पुत्र प्राप्ति करके अक्षय सुख भोगा । 

ॐ जय गौरी नंदा

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