गोभिर्विप्रैश्च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः ।
अलुब्धैर्दान शीलैश्च सप्तभिर्धार्यते मही ।।
गौ, ब्राह्मण , वेद , सती , सत्यवादी , निर्लोभी और दानशील इन सातो ने पृथ्वी को धारण कर रखा है।
गाय का आध्यात्मिक रूप तो पृथ्वी है ही ,प्रत्यक्ष रूप में भी उसने पृथ्वीको धारण कर रखा है । समस्त मानव - जातिको किसी - न - किसी प्रकार से गौ के द्वारा जीवन तथा पोषण प्राप्त होता है । प्राचीन काल से यज्ञों में घृत की प्रधानता। दैव - पित्र्य आदि समस्त कार्य घृत से ही सुसम्पन्न होते हैं । दुर्भाग्य है कि आज गोघृतके बदले में नकली घी हमारे घरों में आ गया है। गाय, दूध , दही , घी, गोबर , गोमूत्र देती है । उसके बछड़े बैल बनकर सब प्रकार के अन्न आदि उत्पन्न करते हैं । दुःख की बात है। कि हमारी जीवनस्वरूपा वह गौ आज भारतवर्ष में है, प्रतिदिन हजारोंकी संख्यामें कट रही है । अतः आज आवश्यक है कि हम गौ का संरक्षण कर उसकी सेवा करें। अपने जीवन को उत्तम बनायें ।
पता नहीं , किस अतीतकालसे ब्राह्मणने त्यागमय जीवन बिताकर विद्योपार्जन तथा विद्या - वितरण का महान् कार्य आरम्भ किया था , जो किसी न किसी रूप में अब तक चल रहा है। ब्राह्मणने पृथ्वी के लोगों को ज्ञान के प्रकाश का दान न दिया होता तो वे सर्वथा अज्ञानान्धकार में पड़े रहते , अतः मनुष्य मात्र का कर्तव्य है। कि वह अपनी जीवनचर्या में इनके प्रति कृतज्ञ भाव रखे ।
परमात्मा के यथार्थ ज्ञान या ज्ञान कराने वाले ईश्वरीय वचनों का नाम वेद है । यह वेद अनादि है । वेदमें , समस्त ज्ञान भरा है । इतिहास - पुराणादि भी उसी के अनुवाद है।समस्त कर्म पद्धति तथा संस्कार एवं ज्योतिष आदि सभी का उदगम स्थान वेद ही है।
सती स्त्रियाँ पृथ्वी की दृढ़ स्तम्भरूपा है । सतियोंके त्याग , तेज प्रताप से मानव का बड़ा विलक्षण सात्त्विक बल मिलता रहा है ।और अब भी मिल रहा है । सती की स्मृति ही पुण्यदायिनी है । नारियों के लिये पातिव्रत और पुरुषोंके लिये एकपत्नीव्रत भारतीय जीवन में एक गरिमामय अंग है । सतियों की पवित्र सन्तान से ही लोक का संरक्षण अभ्युदय होता है।
जगत्का सारा व्यवहार सत्यपर आधारित है। झूठ बोलनेवाले भी सत्यकी महिमा स्वीकार करते हैं।सत्य भगवान्का स्वरूप है। इस सत्यको स्वीकार करके सत्यभाषणपरायण पुरुषोंने अपनी जीवनचर्यासे जगत्के मानवोंके सामने एक महान् आदर्श रखा , सत्यसम्पन्न जीवनचर्या जीवनको सरल,शुद्ध तथा शक्तिशाली बनानेमें भी सहायता करती है। झूठ भ्रमवश पनपता भले ही दीखे , अन्तमें विजय सत्यकी ही होती है ।
सत्य तथा सत्यवादियोंके द्वारा उपजाये हुए विश्वासपर ही जगत के व्यवहार टिके हैं । जबतक जगत में सत्यवादी मानवोंका अस्तित्व बना रहेगा - चाहे वे थोड़े ही हों , तबतक जगत्की स्थिति रहेगी ।
पापका बाप लोभ है । लोभ के कारण ही विविध प्रकार के नये - नये दुर्गुण , दोष तथा पाप उत्पन्न होते हैं तथा परिणाम में महान् संताप की प्राप्ति होती है । चोरी , बेईमानी , चोरबाजारी , घूसखोरी , डकैती , ठगी , लूट ,
वस्तुओंमें मिलावट आदि चरित्रको भ्रष्ट करनेवाले सारे अपराधोंका मूल लोभ ही है , अतः मनुष्य को अपनी जीवनचर्या में इससे बचना चाहिये । लोभी मानव स्वयं सदा अशान्त तथा दु : खी रहता है और सबको दुःखी बनाता है । वह पृथ्वीके सद्गुणोंका उच्छेदक है । इसके विपरीत जो लोभहीन है , वही सच्चा मानव समस्त दुर्गुणों , दोषों तथा पापोंसे स्वयं बचता तथा सबको बचाता हुआ मानवता का विकास , संरक्षण तथा संवर्धन करता है - इस प्रकार वह पृथ्वी को धारण करता है ।
7.दानशील -
सारी सुख - शान्तिका मूल प्रेम है तथा प्रेम का मूल त्याग है । दानमें त्याग की प्रधानता है । जो मानव अपने धन विद्या ज्ञान अन्य साधन सामग्री का दान करता है ,वही दानशील है।दानशील मानव लोभ,कृपणता, परिग्रहवृति आदि का नाश करता है,लोगो मे सेवा सहायता की भावना उत्पन्न करता है,उदारता का विस्तार होता है।दान इहलोक व परलोक में कल्याणकारी है,मानव को जीवन मे सातो तत्वों को महत्व देते हुए इन्हें जीवन मे धारण करना चाहिये । ये सात तत्व नर को नारायण बना देते है।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐