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रविवार, 14 जुलाई 2024

वर्ण संकर

वर्ण संकर 

वर्ण संकर किसे कहते हैं । मां की अन्य जात हो, पिता किसी अन्य जात का हो इन दोनों के संयोग से जो संतान उत्पन्न होती है । उसे वर्ण संकर कहा जाता है । वर्ण संकर संतान के द्वारा किए जान वाले सभी धार्मिक कार्यों में सिद्धि नहीं मिलती और पितरों को दिया हुआ अन्नदान जल दान भी किसी काम नहीं आता । और २१ पीढ़ी के पितृ नरक को भोगते हैं ।


गीता में कहा गया है :- 


गीता के प्रथम अध्याय मैं वर्णित है ।


कुलक्षये प्रणश्यन्ति  कुल धर्मा: सनातना:।

धर्मे नष्टे  कुलं कृत्स्नमधर्मोभिभवत्युत ।।

कुल के नाश से कुल धर्म नष्ट हो जाते है जिससे संपूर्ण कुल में पाप फैल जाता है ।


अधर्माभि भवात्कृष्ण प्रदुष्यंती कुलस्त्रिय: ।

स्त्रीषु दुष्टासु  वार्ष्णेय  जयते  वर्णसंकरः ।।


अत्यंत पाप बढ़ जाने पर कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती है और इससे वर्ण संकर संताने होती हैं ।


सन्क नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।

पतन्ति पितरों ह्येषां लुप्त पिण्डोदक क्रिया: ।।


वर्ण संकर कुल को नर्क में ले जाता है और श्रद्धा एवं तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ।



दोषैरेतै:  कुलघ्नानां वर्ण संकर कारकै:।

उत्साद्यन्ते जाति धर्मा कुलधर्मान्च शाश्वता: ।।

इस प्रकार वर्ण संकर कारक दोषों से कुल घातियों के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं ।

जिसका कुल धर्म नष्ट हो जाता है उसका अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है ।

हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गये हैं ।

अपना धन अपना राज्य अपना सुख पाने के लिए हम अपनों को ही करने के लिए  उद्यत हो रहे हैं ।

ॐ जय गौरी नंदा

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