पञ्चाङ्ग क्या हैं--
भारतीय सनातन संस्कृति में वेद ,पुराण , रामायण, महाभारत ,उपनिषद, वेदान्त, साहित्य ,ज्योतिष, व्याकरण, आदि अनेक शास्त्र है।जो हमारे ज्ञान , विज्ञान ,रहन, सहन,खान ,पान, अस्त्र , शस्त्र हर तरह की जीने की कला सिखाते है। शास्त्रों में ज्योतिष को नेत्र की संज्ञा दी है।जो हमे रास्ता दिखता है।ज्योतिष हमे ब्रह्माण्ड में होने वाली हलचल ग्रहों की दशा व दिशा का ज्ञान कराता है।
ज्योतिष काल की गणना के आधार से हमे तिथि, बार, नक्षत्र, योग,करण व समय की गणना ,शुभाशुभ योगों की गणना, करके हमे पञ्चाङ्ग के रूप में देता है । पञ्चाङ्ग के पांच अंग होते है। इन्हें जानें बिना कोई भी पञ्चाङ्ग की गणना नही कर सकता है। कौन - कौन हैं पञ्चाङ्ग के अंग ,जिन्हें समझना जरूरी है । जिससे हम दैनिक शुभशुभ को जान सकें ।
पञ्चाङ्ग के अंग --
1-तिथि
2-वार
3-नक्षत्र
4-योग
5-करण
इन पांचों से पञ्चाङ्ग का निर्माण होता है ।और पञ्चाङ्ग को जानने के लिए पाँचो अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है ।
1 - तिथि --
तिथियां तीस होती है। १५ तिथि शुक्ल पक्ष की और १५ कृष्ण पक्ष की होती है ।जिससे एक माह का निर्माण होता है।
१ - प्रतिपदा ९ - नवमी
२ - द्वितीया १० - दशमी
३ - तृतीया ११ - एकादशी
४ - चतुर्थी १२ - द्वादशी
५ - पञ्चमी १३ - त्रयोदशी
६ - षष्ठी १४ - चतुर्दशी
७ - सप्तमी १५ - पूर्णिमा
८ - अष्टमी ३० - अमावस्या
२ - वार --
वार सात होते है।जो इस प्रकार है ।
1-रविवार
2 -सोमवार
3 -मंगलवार
4 -बुधवार
5 - वृहस्पतिवार
6 -शुक्रवार
7 -शनिवार
३ - नक्षत्र --
१. अश्विनी , २. भरणी , ३. कृत्तिका , ४. रोहिणी , ५. मृगशीर्ष , ६. आर्द्रा , ७. पुनर्वसु , ८. पुष्य , ९ . आश्लेषा , १०. मघा , ११. पूर्वाफाल्गुनि , १२. उत्तरा फाल्गुनि , १३. हस्त , १४. चित्रा , १५. स्वाती , १६. विशाखा , १७. अनुराधा , १८. ज्येष्ठा , १ ९ . मूल , २०. पूर्वाषाड़ा , २१. उत्तराषाढ़ा , २२. अभिजित् , २३. श्रवण , २४ .. धनिष्ठा , २५. शतभिषा , २६. पूर्वाभाद्रपद , २७. उत्तरा भाद्रपद , २८. रेवती ।
प्रमुख रूप से नक्षत्र २७ ही होते हैं । उ ० षा ० और श्रवण के एक - एक चरण को लेकर एक अभिजित् नक्षत्र हो जाता है । साभिजित् गणना में नक्षत्रों की संख्या २८ हो जाती है ।
४ - योग --
१ .विष्कुम्भ ,२ . प्रीति , ३ .आयुष्मान् , ४ .सौभाग्य ,५ . शोमन , ६.अतिगण्ड , ७ .सुकर्मा , ८ .धृति , ९ .शूल ,१० . गण्ड ,११ . बृद्धि , १२ .ध्रुव , १३ .व्याघात , १४ .हर्षण , १५ .वज्र , १६ .सिद्धि ,१७ . व्यतिपात , १८ .वरीयान ,१९ . परिघ , २० .शिव , २१ .सिद्धि , २२ . साध्य ,२३ . शुभ ,२४ .शुक्ल ,२५ . ब्रह्म , २६ .ऐन्द्र ,२७ . वैधृति ये २७ चर योग होते हैं ।
५ - करण --
१ . बब ,
२ . बालव ,
३ .कौलव ,
४ .तैतिल ,
५ .गर ,
६ .वणिज ,
७ .विष्टि
ये सात चर करण है ।
एक तिथि में दो करण होते हैं । " तिथ्यधं करणम् " । तिथि के प्रारम्भ से करण भी प्रारम्भ होता है । तिथि के आधे भाग से दूसरे करण को प्रवृत्ति होती है । विष्टि करण को भद्रा कहते हैं ।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
9004013983