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रविवार, 11 अप्रैल 2021

वनदुर्गा मंत्र जप प्रयोग

असुर मर्दिनी माँ दुर्गा का ही एक रूप है वनदुर्गा उन्हें जंगलों की देवी बनदेवी या शाकम्भरी भी कहते है ।जो हर जीव की माँ के रूप में रक्षा करती है ।

वनदुर्गा मंत्र जप प्रयोग

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संकल्पः- गोत्रः राशिः शर्माऽहं अमुक गोन्नरय आक राशेः अमुक यजमान्राय श्रीवनदुर्गा कृपाप्रसादेन सकलापच्छान्ति पूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थ श्रीवनदुर्गा प्रीत्यर्थ सुप्रसन्नार्थञ्च न्यासध्यानपूर्वक वनदुर्गा मंत्र जपमहं करिष्ये ।

 तत्रादौ निर्विघ्नता संसिद्धर्थ श्री संकटनाशन गणपति स्तोत्र पाठपूर्वकं गणपति स्मरण च करिष्ये । 

विनियोगः ॐ अस्य श्रीवनदुर्गा मंत्रस्य भगवान अरण्यऋषिः अत्यनुष्टुपछन्दः , श्रीवनदुर्गा देवता ,  बीजम् , स्वाहा शक्तिः सर्वदुर्गविमोचनार्थे न्यासे जपे च विनियोगः । 

 ऋष्यादिन्यास करन्यासः 

ॐ आरण्यऋषये नमः  - शिरसि  नमः ।

ॐ आल्पनुष्टुप् फुरत से नमः      -मुखे ।   

ॐ श्रीवनदुर्गादेवतायै नमः        -हृदि । 

ॐदु बीजाय नमः              -  गुह्ये ।( ह ० प्र ० ) 

ॐ स्वाहा शक्त्यै नमः       - पादयोः । ( ह ० प्र ० ) 

   

करन्यासः

ॐ उत्तिष्ठ पुरुषि               -अगुष्ठाभ्यां नमः । 

ॐ किं स्वपिषि               - तर्जनीभ्यां नमः । 

ॐ भयं मे समुपस्थित     - मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ यदिशक्यमशक्यं वा - अनामिकाभ्यां नम: ।

ॐ तन्मे भगवति         -कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।  

ॐ शमय स्वाहा         - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।  

अंगन्यासः

ॐ उत्तिष्ठ पुरूषि           - हृदयाय नमः।

ॐकिं स्वपिषि              - शिरसे स्वाहा । 

ॐ भयं में समुपस्थितं वा– शिखायै वषट् । 

ॐ यदिशक्यगशायं वा      -कवचाय हुम । 

ॐ तन्मे भगवति          -नेत्रत्रयाय बौषट् । 

ॐ शमय स्वाहा                -अस्त्राय फट् । 

ध्यानम् :-

सौवर्णाम्बुजमध्यगां त्रिनयनां सौदामिनी सन्निभम् 

चक्रं शंख वराभयानिदधती भिन्दोः कलां विभ्रतीम् । 

अवेयाङ्गदहारकुण्डलधरामाखण्डलायैः स्तुतां ध्यायेद्विन्ध्यनिवासिनी शशिमुखी पार्श्वस्यपञ्चाननाम् ।। 

मानसोपचारैः सम्पूज्य :-


ॐ लं पृथिव्यात्मकं गंध परिकल्पयामि नमः । 

ॐ हं आकाशात्मक पुष्पं परिकल्पयामि नमः । 

ॐ यं वायवात्मकं धूपं परिकल्पयामि नमः । 

ॐ रं तैजसात्मकं दीपं परिकल्पयामि नमः । 

ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं परिकल्पयामि नमः ।

ॐ सं सर्वात्मकान् समस्त राजोपचारान् परिकल्पयामि नमः । 

ॐ मां माले महामाये सर्वशिक्ति स्वरूपिणि । चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव । ।

जपमंत्र : -

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हूँ उत्तिष्ठ पुरूषि कि स्वपिषि भयं में समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा तन्मे भगवति शमय स्वाहा।

 जपान्ते हृदयादि न्यासं ध्यानं च कृत्वा जपं निवेदयेत् 

।।अनेन श्री वनदुर्गा मंत्र जपाख्येन कर्मणा तेन श्री वनदुर्गा प्रीयतां न मम । ।

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ॐ जय गौरी नंदा

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