गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:।।
जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है बिना गुरु के ईश्वर नहीं मिलता। इसलिए जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है। गुरु ही जीने कला ज्ञान का संचार करता है। गुरु ज्ञान है,गुरु विज्ञान है, गुरु मोक्ष का द्वार है, गुरु के द्वारा ही मानव जड़ से चेताना रूप को प्राप्त होता है।
धर्म गर्न्थो में गुरु की महिमा का बखान अलग-अलग स्वरूपों में किया गया है।
गुरु को बह्मा, विष्णु ,महेश के सदृश पूज्य माना जाता है ।
वेद,पुराण, उपनिषद ,महाभारत का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को माना जाता है। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री पुराणों का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
बंदउं गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। प्राचीन काल में शिष्य जब गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे। वर्ष में सभी ऋतुओं का अपना ही महत्व है। गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में मनाने के पीछे भी एक कारण है। क्योंकि इन चार माह में न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है। यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए गुरु चरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं। वैसे तो हर दिन गुरु की सेवा करनी चाहिए लेकिन इस दिन हर शिष्य को अपने गुरु की पूजा कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए।
इसी दिन वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा प्रारंभ की। पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित करें , आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए थे। जिस कारण हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। कई मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधि की पूजा करते हैं।
व्यासाय विष्णु रूपाय व्यास रूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्म निधये वाशिष्ठाय नमो नमः।।
वर्ष की सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे ज्यादा है। यह पूर्णिमा इतनी श्रेष्ठ है कि इस गुुुरु पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है। जिसमें हम अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते है।
गुरु पूर्णिमा की आप सभी गुरुजन, श्रेष्ठ वरिष्ठ जन माता पिता जी को नमन वंदन करते आप सभी को शुभकामनाएं शुभ आशीष गुरु कृपा देव कृपा बनी रहे।।
जय गुरुदेव