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रविवार, 16 अगस्त 2020

श्रीराधा अष्टमी और दुर्वाष्टमी

श्रीराधा अष्टमी और दुर्वाष्टमी

     ( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी ) 

हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक पखवारे बाद आज के दिन राधा अष्टमी का व्रत किया जाता है , कृष्णा प्रिय राधाजी का जन्म हुआ था । इस दिन बरसाने में हजारों भक्तों के द्वारा श्रीराधाजी का विशेष पूजन और उनका व्रत करते है । बरसाने में आज के दिन राधाजी की अनूपम छटा देखने को मिलती है।

 स्नानादि से शरीर शुद्ध करके मण्डप के भीतर मण्डल बनाकर उसके बीच में मिट्टी या तांबे का बरतन रखकर उस पर दो वस्त्रों से ढकी हुई श्री राधाजी की सोने की या अन्य धातु की बनी सुन्दर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए । तब ठीक मध्याह्न में श्रद्धा - भक्ति - पूर्वक राधाजी की पूजा करनी चाहिए । शक्ति हो तो उस दिन उपवास करके दूसरे दिन सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर आचार्य को दान दक्षिणा देनें के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए । इस बारे में कहा जाता है, कि जो राधा जी का व्रत करता है ,उसे राधा जी दर्शन देती है।

शिवजी के उपासक आज के दिन शिव - पार्वती जी की विशेष पूजा व व्रत भी करते है।आज के दिन शिव पूजा में अन्य वस्तुओं के साथ साथ दूर्वा नामक घास का भी अनिवार्य रूप से प्रयोग किया जाता है,और इसलिए इसे शिवभक्त दुर्बाष्टमी भी कहते है।

ॐ जय गौरी नंदा

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