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शनिवार, 12 सितंबर 2020

मलमास कैसे बना पुरुषोत्तम मास

।।मलमास कैसे बना पुरुषोत्तम मास।।

मंगलं भगवान विष्णु मंगलं गरुड़ ध्वज:।

मंगलं पुण्डरीकाक्ष मंगलाय तनो हरि:।।

मलमास के नाम से बहुत से लोगों के मन अनेक भ्रान्ति होती है।इसी प्रकार मलमास के नाम से देवता भी दूर भागते थे।किन्तु मलमास भाग्यशाली था ,श्रीहरि ने मलमास को शरण देकर उसे पुरूषोत्तम मास का वरदान दिया ।

स्वामी विहीन होने के कारण अधिकमास को मलमास कहने से उसकी निन्दा होने लगी।हिरण्यकश्यप दैत्य को मारने के लिये भगवान श्रीहरि ने तेरहवाँ महीना बनाया ।जो अधिकमास मलमास कहलाया।इस महीने को किसी देवता ने स्वीकार नही किया और न अपना नाम दिया। तो देवताओं से पूछा गया अपने मलमास का चयन क्यो नही किया।देवताओं ने उत्तर दिया जिस महीने में विवाह यज्ञोपवीत यज्ञ अनुष्ठान  दान पुण्य आदि नही होते उस महीने को कौन देवता अपना नाम व स्थान देगा।

देवताओं की बातों से ऋषी मुनि चिंतित हो गये। श्रीहरि के पास गये ,अपनी सारी बातें भगवान को कह दी।भगवान श्रीहरि मलमास को लेकर गौ लोक में श्रीकृष्ण के पास गये ।श्रीकृष्ण ने मलमास को अपना नाम दिया,औऱ कहा आज से मलमास, पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाएगा ,और वरदान दिया जो इस मास में जप तप कथा यज्ञ दान पुण्य करेगा ।उसका फल अक्षय रहेगा। इस पुरुषोत्तम मास में निष्काम भावना से किया दान पुण्य अक्षय होता है।सकाम दान पुण्य इस माह में करना उपयुक्त नही है।

पुरुषोत्तम मास में द्वादशाक्षर मंत्र जप,श्रीमद्भागवत कथा का पाठ,विष्णु सहस्रनाम का पाठ, गीता जी का पाठ, सूर्य पूजा, जप, तप, दानादि जग कल्याण कि कामना के लिए करना चाहिये।

।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।

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