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शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

गणेश चतुर्थी

  गणेश चतुर्थी व सिद्धि               विनायक व्रत

          ( भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी ) 

गणेश जी के व्रत प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की चौथ को किए जाते हैं , परन्तु भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तो गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है । प्राचीन काल में बालकों का विद्या - अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था । आज बालक छोटे - छोटे डण्ड को बजाकर खेलते हैं । यही कारण है कि लोकभाषा में इसे डण्ड चौथ भी कहा जाता है । विनायक , सिद्ध विनायक और वरद विनायक भी गणेश जी के ही नाम हैं और यही कारण है कि अलग - अलग कई नामों से पुकारा जाता है । प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर घर में किसी धातु , पत्थर अथवा मिट्टी से निर्मित गणेश जी की मूर्ति रखी जाती है । इनके अभाव में पीली मिट्टी की डली पर कलावा लपेटकर उसे ही गणेशजी मान लेते हैं । कुछ क्षेत्रों में गाय के गोबर से भी गणेशजी की मूर्ति बनाई जाती है । एक कोरे घड़े में जल भरकर उसके मुंह पर सकोरा रखकर नया वस्त्र ढकने के बाद गणेशजी की प्रतिमा को उस पर स्थापित करते हैं । पूर्ण विधि विधान से सभी पूजन - सामग्री का प्रयोग करते हुए पूजा की जाती है। गणेश जी की पूजा सर्वप्रथम इस मन्त्र से गणेश जी का ध्यान किया जाता है ।

                         प्रथम गणपति वन्दना।      

                      गजाननं   भूत   गणादि सेवितं।

                      कपित्थ जम्बू फल चारु भक्षणं।।

                      उमा सुतं शोक  विनाश कारकं ।

                      नमामि  विघ्नेश्वर पाद  पंकजम।।

 एकदन्तं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुजम् ।

 पाशांकुशधरं देवं ध्यायेत्सिद्धिविनायकम्

पूजा विधि--

इसके पश्चात् आवाहन , आसन , अर्घ्य , पाद्य ,आचमन, पंचामृत स्नान , शुद्धोदक स्नान , वस्त्र , यज्ञोपवीत , गन्ध, अक्षत ,सिंदूर ,फूलमाल, आभूषण , दूर्वा , धूप , दीप  , नैवेद्य,फल,पान,दक्षिणा, आदि से विधिवत् पूजन करें और दो लाल वस्त्रों का दान करें । पूजन के समय घी से बने इक्कीस पुए या इक्कीस लड्डू गणेशजी के पास रखें । पूजन समाप्त करके उनको गणेशजी की मूर्ति के पास रहने दें । दस पुए या लड्डू ब्राह्मण को दे दें और शेष ग्यारह अपने लिए रखकर बाद में प्रसाद के रूप में बांट दें । गणेश जी की मूर्ति को दक्षिणा समेत ब्राह्मण को दे दें और ब्राह्मण को भोजन करावे स्वयं भोजन करें । 

कुछ व्यक्ति श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आज तक लगातार एक माह तक गणेशजी का पूजन व व्रत करते हैं । वे भी आज के दिन गणेशजी का पूजन तो इसी प्रकार करते हैं , परन्तु एक मास तक व्रत करने के कारण अधिक दान - पुण्य भी दी जाती हैं । इस व्रत के समापान स्वरूप आज अठ्ठाइस मुट्ठी चावल और श्रद्धानुसार मिठाई भी किसी बालक , अवधूत या ब्रह्मचारी को दी जाती है। 

शुक्ल पक्ष की  चतुर्थियों को किए जाने वाले गणेश व्रतों और व्रत में एक विशेष अंतर भी है। उन व्रतों को करते समय तो चंद्रदेव को आर्य चढ़ाने के बाद व्रत खोला जाता है, परन्तु आज के दिन तो  चंद्रमा के दर्शन का भी निषेद हैै। इस व्रत में गणेश जी का पूजन करते समय गणेश जन्म कथा  भी कही जाती है, जो इस प्रकार है-

कथा-

एक समय की बात है,महादेव जी स्नान करने के लिए कैलास से भोगावती गए । स्नान करते हुए पार्वती जी ने अपने शरीर के मेल से एक पुतला बनाया और उसे जल में डालकर सजीव किया , मेल से बने हुए उस पुतले का नाम पार्वतीजी ने गणेश रखा और उसे आज्ञा दी कि तुम मुद्गर लेकर द्वार पर बैठ जाओ , किसी भी पुरुष को भीतर न आने देना । भोगावती स्नान करके लौटने पर जब शिवजी पार्वती के पास भीतर जाने लगे तो उस बालक ने उनको रोक लिया , महादेवजी ने अपने इस अपमान से कुपित होकर बालक का सिर काट लिया और स्वयं भीतर चले गए । पार्वती ने शंकरजी की मुखाकृति देख कर समझा कि वे कदाचित भोजन में विलम्ब हो जाने के कारण क्रुद्ध है । इसलिए उन्होंने तुरन्त भोजन तैयार करके दो थालों में परोस दिया और महादेवजी को भोजन के लिए बुलाया । शंकरजी ने आकर देखा कि भोजन दो थालों में परोसा गया है तो उन्होंने पार्वतीजी से पूछा कि यह दूसरा थाल किसके लिए है । पार्वती जी ने कहा कि यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है , जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है । यह सुनकर शिवजी ने कहा कि मैंने तो उसका सिर काट डाला है । शिवजी के बात से पार्वतीजी बहुत व्याकुल हुई और उन्होंने उनसे उसे जीवित करने की प्रार्थना की । पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सिर काट कर बालक के धड़ से जोड़ दिया और उसे जीवित कर दिया । पार्वतीजी अपने पुत्र गणेश को पाकर बहुत प्रसन्न हुई । उन्होंने पति और पुत्र को भोजन कराकर पीछे स्वयं भी भोजन किया । 


ॐ जय गौरी नंदा

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