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शुक्रवार, 20 जून 2025

हरेला त्योहार (हरियाली )

उत्तराखंड का लोक त्योहार हरेला (हरियाली)

(कर्क संक्रान्ति १ गते श्रावण मास)

उत्तराखंड में समय समय पर ऋतु व संक्रान्ति के आगमन पर अनेक त्योहार मनाये जाते है । जिनकी प्रसिद्धि पूरे उत्तराखंड व देश विदेशों में दिखायी देता है । हरेला त्यौहार मूलरूप से उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में विशेष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।

हरेला त्यौहार हरियाली ,प्रकृति संरक्षण का प्रतीक है ,जो हमे पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।सावन के आगमन पर लोग वृक्षारोपण करते है। यह हरेला त्यौहार प्रकृति की रक्षा व सुख शांति के लिये मनाया जाता है। जिसमें सभी जन मानुष प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेते है ।

हरेला का त्यौहार भगवान शिव व शिव परिवार को समर्पित है ।सावन के आगमन पर लोग अपने घरों में मिट्टी से शिव परिवार की मूर्ति बनाकर अभिषेक पूजन करते है । मान्यताओं के अनुसार हरेले के दिन भगवान शिव व पार्वती जी का विवाह हुआ था ।इस लिये भगवान शिव जी को सावन का महीना प्रिय है ।

हरेला त्यौहार -

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हरेला त्यौहार श्रावण मास के १गते कर्क संक्रान्ति को मनाया जाता है । हरेला त्यौहार के नौ दिन ,दश दिन ,ग्यारह दिन पूर्व बांस या रिंगाल से बनी टोकरी में मिट्टी डालकर उसमे पांच या सात प्रकार के धान्य  जौ ,धान ,गहत ,भट्ट ,मक्का , सरसों ,कपास, झुंगर बोते है । रोज सुबह बोये हरेले में पानी दिया जाता है ।नौ दिन तक हरेले पर सूर्य का प्रकाश नही पड़ना चाहिए । हरेला घर के मंदिर या सामूहिक रूप से गाँव या परिवार के कुलदेवता के मंदिर में बोते है ।

हरेला त्यौहार के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत हो हरेला व देवताओं की पूजा करके हरेला काट कर प्रथम देवताओं को अर्पित किया जाता है ।फिर घर के बड़े बुजुर्ग या माताओं के हाथों से सबके सिर व कान में लगाया जाता है ।

हरेला लगाते समय माँ अपने बच्चों को शुभ आशीष देते हुवे कहती है ।

आशीष वचन -

लाग हर्या लाग पंचमी

लाग दशै लाग बोगाव

जी रये जागि रये

यो दिन यो मास भेंटने रया

दुब जस पनपी जाया

अगास जस उच्च 

धरती जस चकाव हे जाया

शेर जस तराण हो 

स्याव जस बुद्धि हो 

हिमालय में हिंयु रण तलक

गंग जमुन में पाणि रण तलक

जी रये जागि रये 

जो परिवार के सदस्य नॉकरी या अन्य कार्यो के लिए दूसरे शहरों में रहते है। उन्हें लिफाफे में हरेला डालकर डाक द्वारा भेजा जाता है । 

आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा 

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