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गुरुवार, 8 जुलाई 2021

अथ शिवतांडव - स्तोत्रम्

 

 ।। शिवताण्डव - स्तोत्रम् ।।


जटाटवी  गलज्जल प्रवाह  पावि  तस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् । 

डमड् डमड् डमड् डमन्निनाद वड्डमर्वयं 

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।। १ ।। 


जटा कटा हसम्भ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी

विलोल वीचि वल्लरी विराजमान मूर्द्धनि ।

धगद् -धगद् -धगज्ज्वलल्ललाट पट्ट पावके

किशोर चन्द्र शेखरे  रतिः प्रतिक्षणं  मम ।। २ ।।


धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बन्धु बन्धुर

स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे ।

कृपा कटाक्ष धोरणी  निरुद्ध  दुर्धरापदि 

क्वचिच्चिदम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।३ ।।


जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा

कदम्ब कुङ्कुम द्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदान्ध सिन्धु रस्फुरत्त्वगुत्तरीय मेदुरे 

मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूत भर्तरि ।। ४ ।।


सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर

प्रसून धूलि धोरणी विधूसराङघ्रि पीठभूः ।

भुजङ्गराज मालया निबद्ध जाट जूटकः 

श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः ।।५ ।।


ललाट चत्व रज्वलध्दनञ्जय फुलिंगभा

निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् ।

सुधा  मयूख लेखया  विराजमान  शेखरं

महाकपालि सम्पदे शिरी जटाल मस्तु नः ।।६ ।।


कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वलद्

धनन्जया हुती कृत प्रचण्ड पञ्च सायके ।

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक

प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ।।७ ।।


नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत्

कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।

निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः

कला निधान बन्धुरः श्रियं जगध्दुरन्धरः।।८ ।।


प्रफुल्ल नीलपंकज प्रपञ्च कालि मप्रभा

विलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम् । 

स्मरच्छिदं  पुरच्छिदं  भवच्छिदं  मखच्छिदं

गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ।।९ ।।


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी

रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधु व्रतम्  ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे ।।१० ।।


जयत्वद भ्रविभ्रम भ्रमद्भुजङ्ग मस्फुरत्

विनिर्गमत्क्रमत्स्फुरत्कराल भाल हव्यवाट् । 

घिमिद् घिमिद् धिमिध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल

ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ।।११ ।।


दृषद् विचित्र तल्पयोर्भुजङ्ग मौक्तिक स्रजो

र्गरिष्ठ रत्न लोष्टयोः सुहृद्विपक्ष पक्षयोः ।

तृणा रविन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः 

सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ।।१२ ।।


कदा निलिम्प निर्झरी निकुँज कोटरे वसन्

विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थ मञ्जलिं  वहन् ।

विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः 

शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।१३ ।। 


इमं हि नित्य मेव मुक्त मुत्त मोत्तमं    स्तवं 

पठन् स्मरन् ब्रुवन् नरो विशुद्ध मेति सन्ततम् । 

हरे गुरौ सु भक्तिमाशु याति  नान्यथा  गतिं 

विमोहनं हि देहिनां सु शंकरस्य चिन्तनम् ।।१४ ।।

 

     पूजा वसान समये दश वक्त्र गीतं 

     यः शम्भु पूजन मिदं पठति प्रदोषे ।

     तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां 

     लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ।।१५ ।। 


।। इति श्री रावणकृतं शिवताण्डव स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।। 


ॐ जय गौरी नंदा

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