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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

महर्षि वेदव्यास

तं  नमामि  महेशानं  मुनिं  धर्मविदां  वरम् ।

श्यामं जटाकलापेन  शोभमानं  शुभाननम् ॥ 

मुनीन् सूर्यप्रभान् धर्मान् पाठयन्तं सुवर्चसम् । 

नाना  पुराण  कर्तारं   वेदव्यासं   महाप्रभम् ॥ 


जो धर्म के निगूढ़ तत्त्व को जानने वालों में सर्वश्रेष्ठ हैं ,जिनका वर्ण श्याम है। और जिनका मंगलकारी मुखमण्डल जटाजूट से सुशोभित है तथा जो सूर्यके समान प्रभा वाले मुनियों को धर्मशास्त्रों का पाठ पढ़ाने वाले हैं ।ज्योतिर्मय हैं ,अत्यन्त कान्तिमान् हैं , सभी पुराणों तथा उपपुराणों के रचयिता हैं । उन महेशान वेदव्यासजी को बारम्बार नमस्कार है।

साक्षात् नारायण ही जगद्गुरु व्यासके रूप में अज्ञानान्धकार में निमग्न प्राणियों को सदाचार एवं धर्माचरण की शिक्षा देने के लिये अवतीर्ण हुए और प्रसिद्धि यही है कि व्यासजी आज भी अजर  अमर हैं । सच्चे भक्तों को आज भी उनके दर्शन होते हैं । वे वसिष्ठ जी के प्रपौत्र शक्ति ऋषि के पौत्र पराशर जी के पुत्र तथा महाभागवत शुकदेवजी के पिता हैं । वे शंकराचार्य , गोविन्दाचार्य और गौडपादाचार्य आदि विभूतियोंके परमगुरु रहे हैं । पुराणों में प्रसिद्धि है कि यमुना के द्वीप में उनका प्राकट्य हुआ , इसलिये वे ' द्वैपायन ' कहलाये और श्याम ( कृष्ण ) वर्णके थे , इसलिये ' कृष्णद्वैपायन ' कहलाये । वेदसंहिता का उन्होंने विभाजन किया , इसलिये वे ' व्यास ' किंवा ' वेदव्यास ' के नामसे प्रसिद्ध हुए । इतिहास , पुराण , उपपुराण , ब्रह्मसूत्र , व्यासस्मृति आदि धर्मशास्त्रों , योगदर्शन आदिके भाष्यों के वे ही रचयिता हैं । 

आज के विश्व का सारा ज्ञान - विज्ञान महर्षि वेदव्यासजी का ही उच्छिष्ट है ,अतः 'व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम् ' की उक्ति प्रसिद्ध है। 'यन्न भारते तन्न भारते 'के अनुसार धर्म , अर्थ , काम तथा मोक्ष आदिके विषयमें उनके द्वारा विरचित महाभारत में जो कुछ कहा गया है , वही अन्य लोगों ने कहा है और जो उन्होंने नहीं कहा , वह अन्यत्र भी नहीं मिलता अर्थात् अन्यत्र कोई नवीनता नहीं है , जो व्यासजी ने कह दिया , वही सबके लिये आधेय बन गया। भगवान् व्यासदेव का शुद्ध सत्संगरूपी धर्म - सत्र विविधरूप से निरन्तर चलता रहता था । उनकी धर्मगोष्ठी में ब्रह्मतत्त्व का निरूपण , परमात्मा के निर्गुण - सगुण स्वरूपों का विचार , धर्म - कर्मों की व्यापकता तथा उनके फलाफल की मीमांसा , धर्माचरण की महिमा आदि विषयों पर गहन चर्चा होती रहती थी । वे स्वयं भी धर्म के आचरण तथा सदाचार के पालन में निरन्तर निरत रहते थे । वस्तुतः धर्म - तत्त्व के विषय में आज संसार जो कुछ भी जानता है , वह वेदव्यासजी की ही देन है । वेद तो धर्म संहिताएँ ही हैं । पुराणों में धर्म , दर्शन एवं आचार मीमांसा पद - पदपर भरी पड़ी है । महाभारत तो धर्मविषयक कोश ही है । वह व्यासजी की ही रचना है । स्मृतियाँ तो ' व्यास ' लघुव्यास  इस प्रकारसे उनके नाम से ही - प्रसिद्ध हैं ।

वस्तुतः सच्चा धर्म और सम्यक् आचारदर्शन व्यासदेव की वाणी में ही संनिहित है । इसके लिये सारा विश्व अनन्तकाल तक उनका ऋणी रहेगा । उनकी  महिमा अपार है । शास्त्रों में उनका दिव्य चरित्र अनेक प्रकारसे गुम्फित है । वेदव्यासजी ने एक ही वेदके ऋक् , यजुः , साम और अथर्व नामसे चार विभाग किये । उन्होंने ऋग्वेद पैल को , सामवेद जैमिनि को , यजुर्वेद वैशम्पायन को और अथर्ववेद सुमन्तु को पढ़ाया था । उन्होंने परमहंसों की संहिता भागवत की रचनाकर उसे अपने निवृत्तिपरायण पुत्र शुकदेवजी को पढ़ाया था ।वेदव्यास जी की महिमा अपार है। व्यास जी ने सभी वेद धर्म गर्न्थो की रचना बद्रीनाथ धाम में की जो आज व्यास गुफा के रूप में स्थित है।जहाँ से ज्ञानगंगा का प्रवाह निकालकर पूरे विश्व को सिंचित करता है ,ऐसे भगवान वेदव्यासजी के चरणों मे कोटि कोटि नमन वन्दन करते है।

ॐ जय गौरी नंदा

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