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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

॥ महामृत्युंजय जप विधि ॥

 ॥ महामृत्युंजय जप विधि ॥


 

मनुष्य जीवन मे होने वाली अपमृत्यु दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है ।जीवन मे कभी ऐसी दुर्घटना होती है कि बहुत उपचार करने पर लाभ नही होता उस परिस्थिति में सबसे प्रभावशाली उपचार है महामृत्युंजय जप जिसके द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकते है । ग्रहो के द्वारा जीवन में होनी वाली दुर्घटना भी  महामृत्युंजय जप के द्वारा उन्हें रोका जा सकता है ।जो मनुष्य नित्य महामृत्युंजय जप करता है उसका जीवन निर्विकार निर्विरोध के जीवन यापन करता है । महामृत्युंजय भगवान बड़े दयालु , सदा भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहते है ।

संकल्प : - 

हाथ में जल लेकर संकल्प करे।

ॐ विष्णु : ३। अद्येहेत्यादि पूर्वोच्चारित एवं ग्रह गुणविशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ गोत्रः---  आत्मनः मम श्रुति स्मृति पुराणोक्त शुभपुण्यफल प्रापत्यर्थं । यजमानस्य ( वा ) मम शरीरे उत्पन्न पीड़ा सम्नार्थं तथा उत्तरोत्तर आरोग्यता प्राप्त्यर्थ श्री महामृत्युञ्जय देवता प्रीत्यर्थ श्री महामृत्युञ्जय मंत्र जपम् अहं करिष्ये ।

 विनियोगः- 

ॐ अस्य श्री महामृत्युञ्जय मंत्रस्य वशिष्ठः ऋषिः श्रीमहामृत्युञ्जय देवता  अनुष्टुप छन्दः ह्रौं  बीजम् जूं शक्तिः सः कीलकम् श्री मृत्युञ्जय प्रीत्यर्थे जपे न्यासे विनियोगः ।

 न्यास : - 

ऋष्यादिन्यास करें ।

             वशिष्ठ ऋषये नमः शिरसि ।

             अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे । 

             श्री महामृत्युञ्जय रुद्र देवतायै नमः हृदये ।

             ह्रौं बीजाय नमः गुह्ये । 

             जूं शक्तये नमः पादयोः ।

             सः कीलकाय नमः सर्वांगेषु ।

करन्यासः --

 ॐ त्र्यम्बक अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

 ॐ यजामहे तर्जनीभ्यां नमः । 

ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं मध्यमाभ्यां 

ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् अनामिकाभ्यां नमः । 

ॐ मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । 

ॐ मामृतात् करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः । 

 हृदयादि न्यासः  -- 

 ॐ त्र्यम्बक हृदयाय नमः ।

 ॐ यजामहे सिरसे स्वाहा ।

ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं शिखायै वषट् ।

ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् कवचाय हुम् ।

ॐ मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौखट् ।

ॐ मामृतात् अस्त्राय फट ।


ध्यानम् : - 

भगवान महामृत्युंजय जी का ध्यान करें।

चन्द्रोद्भासित मूर्धजं  सुरपति पीयूष पात्रं महद् ।

हस्ताब्जेनदधत् सुदिव्य ममलंहास्यास्य पंकेरुहम् ।

सूर्येन्द्रग्नि विलोचनं करतलैः पाशाक्षसूत्रांकुशान् ।

भोज विभ्रतमक्षयं पशुपति मृत्युञ्जयं संस्मरेत् ।।

 मंत्र :- १०८ कि माला लेकर मंत्र का जप करें ।

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुव : स्व : ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्  ॐ स्वः भुवः भूः ॐ स : जूं हौं ॐ।

जप पूर्ण करने के पश्चात न्यास कर जप भगवान महामृत्युंजय महादेव जी को अर्पित करें ।

 उत्तरन्यासं कृत्वाः-

गुह्यातिगुह्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।

सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥

मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि माम शरणागतम् ।

जन्म मृत्यु जरारोगैः पीड़ितं कर्म बन्धनैः ।।

 अर्पण : - अनेन महामृत्युञ्जय जपाख्येन कर्मणा श्रीमहामृत्युञ्जय रुद्रो  देवताः प्रियतां न मम।।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
          वसई
9004013983

ॐ जय गौरी नंदा

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