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शनिवार, 10 अप्रैल 2021

धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त

धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त---

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धोबी--

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त्रेतायुग की बात है , अयोध्यापुरी में श्रीरामचन्द्रजी राज्य करते थे । उनके राज्य काल में प्रजा की मनोवृत्ति एवं दुःख - सुख जानने के लिये गुप्तचर घूमा करते थे । एक दिन उन गुप्तचरों के सुनते हुए किसी धोबी ने अपनी भार्यासे कहा ' तू दुष्टा है और दूसरे के घर मे रहकर आयी है । इसलिये अब तुझे मैं नहीं रक्खूगा । स्त्री के लोभी राजा राम भले ही सीता को रख लें , किंतु मैं तुझे नहीं स्वीकार करूँगा । ' इस प्रकार बहुत से लोगों के मुख से आक्षेप युक्त बात सुनकर श्रीराघवेन्द्र ने लोकापवाद के भय से सहसा सीता को वन में त्याग दिया । रघु - कुल - तिलक श्रीरामने उस धोबीको दण्ड देनेकी इच्छा नहीं की । वही द्वापर के अन्त मे मथुरा पुरी में फिर धोबी ही हुआ । उस ने सीता के प्रति जो  कुवाच्य कहा था , उस दोष की शान्तिके लिये श्रीहरि ने स्वयं ही उसका  वध किया , तथापि उन श्रीकरुणानिधि ने उस धोबी को मोक्ष प्रदान किया ।

दर्जी--

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पहले मिथिलापुरी मै एक दर्जी था , जो भगवान् श्रीहरि के प्रति भक्तिभाव रखता था । उसने श्रीरामके विवाह के समय राजा जनक की आज्ञा से श्रीराम और लक्ष्मण के दुल्हा वेष के लिये महीन डोरों से कपड़े सीये थे । वह वस्त्र सीने की कला में अत्यन्त कुशल था । राजन् ! करोड़ों कामदेवों के समान लावण्य वाले सुन्दर श्रीराम और लक्ष्मण को देखकर वह महामनस्वी दजी मोहित हो गया था । उसने मन ही मन यह इच्छा की कि मैं कभी अपने हाथोंसे इनके अङ्गों में वस्त्र पहिनाऊँ । श्रीरघुनाथजी सर्वज्ञ हैं । उन्होंने मन - ही मन उसे वर दे दिया कि द्वापरके अन्त मे ब्रजमण्डल में तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा । श्रीरामचन्द्र जी के वरदान से वही यह दर्जी मथुरा में प्रकट हुआ था , जिसने उन दोनों बन्धुओं की वेष रचना करके उनका सारूप्य प्राप्त कर लिया ।

सुदामा --

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राज कुबेर का एक परम रमणीय सुन्दर वन है , जो चैत्ररथ - वनके नाम से प्रसिद्ध है । उसमें फूल लगाने वाला एक माली था , जो हेममाली के नाम से पुकारा जाता था। वह भगवान विष्णु के भजन में तत्पर,शान्त, दानशील महान सत्संगी था। उसने भगवान कृष्ण की प्राप्ति के लिये देवताओं की पूजा की ,पांच हजार वर्षों तक प्रतिदिन तीन सौ कमल पुष्प लेकर वह भगवान शंकर जी के आगे रखता व प्रणाम करता था ।एक दिन करुणानिधि त्रिनेत्रधारी भगवान शिव उसके ऊपर प्रसन्न हो बोले-"परम बुद्धिमान मालाकार तुम इच्छानुसार वर मांगो।" तब हेममाली ने हाथ जोड़कर महादेव जी को नमस्कार किया और परिक्रमा करके सामने मस्तक झुका कर कहा "प्रभु श्रीकृष्ण कभी मेरे घर पधारें औऱ इन नेत्रों से उनका प्रत्यक्ष दर्शन  करुँ - ऐसी मेरी इच्छा है 

भगवान महादेव ने कहा द्वापर के अंत मे तुम्हारा मनोरथ पूर्ण सफल होगा ।

वही महामना हेममाली द्वापर के अन्त में सुदामा माली हुआ था ।

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ॐ जय गौरी नंदा

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