सोमवार, 24 मई 2021

खग्रासचंद्रग्रहण २६ मई २०२१

 खग्रासचन्द्रग्रहण - 

वैशाखशुक्ल पूर्णिमा बुधवार ( दिनांक २६ मई २०२१ )  खग्रासचन्द्रग्रहण भारत में केवल पूर्वी भाग बंगाल आसाम के कुछ क्षेत्रो में मोक्ष काल के समय दृश्य होगा । शेष भारत मे ग्रहण दृश्य नही होगा । भारत के अलावा यह ग्रहण दक्षिणपूर्व एशिया , आस्ट्रेलिया ,जापान ,रूस , कनाडा , उत्तरी अमेरिका आदि क्षेत्रों में दृश्य होगा ।

भारतीयसमयानुसार खण्डचन्द्रग्रहण का प्रारंभ घं .०३ मि .१४ पर होगा तथा

ग्रहण का मध्य पं .०४ मि .४ ९ सायं

इसका मोक्ष घं .०६ मि . २३ सायं पर होगा । 

यह खग्रासचन्द्रग्रहण की कुल अवधि  घं०३ मि.९ को है ।

ग्रहण का सूतक प्रातः ०९:१४ से प्रारंभ होगा ।

भारत के पूर्वी भाग के अलावा यह ग्रहण अन्य भागों में दृश्य नही होगा ।जो भारत के उन क्षेत्रों में तत सम्बन्धी नियम लागू नही होते ।

नोट-

बालक, वृद्ध और रोगी को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति को ग्रहणकाल एवं  ग्रहण के सूतककाल मे भोजन करना निषेध है ।

ग्रहण का महात्म्य --

ग्रहण के समय गंगा स्नान का विशेष महत्व है ।मत्स्य पुराण में कहा कि ग्रहण काल मे तीर्थ स्नान व जप दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है ।

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शनिवार, 22 मई 2021

शिववास तिथि ज्ञान

रुद्रहृदयोपनिषद के अनुसार सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र मौजूद हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। ... धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।

ज्योतिषाचार्यो की मानें तो रुद्राभिषेक तभी करना चाहिए जब शिव जी का निवास मंगलकारी हो ।

हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी को शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।हर महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और अमावस्या को भी शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।

शिववास तिथि एवं फल

शिववास मुहूर्त के अनुसार यह तिथियाँ लिखी  गयी  हैं .. मासिक शिवरात्रि शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को भी होता है जिसे प्रदोष व्रत कहते हैं और उसमे रुद्राभिषेक का विधान है ऐसा हमारे पंचांग कहते हैं  .. वैसे त्रयोदशी तिथि भगवान् शिव को ही समर्पित है परन्तु कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मैं रुद्राभिषेक की सलाह नहीं देता .. महाशिवरात्रि शिव जी के विशेष दिन के कारण क्षम्य है साथ ही श्रावण मास में तिथि या मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती अतः पूरे श्रावण पर्यंत रुद्राभिषेक कर सकते हैं

शिव वास ज्ञान : 

वर्तमान तिथि को २ से गुणा करके पांच जोड़ें फिर ७ का भाग दें . शेष १ रहे तो शिव वास कैलाश में, २ से गौरी पाशर्व में, ३ से वृषारूड़ श्रेष्ठ, ४ से सभा में सामान्य एवं ५ से ज्ञानबेला में श्रेष्ठ होता है. यदि शेष ६ रहे तो क्रीड़ा में तथा शून्य से शमशान में अशुभ होता है. तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए. शिवार्चन के लिए शुभ तिथियाँ शुक्ल पक्ष में २,५,६,७,९,१२,१३,१४ और कृष्ण पक्ष में १,४,५,६,८,११,१२,१३,३० 

शिव वास देखने का सूत्र

शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल संख्या 30 होती है । इस तरह से कोई भी मुहूर्त देखने के लिए 1 से 30 तक की संख्या को ही लेना चाहिए ।

तिथी च द्विगुणी कृत्वा तामे पञ्च समाजयेत ।।सप्तभि (मुनिभिः) हरेद्भागं शेषे शिव वाससं ।।एक शेषे तू कैलाशे, द्वितीये गौरी संनिधौ ।।

तृतीये वृष भारुढौ सभायां च चतुर्थके ।।

पंचमे तू क्रीडायां भोजने च षष्टकं ।।

सप्तमे श्मशाने च शिववास: प्रकीर्तितः ।।

अर्थ:- तिथि को दुगुना करें,उसमे पांच को जोड़ देना चाहिए,कुल योग में, 7 का भाग देने पर, 1.2.3. शेष बचे तो इच्छा पूर्ति होता है,शिववास अच्छा बनता है । बाकि बचे तो हानिकारक होता है, शुभ नहीं है ।।

इसे इस प्रकार समझना चाहिए ...

१.कैलाश अर्थात = सुख

२. गौरिसंग = सुख एवं संपत्ति

३.वृषभारूढ = अभिष्ट्सिद्धि

४.सभा = सन्ताप

५.भोजन = पीड़ा

६.क्रीड़ा = कष्ट

७.श्मशाने = मरण 

इस समय नहीं किया जाता तिथियों का विचार

कुछ व्रत और त्यौहार रुद्राभिषेक के लिए हमेशा शुभ ही होते हैं। उन दिनों में तिथियों का ध्यान रखने की जरूरत नहीं होती है ।

1. शिवरात्री, प्रदोष और सावन के सोमवार को शिव के निवास पर विचार नहीं किया जाता। 

2. सिद्ध पीठ या ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में भी शिव के निवास पर विचार नहीं किया जाता।

रुद्राभिषेक के लिए ये स्थान और समय दोनों हमेशा ही मंगलकारी माने जाते हैं।

फुलदेई व फुल सग्यान

फूलदेई अर्थात फुल सग्यान 

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फुलदेई त्यौहार भारत के उत्तराखंड राज्य का लोकपर्व फूल देई संक्रान्ति चैत्र मास के १गते(पैट) को मनाया जाता है ।जो चैत्र मास के आगमन पर मनाया जाता है।

देवभूमि उत्तराखंड में बच्चे चैत्र मास के पहले दिन  बुराँस, फ्योंली, सरसों, कठफ्योंली, गुलाब, सेब, आड़ू, खुमानी,हिसार आदि फूलों को तोड़कर घर लाते हैं।

फिर दूसरे दिन वो एक थाल या रिंगाल की टोकरी में चावल के साथ रखकर गाँव के सभी बच्चे घर-घर जाकर फूलदेई का ये माँगल आशीष गीत गाते है ।

लोग बच्चों को आशीर्वाद देकर चावल, मिठाई और पैसे दक्षिणा के रूप में प्रस्तुत करते हैं।।


फुलदेई मंगल आशीष --

फूल देई, छम्मा देई,

देणी द्वार, भर भकार,

ये देली स बारम्बार नमस्कार,

फूले द्वार

हमर टुपर भरी जेँ

तुमर भकार भरी जौ

फूल देई-छ्म्मा देई


माँगल गीत के बोल का अर्थ :-


फूल देई – देहली फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो ।

छम्मा देई – देहली, क्षमाशील अर्थात सबकी रक्षा करे ।

दैणी द्वार – देहली, घर व समय सबके लिए दांया अर्थात सफल हो।

भरि भकार – सबके घरों में अन्न धन्न का पूर्ण भंडार भरा हो।

देखा जाए तो "फूल संक्रान्ति" बच्चों को प्रकृति प्रेम और सामाजिक चिंतन की शिक्षा उनके बचपन से ही देने का एक आध्यात्मिक पर्व है।।

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बुधवार, 28 अप्रैल 2021

श्री बटुकभैरव मंत्र जप विधि

                ॥ ॐ गं महागणपतये नमः ॥

॥ श्रीबटुकभैरवमंत्र जप विधि ॥


विनियोगः --

ॐ अस्य श्री आपदुद्धारण - बटुकभैरव मंत्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः त्रिष्टुप्  छन्दः श्री बटुकभैरवो देवता ह्रीं बीजं स्वाहा शक्ति:कीलकं मम धर्मार्थ काम  मोक्षार्थं जपे विनियोगः।

अथ ऋष्यादिन्यासः --

बृहदारण्यक ऋषये नमः।        शिरसि

त्रिष्टुप् छन्दसे नमः ।                मुखे

श्रीबटुकभैरव देवतायै नमः ।     हृदये

ह्रीं शक्तये नमः।                      पादयोः

भैरव कीलकाय नमः।             सर्वांगे      

  

अथ करन्यासः -

ॐ ह्रां वां अगुष्ठाभ्यां नमः । 

ॐ ह्रीं वीं तर्जनीभ्यां ।

ॐ ह्रूं वूं  मध्यमाभ्यां नमः ।  

ॐ ह्रैं वैं अनामिकाभ्यां नमः ।  

ॐ ह्रौं वौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रः वः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । 


 अथ षडङ्गन्यासः --

ॐ ह्रां वां हृदयाय नमः ।

ॐ ह्रीं वी शिरसे स्वाहा ।

ॐह्रूं वूं शिखायै वष

ॐ ह्रैं वैं कवचाय हूँ । 

ॐ ह्रौं वौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ हः वः अस्त्राय फट् । 


अथ ध्यानम्

करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणि-

स्तरुणतिमिरनील - व्यालयज्ञोपवीती । 

क्रतुसमयसपर्य्याविघ्न - विच्छेदहेतुर्

जयति बुटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥ 


इस प्रकार न्यास एवं ध्यान करके पहले बताये अनुसार मानसोपचार पूजा करें तथा माला लेकर उसकी गन्धाक्षत से पूजा करके प्रार्थना करें।

ॐ  लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि । 

ॐ  हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि । 

ॐ  यं वाय्यात्मकं धूपमाघ्रापयामि । 

ॐ  रं वह्नयात्मकं दीपं दर्शयामि । 

ॐ  वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि । 

ॐ  सं सर्वात्मकं राजोपचारन् परिकल्पयामि । 

मालाप्रार्थना :--

महामाले महामाये ! सर्वशक्तिस्वरूपिणि । 

चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥ 

अविघ्नं कुरुमाले ! त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।

जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये ॥ 

जप मन्त्र : --

'ॐ ह्रीं  वुटुकाय आपदुद्वारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं ॐ, 

108 बार या यथाशक्ति जप करें ।


इसके पश्चात जप को श्री भैरवार्पण करें 

अनेन श्रीवटुकभैरवमन्त्रजपाख्येन कर्मणा श्रीवटुकभैरवः प्रीयताम् ।। 

                    ॥ इति जपविधिः ॥ 

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आचार्य हरीश चन्द्र लखेड़ा 
         वसई

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

॥ महामृत्युंजय जप विधि ॥

 ॥ महामृत्युंजय जप विधि ॥


 

मनुष्य जीवन मे होने वाली अपमृत्यु दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है ।जीवन मे कभी ऐसी दुर्घटना होती है कि बहुत उपचार करने पर लाभ नही होता उस परिस्थिति में सबसे प्रभावशाली उपचार है महामृत्युंजय जप जिसके द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकते है । ग्रहो के द्वारा जीवन में होनी वाली दुर्घटना भी  महामृत्युंजय जप के द्वारा उन्हें रोका जा सकता है ।जो मनुष्य नित्य महामृत्युंजय जप करता है उसका जीवन निर्विकार निर्विरोध के जीवन यापन करता है । महामृत्युंजय भगवान बड़े दयालु , सदा भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहते है ।

संकल्प : - 

हाथ में जल लेकर संकल्प करे।

ॐ विष्णु : ३। अद्येहेत्यादि पूर्वोच्चारित एवं ग्रह गुणविशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ गोत्रः---  आत्मनः मम श्रुति स्मृति पुराणोक्त शुभपुण्यफल प्रापत्यर्थं । यजमानस्य ( वा ) मम शरीरे उत्पन्न पीड़ा सम्नार्थं तथा उत्तरोत्तर आरोग्यता प्राप्त्यर्थ श्री महामृत्युञ्जय देवता प्रीत्यर्थ श्री महामृत्युञ्जय मंत्र जपम् अहं करिष्ये ।

 विनियोगः- 

ॐ अस्य श्री महामृत्युञ्जय मंत्रस्य वशिष्ठः ऋषिः श्रीमहामृत्युञ्जय देवता  अनुष्टुप छन्दः ह्रौं  बीजम् जूं शक्तिः सः कीलकम् श्री मृत्युञ्जय प्रीत्यर्थे जपे न्यासे विनियोगः ।

 न्यास : - 

ऋष्यादिन्यास करें ।

             वशिष्ठ ऋषये नमः शिरसि ।

             अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे । 

             श्री महामृत्युञ्जय रुद्र देवतायै नमः हृदये ।

             ह्रौं बीजाय नमः गुह्ये । 

             जूं शक्तये नमः पादयोः ।

             सः कीलकाय नमः सर्वांगेषु ।

करन्यासः --

 ॐ त्र्यम्बक अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

 ॐ यजामहे तर्जनीभ्यां नमः । 

ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं मध्यमाभ्यां 

ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् अनामिकाभ्यां नमः । 

ॐ मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । 

ॐ मामृतात् करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः । 

 हृदयादि न्यासः  -- 

 ॐ त्र्यम्बक हृदयाय नमः ।

 ॐ यजामहे सिरसे स्वाहा ।

ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं शिखायै वषट् ।

ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् कवचाय हुम् ।

ॐ मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौखट् ।

ॐ मामृतात् अस्त्राय फट ।


ध्यानम् : - 

भगवान महामृत्युंजय जी का ध्यान करें।

चन्द्रोद्भासित मूर्धजं  सुरपति पीयूष पात्रं महद् ।

हस्ताब्जेनदधत् सुदिव्य ममलंहास्यास्य पंकेरुहम् ।

सूर्येन्द्रग्नि विलोचनं करतलैः पाशाक्षसूत्रांकुशान् ।

भोज विभ्रतमक्षयं पशुपति मृत्युञ्जयं संस्मरेत् ।।

 मंत्र :- १०८ कि माला लेकर मंत्र का जप करें ।

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुव : स्व : ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्  ॐ स्वः भुवः भूः ॐ स : जूं हौं ॐ।

जप पूर्ण करने के पश्चात न्यास कर जप भगवान महामृत्युंजय महादेव जी को अर्पित करें ।

 उत्तरन्यासं कृत्वाः-

गुह्यातिगुह्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।

सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥

मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि माम शरणागतम् ।

जन्म मृत्यु जरारोगैः पीड़ितं कर्म बन्धनैः ।।

 अर्पण : - अनेन महामृत्युञ्जय जपाख्येन कर्मणा श्रीमहामृत्युञ्जय रुद्रो  देवताः प्रियतां न मम।।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
          वसई
9004013983

श्री बगलाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

।। श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्।। 

विनोयोगः --

ॐ अस्य श्री बगलामुखी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्रस्य भगवान नारद ऋषि अनुष्टुप छन्दः श्री बगलामुखी देवता श्री बगलामुखी देवी प्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः ।

अथ ध्यानं-

सौवर्णा सनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशु कोल्लासिनी ।

हेमाभांसुरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पक सर्ग्युतां ।।

हस्तेमुद्गर  पाश बद्ध  रसना स विभ्रति  भूषणै ।

र्व्याप्ताङ्गी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनी चिंतयें ।

स्तोत्रं :-

ब्रह्मास्त्र रुपिणी देवी माता श्री बगलामुखी । 

चिच्छक्तिर्ज्ञान रूपा च ब्रह्मानंद प्रदायनी ।।

महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुर सुन्दरी ।

भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।।

ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।

वाराही छिन्न मस्ता च तारा काली सरस्वती ।।

जगत्पूज्या महामाया कामेशी भग मालिनी ।

दक्ष पुत्री शिवांकस्था शिवरूपा शिवप्रिया ।।

सर्व सम्पत करीदेवी सर्वलोक वशंकरी ।

वेद विद्या महापूज्या भक्ता द्वेषी भयंकरी ।।

स्तम्भरूपा स्तम्भिनी च दुष्ट स्तंभन कारिणी ।

मेना पुत्री शिवा नंदा मातंगी भुवनेश्वरी ।

नारसिंही नरेंद्राच  नृपाराध्या नरोत्तमा ।।

नागिनी नागपुत्री च नगराज सुता उमा ।

पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्र प्रिया शुभा ।।

पीतगन्ध प्रिया रामा पीत रत्नार्चिता शिवा ।

अर्धचंद्र धरी देवी गदा मुद्गार धारिणी ।।

सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।

विष्णु रूपा जगन्मोहा ब्रह्मरूपा हरि प्रिया ।।

रूद्र रूपा रूद्र शक्ति श्चिन्मयी भक्त वत्सला ।

लोकमाता शिवा संध्या शिव पूजन तत्परा ।।

धनाध्यक्षा धनेशी  च  धर्मदा धनदा धना ।

चण्डदर्पहरी देवी  शुम्भासुर  निवर्हिणी ।।

राजराजेश्वरी देवी   महिषासुर  मर्दिनी ।

मधुकैटभ हंत्री च रक्त बीज विनाशिनी ।।

धूम्राक्ष दैत्यहंत्री  च भण्डासुर विनाशीनी ।

रेणु पुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।।

ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रु नाशिनीी। 

इंद्राणी  इंद्र पूज्या च  गुह माता गुणेश्वरी ।।

वज्रपाश धरादेवी  जिह्वा मुद्गर  धारिणी ।

भक्तानन्दकरी  देवी  बगला  परमेश्वरी ।।

अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगला यास्तु यः पठेत ।

रिपुबाधा विनिर्मुक्त: लक्ष्मीस्थैर्य मवाप्नुयात ।।

भूत प्रेत  पिशाचाश्च  ग्रह पीड़ा  निवारणम ।

राजानों वश्य मांयान्ति सर्वेश्वर्यम च विन्दति ।।

नाना विद्याम च लभते राज्यम प्राप्नोति निश्चितम ।

भुक्ति मुक्ति मवाप्नोति साक्षात शिव समय भवेत ।।

।।इति रुद्रयामले बागलाष्टोत्तरशत नाम स्तोत्रम।।


सोमवार, 12 अप्रैल 2021

नवरात्र दुर्गापूजा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा


सर्व  मंगल मांगल्ये  शिवे  सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये   त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते।।


चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ कर नवमी तक माँ दुर्गा भगवती की आराधना की जाती है ।माता के नौ अवतार जनजन में पूज्य है।

नव वर्ष के प्रथम दिन से अष्टमी अथवा नवमी तक भक्त माता का पूजन कर कन्याओं को वस्त्रादि भेंट करते है ।


चैत्र शुक्ल वासन्तिक नवरात्र 

नवरात्रे स्त्री - पुरुषों दोनों को चाहिए कि वह नवरात्रों के इन नौ दिनों तक व्रत करें। यदि यह संभव न हो सके तो पहले और अन्तिम नवरात्र व्रत करें । नित्य व्रत मे एक समय फलाहार कर सकते है,निराहारी यथाशक्ति व्रत का पालन करे।नित्य पूजा में परिवार के सभी सदस्य पूजा करें और पूजा के बाद ही फल प्रसाद ग्रहण करें ।

 पूजा की विधि एवं विधान -

नवरात्रि पूजा घर पर ही किसी एक निश्चित स्थान पर प्रतिदिन की जाती है। पूजास्थल कच्चा होने पर गोबर से लीपकर और पक्का होने पर जल से धोकर शुद्ध करने के बाद वहां लकड़ी का चौरंग या पाट रखा जाता है,उस  पाट मेंं लाल कपड़ा बिछाकर चावल से गणपति ,कलश, मातृका ,नवग्रह स्थापन पीठ बनाना चाहिये।

सर्व प्रथम गणेश पूजा करके,लोटा या घड़े में मौली बांधकर नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर कलश को जल से पूर्ण कर पंच पल्लव लगाये कलश के अन्दर सुपारी, हल्दी गांठ, दुर्वा ,पैसा डालकर नारियल रख कलश स्थापन करें।मातृका ,नवग्रह स्थापना के बाद ,भगवती भवानी की  नवदुर्गा की फोटो या प्रतिमा को चौरंग में स्थापित कर माता भगवती की विधिवत पूजा करें। माता का आवाहन कर चावल से प्रतिष्ठा करें।माता नवदुर्गा को पाद्य अर्घ्य आचमनी दूध दही घी शहद शक्कर पंचामृत से स्नान करावे,मातारानी को सुन्दर वस्त्र भेंट करें, गंध अक्षत पुष्पहार श्रृंगार चढ़ाये।नैवेद्य फल दक्षिणा चढ़ाकर आरति स्त्रोत्रादि क्षमा नमस्कार करें।नव दुर्गा की प्रसन्नता के लिए ब्राह्मण के द्वारा नित्य सप्तसती पाठ करना चाहिये। नवरात्रि में माता सिंहवाहिनी के नव रूपों की पूजा करें। माता रानी के मण्डप के दोनों ओर किसी बाँस या मिट्टी के पात्र में जौ या सप्तधान्य बोना चाहिये।

कुल परम्परा के अनुसार अष्टमी या नवमी में परिवार के सभी सदस्य हवन में विशेष आहुति प्रदान करते है।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
      ज्योतिषाचार्य
            वसई

नव वर्ष नव संवत्सर फल संवत २०७८

 नव वर्ष नव संवत्सर फल संवत २०७८

नव संवत्सर फल -

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इस वर्ष के प्रारम्भ में आनन्द ' नामक संवत्सर रहेगा । वैशाख कृष्णपक्ष रविवार ( २ मई २०२१ )  राक्षस नामक संवत्सर का प्रवेश होगा , किन्तु वर्ष पर्यन्त संकल्पादि में आनन्द ' संवत्सर का ही विनियोग करना चाहिए । इस वर्ष राजा मंगल तथा मन्त्री भी मंगल  ही है । राजा और मन्त्री एक ही होने से सत्तापक्ष में आन्तरिक समरसता बनी रहेगी ।  प्राकृतिक आपदा से भूकम्प , समुद्री तूफान , कहीं महानगरों में उग्रवाद जन्य , जनधन हानि का संकेत है । विश्व के पश्चिम - दक्षिण भूभाग में भूकम्प , अग्निकाण्ड , यान दुर्घटना या अन्य दैविक प्रकोप से हानि होगी । विश्व व्यापार में परिवर्तन होकर सुधार होने पर भी अनेक राष्ट्रों में महंगाई , बेरोजगारी की  समस्यायें उभरेगी । देश के अनेक प्रान्तों में ठगी लूट चोरी आदि की घटनाये वर्ष घटित होगी । कट्टरवादी ताकतें दक्षिणी - पशिमी प्रान्त व देश के मध्य भाग में अनेक उपद्रवकारी घटनाओं को जन्म देगी । वर्षलग्न के विचार शक्तिशाली देशो में अस्तित्व को लेकर बार - बार संघर्ष की स्थितियाँ उत्पन्न होगी ।

सज्जन साधु दुखी होंगे , दुर्जन चोर डकैत मालामाल होंगे। बारिश मध्यम होने से खेत सूख जायंगे खड़ी फसलो को भारी नुकसान होगा ।

वर्षाधिकारी --

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पद   -   देवता   - फल

राजा -   मंगल -   अग्निभय

मंत्री -    मंगल -    बीमारियाँ

सस्येश - शुक्र -     सुखदाई

धान्येश - बुध -      अधिक वर्षा

मेघेश -    चंद्र -     अधिक लाभ

रसेश-     सूर्य -      निरसता

निरसेश - शुक्र -     लाभ

फलेश-   चंद्र -       जनधन लाभ

धनेश -   गुरु -        लाभ

दुर्गेश-   चंद्र -        आनंद

मेषादि राशि आय व्यय चक्र

विषुवत संक्रान्ति चक्र 

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विशेष-  इस वर्ष विषुवत संक्रान्ति  वामपाद दोष जिन जातकों का जन्म नक्षत्र कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा है उन्हें विषुवत संक्रान्ति अरिष्ट निवारण हेतु चांदी का पैर, वस्त्र,चावल दान कर शिवार्चन करें। 


 चन्द्रबल अशुद्धि (अपैट) 

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विषुवत संक्रांति वृष कन्या मकर  राशि के जातकों को अपैट है।

शान्ति के लिए दुर्गासप्तशती पाठ कर वस्त्र,अन्नादि दान करें।। 

मेपादि राशियो का वार्षिक फल -

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संवत २०७८ 

मेष - मेष राशि वालों को इस वर्ष मन में उत्साह  मनोबल ऊंचा रहेगा । अनेक उपलब्धि प्राप्त होगी । आर्थिक सम्पन्नता बनी रहेगी । कारोबारी गतिविधियाँ सुचारु रुप से सम्पन्न होंगी । पारिवारिक एवं कुटुम्बीय तनाव में कमी होंगी । वेतनभोगी कर्मचारियों के लिये यह वर्ष सामान्य रहेगा । मानसिक व्यथा रहेगी । स्त्रियों को कष्ट , स्वजनो से विरोध होगा । सट्टा शेयर व्यसनादि से हानि होगी । भाई बहनों के साथ सामंजस्यता कम होगी । सम्पत्ति , वाहन के क्रय विक्रय हेतु वर्ष उत्तम है । सन्तान पक्ष की उन्नति के योग है । न्यायालीय कार्यों में मंदगति से प्रगति होगी । वर्ष के १,४,८,१२ मास नेष्ट है । 


वृष - यह वर्ष वृष राशि वालों के लिये उन्नतिदायक होगा । विलासिता पर व्यय होगा । कुछ संघर्ष पश्चात सफलता मिलेगी । मित्रों से सहयोग प्राप्त होगा । स्वास्थ्य सम्बन्धी अल्प कष्ट संभव है । वाद विवाद से दूर रहे । जठर संबंधी व्याधि होगी । नवीन सम्पत्ति क्रय हेतु वर्ष का उत्तरार्द्ध शुभ है। विद्यार्थीयों को उचित सफलता प्राप्त नहीं होगी । सामाजिक तथा न्यायालीय कार्यों में प्रगति तथा दाम्पत्य में तनाव होगा । धार्मिक कार्य सम्पन्न होगे । कर्मचारीयो के लिए यह वर्ष शुभ है । वर्ष के १,३,५ , ९ मास नेष्ट है । 


मिथुन - मिथुन राशिवालों को अष्टम शनि की ढैया चलेगी । अतः विश्वासघात संभव है । धनहानि , कुटुम्ब सुख में कमी आयेगी । अत्यधिक पूंजी निवेश करने में परहेज करें हानि संभव है तथा अनावश्यक अपव्यय होगा । वाणी में कटुता से विवाद संभव है । भाई बहनों के साथ सामन्जस्यता का अभाव रहेगा । विद्यार्थीयों को उचित सफलता प्राप्त नहीं होगी । कोई अनिच्छित समझौता संभव है । संतान पक्ष से मतभेद होगा । शत्रु से कष्ट संभव है । गृहस्थ जीवन में सामान्य सुख सहयोग बना रहेगा । वर्ष के २,४,६,१० मास नेष्ट है । 

कर्क - कर्क राशिवालों को इस वर्ष कुछ बाधाओं एवं संघर्ष के पश्चात सफलता मिलेगी । सहयोग द्वारा सम्पत्ति अर्जित होगी तथा बाधित कार्य सम्पन्न होंगे । कुटुम्बीय सहयोग मिलेगा । धैर्य में कमी तथा आवेश में किये कार्य द्वारा हानि संभव है । सम्पति , वाहन के क्रय विक्रय में लाभ होगा । राजनैतिक सम्बन्धों में प्रगाढ़ता होगी । माता पिता के स्वास्थ्य में बाधा संभव है । विद्यार्थियों हेतु यह वर्ष उत्तम रहेगा । किसी पर्यटन स्थल की यात्रा संभव है । संतान पक्ष की 3 समस्याएँ कम होंगी । व्यापार में लाभ होगा । उच्चपदाधिकारियो से संबध लाभप्रद होगा । वर्ष के ३,५,७,११ मास नेष्ट है । 

सिंह - यह वर्ष अधिकांशतःलाभप्रद रहेगा । पारिवारिक सुख में वृद्धि होगी । स्वास्थ्य उत्तम रहेगा , कार्यक्षेत्र का प्रसार कष्टों में कमी होगी । प्रतिष्टित जनों से सम्पर्क होगा । उच्चपद की प्राप्ति , राजसम्मान , आर्थिक मामलों में लाभ होगा । बाधित धन की प्राप्ति होगी । भोग विलास पर व्यय होगा । सम्पत्ति के क्रय विक्रय में लाभ होगा । माता - पिता संग धार्मिकयात्रा अथवा पत्नी के संग यात्रा सभव है । विद्यार्थियों के लिये यह वर्ष अध्ययन की दृष्टि से लाभकारी रहेगा । स्त्री से तालमेल बना रहेगा । धार्मिक कार्य सफल होंगे । नौकरी वालों के लिये यह वर्ष लाभकारी रहेगा । वर्ष के ४,६,८,१२ मास नेष्ट है । 


कन्या - यह वर्ष सुखदायी रहेगा । कार्य मंद गति से सम्पत्र होंगे । स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें संभव है । आर्थिक मामलों में सामान्य संघर्ष होगा । धन का अपव्यय होगा । भूमि क्रय का योग है । माता - पिता को शारीरिक कष्ट होगा । कर्मचारियो हेतु वर्ष सामान्य रहेगा । अतिरिक्त लाभ का योग है । व्यापार में अस्थिरता रहेगी । धार्मिक कृत्यों में अभिरुचि रहेगी । बौद्धिक कार्यों में यश की प्राप्ति होगी । न्यायातीय कार्यों में सकारात्मक स्थिति बनेगी । परिवारिक मतभेदो में सुधार होगा । कुटुम्बाय सुख की प्राप्ति होगी । वर्ष के १,५,७ , ९ मास नेष्ट है । 


तुला - तुलाराशि को चतुर्थ शनि की ढैय्या का प्रभाव रहेगा । सभी कार्य मंद गति से सम्पन्न होगें । लघुयात्रा का योग है । मानसिक तनाव रहेगा । अत्यधिक विस्वास हानिप्रद होगा । विलासिता पर व्यय होगा । व्यवसाय में अल्पलाभ वाणी कटुता से विवाद संभव है । भाई बहनों की उन्नति होगी । भूमि मकान , वाहन के क्रय विक्रय में हानि होगी । माता पिता से मतभेद संभव है । विद्यार्थियों को अध्य्यन क्षेत्र में अभिरुचि कम होगी । सन्तान पक्ष से सामान्य सहयोग होगा । वैवाहिक जीवन समान्य । विरोधियो से मित्रता संभव है । न्यायालीय कार्यों में अस्थिरता रहेगी । वर्ष के २,६,८,१० मास नेष्ट है । 


वृश्चिक - वृश्चिकराशि वालों को यह वर्ष अधिकांशत : लाभ एवं उन्नति का होगा । संघर्षित कार्यों एवं कठिन परिस्थितियों का समाधान होगा। स्वजनो से विरोध होगा । कार्यक्षेत्र में नवीन लाभकारी संभावनायें बनेगी । आय के स्रोत में वृद्धि होगी । परिवार में धार्मिक तथा माङ्गलिक कार्य होंगे । प्रतिष्ठित व्यक्तियों से संम्पर्क होगा । विद्यार्थियों को अध्ययन में अभिरुचि होगी । संतानपक्ष से भावनात्मक स्नेह होगा । न्यायालीय कार्यों में मंद प्रगति होगी । संयमित जीवन व्यतीत होगा । धार्मिक कार्यों में अभिरुचि होगी । व्यवसाय में वृद्धि तथा लाभ होगा । नौकरी में सुधार होगा । वर्ष के ३,६,७ , ९ मास नेष्ट है ।


 धनु - धनुराशि वालों को शनि की साढ़ेसाती पैर पर रहेगी । मानसिक कष्ट , कार्यों में विलम्ब तथा बाधा आयेगी ।। विरोधियो से व्यर्थ विवाद होगा । अनावश्यक व्यय तथा भागदौड़ से कष्ट संभव है । पारिवारिक कलह से तनाव होगा । वर्ष के मध्य से आय के साधनों में वृद्धि होगी । भाई बहनों को उन्नति के योग है । जठर संबंधी रोग से कष्ट सम्पत्ति , वाहन के क्रय विक्रय से हानि संभव है । वाहन दुर्घटना संभव है । व्यापार का विस्तार होगा । कर्मचारी वर्ग के लिये भविष्य में लाभ अथवा पदोन्नति होने की संभावना है । वर्ष के ४,८,१०,१२ मास नेष्ट है ।


मकर - मकरराशि वालो के लिये शनि की साढ़ेसाती हृदय पर रहेगी । भय की अधिकता तथा रक्तचाप से कष्ट होगा । कार्यक्षेत्र में कष्ट तथा मानसिक तनाव रहेगा । नौकरी में पदच्युति अथवा स्थानान्तरण तथा अल्प स्वास्थ्य सम्बन्धी काए संभव है । उत्तम व्यवहार से लाभ होगा । सामाजिक मान सम्मानमें वृद्धि होगी । माता पिता द्वारा सहयोग । विद्यार्थियों को अध्ययन में अथक परिश्रम होगा , स्त्री द्वारा हानि संभव है । संतानपक्ष से भावनात्मक स्नेह होगा । दाम्पत्य में वैचारिक मतभेद होगा । वर्ष के ५ , ९ , १०,११ मास नेष्ट है । 


कुम्भ - कुम्भ राशिवालों को सिर पर शनि की साढेसाती का प्रभाव रहेग । मानसिक कष्ट तनाव अधिक रहेगा । भौतिक सुख साधनों पर अधिक व्यय होगा । धैर्यतापूर्वक घरेलू समस्याओं का समाधान होगा । भूमि क्रय विक्रय मकान वाहन आदि के लिये सोच विचार कर कार्य करें । विद्यार्थियों के लिये यह वर्ष अच्छा रहेगा । विद्यार्थीयों को अध्ययन में अभिरुचि उत्पन्न होगी सन्तान पक्ष से मतभेद संभव है । न्यायालीय कार्यों में अपव्यय संभव है । दम्पति अपने दायित्वों के प्रति उदासीन रहेगे । व्यापार में लाभ की स्थिति बनी रहेगी । नौकरी करने वालों की समस्याएं बढ़ सकती है । पत्नी का स्वास्थ्य में बाधा आयेगी । वर्ष के | २,६,१०,१२ , मास नेष्ट है ।

 मीन - मीन राशिवालों को यह वर्ष लाभकारी है । कुटुम्ब में सुखद वातावरण रहेगा । बाधित धन की प्राप्ति विदेश से लाभ संभव है । आर्थिक उन्नति हेतु प्रयास होगा । लाभ की स्थिति होगी । संगीत के प्रति रुचि बढ़ेगी । भाई बहनों के साथ सौहार्द बना रहेगा । नवीन सम्पत्ति के क्रय विक्रय के लिये वर्ष अच्छा रहेगा । सामाजिक संपर्कों में वृद्धि होगी । विद्यार्थियों के लिये अध्ययन क्षेत्र में अच्छी संभावनाएँ रहेंगी । सन्तान पर की उन्नति के द्वार खुलेंगे । विरोधी पक्ष का दवाव कम होगा । दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । नौकरी वालों के लिए पदोन्नति का योग है । व्यापार वालों की उन्नति होगी । वर्ष के १,३,७,११ मास नेष्ट है ।


शनि की साढ़ेसाती तथा ढैय्या विचार

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 इस वर्ष में शनि मकर राशि में भ्रमण करेगें।अत : मकर राशि के प्रभाव में धनु , मकर , कुम्भ राशि वालों के लिये शनि की साढ़ेसाती एवं तुला , मिथुन राशिवालों पर शनि की ढैय्या चलेगी । कुम्मराशि के सिर पर , मकरराशि के हृदय पर , धनुराशि के पैर पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा ।

शनि की साढ़ेसाती तथा ढैय्या के प्रभाव वालीराशियों के जातक को शान्त्यर्थ शनि का जपदानादि करना चाहिये तथा शनिस्तोत्रका पाठ करना चाहिये तथा हनुमान जी की आराधना व दर्शन अर्चन , शनिवार को पीपल के मूल में प्रदोषकाल में जलदान व दीपदान करें , बन्दर को चना गुड़ देना चाहिए शनिवार को सुन्दर काण्ड का पाठ तथा काले घोडे का नाल की अंगूठी मध्यमा अंगुली में धारण करें ।


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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
           वसई

रविवार, 11 अप्रैल 2021

वनदुर्गा मंत्र जप प्रयोग

असुर मर्दिनी माँ दुर्गा का ही एक रूप है वनदुर्गा उन्हें जंगलों की देवी बनदेवी या शाकम्भरी भी कहते है ।जो हर जीव की माँ के रूप में रक्षा करती है ।

वनदुर्गा मंत्र जप प्रयोग

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संकल्पः- गोत्रः राशिः शर्माऽहं अमुक गोन्नरय आक राशेः अमुक यजमान्राय श्रीवनदुर्गा कृपाप्रसादेन सकलापच्छान्ति पूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थ श्रीवनदुर्गा प्रीत्यर्थ सुप्रसन्नार्थञ्च न्यासध्यानपूर्वक वनदुर्गा मंत्र जपमहं करिष्ये ।

 तत्रादौ निर्विघ्नता संसिद्धर्थ श्री संकटनाशन गणपति स्तोत्र पाठपूर्वकं गणपति स्मरण च करिष्ये । 

विनियोगः ॐ अस्य श्रीवनदुर्गा मंत्रस्य भगवान अरण्यऋषिः अत्यनुष्टुपछन्दः , श्रीवनदुर्गा देवता ,  बीजम् , स्वाहा शक्तिः सर्वदुर्गविमोचनार्थे न्यासे जपे च विनियोगः । 

 ऋष्यादिन्यास करन्यासः 

ॐ आरण्यऋषये नमः  - शिरसि  नमः ।

ॐ आल्पनुष्टुप् फुरत से नमः      -मुखे ।   

ॐ श्रीवनदुर्गादेवतायै नमः        -हृदि । 

ॐदु बीजाय नमः              -  गुह्ये ।( ह ० प्र ० ) 

ॐ स्वाहा शक्त्यै नमः       - पादयोः । ( ह ० प्र ० ) 

   

करन्यासः

ॐ उत्तिष्ठ पुरुषि               -अगुष्ठाभ्यां नमः । 

ॐ किं स्वपिषि               - तर्जनीभ्यां नमः । 

ॐ भयं मे समुपस्थित     - मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ यदिशक्यमशक्यं वा - अनामिकाभ्यां नम: ।

ॐ तन्मे भगवति         -कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।  

ॐ शमय स्वाहा         - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।  

अंगन्यासः

ॐ उत्तिष्ठ पुरूषि           - हृदयाय नमः।

ॐकिं स्वपिषि              - शिरसे स्वाहा । 

ॐ भयं में समुपस्थितं वा– शिखायै वषट् । 

ॐ यदिशक्यगशायं वा      -कवचाय हुम । 

ॐ तन्मे भगवति          -नेत्रत्रयाय बौषट् । 

ॐ शमय स्वाहा                -अस्त्राय फट् । 

ध्यानम् :-

सौवर्णाम्बुजमध्यगां त्रिनयनां सौदामिनी सन्निभम् 

चक्रं शंख वराभयानिदधती भिन्दोः कलां विभ्रतीम् । 

अवेयाङ्गदहारकुण्डलधरामाखण्डलायैः स्तुतां ध्यायेद्विन्ध्यनिवासिनी शशिमुखी पार्श्वस्यपञ्चाननाम् ।। 

मानसोपचारैः सम्पूज्य :-


ॐ लं पृथिव्यात्मकं गंध परिकल्पयामि नमः । 

ॐ हं आकाशात्मक पुष्पं परिकल्पयामि नमः । 

ॐ यं वायवात्मकं धूपं परिकल्पयामि नमः । 

ॐ रं तैजसात्मकं दीपं परिकल्पयामि नमः । 

ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं परिकल्पयामि नमः ।

ॐ सं सर्वात्मकान् समस्त राजोपचारान् परिकल्पयामि नमः । 

ॐ मां माले महामाये सर्वशिक्ति स्वरूपिणि । चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव । ।

जपमंत्र : -

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हूँ उत्तिष्ठ पुरूषि कि स्वपिषि भयं में समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा तन्मे भगवति शमय स्वाहा।

 जपान्ते हृदयादि न्यासं ध्यानं च कृत्वा जपं निवेदयेत् 

।।अनेन श्री वनदुर्गा मंत्र जपाख्येन कर्मणा तेन श्री वनदुर्गा प्रीयतां न मम । ।

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शनिवार, 10 अप्रैल 2021

धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त

धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त---

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धोबी--

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त्रेतायुग की बात है , अयोध्यापुरी में श्रीरामचन्द्रजी राज्य करते थे । उनके राज्य काल में प्रजा की मनोवृत्ति एवं दुःख - सुख जानने के लिये गुप्तचर घूमा करते थे । एक दिन उन गुप्तचरों के सुनते हुए किसी धोबी ने अपनी भार्यासे कहा ' तू दुष्टा है और दूसरे के घर मे रहकर आयी है । इसलिये अब तुझे मैं नहीं रक्खूगा । स्त्री के लोभी राजा राम भले ही सीता को रख लें , किंतु मैं तुझे नहीं स्वीकार करूँगा । ' इस प्रकार बहुत से लोगों के मुख से आक्षेप युक्त बात सुनकर श्रीराघवेन्द्र ने लोकापवाद के भय से सहसा सीता को वन में त्याग दिया । रघु - कुल - तिलक श्रीरामने उस धोबीको दण्ड देनेकी इच्छा नहीं की । वही द्वापर के अन्त मे मथुरा पुरी में फिर धोबी ही हुआ । उस ने सीता के प्रति जो  कुवाच्य कहा था , उस दोष की शान्तिके लिये श्रीहरि ने स्वयं ही उसका  वध किया , तथापि उन श्रीकरुणानिधि ने उस धोबी को मोक्ष प्रदान किया ।

दर्जी--

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पहले मिथिलापुरी मै एक दर्जी था , जो भगवान् श्रीहरि के प्रति भक्तिभाव रखता था । उसने श्रीरामके विवाह के समय राजा जनक की आज्ञा से श्रीराम और लक्ष्मण के दुल्हा वेष के लिये महीन डोरों से कपड़े सीये थे । वह वस्त्र सीने की कला में अत्यन्त कुशल था । राजन् ! करोड़ों कामदेवों के समान लावण्य वाले सुन्दर श्रीराम और लक्ष्मण को देखकर वह महामनस्वी दजी मोहित हो गया था । उसने मन ही मन यह इच्छा की कि मैं कभी अपने हाथोंसे इनके अङ्गों में वस्त्र पहिनाऊँ । श्रीरघुनाथजी सर्वज्ञ हैं । उन्होंने मन - ही मन उसे वर दे दिया कि द्वापरके अन्त मे ब्रजमण्डल में तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा । श्रीरामचन्द्र जी के वरदान से वही यह दर्जी मथुरा में प्रकट हुआ था , जिसने उन दोनों बन्धुओं की वेष रचना करके उनका सारूप्य प्राप्त कर लिया ।

सुदामा --

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राज कुबेर का एक परम रमणीय सुन्दर वन है , जो चैत्ररथ - वनके नाम से प्रसिद्ध है । उसमें फूल लगाने वाला एक माली था , जो हेममाली के नाम से पुकारा जाता था। वह भगवान विष्णु के भजन में तत्पर,शान्त, दानशील महान सत्संगी था। उसने भगवान कृष्ण की प्राप्ति के लिये देवताओं की पूजा की ,पांच हजार वर्षों तक प्रतिदिन तीन सौ कमल पुष्प लेकर वह भगवान शंकर जी के आगे रखता व प्रणाम करता था ।एक दिन करुणानिधि त्रिनेत्रधारी भगवान शिव उसके ऊपर प्रसन्न हो बोले-"परम बुद्धिमान मालाकार तुम इच्छानुसार वर मांगो।" तब हेममाली ने हाथ जोड़कर महादेव जी को नमस्कार किया और परिक्रमा करके सामने मस्तक झुका कर कहा "प्रभु श्रीकृष्ण कभी मेरे घर पधारें औऱ इन नेत्रों से उनका प्रत्यक्ष दर्शन  करुँ - ऐसी मेरी इच्छा है 

भगवान महादेव ने कहा द्वापर के अंत मे तुम्हारा मनोरथ पूर्ण सफल होगा ।

वही महामना हेममाली द्वापर के अन्त में सुदामा माली हुआ था ।

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गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

।।देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम्

              ॥ देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम् ॥ 

अयि गिरि नन्दिनि नन्दित मेदिनि विश्व - विनोदिनि नन्दिनुते 

गिरिवर विन्ध्य शिरोधि -निवासिनि विष्णु विलासिनि जिष्णुनुते। 

भगवति हे  शितिकण्ठ - कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि   भूतिकृते 

जय जय हे  महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।१ ।।


सुरवर वर्षिणि    दुर्धर धर्षिणि  दुर्मुख    मर्षिणि  हर्षरते 

त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि कल्मषमोषिणि घोषरते ।

दनुज - निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।२ ।।


अयिजगदम्ब ! कदम्ब - वन प्रियवासिनि तोषिणि हासरते 

शिखरि - शिरोमणि - तुंगहिमालय - श्रृंग - निजालय मध्यगते ।

मधु मधुरे मधु कैटभ - भञ्जिनि महिष विदारणि रासरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।३ ।।


अयि  निजहुँकृति - मात्रनिराकृत     धूम्रविलोचन - धूम्रशते 

समर - विशोषित - शोणित - रोषित बीजसमुद्भव बीजलते ।

शिव - शिव शुम्भ - निशुम्भ - महाहव तर्पित - भूत - पिशाचरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।४ ।।


अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड - गजाधिपते 

निज - भुजदण्ड - निपातित-चण्ड विपातित मुण्ड - भटाधिपते । 

रिपुगजगण्ड - विदारण - चण्ड  पराक्रम     शुण्ड - मृगाधिपते  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि    शैलसुते।।५ ।।


धनुरनुसंग - रणक्षणसंग      परिस्फुरदंग् - नटत्कट के 

कनक - पिशंग - पृषत्कनिषंग रसद्भट श्रृंग - हताबटु के । 

हत - चतुरंग - बल - क्षितिरंग घटद् - बहुरंग - रटद्बटुके  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।६ ।।


अयि रणदुर्मद - शत्रुवधोद्धर दुर्धर - निर्भर - शक्तिभृते 

चतुर - विचार - धुरीण - महाशय दूतकृत - प्रमथाधिपते । 

दुरित - दुरीह - दुराशय - दुर्मति दानवदूत - दुरन्तगते  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।७ ।। 


अयि शरणागत वैरिवधू जन वीरवराभय दायिकरे  

त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे ।

दुमि दुमितामर दुन्दुभिनाद मुहुर्मुखरीकृत दिङ् निकरे  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।८ ।।


सुरललना - ततथेयित थेयित थाभिनयोत्तर - नृत्यरते 

कृतकुकुथा कुकुथोदि दडादिक तालकुतूहल गानरते ।

धुधुकुट - धूधुट - धिन्धिमितध्वनि धीर मृदङ्ग निनादरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।९ ।।


जय जय जाप्यजये जयशब्द परस्तुति - तत्पर - विश्वनुते 

झण - झण झिंझिम - झिंकृत नूपुर - शिञ्जित मोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध - नटीनटनायक नाटित - नाट्य - सुगानरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१० ।।


अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोरम - कान्तियुते 

 श्रितरजनी - रजनी - रजनी रजनी - रजनीकर - वक्त्रवृते ।

 सुनयन - विभ्रम - रभ्रम - रभ्रम रभ्रम - रभ्रमराभिदृते  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।११ ।।


महित - महाहव - मल्लमतल्लिक वल्लित - रल्लित- भल्लिरते 

विरचित बल्लि कपालिक पल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते । 

श्रुतकृतफुल्ल - समुल्लसितारुण तल्लज - पल्लव - सल्ललिते 

जय जय हे  महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि   शैलसुते।।१२ ।।


अयि सुदतीजन - लालस - मानस मोहन - मन्मथ - राजसुते 

अविरल - गण्डगलन् - मदमेदुर मत्त - मत्तंगजराजपते ।

त्रिभुवन - भूषण - भूतकलानिधि रूप - पयोनिधि - राजसुते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि ! शैलसुते।।१३ ।।


कमलदलामल - कोमलकान्ति कलाकलितामल - भालतले 

सकल - विलास  कलानिलय - क्रम केलि चलत्कल - हंसकुले । 

अलिकुल संकुल - कुवलय मण्डल मौलिमिलद् - बकुलालिकुले 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि ! शैलसुते।।१४ ।।


 करमुरलीरव - वर्जित - कूजित लजित - कोकिल - मंजुमते 

मिलित - पुलिंद मनोहर - गुञ्जित रञ्जित - शैल निकुञ्ज गते ।

निजगुण भूत - महाशबरीगण   सद्गुण सम्भृत - केलितले 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१५ ।।


 कटितट - पीत - दुकूल - विचित्र मयूख - तिरस्कृत - चंद्ररुचे 

जित  कनकाचल मौलि - पदोर्जित निर्झर कुञ्जर - कुम्भ कुचे । 

प्रणत - सुराऽसुर - मौलिमणि स्फुर दंशुक - सन्नख - चन्द्ररुचे 

 जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि   शैलसुते।।१६ ।।


विजित - सहस्र - करैक - सहस्र करैक - सहस्र - करैकनुते 

कृत - सुरतारक - संगरतारक     संगरताकर - सूनुनुते । 

सुरथ - समाधि - समान - समाधि समान - समाधिसुजाप्यरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१७ ।।


 पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे  

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं नभवेत् । 

तव पदमेव परं पदमेमनु शीलयतो ममकि न शिवेः  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।१८ ।।


कनक - लसत् - कलशीकजलै रनुषिञ्चति तेऽङ्गण - रंगभुवम् 

भजति स कि न शची कुच कुम्भ नटी परिरम्भ - सुखानुभवम् ।

तवचरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१९ ।। 


तव विमलेन्दुकलं वदनेन्दुमलं सकलं न नुकूलयते 

किमु पुरुहूत - पुरींन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखी क्रियते । 

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमु न क्रियते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२० ।।


अयिमयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे 

अयि जगतो जननी कृपयाऽसि यथाऽसि तथाअनुमतासिरते ।

यदुचितमत्रभवत्पुरगं    कुरुशाम्भवि देवि दयां कुरुमे  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।२१ ।।


स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत् । 

परमया रमयापि निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत्।।२२।।

             ॥ इति देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
        वसई

ॐ जय गौरी नंदा

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