शनिवार, 30 जनवरी 2021

श्री सन्तानगणपति स्तोत्रम्

     ।।श्री सन्तानगणपति स्तोत्रम् । ।

सन्तानगणपति स्तोत्र का पाठ करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है ।नित्य 11 पाठ करें ।


ॐ नमोस्तु गणनाथाय सिद्धि बुद्धि युताय च ।

 सर्वप्रदाय  देवाय  पुत्र बृद्धि   प्रदाय च ॥१ ॥ 


गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्य सिताय ते ।

गोप्याय नोदिताशेषभुवनाय चिदात्मने ॥२ ॥ 


विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।

नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥३ ॥


एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः ।

 प्रपन्नजन  पालाय प्रकृतार्ति विनाशिने ॥ ४ ॥ 


शरण  भव देवेश सन्ततिं सुदृढां कुरु । 

भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ॥५ ॥ 


ते सर्वे  त  पूजार्थे  निरताः  स्युर्वरोमतः ।

पुत्रपदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धिप्रदायकम् ॥६ ॥ ॥ 


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      ।। इति सन्तान गणपति स्तोत्रम् ॥  
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
         वसई

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

पञ्चाङ्ग क्या है।पञ्चाङ्ग कैसे समझें

पञ्चाङ्ग क्या हैं--

भारतीय सनातन संस्कृति में वेद ,पुराण , रामायण, महाभारत ,उपनिषद, वेदान्त, साहित्य ,ज्योतिष, व्याकरण, आदि अनेक शास्त्र है।जो हमारे ज्ञान , विज्ञान ,रहन, सहन,खान ,पान, अस्त्र , शस्त्र हर तरह की जीने की कला सिखाते है। शास्त्रों में ज्योतिष को नेत्र की संज्ञा दी है।जो हमे रास्ता दिखता है।ज्योतिष हमे ब्रह्माण्ड में होने वाली हलचल ग्रहों की दशा व दिशा का ज्ञान कराता है।

ज्योतिष काल की गणना के आधार से हमे तिथि, बार, नक्षत्र, योग,करण व समय की गणना ,शुभाशुभ योगों की गणना, करके हमे पञ्चाङ्ग के रूप में देता है । पञ्चाङ्ग के पांच अंग होते है। इन्हें जानें बिना कोई भी पञ्चाङ्ग की गणना नही कर सकता है। कौन - कौन हैं पञ्चाङ्ग के अंग ,जिन्हें समझना जरूरी है । जिससे हम दैनिक शुभशुभ  को जान सकें ।

पञ्चाङ्ग के अंग --

1-तिथि

2-वार

3-नक्षत्र

4-योग

5-करण

इन पांचों से पञ्चाङ्ग का निर्माण होता है ।और पञ्चाङ्ग को जानने के लिए पाँचो अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है ।

1 - तिथि --

तिथियां तीस होती है। १५ तिथि शुक्ल पक्ष की और १५ कृष्ण पक्ष की होती है ।जिससे एक माह का निर्माण होता है।

१ - प्रतिपदा               ९ - नवमी
२ - द्वितीया                १० - दशमी
३ - तृतीया                 ११ - एकादशी
४ - चतुर्थी                 १२ - द्वादशी
५ - पञ्चमी               १३ - त्रयोदशी
६ - षष्ठी                    १४ -  चतुर्दशी
७ - सप्तमी                १५ - पूर्णिमा
८ - अष्टमी                 ३० - अमावस्या

२ - वार --

वार सात होते है।जो इस प्रकार है ।

1-रविवार

2 -सोमवार

3 -मंगलवार

4 -बुधवार

5 - वृहस्पतिवार

6 -शुक्रवार

7 -शनिवार

३ - नक्षत्र --

 १. अश्विनी , २. भरणी , ३. कृत्तिका , ४. रोहिणी , ५. मृगशीर्ष , ६. आर्द्रा , ७. पुनर्वसु , ८. पुष्य , ९ . आश्लेषा , १०. मघा , ११. पूर्वाफाल्गुनि , १२. उत्तरा फाल्गुनि , १३. हस्त , १४. चित्रा , १५. स्वाती , १६. विशाखा , १७. अनुराधा , १८. ज्येष्ठा , १ ९ . मूल , २०. पूर्वाषाड़ा , २१. उत्तराषाढ़ा , २२. अभिजित् , २३. श्रवण , २४ .. धनिष्ठा , २५. शतभिषा , २६. पूर्वाभाद्रपद , २७. उत्तरा भाद्रपद , २८. रेवती ।

 प्रमुख रूप से नक्षत्र २७ ही होते हैं । उ ० षा ० और श्रवण के एक - एक चरण को लेकर एक अभिजित् नक्षत्र हो जाता है । साभिजित् गणना में नक्षत्रों की संख्या २८ हो जाती है ।

४ - योग -- 

१ .विष्कुम्भ ,२ . प्रीति , ३ .आयुष्मान् , ४ .सौभाग्य ,५ . शोमन , ६.अतिगण्ड , ७ .सुकर्मा , ८ .धृति , ९ .शूल ,१० . गण्ड ,११ . बृद्धि , १२ .ध्रुव , १३ .व्याघात , १४ .हर्षण , १५ .वज्र , १६ .सिद्धि ,१७ . व्यतिपात , १८ .वरीयान ,१९ . परिघ , २० .शिव , २१ .सिद्धि , २२ . साध्य ,२३ . शुभ ,२४ .शुक्ल ,२५ . ब्रह्म , २६ .ऐन्द्र ,२७ . वैधृति ये २७ चर योग होते हैं । 

५ - करण --

१ . बब ,

२ . बालव , 

३ .कौलव ,

४ .तैतिल , 

५ .गर , 

६ .वणिज , 

७ .विष्टि 

ये सात चर करण है ।

 एक तिथि में दो करण होते हैं । " तिथ्यधं करणम् " । तिथि के प्रारम्भ से करण भी प्रारम्भ होता है । तिथि के आधे भाग से दूसरे करण को प्रवृत्ति होती है । विष्टि करण को भद्रा कहते हैं ।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
9004013983



बुधवार, 20 जनवरी 2021

उत्तराखंड भूमि मनै बात

उत्तराखंड भूमि मनै बात

मै छू देवभूमि ,मै छू उत्तराखंड,मै छू पहाड़ ।

सिरक ताज तुमकै पहना तुम नै गच्छा भ्यार ।।

मै छू देवभूमि उत्तराखंड पैली मै उत्त्तर प्रदेश छी, अब में उत्तराखंड हैगू ,मेरी उम्र बहुत छ , म्यर परिवार पैली छव्ट छि अब पुर भारत मे म्यर परिवार बसी रह। पर नई प्रदेश बनी बै मै 21 सालक जवान हेगु।कैकि नजर लागी मिपरि और म्यर देवभूमि स्वरूप कुटुम्ब पै, कि म्यर परिवार मिकणि छोड़ी नेगो मै आज इकले रह गु। न कैके मेरी याद आणि न कोई भाटूलि लगणे सब आपु में मगन छी।में खुसी छू म्यर परिवार खुश रहे । बार त्यौहार याद कनै रहाया । आपण कुल देवतों के भेंटने रह्या । 

य भूमि में तुमर पुरखों खून पासिणी समै रै । जो आज फलदार डाउ जस फली रह ।

आप सबु हैं कामना छू आपण बार त्यौहार ,संस्कार, आपणी  संस्कृति ,अपणी बोली भाषा,आपणी पछ्यांण कै आपण पीढ़ी दर पीढ़ी आघीन बढ़ाने रह्या । मै सदा तुमर इंतजार करूनु कब तुम मैके मिलण आला । में आज उन लोंगो दगे रहनु जेक घर टूटी गयी।उनर द्यबत्त म्यर दगड़ी छै । जावो राजी रहो खुसी रहो य मेरी देवभूमी की आवाज छ।

क्यछ पहाड़ में --

खूबसूरत पहाड़ छी, बहुते भल वातावरण छू ,ठंड- ठंड पाणी छू ,सब तरफ हरिया हरि डान छि ,सीडीदार पाटो छि, बहुते भल रशिल खाण प्यूण छ, नी संकोच घुमण फिरण , मनुहा,झूँगार भट ,गहत,राजमा, सुयाबिन, रेंस, मॉस, कोणी,बाजरा,चू, गेहूं , चावल सब प्रकारक नाज छ, अगर तुम खुज्याला तो बहुत कुछ मिलल ।मै स्वर्ग छू ।

क्यछ पहाड़ों विशेषता--

या चार धाम ,या पांच बद्री,पांच केदार, पाँच प्रयाग छि,जागेस्वर ,बागनाथ ,नंदा देवी,  जो सबु के आस्था एक सूत्र बंधन में पिरोणक काम करै , पितरों कै तारणे  लिजी बहुत विषेष छू। याँ दूर दूर बे लोग आबे  आपण  पितरो मुक्ति हेतु कामना करनी । भगवानों आशीर्वादल सबकेँ सद गति,मुक्ति  प्राप्त है सको। 

पहाड़ो में रोजगारक साधन --

शिक्षा ,चिकित्सा, खेती, कारपेंट्री,पशुपालन, बालबर, पर्यटन, व्यापार,बाग बगीचा,आयुर्वेदिक जड़ी का स्रोत,  करण यस बहुते काम छू, य भूमि में बहुते आसार छु रोजगारक जो बहुते लोगों कै आजीविका दयंच। मेहनती व सफल लोगोंहे केँ कमी निछ।

म्यर शब्दों में गलती हैली तो माफ करिया।य कुमाऊँनी भाषा मे लिखणक प्रयास छू ।

।जय देवभूमि ।

।जय उत्तराखंड।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
           बसई

सोमवार, 18 जनवरी 2021

श्री गणेश पञ्चरत्नम्

          ।। गणेश पञ्चरत्नम् ।।

मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्ति साधकं

कला धरावतंसकं विलासिलोक रञ्जकम् ।

अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकं 

नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ १ ॥ 

नतेतराति भीकरं नवोदितार्कभास्वरं  

नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।

सुरेश्वरं    निधीश्वरं  गजेश्वरं  गणेश्वरं

महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ २ ॥ 

समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरं

दरेतरोदरं   वरं   वरेभवक्त्रमक्षरम् ।

कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्कर 

नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ ३ ॥ 

अकिंचनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनं 

पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् 

प्रपञ्चनाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणं 

कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥ ४ ॥ 

नितान्त कान्त दन्त कान्ति मन्त कान्त कात्मजं 

मचिन्त्य रूप मन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् । 

हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां 

तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ॥ ५ ॥ 

महागणेश पञ्चरत्न मादरेण योऽन्वहं

प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वम् ।

अरोगता मदोषतां सुसाहिती सुपुत्रतां 

समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ ६

 ॥

 ॥श्रीमच्छङ्कशचार्यकृतं गणेशपञ्चरत्नस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

ॐ जय गौरी नंदा

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