सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

ब्रह्मा जी का एक दिन

 

*ब्रह्मा जी के एक दिन की गणना*


पूर्ण भगवान् कृष्ण व्रजेन्द्रकुमार।

गोलोके व्रजेर सह नित्य विहार।। 

ब्रह्मार एकदिने तिँहो एकबार। 

अवतीर्ण हञा करेन प्रकट विहार।।

अनुवाद - व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण ही पूर्ण भगवान् हैं। व्रजधाम समन्वित गोलोकमें वे नित्य - विहार करते हैं। ब्रह्माके एक दिनमें वे एक बार इस जगत्‌में अवतीर्ण होकर प्रकट-लीला करते हैं।

ब्रह्मा जी का एक दिन

सत्य त्रेता द्वापर कलि चरियुग जानि।

सेइ चरियुगे दिव्य युग मानि।।

एकात्तर चतुर्युगे एक मन्वन्तर।

चौद्द मन्वन्तर ब्रह्मार दिवस भितर।।

अनुवाद - सत्य, त्रेता, द्वापर और कलिं, ये चार युग होते हैं। ये चारों युग मिलकर एक दिव्य-युग कहलाते हैं। इकहत्तर चतुर्युगोंका एक मन्वन्तर होता है और ब्रह्माके एक दिनमें चौदह मन्वन्तर होते हैं।

ब्रह्मा जी के एक दिन को एक कल्प कहते हैं। 


एक दिन में 14 मन्वंतर


एक मन्वंतर में 71 चतुर्युग


एक चतुर्युगी में चार युग 


1. सत्य

2. त्रेता 

3.द्वापर 

4.कलि


यह चारों एक युग या युगी कहलाता है।


एक युगी की गणना


कलि  = 4,32000

द्वापर = 8,64000

त्रेता = 12, 96000

सत्य = 17,28000


Total एक चतुर युगी के साल हुए।


43,20,000 


इसको एक युग बोला जाता है 

एक युगी - 


43,20,000 × 71 

=30,67,20,000 साल होते हैं ।


यह एक मन्वन्तर का परिणाम है इसे गुणा करते हैं 14 से।


30,67,20,000×14  

=4,29,40,80,000 

यह ब्रह्मा जी का एक दिन का परिणाम है 4,29,40,80,000,


एक दिन में 14 मन्वतर होते हैं - फिर एक महीने में देखते हैं फिर एक साल में देखते हैं,  फिर 100  साल में 

1  दिन में 14 

14 × 30 दिन में = 420 

420 × 12 महीने में  

= 5040 


5040×100 साल


एक साल में 5040 

100 साल की ब्रह्मा की आयु है यानि 5040 × 100  = 5,04,000  मनु होते हैं।


ब्रह्मा जी के एक दिन में 

कलि  = 994 बार आता है ।

द्वापर  = 994 बार आता है ।

त्रेता = 994 बार आता है ।

सत्य = 994 बार आता है।


अब यहां पर एक संधिकाल आता है जो 15 सत्य युगों के परिणाम का होता है ।

15 × 17,28,000  =  2,59,20,000  


6  महायुगों के काल से देखें तब भी यही आएगा  ( एक चतुर्युगी के साल )

6 × 43,20,000  =  2,59,20,000


इस प्रकार 14  मन्वन्तरों और संधिकाल को मिलाकर एक हज़ार महायुगों के काल के बराबर ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प होता है और इतनी ही बड़ी ब्रह्मा जी की रात्रि भी होती है 


'वैवस्वत' नाम एइ सप्तम मन्वन्तर 

साताइश चतुर्युग गेले ताहार अन्तर 

अनुवाद - वर्तमान सप्तम मन्वन्तरका नाम वैवस्वतं' है और इसके सत्ताईस चतुर्युग बीत चुके हैं।


अनुभाष्य - वैवस्वत - नामके सातवें मनुके मन्वन्तरमें श्रीमन्महाप्रभुका आविर्भाव होता है “स्वायम्भुवाख्यो मनुराद्य आसीत्, स्वारोचिषश्चोत्तम-तामसाख्यौ। जातौ ततो रैवतचाक्षुषौ च वैवस्वतः सम्प्रति सप्तमोऽयम्॥ सावर्णिर्दक्षसावर्णिब्रह्मसावर्णिकस्ततः । धर्मसावर्णिको रुद्रपुत्रो रौच्यश्च भौत्यकः ॥” 


14  मनु के नाम इस प्रकार हैं 


(१) स्वायम्भुव, 

(२) स्वारोचिष, 

(३) उत्तम, 

(४) तामस, 

(५) रैवत, 

(६) चाक्षुष, 

(७) वैवस्वत, 

(८) सावर्णि, 

(९) दक्षसावर्णि, 

(१०) ब्रह्मसावर्णि, 

(११) धर्मसावर्णि, 

(१२) रुद्रपुत्र (सावर्णि), 

(१३) रोच्य (देवसावर्णि) और 

(१४) भौत्यक (इन्द्रसावर्णि)

– ये चौदह मनु हैं। प्रत्येक मनु का भोगकाल इकहत्तर महायुग है।

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