शुक्रवार, 19 मार्च 2021

मनुष्य का खाता

मनुष्य का खाता -

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बड़े भाग मानुष तन पावा

मनुष्य जीवन तप्त लोह पिण्ड की भांति है जिस प्रकार के सांचे में ढालों वैसा ही जीवन का पथ चलता रहता है । मनुष्य जीवन कर्म करने के लिए जिसके द्वारा सृष्टि का संचार , निरन्तर उत्थान करने न कि व्यर्थ जीवन यापन करने के लिए नही मिला है ।

तन पवित्र सेवा करी ,धन पवित्र कर दान ।

मन पवित्र हरि भजन सो , त्रिविध होत कल्याण।।


जीव के जन्म लेने के साथ ही उसका जीवन खाता खुल जाता है । उसके अच्छे बुरे सभी कर्मो का लेखा जोखा यमराज के दूत चित्रगुप्त के पास जमा होता रहता है ।

मनुष्य के जीवन मे कितने भी बैंक खाते हौ कितनी भी जमा पूंजी हो सब यही रहेगा। साथ जाएगा शुभ कर्मों द्वारा अर्जित पुण्य , इस लिये मनुष्य को धन के द्वारा धर्म अर्जित करना चाहिए।

कर्मो के द्वारा किया गया शुभ अशुभ कार्य का फल समय-समय पर मनुष्य को मिलता रहता है।

मनुष्य जीवन के शुभ कर्म --

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मनुष्य अपने जीवन यात्रा को सावधानी से निर्वाह करते हुए सर्व प्रथम अपने जीवन की रक्षा करें ,परिवार का रक्षण करें ,नित्य पूजा , जप ,होम ,नित्य ब्राह्मण को दान दे ,नित्य देव दर्शन,गौ को चार खिलायें , पक्षीयों को दाना दे ,गरीब भूखे को खाना खिलायें किया गया परमार्थ धर्म बनकर मनुष्य के खाते में जुड़ता है । किन्तु दिन-रात मेहनत करके कमाया धन यही रह जाता है ।

इसलिए जीवन मे सभी कार्यो को संपादित करते हुए धर्म रूपी पुण्य का रास्ता कभी नही छोड़ें ।जीव के हाथों से किया गया दान पुण्य शुभ कर्म मरने के बाद उसके साथ चलता है। पर जीवन मे कमाया धन जमीन जायदाद यही रह जायेगा। कुछ भी साथ नही होगा सिर्फ धर्म रूपी खाते में जमा पुण्य साथ होगा। तन,मन,धन के द्वारा धर्म रूपी पुण्य अर्जित किया जा सकता है ।

धन सभी साधनों में श्रेष्ठ है धन से धर्म किया जा सकता है पर धर्म खरीदा नही जा सकता ।

इस लिए गृहस्थ का निर्वाह करते हुए जब तक धन अपने हाथ है। तब तक आप अपने धन से तीर्थ, देवदर्शन,यज्ञ,दान,पुण्य कर सकते है।धन के पराधीन होने पर मनुष्य कुछ भी नही कर सकता। इसलिए समय रहते अपने धन से धर्म रूपी पुण्य स्तम्भ तैयार करें ।

मनुष्य के विशेष दो खाते -

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१- पूर्वजन्म कर्म - मान्यताओं के आधार पर मनुष्य को पूर्व जन्मार्जित कर्मों का भोग।


२- पूर्व जन्म कर्म -इस जन्म में किये गए कर्मो का अर्जित कर्मो का भोग इन दोनों कर्मो के आधार पर मनुष्य का भाग्य इंगित होता है। जिससे जीवन में अच्छे बुरे कर्मफल का भोग मनुष्य को करना पड़ता है ।इसलिए जीवन मे शुभ कर्मों को करें अपने मनुष्य जीवन खाता को पुण्य से भरते रहे।



शिवपुराण का वचन --

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पुण्यक्षेत्रे कृतं पुण्यं बहुधा ऋद्धिमृच्छति।

पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं महदण्वति जायते ।।

तत्कालं जीवनार्थश्चेतपुण्येन क्षयमेष्यति।

पुण्यमैश्वर्यदं प्राहु: कायिकं वाचिकं तथा।।

मानसं च तथा पापं तादृशं नाशयेद द्विजः।

मानसं वज्रलेपं तु कल्पकल्पानुगं तथा।।

ध्यानादेव हि तन्नश्येन्नान्यथा नाशमृच्छति।

वाचिकं जपजालेन कायिकं  कायशोषणात।।

बीजांशश्चैव वृद्ध्यंशो भोगांशः पुण्यपापयो:।

ज्ञाननाश्यो हि बीजांशो वृद्धिरुक्तप्रकारतः।।

भोगांशो भोगनाश्यस्तु नान्यथा पुण्यकोटिभिः।

बीजप्ररोहे नष्टे तु शेषो भोगाय कल्पते।।


मनुष्य को अपने जीवन सतत निरन्तर सदैव धर्म और पुण्य कर्मों का आचरण करना चाहिए तथा अधर्म अन्याय और पाप कर्मों से सदैव दूर रहना चाहिए । उसमे से भी जानते हुए या जानबूझकर पाप कर्मों को कभी भी नही करना चाहिए उसमे भी तीर्थ क्षेत्र और धर्मक्षेत्र में तो कभी भी जानबूझकर अधर्म अन्याय और पाप कर्मों का आचरण नही करना चाहिए तीर्थ क्षेत्र और धर्म क्षेत्र में किया हुआ छोटा से पुण्य कर्म भी अनन्त फल देने वाला  तथा पूर्व कृत पापों से मुक्ति देने वाला होता है । 

वही यहां किया हुआ छोटा सा पाप भी पूर्व कृत पुण्यों को नष्ट कर देता है । मनुष्य से कायिक (शरीर के द्वारा ) वाचिक (वचन के द्वारा ) तथा मानसिक (मन के द्वारा सोच विचार और समझ कर) तीन प्रकार के पाप होते है ।

मानसिक पाप वज्रलेप के समान कठोर होता है। जो कई जन्मों तक पीछा नही छोड़ता है। और केवल ध्यान से ही क्षयः संभव होता है ।वाचिक पाप जप से क्षय होता है । तथा कायिक पाप कठोर तप से क्षय होता है। जानबूझकर अतिशय मात्रा में किये गए पापा धर्म कर्मो से अर्जित पुण्य को भी नष्ट कर देते है। वस्तुतः मनुष्य के पाप और पुण्य दोनों का बीजांश वृद्ध्यंश और भोगांश होता है । बीजांश का नाश ज्ञान से वृद्धयांश का नाश ध्यान जप और तप से तथा भोगांश का नाश केवल फल भोग (सुख दुःख स्वर्ग नरक के भोग से)से क्षय होता है।


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मंगलवार, 2 मार्च 2021

नामकरण संस्कार व दोलरोहण

 नामकरण संस्कार मुहूर्त- 

 नामाखिलस्य व्यवहारहेतुः  शुभावह कर्म भाग्यहेतुः ।

 नाम्नैव कीर्ति लभते मनुष्यस्ततः प्रशस्तं खलु नाम कर्म ॥

मनुष्य के नाम की सार्वभौमिकता होने के कारण सूतक - समाप्ति पर कुल देशाचार के अनुरूप १० , ११ ,१२ , १३ , १६ , १ ९ , २२ में दिन नामकरण संस्कार किया जाता है । 

नामकरण संस्कार करने से बच्चे अपने नाम से जाने जाते है ।नाम अनुरूप ही बच्चे में गुण भी आते है

शास्त्रों के अनुसार - विप्र को  ११ या १२ वें दिन , क्षत्रिय को १३दिन , वैश्य को १६ या २० दिन तथा शूद्र को ३० दिन में बालक का नामकरण संस्कार करना चाहिये । नामकरण पिता या कुल में वृद्ध व्यक्ति के द्वारा होना चाहिये । 

“ पिता कुर्यादन्यो वा कुलवृद्धः ”

 कुयोग , विष्टि , श्राद्ध दिन , ग्रहण तथा बालक के निर्बल चन्द्र से अतिरिक्त दिन के पूर्वार्द्ध में जन्म - नक्षत्र के चरणाक्षर से प्रारम्भ होने वाला नाम रखना चाहिये । बालक का नाम कुलदेवता , महान् पुरुष , वेदोचित, कुलोचित्त , मंगलदायक , नमस्कार करने योग्य , गुरु या जन्ममास - संज्ञक , समाक्षरान्वित तथा कर्णमधुर होना चाहिये ।

किसी का यह कथन है कि बालक का नक्षत्र - नाम को गोपनीय रखकर व्यवहार में किसी अन्य नाम का ही प्रयोग करें । 

दोलारोहण मुहूर्त -

बालक को नामकरण के दिन  या कुलपरंपरा से आरामदेह झूले में सुलाना चाहिये । 

 बालक के योग्य झूले में जननी या कुल की कोई सुवासिनी के द्वारा योगशायी भगवान् विष्णु का ध्यान करके पूर्व की ओर सिर रखकर शिशु को सुलाना चाहिये ।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
     ज्योतिषचार्य
         वसई
9004013983

सोमवार, 1 मार्च 2021

कुण्डली मिलान में किन किन बातों का रखें ध्यान

कुण्डली मिलान (जुड़ाना) 

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हिन्दू सनातन धर्म बहुत विस्तार लिए हुए अपने आप मे नाना प्रकार रीति रिवाजों को सँजोये है ,जो वेद पुराण ज्योतिष आदि धर्म शास्त्रों का अनुसरण करते हुए अपने जीवन को प्रकाशित करता है। हिन्दू धर्म जब बच्चा जन्म लेता है तब से मृत्यु तक समय समय पर उसके सोलह संस्कार किये जाते है । इन्ही सोलह संस्कारों में एक विवाह संस्कार है ।

माता पिता के द्वारा लड़के के लिए कन्या का चयन किया जाता है ।कन्या के चयन से पहले लड़का व लड़की की जन्म कुण्डली मिलान किया जाता है ।

कुण्डली मिलान प्रायः दो प्रकार से किया जाता है।

1-नाम 

नाम से कुण्डली मिलान उत्तम पक्ष नही माना जाता है।

2- जन्म राशि व कुण्डली 

जन्म समय के द्वारा किया कुण्डली मिलान उत्तम माना गया है ।

कुण्डली मिलान की विशेषता -- 

सनातन धर्म मे विवाह पवित्र बंधन सात जन्मों का बन्धन माना जाता है ।मान्यताओं के अनुसार कन्या का विवाह जिस लड़के के साथ संपन्न किया जाता है ।तब से सात जन्मों तक यह बन्धन निभाना पड़ता है ।इसलिए योग्य लड़का व लड़की की कुण्डली लिया जाता है 

कुण्डली मिलान (गणना) से दोनों लड़का( वर) व लड़की(वधू) के बीच आपसी सामंजस्य बना रहे, सुख दुःख में एक दूसरे  का सहारा बनें रहे, पारिवारिक सुख आपसी  सामंजस्य कैसा रहेगा । संतान सुख, सौभाग्य सुख ,सास, ससुर ,भाई, बहिन, पति के लिए कन्या शुभ हो ।

विवाह गणना विचार --

कुण्डली मिलान में अष्ट कूट का विचार किया जाता है ।

वर्णो वश्य तथा तारा योनिश्च ग्रह मैत्रकम ।

गणमैत्र भकूटं च नाड़ी चैते गुणाधिकाः ।।

1वर्ण ,2 वश्य ,3 तारा,4 योनि,5 ग्रहमैत्री ,6 गणमैत्री,7 भकूट,8 नाड़ी ये आठ प्रकार के कूट है । जो क्रमशः एक दूसरे से अधिक गुण (अंक) वाले है । जिसके मिलान से 36 गुण प्राप्त होते है । कुण्डली मिलान में कम से कम 18 गुण विवाह के लिये होने चाहिए 18गुण से कम होने पर कुण्डली मिलान अच्छा नही माना जाता है ।इसलिए विवाह में 18 गुण से अधिक होने पर विवाह शुभ होता है ।

18 गुण तक निम्न

24 गुण तक मध्यम

24 से 36 उत्तम माना गया

अधिक गुण प्राप्त होने से कुण्डली के निम्न दोष खत्म हो जाते है ।

कुंडली विचार--

कुंडली मिलान करते समय इन सब बातों पर भी विचार करना चाहिए । विवाह में कुण्डली मिलान परम आवश्यक है।

1-मांगलिक दोष विचार

2- कुण्डली में दोष विचार

3-मुलादि नक्षत्र विचार

5- संतान विचार

6-सौभाग्य सुख विचार

7-वैधव्य दोष विचार

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पं हरीश चंद्र लखेड़ा

   ज्योतिषाचार्य

      वसई

जय बद्री विशाल



शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

होलिका दहन व होली से जुड़ी मान्यतायें ।

      होलिका दहन पूजन व मान्यतायें   


होली के एक दिन पूर्व पूर्णिमा की रात्रि में होलिका दहन किया जाता है । शास्त्रों के अनुसार भद्रा में होलिका दहन वर्जित है । होली एक सामाजिक पर्व है। जिसमे अमीर गरीब स्त्री पुरुष बच्चे बूढ़े जात पात की दीवार तोड़कर आपसी भाईचारा सदभावना से होलिका दहन व होली में सभी लोग मिलजुल कर रंग उड़ाते है। और होली के गीतों का आनन्द लेते हुए नाना प्रकार के व्यंजनों का आनंद उठाते है ।

गांव घरों में होलिका दहन की तैयारी वसंत पंचमी के दिन से प्रारम्भ हो जाती है । महिलाएं होलिका दहन के दिन दोपहर से पूजन करना शुरू कर देती है ,जो शाम तक चलता है।

 होलिका पूजन सामग्री --

होलिका पूजन के लिए महिलाएं एक पात्र में जल व थाली में रोली, चावल ,कच्चा सूत ,कलावा ,अबीर, गुलाल , नारियल आदि लेकर जाती है । होलिका माई की पूजा कर जल चढ़ाती है  और होलिका की जलती लपटों का दर्शन करने के बाद भोजन ग्रहण करती है ।

 दूसरे दिन जली हुई होली की पूजा करके होली गीत गाये जाते है ।एक दूसरे को रंग लगते है गाँव के पुराने कहते थे कि छरड़ी दिन हर किसी को गीली होली खेलनी चाहिए जिससे शरीर मे खाज ,खुजली ,चर्म रोगादि खत्म हो जाते है।

होलिका दहन की परम्परा सदियों से चली आ रही है ।जिसे सनातन धर्मी इस परम्परा को हर वर्ष हर्षोल्लास के साथ मानते है ।

मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन के दिन बुराइयों का अंत हो भगवान और भक्त का सम्बन्ध बना रहे ,पाप पर पुण्य विजयी हो, बुराई पर अच्छाई की विजय हो इस लिए होलिका दहन  सामुहिक रूप से किया जाता है।

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पौराणिक मान्यताएं --

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1 - राजा रघु के समय की बात है राजा रघु के शासन काल के समय एक दैत्य जिसका आतंक बहुत था। उसको भय सिर्फ बच्चे व अग्नि से लगता था ।एक बार राजा ने लकड़ी के ढेर में आग लगा दी और बच्चों को चिल्लाने को कहा जिससे फलस्वरूप दैत्य का वध हो गया । वह दिन फाल्गुन पूर्णिमा होली के एक दिन पहले का था ।इस लिए प्रतिवर्ष होलिका दहन के रूप में मनाया जाने लगा । 

होलिका दहन के दिन जोर जोर से चिल्लाने ,अट्टहास, मंत्रोचारण ,होली गीत गाने से बुरे पापात्माओं का नाश होता है ।

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2 - राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था । जिसके फलस्वरूप उसने अपने राज्य में देव पूजा ,यज्ञ ,जप ,तप बन्द करवा दिया ।और स्वयं को ईश्वर मनाने लगा और उसकी इच्छा थी कि उसी की पूजा हो,लेकिन उसका स्वयं का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था ।पिता के लाख समझाने के बाद भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु जी का नाम मंत्र जप बन्द नही किया।पिता के आदेश पर नाना प्रकार के दंड दिया गया ,तब भी प्रह्लाद की भक्ति व आस्था कोई कमी नही दिखी तब प्रह्लाद को अग्नि में जलने के आदेश होलिका को दिया गया, होलिका को भगवान शिव द्वारा वरदान प्राप्त था कि वो कभी भी अग्नि में नही जलेगी। 

होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि चिता में बैठ गई  होलिका जल गई और प्रह्लाद नारायण का जप करते हुए बच गए । और तभी से होलिका दहन मनाये जाने लगा ।

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3 - वैदिक आचार्य ब्राह्मण होली के पहले दिन पूर्णिमा को वसोर्धारा होम करते थे। जिसका नाम होलिका पड़ा और होलिका के रूप में मनाया मनाया जाने लगा ।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
              वसई
      

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

महाशिवरात्रि व्रत

💐महाशिवरात्रि व्रत 💐

(फ़ाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी)

यह भगवान शंकर का अत्यन्त महत्वपूर्ण व्रत है । इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से पवित्र होकर अपने पापों को नाश करने और अक्षय मोक्ष की प्राप्ति की कामना से यह शिवरात्रि व्रत करना चाहिए ' संकल्प करके भगवान शंकर की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए । दिनभर उपवास करना और विल्बपत्र , पुष्पों और वस्त्रों से सजाकर एक सुन्दर मण्डप तैयार करना चाहिए । मण्डप में लिंगतोभद्र वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करके कलश पर शिव - पार्वती की स्वर्णमयी मूर्ति स्थापित करनी चाहिए । मूर्ति के पास ही भगवान शिव के वाहन नंदी की भी चांदी की प्रतिमा बनानी चाहिए । भगवान शंकर की बिल्वपत्रों से पूजा करनी चाहिए । रातभर जागरण करके भगवान शिव की कथाओं का श्रवण - मनन करना चाहिए । दूसरे दिन प्रातःकाल स्नान - संध्या के पश्चात हवन करके ब्राह्मणों को दान - दक्षिणा देकर और भोजन कराकर स्वयं भी भोजन करना चाहिए। 

 पूजन विधि --

प्रातःकाल नदी या तालाब के पानी में स्नान करके शुद्ध धुले वस्त्र धारण करके श्रद्धा भक्ति सहित व्रत रखकर मंदिर में अथवा घर पर ही भगवान शिव - पार्वती की पूजा करनी चाहिए ।

शिवरात्रि की रात्रि घर मे शिव पार्थिव लिंग ( मिट्टी ,साठी चावल का आटा ,बालू ,गाय गोबर ) आदि से निर्माण कर भगवान शिव जी की चार प्रहर का पूजन , अभिषेक योग्य ब्राह्मण के द्वारा करना चाहिये । पूजन में  गंगाजल ,दूध,दही ,घी ,शहद ,शक्कर ,वस्त्र, रोली , मोली , अक्षत ( चावल ) फूल ,हार विल्बपत्र , वेलफल , धतूरा, आंख का पुष्प , धुप , दीप, नैवेद्य , फल ताम्बूल(पान ) , पुंगीफल ( सुपारी ) दक्षिणा - इत्यादि का प्रयोग करें ।   भगवान शिवजी की आरती उतारें । " शिव चालीसा ” तथा “ शिव सहस्रनाम " का पाठ करना चाहिए । ॐ नमः शिवाय , ॐ महेश्वराय नमः इत्यादि दिव्य शिव मंत्रों का अधिकाधिक जप करें । पाठ और जप के पश्चात शंकरजी पर घुटी - पिसी भांग चढ़ाई जाती है । शेष भांग का शिवजी के प्रसाद के रूप में स्वयं पान करें तथा शिव भक्तों एवं परिवार के सदस्यों को शिव प्रसाद के रूप में दें । जिन परिवारों में पुत्र का जन्म अथवा विवाह होता है , लड़की की मां शिवजी पर पानी का घड़ा ( जेअर ) चढ़ाती हैं । 

व्रत सम्बन्धी सावधानी --

एकादशियों के समान ही इस व्रत में भी नमक और अन्न का सेवन न करें , केवल फलाहार करें । आलस्य का त्याग करें ।फलाहार शाम को करना चाहिये । रात्रि में जागरण करें तथा शिवजी का भजन करें । यदि रात्रि में नींद सताये तो भगवान की प्रतिमा के समीप ही शयन करें । इस व्रत के दिन चारपाई पर बैठने तथा सोने का निषेध है । 

उत्तरी भारत में गंगाजी से पैदल गंगाजल लाकर भी विभिन्न शिव - मन्दिरों पर चढ़ाई जाती हैं और शिव मन्दिर में रात्रि भर शिवजी के भजनों का गायन वादन व ब्राह्मणों के द्वारा वेदमंत्रो से रात्रि में चार प्रहर की पूजा अभिषेक किया जाता है ।

।। विशेष ।।
🔱 महाशिवरात्रि को ये उपाय चमका सकते हैं आपकी किस्मत 👇
1 -जिन बच्चों के विवाह में हो रहा विलम्ब वे केशर मिश्रित दूध से करें शिव पूजा ।
2 - घर मे कलह की शांति के लिए करें शिव पूजा ।
3 - धन की चाह रखने वालों को नारियल या गन्ने के रस से करें शिव पूजा ।
4 - आरोग्यता के लिए कुशा के रस से करें शिव पूजा ।
5 -वास्तु दोष शांति के लिए करें शिव पूजा लघु रुद्र का पाठ ।
5 - संतान सुख ले लिए करें चावल के आटे से करें शिवलिंग निर्माण व पूजन लघु रुद्र का पाठ ।
6 -विद्या प्राप्ति के लिए करें शिव पूजा  है ।
7 -मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं । इस दौरान भगवान शिव का ध्यान करते रहें । यह धन प्राप्ति का सरल उपाय है ।
8 -  शिवरात्रि पर 21 बिल्व पत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं । इससे आपकी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं ।
9 - शिवरात्रि पर नंदी (बैल) को हरा चारा खिलाएं । इससे जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और परेशानियों का अंत होगा ।
10 - शिवरात्रि पर गरीबों को भोजन कराएं, इससे आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी तथा पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी ।
11 - पानी में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें व ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें । इससे मन को शांति मिलेगी ।
12 - शिवरात्रि पर घर में पारद की शिवलिंग की स्थापना करें व रोज इसकी पूजा करें । इससे आपकी आमदनी बढ़ाने के योग बनते हैं ।
13 - शिवरात्रि के दिन चावल के आटे से 108 शिवलिंग बनाएं  इनका जलाभिषेक करें । इस उपाय से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं ।
13 - शिवलिंग का 101 बार जलाभिषेक करें । साथ ही ॐ हौं जूँ सः । ॐ भूर्भुवः स्वः । ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् उर्व्वारुकमिव बन्धानान्मृत्यो मुक्षीय मामृतात् । ॐ स्वः भुवः भूः ॐ । सः जूँ हौं ॐ । मंत्र का जप करते रहें । इससे बीमारी ठीक होने में लाभ मिलता है ।
14 - शिवरात्रि पर भगवान शिव को तिल व जौ चढ़ाएं । तिल चढ़ाने से पापों का नाश व जौ चढ़ाने से सुख में वृद्धि होती है ।

।। हर हर महादेव ।।

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शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

वसन्त पंचमी (सरस्वती पूजन)

वसन्त पंचमी, सरस्वती पूजन

 ( माघ शुक्ला पंचमी )

यह पर्व वसन्त ऋतु के आगमन का सूचक है । वसन्त ऋतुओं का राजा माना जाता है । वैसे वसन्त ऋतु के अन्तर्गत चैत्र और वैशाख के महीने आते हैं फिर भी माघ शुक्ला पंचमी को ही यह उत्सव मनाया जाता है । कारण यह है कि इसी समय से ऋतुराज वसन्त के आने की सूचना मिलने लगती है ।

आज के दिन वाणी की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती के पूजन का भी इस दिन विशेष महत्व है। विद्यार्थियों को आज सरस्वती पूजन कर माँ सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए ।

खेतों में सरसों के फूलो की स्वर्णमयी कान्ति और चारों ओर पृथ्वी की हरियाली मन में उमंग उल्लास भरने लगती है । वृक्षों में नई - नई कोपलें फूटने लगती है और बाग -बगीचों में अपूर्व लावण्य छिटकने लगता है । पक्षियों का कलरव मन को बरबस अपनी ओर खींचने लगता है तथा भौरों की गुंजार कानों को मधुर लगने लगती है ।

वसन्त पंचमी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है । इस दिन प्रातःकाल तेल - उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए और पवित्र वस्त्र धारण करके भगवान नारायण का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए । इसके बाद पितृ - तर्पण और ब्राह्मण - भोजन का भी विधान है । मन्दिरों में भगवान की प्रतिमा का वासन्ती वस्त्रों और पुष्पों से श्रृंगार किया जाता है तथा गाने - बजाने के साथ बड़ा उत्सव मनाया जाता है । इस पंचमी को लोग पहले - पहले गुलाल उड़ाते हैं और वासन्ती वस्त्र धारण कर नवीन उत्साह और प्रसन्नता के साथ अनेक प्रकार के मनोविनोद करते हैं ।

इस दिन कामदेव और रति की पूजा भी होती है । बसन्त कामदेव का सहचर है । इसलिए इस दिन कामदेव और रति की पूजा करके उनकी प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए ।

इसी दिन किसान लोग अपने खेतों से नया अन्न लाकर उसमें घी - मीठा मिलाकर उसे अग्नि को , पितरों को और देवताओं को अर्पण करते हैं तथा नया अन्न खाते है। जौ कि प्रतिष्ठा करके कुलदेवताओं को चढ़ाया जाता है ओर दरवाजे की दहेली पर गाय के गोबर से जौ लगाते है। आज के दिन किसान अपने खेतों में हल जुताई करते है।

वसन्त पंचमी से बैठी होली के गीतों की शुरुवात होती है। अबीर -गुलाल उड़ाते है ।देवताओं को भी गुलाल अर्पित करना चाहिए ।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
    वसई

शनिवार, 30 जनवरी 2021

श्री सन्तानगणपति स्तोत्रम्

     ।।श्री सन्तानगणपति स्तोत्रम् । ।

सन्तानगणपति स्तोत्र का पाठ करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है ।नित्य 11 पाठ करें ।


ॐ नमोस्तु गणनाथाय सिद्धि बुद्धि युताय च ।

 सर्वप्रदाय  देवाय  पुत्र बृद्धि   प्रदाय च ॥१ ॥ 


गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्य सिताय ते ।

गोप्याय नोदिताशेषभुवनाय चिदात्मने ॥२ ॥ 


विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।

नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥३ ॥


एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः ।

 प्रपन्नजन  पालाय प्रकृतार्ति विनाशिने ॥ ४ ॥ 


शरण  भव देवेश सन्ततिं सुदृढां कुरु । 

भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ॥५ ॥ 


ते सर्वे  त  पूजार्थे  निरताः  स्युर्वरोमतः ।

पुत्रपदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धिप्रदायकम् ॥६ ॥ ॥ 


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      ।। इति सन्तान गणपति स्तोत्रम् ॥  
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
         वसई

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

पञ्चाङ्ग क्या है।पञ्चाङ्ग कैसे समझें

पञ्चाङ्ग क्या हैं--

भारतीय सनातन संस्कृति में वेद ,पुराण , रामायण, महाभारत ,उपनिषद, वेदान्त, साहित्य ,ज्योतिष, व्याकरण, आदि अनेक शास्त्र है।जो हमारे ज्ञान , विज्ञान ,रहन, सहन,खान ,पान, अस्त्र , शस्त्र हर तरह की जीने की कला सिखाते है। शास्त्रों में ज्योतिष को नेत्र की संज्ञा दी है।जो हमे रास्ता दिखता है।ज्योतिष हमे ब्रह्माण्ड में होने वाली हलचल ग्रहों की दशा व दिशा का ज्ञान कराता है।

ज्योतिष काल की गणना के आधार से हमे तिथि, बार, नक्षत्र, योग,करण व समय की गणना ,शुभाशुभ योगों की गणना, करके हमे पञ्चाङ्ग के रूप में देता है । पञ्चाङ्ग के पांच अंग होते है। इन्हें जानें बिना कोई भी पञ्चाङ्ग की गणना नही कर सकता है। कौन - कौन हैं पञ्चाङ्ग के अंग ,जिन्हें समझना जरूरी है । जिससे हम दैनिक शुभशुभ  को जान सकें ।

पञ्चाङ्ग के अंग --

1-तिथि

2-वार

3-नक्षत्र

4-योग

5-करण

इन पांचों से पञ्चाङ्ग का निर्माण होता है ।और पञ्चाङ्ग को जानने के लिए पाँचो अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है ।

1 - तिथि --

तिथियां तीस होती है। १५ तिथि शुक्ल पक्ष की और १५ कृष्ण पक्ष की होती है ।जिससे एक माह का निर्माण होता है।

१ - प्रतिपदा               ९ - नवमी
२ - द्वितीया                १० - दशमी
३ - तृतीया                 ११ - एकादशी
४ - चतुर्थी                 १२ - द्वादशी
५ - पञ्चमी               १३ - त्रयोदशी
६ - षष्ठी                    १४ -  चतुर्दशी
७ - सप्तमी                १५ - पूर्णिमा
८ - अष्टमी                 ३० - अमावस्या

२ - वार --

वार सात होते है।जो इस प्रकार है ।

1-रविवार

2 -सोमवार

3 -मंगलवार

4 -बुधवार

5 - वृहस्पतिवार

6 -शुक्रवार

7 -शनिवार

३ - नक्षत्र --

 १. अश्विनी , २. भरणी , ३. कृत्तिका , ४. रोहिणी , ५. मृगशीर्ष , ६. आर्द्रा , ७. पुनर्वसु , ८. पुष्य , ९ . आश्लेषा , १०. मघा , ११. पूर्वाफाल्गुनि , १२. उत्तरा फाल्गुनि , १३. हस्त , १४. चित्रा , १५. स्वाती , १६. विशाखा , १७. अनुराधा , १८. ज्येष्ठा , १ ९ . मूल , २०. पूर्वाषाड़ा , २१. उत्तराषाढ़ा , २२. अभिजित् , २३. श्रवण , २४ .. धनिष्ठा , २५. शतभिषा , २६. पूर्वाभाद्रपद , २७. उत्तरा भाद्रपद , २८. रेवती ।

 प्रमुख रूप से नक्षत्र २७ ही होते हैं । उ ० षा ० और श्रवण के एक - एक चरण को लेकर एक अभिजित् नक्षत्र हो जाता है । साभिजित् गणना में नक्षत्रों की संख्या २८ हो जाती है ।

४ - योग -- 

१ .विष्कुम्भ ,२ . प्रीति , ३ .आयुष्मान् , ४ .सौभाग्य ,५ . शोमन , ६.अतिगण्ड , ७ .सुकर्मा , ८ .धृति , ९ .शूल ,१० . गण्ड ,११ . बृद्धि , १२ .ध्रुव , १३ .व्याघात , १४ .हर्षण , १५ .वज्र , १६ .सिद्धि ,१७ . व्यतिपात , १८ .वरीयान ,१९ . परिघ , २० .शिव , २१ .सिद्धि , २२ . साध्य ,२३ . शुभ ,२४ .शुक्ल ,२५ . ब्रह्म , २६ .ऐन्द्र ,२७ . वैधृति ये २७ चर योग होते हैं । 

५ - करण --

१ . बब ,

२ . बालव , 

३ .कौलव ,

४ .तैतिल , 

५ .गर , 

६ .वणिज , 

७ .विष्टि 

ये सात चर करण है ।

 एक तिथि में दो करण होते हैं । " तिथ्यधं करणम् " । तिथि के प्रारम्भ से करण भी प्रारम्भ होता है । तिथि के आधे भाग से दूसरे करण को प्रवृत्ति होती है । विष्टि करण को भद्रा कहते हैं ।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
9004013983



बुधवार, 20 जनवरी 2021

उत्तराखंड भूमि मनै बात

उत्तराखंड भूमि मनै बात

मै छू देवभूमि ,मै छू उत्तराखंड,मै छू पहाड़ ।

सिरक ताज तुमकै पहना तुम नै गच्छा भ्यार ।।

मै छू देवभूमि उत्तराखंड पैली मै उत्त्तर प्रदेश छी, अब में उत्तराखंड हैगू ,मेरी उम्र बहुत छ , म्यर परिवार पैली छव्ट छि अब पुर भारत मे म्यर परिवार बसी रह। पर नई प्रदेश बनी बै मै 21 सालक जवान हेगु।कैकि नजर लागी मिपरि और म्यर देवभूमि स्वरूप कुटुम्ब पै, कि म्यर परिवार मिकणि छोड़ी नेगो मै आज इकले रह गु। न कैके मेरी याद आणि न कोई भाटूलि लगणे सब आपु में मगन छी।में खुसी छू म्यर परिवार खुश रहे । बार त्यौहार याद कनै रहाया । आपण कुल देवतों के भेंटने रह्या । 

य भूमि में तुमर पुरखों खून पासिणी समै रै । जो आज फलदार डाउ जस फली रह ।

आप सबु हैं कामना छू आपण बार त्यौहार ,संस्कार, आपणी  संस्कृति ,अपणी बोली भाषा,आपणी पछ्यांण कै आपण पीढ़ी दर पीढ़ी आघीन बढ़ाने रह्या । मै सदा तुमर इंतजार करूनु कब तुम मैके मिलण आला । में आज उन लोंगो दगे रहनु जेक घर टूटी गयी।उनर द्यबत्त म्यर दगड़ी छै । जावो राजी रहो खुसी रहो य मेरी देवभूमी की आवाज छ।

क्यछ पहाड़ में --

खूबसूरत पहाड़ छी, बहुते भल वातावरण छू ,ठंड- ठंड पाणी छू ,सब तरफ हरिया हरि डान छि ,सीडीदार पाटो छि, बहुते भल रशिल खाण प्यूण छ, नी संकोच घुमण फिरण , मनुहा,झूँगार भट ,गहत,राजमा, सुयाबिन, रेंस, मॉस, कोणी,बाजरा,चू, गेहूं , चावल सब प्रकारक नाज छ, अगर तुम खुज्याला तो बहुत कुछ मिलल ।मै स्वर्ग छू ।

क्यछ पहाड़ों विशेषता--

या चार धाम ,या पांच बद्री,पांच केदार, पाँच प्रयाग छि,जागेस्वर ,बागनाथ ,नंदा देवी,  जो सबु के आस्था एक सूत्र बंधन में पिरोणक काम करै , पितरों कै तारणे  लिजी बहुत विषेष छू। याँ दूर दूर बे लोग आबे  आपण  पितरो मुक्ति हेतु कामना करनी । भगवानों आशीर्वादल सबकेँ सद गति,मुक्ति  प्राप्त है सको। 

पहाड़ो में रोजगारक साधन --

शिक्षा ,चिकित्सा, खेती, कारपेंट्री,पशुपालन, बालबर, पर्यटन, व्यापार,बाग बगीचा,आयुर्वेदिक जड़ी का स्रोत,  करण यस बहुते काम छू, य भूमि में बहुते आसार छु रोजगारक जो बहुते लोगों कै आजीविका दयंच। मेहनती व सफल लोगोंहे केँ कमी निछ।

म्यर शब्दों में गलती हैली तो माफ करिया।य कुमाऊँनी भाषा मे लिखणक प्रयास छू ।

।जय देवभूमि ।

।जय उत्तराखंड।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
           बसई

सोमवार, 18 जनवरी 2021

श्री गणेश पञ्चरत्नम्

          ।। गणेश पञ्चरत्नम् ।।

मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्ति साधकं

कला धरावतंसकं विलासिलोक रञ्जकम् ।

अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकं 

नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ १ ॥ 

नतेतराति भीकरं नवोदितार्कभास्वरं  

नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।

सुरेश्वरं    निधीश्वरं  गजेश्वरं  गणेश्वरं

महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ २ ॥ 

समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरं

दरेतरोदरं   वरं   वरेभवक्त्रमक्षरम् ।

कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्कर 

नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ ३ ॥ 

अकिंचनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनं 

पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् 

प्रपञ्चनाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणं 

कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥ ४ ॥ 

नितान्त कान्त दन्त कान्ति मन्त कान्त कात्मजं 

मचिन्त्य रूप मन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् । 

हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां 

तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ॥ ५ ॥ 

महागणेश पञ्चरत्न मादरेण योऽन्वहं

प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वम् ।

अरोगता मदोषतां सुसाहिती सुपुत्रतां 

समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ ६

 ॥

 ॥श्रीमच्छङ्कशचार्यकृतं गणेशपञ्चरत्नस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

महामृत्युंजय कवचम्।।

नित्य महामृत्युंजय कवच का पाठ करने से व्याधि का नाश,ग्रहपीड़ा से मुक्ति,दुःस्वप्न का नाश सभी प्रकार से रक्षा व आयुआरोग्यता मिलती है।

।।महामृत्युञ्जयकवचम्।।

देव्युवाच--

भगवन सर्वधर्मज्ञ सष्टि - स्थिति लगात्मक ।

मृत्युंञ्जयस्य  देवस्य  कवचं   प्रकाशय ॥२ ॥

ईश्वर उवाच--

शृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि कवचं सर्व - सिद्धिदम् । 

मार्कण्डेयोऽपि यद् धृत्वा चिरजीवी व्यजायत ।।२ ।। 

तथैव   सर्वदिव्याला    अमरावमवाप्नुयुः ।

कवचस्य ऋषि ब्रह्मा छंदोनुष्टुबुदाहृतान ।।३ ।।

 मृत्युञ्जयः समुद्दिष्टो देवता पार्वतीपतिः ।

देहारोग्याबला युष्ट्वे विनियोगः प्रकीर्तितः ॥४ ॥

कवचम्--          

ॐ त्र्यम्बकं मे शिरः पातु ललाट मे यजामहे । 

सुगन्धिं  पातु  हृदयं  जठरं   पुष्टिवर्धनम् ॥५ ॥

 नाभियुर्वारुकमिव पातु मां पार्वतीपतिः ।

बन्धनादूरुयुग्मं मे पातु कामाङ्गशासनः ॥६ ॥

 मृत्योर्जानुयुगं पातु दक्षयज्ञ - विनाशनः । 

जङ्घायुग्मं च मुक्षीय पातु मां चन्द्रशेखरः ॥७ ॥ 

माऽमृताच्च  पदद्वन्द्वं पातु  सर्वेश्वरो  हरः ।

ॐ सौ मे श्रीशिवः पातु नीलकण्ठश्च पार्श्वयोः ।।८ ।।

 ऊर्ध्वमेव  सदा  पातु  सोम  सूर्याग्निलोचनः ।

अधः पातु सदा शम्भुः सर्वापद्विनिवारणः ॥९ ॥

 वारुण्यामर्धनारीशो वायव्यां पातु शङ्करः । 

कपर्दी पातु कौवेर्यामैशान्यां ईश्वरोऽवतु ॥१० ॥

ईशानः सलिले पायादघोरः पातु कानने ।

अन्तरिक्ष वामदेवः पायात्तत्पुरुषो भवि ॥११ ॥ 

श्रीकण्ठः शयने पातु भोजने नीललोहितः । 

गमने त्र्यम्बकः पातु सर्वकार्येषु सुव्रतः ॥१२ ॥ 

सर्वत्र सर्वदेह में सदा मृत्युञ्जयाऽवतु । 

इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्वकामदम् ॥१३ ॥ 

फलश्रुतिः--

सर्वरक्षाकरं सर्वग्रहपीडा - निवारणम् । 

दुःस्वप्ननाशनं - पुण्यमायुरारोग्यदायकम् ॥१४ ॥

त्रिसन्ध्यं यः पठेतन्मृत्युस्तस्य न विद्यते ।

लिखितं भूर्जपत्रे तु य इदं मे व्यधारयेत् ॥१५ ॥

तं दृष्ट्वैव पलायन्ते भूत - प्रेत - पिशाचकाः । 

डाकिन्यश्चैव योगिन्यःसिद्ध - गन्धर्व - राक्षसाः ॥१६ ॥ 

बालग्रहादिदोषा हि नश्यन्ति तस्य दर्शनात् । 

उपग्रहाश्चैव   मारीभयं   चौराभिचारिणः ॥१७ ॥

इदं  कवचमायुष्यं कथितं  तव  सुन्दरि ।।

न दातव्यं प्रयत्नेन न प्रकाश्यं कदाचन ॥१८ ॥ 

।।इति महामृत्युंजयकल्ये देवीश्वरसंवादे महामृत्युंजय कवचं समाप्तम् ।।

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ॐ जय गौरी नंदा

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