सोमवार, 4 दिसंबर 2023

गिरिराज गोवर्धन पर्वत की उत्पति

गिरिराज गोवर्धन की उत्पत्ति के विषय में नंद जी ने सानंद जी से पूछा।

 गोवर्धन गिरिराज पर्वत की उत्पत्ति कैसे हुई और इनको गिरिराज क्यों कहते हैं।

 सानंद जी ने कहा कि एक समय की बात है हस्तिनापुर में महाराज पांडु ने धर्मधारियों में श्रेष्ठ श्री भीष्म जी से ऐसा ही प्रश्न किया था।

 उनके उन प्रश्न को भीष्म द्वारा दिए गए उत्तर को अन्य बहुत से लोग भी सुन रहे थे उसमें भीष्म जी ने उत्तर दिया वही मैं यहां सुन रहा हूं साक्षात परी पूर्णतम भगवान श्री कृष्णा जो असंख्य ब्रह्मांड के अधिपति गोलोक के नाथ और सब कुछ करने में समर्थ है जब पृथ्वी का भार उतारने के लिए स्वयं इस भूतल पर पधारने लगे उन भगवान जनार्दन देवाधिदेव ने अपनी प्राण बल्लभा राधा से कहा प्रिये तुम मेरे वियोग में भयभीत रहती हो अतः तुम भी भूतल पर चलो.

श्रीराधा जी बोली - प्राणनाथ जहां वृंदावन नहीं है, जहां वह यमुना नदी नहीं है,तथा जहां गोवर्धन पर्वत नहीं है, वहां मेरे मन को सुख नहीं मिल सकता।

श्री राधा जी की बात सुनकर स्वयं श्री हरि ने अपने धाम से 84 कोश विस्तृत भूमि गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी को गोलोक भूतल पर भेजा।

उस समय 84 कोश विस्तार वाली गोलोंक की सर्वलोक बंदिता भूमि 24 वनों के साथ यहां आई गोवर्धन पर्वत ने भारतवर्ष से पश्चिम दिशा में  शाल्मली द्वीप के भीतर द्रोणाचल की पत्नी के गर्भ से जन्म ग्रहण किया.

 उस अवसर पर देवताओं ने गोवर्धन के ऊपर फूल बरसाए हिमालय और सुमेर आदि समस्त पर्वतों ने वहां जाकर प्रणाम किया और परिक्रमा करके गोवर्धन का विधिवत पूजन किया पूजन के पश्चात उन महान पर्वतों ने उसकी स्तुति प्रारंभ की.

पर्वत बोले तुम साक्षात पूर्ण परिपूर्णतम भगवान श्री कृष्ण के गोलोक धाम में जहां दिव्य गौ का समुदाय निवास करता है तथा गोपाल एवं गोप सुंदरिया शोभा पाती है  तुम्हीं गोवर्धन नाम से वृंदावन में विराजित हो इस समय तुम ही हम समस्त पर्वतों में गिरिराज हो तुम वृंदावन की गोद में निवास करने वाले गोलोक मे मुकुट मणि हो तुम गोवर्धन को सादर प्रणाम है।

 तभी से यह गिरीश श्रेष्ठ गोवर्धन साक्षात गिरिराज कहलन  लगे।


 एक समय मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य जी तीर्थ यात्रा के लिए भूतल पर भ्रमण करने लगे उन मुनिश्रेष्ठ ने द्रोणाचल के पुत्र श्याम वर्ण वाले श्रेष्ठ पर्वत गोवर्धन को देखा जिसके ऊपर माधवी लता के सुमन सुशोभित हो रहे थे वहां वृक्ष फलों के भार से लगे हुए थे झरनों के झर झर शब्द वहां गूंज रहे थे उन पर्वत पर उनकी बड़ी शांति विराज रही थी|

पुलस्त्य जी उसे पर्वत से बोले कि तुम पर्वतों के स्वामी हो समस्त देवता तुम्हारा सादर सत्कार करते हैं तुम दिव्य औषधियां से संपन्न तथा मनुष्यों को सदा जीवन देने वाले हो।

 मुनिवर पुलस्त्य जी के मन मे उस पर्वत को प्राप्त करने की इच्छा हुई इसके लिए वह द्रोणाचल के समीप गए ओर द्रोणगिरि ने उनका पूजन सत्कार किया।

 इसके बाद पुलस्त्य जी उस पर्वत से बोले मैं काशी निवासी हूं तुम्हारे निकट याचक बनकर आया हूं

 तुम अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दो यहां अन्य वस्तुओं से मेरा कोई प्रयोजन नहीं है?

 भगवान विश्वेश्वर की महानगरी काशी नाम से प्रसिद्ध है ,जहां मरण को प्राप्त हुआ पापी पुरुष भी तत्काल परम मोक्ष प्राप्त कर लेता है ,जहां गंगा नदी प्राप्त होती है ,जहां साक्षात विश्वनाथ विराजमान है ,मैं वहीं तुम्हारे पुत्र को स्थापित करूंगा जहां कोई दूसरा पर्वत नहीं है ।मैं वहां तुम्हारे ऊपर बैठकर तपस्या करूंगा ऐसी मेरी अभिलाषा है।

 द्रोणाचल बोले -मैं पुत्र स्नेह से आकूल हूं यह पुत्र मेरा अत्यंत प्रिय है तथापि आपके शाप के भय से इसे मैं आपके हाथों में देता हूं।


 पुलस्त्य जी - बेटा तुम मेरे हाथ पर बैठकर सुख पूर्वक चलो जब तक काशी नहीं आ जाती तब तक मैं तुम्हें हाथ पर ही लेके चलूंगा।

गोवर्धन ने कहा - मुनि मेरी एक प्रतिज्ञा है आप जहां कहीं भी भूमि पर मुझे एक बार रख देंगे वहां की भूमि से मैं पुनः उत्थान नहीं करूंगा।

पुलस्त्य जी बोले मैं इस शल्मली द्वीप से लेकर भारत के कौशल देश तक तुम्हें कहीं भी रास्ते में नहीं रखूंगा यह मेरी प्रतिज्ञा है।

 ऋषि पुलस्त्य जी हाथ में  गिरिराज पर्वत को हाथ में रखकर चलने लगे और लोगों को अपना तेज दिखाने लगे चलते चलते ब्रजमंडल पहुंचे और ब्रज मंडल पहुंचते ही मुनिवर को लघुशंका लगी और भूल बस उन्होंने गोवर्धन पर्वत को ब्रज मंडल में रख दिया और लघु शंका स्नान से निवृत्त होकर पर्वत उठाने लगे ओर नहीं उठने पर गोवर्धन पर्वत ने उनकी प्रतिज्ञा याद दिलाई, 

मुनिवर के अथक प्रयास करने के बाद भी पर्वत हिला नहीं ।

मुनिवर ने गिरिराज पर्वत को श्राप दे दिया कि तू बड़ा ढीठ है तूने मेरा मनोरथ पूर्ण नहीं होने दिया, इसलिए तू तिल तिल छोटा होता चला जाएगा ।



सोमवार, 13 नवंबर 2023

प्रकटेश्वर महादेव मन्दिर बसई की खोज

  प्रकटेश्वर महादेव वसई का इतिहास 

श्री प्रकटेश्वर महादेव जी कि उत्पत्ति का उल्लेख सन १९६० के दशक में हुआ । जिसकी स्थापना श्रीकिशन गिरि बाबा ने की थी। किशन गिरि बाबा के बाद श्रीलिखेश्वर महाराज जी को इस मंदिर का उत्तराधीकारी माना जाता था। महाराज जी के शरीर छुटने पर ग्राम बसई वालो ने मंदिर का देखभाल करना शुरू किया।

प्रकटेश्वर महादेव मंदिर अल्मोड़ा जनपद के स्याल्दे तहसील बसई गांव के अंर्तगत आता है ।जिसमे समस्त ग्रामवासियों के द्वारा धनराशि एकत्रित करके मन्दिर व धर्मशाला का निर्माण किया गया ।


मन्दिर में पुजारी के रूप में लखेड़ा ब्राह्मणों को नियुक्त किया गया । समय समय पर सभी ग्राम वासियों के द्वारा योगदान मिलता रहा है ।

सन १९९८ में मंदिर का जीर्णोद्धार श्री महेश चंद्र बेलवाल जी के कर कमलों द्वारा शिव मन्दिर ,भैरव मंदिर ,माता का मन्दिर व धर्मशाला का पुनः निर्माण किया गया ।

क्षेत्र के श्रद्धालु भक्तों के द्वारा शिवरात्रि जागरण ,श्रावण माह में अभिषेक पूजन व भण्डारा किया जाता है ।

प्रकटेश्वर महादेव जी को हलवा, पूरी, चना ,रोट का भोग लगाया जाता है ।भगवान भोलेनाथ सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते है ।

बसई ग्राम वासियों के द्वारा मन्दिर में पूजा अर्चना का कार्य मन्दिर को सुसज्जित व व्यवस्थित बनाने का कार्य ग्रामवासियों द्वारा किया जाता है। ।

भगवान भोलेनाथ हिमालय क्षेत्रों में शिव पार्वती जी की अनेक लीलाओं के द्वारा प्रकटेश्वर रूप धारण करके भक्तों के कष्टों का निवारण कर मनोकामना पूर्ण करते है।

    । । जय श्री प्रकटेश्वर महादेव।।

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आचार्य हरीश चन्द्र लखेड़ा            
   
           

श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्रम्

॥ श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्रम् ॥

सन्तान प्राप्ति के लिये अद्भुत अनुष्ठान  

यदि कोई महानुभाव कि किसी कारणवश सन्तान न होनेसे निराश हों तो विश्वासपूर्वक श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्र का नियमित रूप से नित्य पाठ करें ।

 ध्यानम्- 

षष्ठांशा प्रकृतेः शुद्धां प्रतिष्ठाप्य च सुप्रभाम् ।

सुपुत्रदां च सुभगां  दयारूपां  जगत्प्रसूम् ॥ 

श्वेतचम्पकवर्णाभां    रक्तभूषणभूषिताम्  ।

पवित्ररूपां परमां     देवसेना परां भजे ।।

मंत्र:-- 

ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा । ( यथाशक्ति जप करें ) 

स्तोत्रं श्रृणु मुनिश्रेष्ठ सर्वकामशुभावहम् । 

आज्ञाप्रदं  च  सर्वेषां  गूढं  वेदेषु  नारद ॥

 प्रियव्रत उवाच :--

नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नमः । 

शुभायै देवसेनायै    षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥१॥

वरदाय  पुत्रदायै।   धनदायै  नमो  नमः । 

सुखदायै  मोक्षदायै  षष्ठीदेव्यै  नमो  नमः ॥ २॥

शक्तिषष्ठांशरूपायै सिद्धाय च नमो नमः । 

मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ३॥

साराय शारदायै च  पारायै सर्वकारिण्यै । 

बालाधिष्ठायै देव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।। ४॥

कल्याणदाय कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम् । 

प्रत्यक्षायै च भक्तानां  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥५॥

पूज्यायै  स्कन्दकान्तायै  सर्वेषां  सर्वकर्मसु । 

देवरक्षणकारिण्यै   षष्ठीदेव्यै  नमो  नमः ॥ ६॥

शुद्धसत्त्वस्वरूपायै वन्दितायै  नृणां  सदा । 

हिंसाक्रोधवर्जितायै  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ७॥

धनं  देहि  प्रियां  देहि  पुत्रं  देहि  सुरेश्वरि । 

धर्म  देहि  यशो देहि  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ८॥

भूमिं देहि प्रजां देहि विद्यां देहि सुपूजिते । 

कल्याणं च जयं देहि  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ९॥

इति देवीं च  संस्तुत्य लेभे  पुत्रं  प्रियव्रतः । 

यशस्विनं  च  राजेन्द्रं  षष्ठीदेवी प्रसादतः ॥१०॥

षष्ठीस्तोत्रमिदं ब्रह्मन् यः शृणोति च वत्सरम् । 

अपुत्रे  लभते  पुत्रं   वरं    सुचिरजीविनम् ॥११॥

वर्षमेकं च या भक्त्या संस्तुत्येदं शृणोति च । 

सर्वपापविनिर्मुक्ता   महावन्ध्या प्रसूयते ॥ १२॥

वीरं पुत्रं च गुणिनं विद्यावन्तं  यशस्विनम् । 

सुचिरायुष्मन्तमेव।  षष्ठीदेवी  प्रसादतः ॥ १३॥

काकवन्ध्या च या नारी मृतापत्या च या भवेत् । 

वर्षं श्रुत्वा लभेत् पुत्रं  षष्ठीदेवीप्रसादतः ॥१४॥

रोगयुक्ते च बाले च पिता माता शृणोति चेत् । 

मासेन मुच्यते बालः षष्ठीदेवी  प्रसादतः ॥ १५॥

                              प्रणाम - मन्त्र

            जय देवि जगन्मातर्जगदानन्दकारिणि । 

            प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठि देवते ॥ 


जीवन से पल्ला झाड़

मनुष्य जीवन कितना विचित्र है किसी वस्तु विशेष को पाने कि बहुत विचित्र ललक तो कभी पल्ला झाड़ने की ललक , मनुष्य के  जीवन मे न जाने कितने उतार चढ़ाव आते है ,समय असमय पर वह अपना पल्ला झाड़ने का प्रयास करता रहता है ।

जब मनुष्य किसी से कुछ सहायता पाने की  चेष्टा करता है । किन्तु कार्यों की उपलब्धि के बाद व अपना पल्ला झाड़ने लगता है ।जैसे वह कभी किसी को जानता न हो ।यह मनुष्य कि कमजोरी हो या जीव का लक्षण, सदा अपने ईष्ट (लक्ष्य) को साधते रहता है ।

बाल अवस्था -शिक्षा ,

युवा अवस्था - रोजगार , 

यौवन अवस्था - विवाह ,सन्तान 

प्रौढ़ अवस्था -  परिवार व कार्यो का निर्वहन करते वृद्धावस्था को प्राप्त हो अपने जीवन से भी पल्ला झाड़ देता है । 

जीवन के सभी महत्वपूर्ण कार्यो को करते करते मनुष्य कब अपने आप को भूल जाता है पता ही नही चलता ।

मनुष्य सदैव अपने जीवन काल मे अनेक अध्यायों को जोडता चला जाता है, पता नही चलता ।

दृष्टान्त --

गुरुकुल से विद्या अध्यन पूर्ण करने के बाद विद्यार्थी गुरु जी के पास गया बोला गुरु जी में आज शिक्षा प्राप्त करके गांव लौट रहा हूँ ,कृपया आप अनुमति दें ।

गुरुजी बोले बेटा आपको आशीर्वाद है  , किन्तु आप मेरे से पल्ला झाड़ लोगे मुझे भूल जाओगे ,शिष्य बोला नही गुरु जी में आपको सदा याद करूँगा ।शिष्य अपने गाँव को चला गया ।

कुछ वर्ष बीत जाने के बाद गुरु जी के पास गया , प्रणाम करके बोला गुरुजी में आपको भूला नही मै आपको विवाह का निमंत्रण देने आया हूँ ।गुरुजी बोले अब आप अपने माता पिता को भी भूल जाएगा व पल्ला झाड़ेगा दूर चला जायेगा ।

शिष्य बोला गुरु जी में सबको संयुक्त करके रखुंगा ।

शिष्य को जब पुत्र हुआ तब भी गुरु जी के पास गया । गुरु जी बोले अब तुम पत्नी को भी भूल जाओगे पुत्र पुत्र में रह जाओगे । परिवार के भरण पोषण में तुम कब अपने आप को भी भूल जाओगे ,पैसा पैसा करते जीवन से कब पल्ला झाड़ लोगे पता नही चलेगा ।  

कोई     तन   दुःखी ,

कोई    मन    दुःखी ।

कोई धन बिन रहत उदास

थोड़े  थोड़े सब  दुःखी ,

सुखी   राम    के    दास

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छोटी सी भूल कभी बड़ी बन जाती है ।

सोचो समझो --

जीवन है ,चलता है ,चलता रहेगा पर सोचो समझो कभी कभी हम कही एक भूल करदें ,जिसकी सजा यहाँ तो मिलती है ,और वहाँ भी मिलती है ,यह निश्चित है । 

इस लिए सावधान सोच समझ कर जीवन चक्र के पथ पर चलें। मानव जीवन है ,बहुत कठिनाईयां ,अनेक संघर्ष के बाद जीवन सफल होता है ।

जीवन मे आप कभी मठ , मंदिर , तीर्थ गुरु ,संत ,महंत आदि ,आदि के यहाँ जाते है ,कामना करते हैं, प्रभु ऐसा काम हो जाता कृपा करें । ऐसा बोल कर आ जाते हैं और भगवान से कामना करते हैं, कि मेरा काम हो जाएगा तो - मैं आपको अमुक वस्तु चढ़ाऊंगा ,और भूल  जाते है, जिसकी वजह से जीवन में अनेके कठिनाइयाँ  आती ,अनेक प्रकार की तकलीफ शुरू हो जाती है , यही एक भूल है , जिसे हम भूल जाते हैं ,और जीवन में अपने वजह से अपनी कामना की वजह से पूरे परिवार को तकलीफ में डाल देते हैं । बस प्रार्थना करें ।

जीवन की दूसरी भूल सच्ची बात है एक बार किसी व्यक्ति को बैंक से लोन की जरूरत थी । और वह बैंक गया बैंक वालों ने उससे बोला कि आप अपने साथ में उस व्यक्ति को ले आओ जो आपको जनता है ।

तो उस व्यक्ति को बगल गांव का कोई व्यक्ति मिला , उससे बोला भाई मेरे को लोन चाहिए ,बैंक किसी पहचान वाले का साइन मांग रही है।

आपके एक गवाही से मेरा काम हो जाएगा । उसने सिग्नेचर कर दिया ।

वह व्यक्ति बैंक से अपना काम कर  पैसा ले करके वहां से निकल गया ।

और जब क़िस्त भरने का समय आया तो लोन लेने वाला व्यक्ति गायब हो गया ।

इस स्थिति में बैंक गारंटर को खोजती है । जब फार्मा चेक किया गया उस पर जिस व्यक्ति का साइन था एड्रेस डाला हुआ था ।बैंक वाले उसके घर पर गए उससे लोन का पैसा भरने को कहा।  वह व्यक्ति अंदर से टूट गया ।

कोर्ट में केस चला मगर कुछ भी परिणाम ना मिला और मरते दम तक केस चलता रहा । 

जीवन में ऐसी गलती कभी भी भूल के भी न करें।

तीसरी घटना एक बार एक बच्चा बहुत गाली देता है बचपन से गाली देने की बहुत आदत थी। बड़ा होकर नौकरी करने लगा । कुछ समय बाद में उसकी मीटिंग हुई वहां पर बड़े बॉस के साथ में बातचीत के दौरान उसकी कहा सुनी हो गई और उसने बॉस के साथ असभ्य भाषा का प्रयोग करके संबोधित किया जिसके कारण सीनियर बॉस ने उस व्यक्ति को उसके स्थान से  हटा दिया ।

वह व्यक्ति जब वहां से निकला तो उसका जीवन का आधा सफर निकल चुका था जिसके कारण उसके मुंह से बोले गए वाक्यों से उसका जीवन का सफर वहां पर खत्म हो गया और वह अकेला हो गया ।

इसलिए जो भी शब्द आप बोलो वह सोच और समझ कर बोलें वही शब्द हमारे लिए मित्र बनाते हैं वही शब्द हमारे लिए शत्रु बना देते हैं ।

जीवन का हर कदम अच्छे से रखें ।जीवन कोरे कागज की तरह है ।एक बार दाग लगाने पर छुपता नही ।

जीवन मे कुछ काम मनुष्य ऐसा करता है । जिसका फल जीवन छूट जाने के बाद नरक के रूप में भोगना पड़ता है ।

श्री सत्यनारायण पूजन सामग्री

।।श्री सत्यनारायण पूजन सामग्री।।

०१ - रोली , चन्दन पाउडर

०२ - मोली , जनेऊ

०३- अविर ,सिंदूर ,गुलाल ,अभ्र्क

०४- लौंग, इलायची, पान ,सुपारी

०५ - रुई ,दिया, कपूर ,तेल ,मर्चिस

०६ - फल मिठाई पञ्चमेवा

०७- दूध ,दही, घी, शहद, शक्कर

०८ - नारियल, गोला

०९- फूल , फूलमाला, दूर्वा, तुलसी, बेलपत्र

१० - केले का खम्बा ४

११ - लाल कपड़ा ,पीला कपड़ा ,सफेद कपड़ा

१२ - सत्यनारायण जी की फोटो

१३ - चावल

१४ - दोना

१५ - चौरंगा ,पाट

१६ - गंगाजल, गौमूत्र, ईत्र

१७- जौ, सफेद तिल

१८- ब्राह्मण वस्त्र


श्री गणेश पूजन सामग्री

।।श्री गणेश पूजन सामग्री।।

१- रोली ,चन्दन

२- मौली,जनेऊ

३- अबीर ,सिंदूर ,अभ्रक,गुलाल ,हल्दी पाउडर

४- पान सुपारी, लौंग ,इलायची

५ धूप , रुई , दिया  कपूर , मर्चिस

६- नारियल , गोला

७- दूध ,दही , घी ,शहद ,शक्कर 

८- फल ,मिठाई पञ्चमेवा

९- फूल , फूलमाला , दूर्वा ,तुलसी , बेलपत्र

१०- लाल कपड़ा , सिंदूरी कपड़ा

११- तिल का तेल 

१२- चावल

१३-गणपति जी का वस्त्र आभूषण

१४- दोना 

१५ - गंगाजल, गौमूत्र

मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

शनि की दस पत्नियों के नाम जपने से शनि का प्रभाव नही होता है।

शनि की दस पत्नियों के नाम

ॐ ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलह प्रिया ।

कलाह कंटिकि चापि अजा महिषी तुरंगमा ।।

1-ध्वजिनी

2-धामिनी

3-कंकाली

4-कलह

5-प्रिया

6-कलाह

7-कंटिकि

8-अजा

9-महिषी

10-तुरंगमा

शनि की दशा जिसे पीड़ित करती है वह लोग शनि की 10 पत्नियों का नाम जप करने से शनि उन्हें कभी भी परेशान नहीं करता और हमेशा अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं । 

।।जय शनि देव ।।

खण्डग्रास चंद्रग्रहण 28अक्टूबर2023

 चंद्रग्रहण--
चंद्र ग्रहण आश्विन शुक्ल पूर्णिमा शनिवार 28 अक्टूबर 2023 को लगने वाला खंड ग्रास चंद्र ग्रहण भारत में दृश्य होगा ।भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण पश्चिमी तथा दक्षिण प्रशांत महासागर ऑस्ट्रेलिया ,एशिया, यूरोप ,अफ्रीका ,अमेरिका आदि अटलांटिक महासागर ,हिंद महासागर में दृश्य होगा।

चंद्रस्त के समय ग्रहण का प्रारंभ ऑस्ट्रेलिया उत्तरी प्रशांत महासागर रूस के पूर्वी भाग में होगा।

चंद्रोदय के समय ग्रहण का अंत उत्तर तथा दक्षिण अटलांटिक महासागर ब्राजील के पूर्वी भाग तथा कनाडा में दिखाई देगा ।

भारतीय मानक समय अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि में 1:05 मिनट पर तथा मध्य रात्रि के 1:44 मिनट तथा मोक्ष रात्रि में 2:24 मिनट पर होगा ।

ग्रहण का स्पर्श मध्य मोक्ष पूरे भारत में दिखाई देगा ।

चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले लग जाएगा ।

सावधानी --

ग्रहण काल में विशेष सावधानियां बरतने की जरूरत होती है । जो हमारे जीवन को खुशहाल ,समृद्ध बनती है । और जीवन के जो कष्ट हैं ,दुख हैं वह ग्रहण काल में सावधानी रखने से दूर हो जाती है। 

विशेष --

1- ग्रहण काल में भोजन का त्याग करें।

2- ग्रहण काल जल का त्याग करें ।

3-ग्रहणकाल में निद्रा का त्याग करें।

4- ग्रहण काल मे जप करें, पाठ करें,दान करें।

ग्रहण काल में सिर्फ और सिर्फ जप, तप, पूजा ,साधना आदि कर सकते हैं। गंगा स्नान कर सकते हैं ।गंगा में खड़े होकर के भगवान का अपने इष्ट या चंद्रमा के मंत्र का गायत्री मंत्र का जप कर सकते हैं ।ग्रहण काल के निवृति होने पर चावल अन्न वस्त्र का दक्षिणा सहित दान दान करना चाहिए। और घर में जो भी अन्न आदि खाद्य सामग्री रखी होती हैं उनमें कुश या तुलसी दल रखने से ग्रहण का दोष नहीं लगता है और ग्रहण के निवृति होने के बाद घर में जो रखा हुआ बर्तन में पानी है या पहले का बासी खाना है उसको ना खाएं और जल को ना पिए, ग्रहण की निवृत्ति के बाद नया जल और नया भोजन बनाकर के ग्रहण करना चाहिए ।

विशेषकर गर्भवती महिलाएं ग्रहण का दर्शन ना करें । ग्रहण काल में भगवान का नाम जप करना चाहिए। भगवान का नाम जप करने से बच्चे की रक्षा करें और स्वयं की रक्षा करें ग्रहण का दर्शन करने से गर्भ पर ग्रहण का बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए भगवान का जाप करें । 

ग्रहण फल --

चंद्रग्रहण में राशियों पर क्या होगा शुभ और अशुभ प्रभाव।

मेष राशि वालों के लिए हानि, वृषभ राशि वालों के लिए हानि है, मिथुन राशि वालों के लिए लाभ है ,कर्क राशि वालों के लिए सुख है ,सिंह राशि वालों के लिए मानहानि है ,कन्या राशि वालों के लिए कष्ट है, तुला राशि वालों के लिए स्त्री पीड़ा, वृश्चिक राशि वालों के लिए सुख,धनु राशि वालों के लिए चिंता का कारण रहेगा, मकर राशि वालों के लिए दुःख, कुंभ राशि वालों के लिए शुभ रहेगा लाभदायक रहेगा ,मीन राशि वालों के लिए हानिकारक है ।

।। हर हर महादेव।।

शारदीय नवरात्र१५अक्टूबर२०२३

 शारदीय नवरात्रि 2023 

सनातन हिंदू धर्म में मास परिवर्तन, पक्ष परिवर्तन ,ऋतु परिवर्तन ,वर्ष परिवर्तन के उपरांत या प्रथम दिन घरों में विशेष उपासना पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है । घरों की महिलाएं प्रात:काल में उठकर घरों की देहली लिप कर घरों को सुसज्जित करके घर के ईशान कोण में इष्ट देवता कुल देवता पूजा प्रधान देवता की स्थापना की जाती है। और उस दिन घरों की महिलाएं सुंदर पकवान बनाकर भगवान को भोग लगती हैं। और भगवान को सुंदर वस्त्र आभूषण अलंकार से सुसज्जित किया जाता है।

इस वर्ष शादी नवरात्र 15 अक्टूबर 2023 से प्रारंभ होगी यह नवरात्र 9 दिन की है । 9 दिन में माता के नौ रूपों की प्रधानता है। जिसमें हर रोज एक-एक देवी की पूजा की जाती है ।और उनको मनाया जाता है। और उनकी पूजा में लगने वाली सामग्री उन्हें अर्पित की जाती है प्रथम दिन से लेकर 9 दिन तक माता रानी का व्रत किया जाता है। और जो लोग व्रत करने में सक्षम नहीं है। वे लोग पहले दिन और अंतिम दिन का व्रत रख करके अपने नवरात्र व्रत को पूर्ण करते हैं ,कुछ लोग निराहार रहकर के व्रत रखते हैं, कुछ लोग दिन में एक समय फलाहार लेकर व्रत रखते हैं, और कुछ लोग दिन में एक टाइम भजन लेकर के व्रत रखते हैं ।व्रत रखने के अलग-अलग प्रकार के विधान हैं । अपनी शक्ति और सामर्थ्य की अनुरूप भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए पूजा में कभी भी किसी की देखा देखी करके पूजा नहीं करनी चाहिए।

नवरात्र व्रत सारणी--

प्रथम दिवस -१५/१०/२०२३-शैलपुत्री।


द्वितीय दिवस -१६/१०/२०२३-ब्रह्मचारिणी।


तृतीय दिवस -१७/१०/२०२३-चंद्रघंटा।


चतुर्थ दिवस -१८/१०/२०२३-कुष्मांडा।


पंचम दिवस -१९/१०/२०२३-स्कंदमाता।


षष्ट दिवस -२०/१०/२०२३-कात्यायनी।


सप्तम दिवस -२१/१०/२०२३-कालरात्रि।


अष्टम दिवस -२२/१०/२०२३ -महागौरी।


नवम दिवस -२३/१०/२०२३-दुर्गा नवमी महानवमी।


दशम दिवस -२४/१०/२०२३ -नवरात्र व्रत परायण श्रीदुर्गा विसर्जन।

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

कंकणाकृति सूर्यग्रहण १४अक्टूबर 2023

 सूर्य ग्रहण--

सूर्यग्रहण आश्विन कृष्ण अमावस्या १४ अक्टूबर २०२३ को लगाने वाला कंकणाकृति सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा । यह ग्रहण उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका तथा दक्षिण अमेरिका ,दक्षिण भाग को छोड़कर उत्तरी अफ्रीका पश्चिमी किनारा अटलांटिक और प्रशांत महासागर में दिखाई देगा। भारतीय मानक समय अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि में 8:34 मिनट पर तथा मोक्ष रात्रि में 2:25 मिनट पर होगा।

सावधानी--

सूर्य ग्रहण के दिन भारत में ग्रहण दृश्य नहीं होने के कारण हमको ज्यादातर सावधानियां रखने की जरूरत नहीं है, इसलिए सामान्य की तरह चलता रहेगा।

आचार्य पंडित जी मिलेंगे

सनातन संस्कृति संस्काराे में आस्था रखने वाले सभी धर्म प्रेमी धर्मानुरागी परिवारों का स्वागत अभिनंदन । आपको बताते हर्ष हो रहा है। कि हमारे पं...