सोमवार, 13 नवंबर 2023

श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्रम्

॥ श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्रम् ॥

सन्तान प्राप्ति के लिये अद्भुत अनुष्ठान  

यदि कोई महानुभाव कि किसी कारणवश सन्तान न होनेसे निराश हों तो विश्वासपूर्वक श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्र का नियमित रूप से नित्य पाठ करें ।

 ध्यानम्- 

षष्ठांशा प्रकृतेः शुद्धां प्रतिष्ठाप्य च सुप्रभाम् ।

सुपुत्रदां च सुभगां  दयारूपां  जगत्प्रसूम् ॥ 

श्वेतचम्पकवर्णाभां    रक्तभूषणभूषिताम्  ।

पवित्ररूपां परमां     देवसेना परां भजे ।।

मंत्र:-- 

ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा । ( यथाशक्ति जप करें ) 

स्तोत्रं श्रृणु मुनिश्रेष्ठ सर्वकामशुभावहम् । 

आज्ञाप्रदं  च  सर्वेषां  गूढं  वेदेषु  नारद ॥

 प्रियव्रत उवाच :--

नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नमः । 

शुभायै देवसेनायै    षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥१॥

वरदाय  पुत्रदायै।   धनदायै  नमो  नमः । 

सुखदायै  मोक्षदायै  षष्ठीदेव्यै  नमो  नमः ॥ २॥

शक्तिषष्ठांशरूपायै सिद्धाय च नमो नमः । 

मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ३॥

साराय शारदायै च  पारायै सर्वकारिण्यै । 

बालाधिष्ठायै देव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।। ४॥

कल्याणदाय कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम् । 

प्रत्यक्षायै च भक्तानां  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥५॥

पूज्यायै  स्कन्दकान्तायै  सर्वेषां  सर्वकर्मसु । 

देवरक्षणकारिण्यै   षष्ठीदेव्यै  नमो  नमः ॥ ६॥

शुद्धसत्त्वस्वरूपायै वन्दितायै  नृणां  सदा । 

हिंसाक्रोधवर्जितायै  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ७॥

धनं  देहि  प्रियां  देहि  पुत्रं  देहि  सुरेश्वरि । 

धर्म  देहि  यशो देहि  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ८॥

भूमिं देहि प्रजां देहि विद्यां देहि सुपूजिते । 

कल्याणं च जयं देहि  षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ९॥

इति देवीं च  संस्तुत्य लेभे  पुत्रं  प्रियव्रतः । 

यशस्विनं  च  राजेन्द्रं  षष्ठीदेवी प्रसादतः ॥१०॥

षष्ठीस्तोत्रमिदं ब्रह्मन् यः शृणोति च वत्सरम् । 

अपुत्रे  लभते  पुत्रं   वरं    सुचिरजीविनम् ॥११॥

वर्षमेकं च या भक्त्या संस्तुत्येदं शृणोति च । 

सर्वपापविनिर्मुक्ता   महावन्ध्या प्रसूयते ॥ १२॥

वीरं पुत्रं च गुणिनं विद्यावन्तं  यशस्विनम् । 

सुचिरायुष्मन्तमेव।  षष्ठीदेवी  प्रसादतः ॥ १३॥

काकवन्ध्या च या नारी मृतापत्या च या भवेत् । 

वर्षं श्रुत्वा लभेत् पुत्रं  षष्ठीदेवीप्रसादतः ॥१४॥

रोगयुक्ते च बाले च पिता माता शृणोति चेत् । 

मासेन मुच्यते बालः षष्ठीदेवी  प्रसादतः ॥ १५॥

                              प्रणाम - मन्त्र

            जय देवि जगन्मातर्जगदानन्दकारिणि । 

            प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठि देवते ॥ 


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