बुधवार, 26 मार्च 2025
मै मानव हूं
मनुष्य नित्य उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त कर रहा है । जीवन में सुविधा संसाधनों से नई-नई सभ्यताएं जुड़ती जा रही है।
रहन-सहन खान पान पहनावे नित्य हर रोज परिवर्तित हो रहे हैं। मनुष्य के अतीत में देखें और आज को देखें तो मनुष्यों के रहन-सहन खानपान में बहुत सुविधाओं का आयाम बड़ा है। मनुष्य नित्य नई बुलंदियों को छू रहा है ।
बुलंदियों को छूने के कारण मनुष्य अपने अतीत को भूल रहा है। अपनी पुरानी सभ्यताओं को भूल रहा है। अपने रहन-सहन खान के तौर तरीकों को भूल रहा है। खेती खलिहान को भूल रहा है। जिससे मनुष्य में काफी सभ्यताओं का ह्रास भी देखने को मिलता है
मनुष्य आज खेती-बाड़ी नहीं करना चाहता ,मजदूरी करना नहीं चाहता, पशुपालन नहीं करना चाहता । आज के दौर मे हर किसी को बैठे-बैठे नौकरी चाहिए। जिससे वह अपना अपने परिवार का अपने बच्चों का भरण पोषण कर सके।
मनुष्य तुम्हें जागना होगा क्योंकि एक दौर ऐसा आएगा फिर आपको पुरानी दिनचर्या पर वापस लौटना होगा । पुराने संसाधनों को वापस अस्तित्व में लौटाना होगा। और यह आपकी मजबूरी होगी । जब मनुष्य के पास खाने पहनने के लिए भोजन वस्त्र नहीं होंगे । कीड़े मकोड़े कि तरह दर-दर रेंगते रहेंगे ।
ना रहने को छत होगी , ना खाने को भोजन होगा। पहनने को कपड़ा नही मिलेगा । इसका उदाहरण आज दिख रहा जिस तरह दुनिया में भय का माहौल व्याप्त है । सारे संसाधन समाप्त हो जाएंगे तो फिर मनुष्य अपने पुराने रूप में अवतरित जरूर होगा। इसलिए हिंसा को छोड़िए और भगवान का भजन करिए दूसरों को पीड़ा देना बंद करें ।
यह जगत भगवान का है ,और भगवान के ही ऊपर छोड़ दीजिए ।आविष्कार करना ठीक है। मगर आविष्कार का दुर्पयोग करना गलत है । जो मानव के हित में नहीं है ।
मनुष्य का प्रथम धर्म है , मानव सहित पूरी सृष्टि किया रक्षा करना । जब हम मानव की रक्षा कर पाएंगे तभी यह श्रृष्टि आगे बढ़ेगी । यू ही देश- देश आपस में लड़ झगड़ कर अंत में क्या मिलेगा ,शून्य जीरो जितना आपने कमाया था। उसका दुगुना गवां भी दिया ।चार गुना करो भरपाई।क्या मिला ,शून्य
आचार्य हरिश्चंद्र लखेड़ा
दैनिक दिनचर्या
दैनिक दिनचर्या
प्रातः जागरण
मनुष्य को पूर्ण स्वस्थ रहने के लिये व्यक्ति को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में शय्या का त्याग करना चाहिए ।उषः काल की बड़ी महिमा है।ब्रह्म मुहर्त में उठने वाला मनुष्य स्वास्थ्य धन विद्या बल और तेज से पूर्ण होता है ।जो सूर्योदय के समय सोता है ।उसकी उम्र व शक्ति में ह्रास होता है ।तथा नाना प्रकार की बीमारियों का शिकार होता है।
॥ करदर्शन।।
प्रातः काल जब उठते है तो शय्या पर ही सर्वप्रथम अपने करतल का दर्शन करने का विधान है।करतल का दर्शन करते हुए निम्न श्लोक का पाठ करना चाहिए।
कराग्रे वसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती ।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम,।।
इस श्लोक में धन की अधिष्ठात्री लक्ष्मी विद्या की देवी सरस्वती व कर्म के देव ब्रह्मा जी की स्तुति की है।
॥ भूमि वंदना।।
कर वंदना के बाद व्यक्ति को भूमि प्रार्थना करनी चाहिये।पृथ्वी सबकी माता है।धरित्री है।जिहोने सबको धारण किया है। वे सभी के लिए पूज्य है।विष्णु जी की दो पत्नी है एक लक्ष्मी दूसरी पृथ्वी।निद्रा त्याग के बाद पृथ्वी माता में पॉव रखना पड़ता है। तो अपनी माताके ऊपर कौन ऐसा कर सकता है जो पाव रखे।विवशता के कारण माँ पृथ्वी की वन्दना की जाती है।पॉव रखने के पूर्व प्रार्थना करें।
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व में।।
इसका भाव यह है।कि हे पृथ्वी माँ आप समुद्ररूपी वस्त्रो को धारण करने वाली तथा पर्वत रुप स्तनों से युक्त पृथ्वी देवी ।तुम्हे नमस्कार है। मेरे पाद स्पर्श को क्षमा करें।
॥॥मंगल स्मरण व देव गुरु अभिवादन॥॥
प्रातः काल जागरण के बाद मंगल चिन्हों का दर्शन जैसे गौ गंगा तुलसी देवता गुरुजन अपने से बडों का अभिवादन प्रणाम करने से शुभ होता है।अभिवादन करने से व्यक्ति में चार प्रकार के बल की वृद्धि होती है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।।
आयु, विद्या, यश, बल कि प्राप्ति होती है ।
शौंचादि कृत्य से निवृत होकर देवताओं तथा महापुरुषों का स्मरण तथा उनकी प्रार्थना करनी चाहियें।
स्नान करते समय इस मंत्र का पाठ करे।
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्या सरितस्तथा।
आगच्छन्तु पवित्राणि स्नान काले सदा मम।।
गंगे च यमुनै चैव ,गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी ,जलेस्मिन सन्निधिम कुरु।।
।सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान मंत्र।
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगतपते ।
अनुकम्पय माँ भक्त्या ग्रहणार्घ्य दिवाकर।।
बहुत जन्मों के बाद मनुष्य जन्म मिलता है।उस जीवन का सार्थक प्रयोग करना चाहिये। सभी कार्यों को करते हुए।माया पति परमात्मा का चिन्तन स्मरण पूजन नित्य होना चाहिए।जिससे कि हमारे इस शरीर में दाग न लगे।साबुन रूपी भगवान का नाम जप तप दान से मनुष्य शुद्ध हो जाता है।
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चाक्षुषी विद्या का पाठ करने से नेत्र विकार का समन होता है
💐चाक्षुषोपनिषद् ( चाक्षुषी विद्या ) 💐
सूर्य प्रत्यक्ष देवता है।सूर्य नारायण की उपासना करने वाला आरोग्यवान व व्यक्तित्व का धनी होता है।
जिस व्यक्ति को नेत्र सम्बन्धी विकार जैसे नेत्र की ज्योति कम होना ,आँख से पानी आना , आँख में दर्द,अर्द्ध शीश में दर्द हो उनको इस चाक्षुषी विद्या का नित्य पाठ करने से नेत्र सम्बन्धी विकार समाप्त हो जाते है।
यह चाक्षुषी विद्या नेत्र विकार वालो के लिए संजीवनी का काम करता है।
आचमनी में जल लेकर विनियोग पढ़े--
विनियोग - ॐ अस्यश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिर्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चक्षूरोग निवृत्तये विनियोग:।। जल छोड़ दे।
पाठ --
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव । मां पाहि पाहि । त्वरितं चक्षूरोगान् शमय शमय । मम जात रूपं तेजो दर्शय दर्शय । यथा अहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय । कल्याणं कुरु कुरु । यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुःप्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय ।
ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय ।
ॐ नमः करुणा करायामृताय ।
ॐ नमः सूर्याय ।
ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः । खेचराय नमः । महते नमः । रजसे नमः । तमसे नमः । असतो मां सद्गमय । तमसो मां ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मां अमृतं गमय । उष्णो भगवाञ्छुचिरूपः । हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरूपः ।
य इमां चाक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति । न तस्य कुले अन्धो भवति । अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति । ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा।।
॥ श्रीकृष्णयजुर्वेदीया चाक्षुषी विद्या॥
रविवार से प्रारम्भ करें नित्य ११पाठ कर सूर्य भगवान को गन्ध युक्त अर्घ्य प्रदान करें।
ज्योतिषीय विवेचना
आकाश के नीले परदे पर असंख्य टिमटिमाते तारों की शोभा तथा उनमें चंद्रमा मंगल बुध बृहस्पति शुक्र शनि राहु और केतु पृथ्वी के साथ और सौरमण्डल के प्रमुख सदस्य है।जिनका प्रधान सूर्य है।सूर्य इस चराचर जगत का उद्धबोधक है।अतः इनको बोधन भी कहा जाता है।कुछ आधुनिक ज्योतिर्विद कतिपय नये ग्रहों के प्रभाव का विश्लेषण कर उसका प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। ऐसा विचार मानकर फलादेश करते है।जो सर्वथा विवेक शून्य है।उन ग्रहों में वरुण(नेपच्युन)प्रजापति(हर्षण)औऱ यम(प्लूटों)हे।इन ग्रहों की जानकारी हमारे आद्य आचार्यो को भी रही है।किन्तु इन ग्रहों का प्रभाव वास्तव में मानव जीवन पर नही पड़ता है।मानव जीवन मे उन ग्रहों का ही प्रभाव पड़ता है।जिनकी किरणे कम से कम 100 वर्ष में एक बार पृथ्वी पर आ सकती है।इन नये ग्रहों की किरणें एक हजार वर्ष में भूमि को प्रभावित करता है।अतः इनकी आवश्यक इन अल्प जीवी मानव समाज के लिए व्यर्थ मन जाता है।मानव की कुण्डली में ग्रहों के स्थिति के अनुसार ही शुभ व अशुभ का कथन हो सकता है।ग्रहों का किन किन स्थिति में व ग्रहो के योग से मानव जीवन प्रभावित हो सकता है।
ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा व प्रत्यंतर्दशा में भी वही फल देते है जैसे ग्रह स्थिति या ग्रहयोग होने पर देता है।
English translation
There are innumerable twinkling stars on the blue screen of the sky and among them Moon Mars Mercury Jupiter Venus Saturn Rahu and Ketu along with Earth and the main member of the solar system, whose principal is Sun. Sun is the illuminator of this grazing world. Hence they are also called Bodhan Some modern astrologers analyze the impact of certain new planets and their impact on human life. Assuming such an idea, which is absolutely void, those planets are Varuna (Neptune) Prajapati (Harshan) and Yama (Pluto). The knowledge of these planets has also been known to our Adya Acharyas. But the effect of these planets is really Human life does not have any impact. In human life only those planets are affected. The rays of which can come on Earth at least once in 100 years. The rays of these new planets affect the land in a thousand years. These essentials are considered in vain for these small living human society. According to the position of the planets in the human horoscope, the statement of auspicious and inauspicious can be done. .
The planets give the same results in their condition, Antardasha and Pratyantardasha, as the planet gives when it is in position or planetary Yoga.
आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
ज्योतिषाचार्य
वसई।
जय बद्री विशाल
बुधवार, 12 मार्च 2025
होली गीत (उत्तराखंड में गाई जाने वाली होली गीत)
उत्तराखंड की होली अपने आप मैं विशेष महत्व रखती है । कुमाऊं क्षेत्र मे होली गायन शैली खड़ी होली, बैठी होली ,एकदाशी कि संध्या पर होली का चीर बंधन किया जाता । बुढ़े बच्चे जवान सभी मिलकर ढोल नगारे की थाप पर घर - घर जाकर होली गीतों को गाते है । और परिवार जनों को आशीर्वाद प्रदान करते है ।परिवार के लोग होलियारो के स्वागत मैं चाय, पानी, गुजिया, गुड, पकोड़ी आदि देते है । सभी प्रसन्न हृदय से स्वागत सत्कार करते है। पांच दिन तक होली के होलियारे गांव, गांव जाकर होली गीत गाते है। पहली होली नगर ग्राम के देवता के स्थान पर गाई जाती है।
सुभद्रा भगवान कृष्ण जी से पूछती है , कि मेरा पुत्र अभिमन्यु कहां गया है ।
भगवान कृष्ण कहते हैं ।
किस तरह अभिमन्यु ने युद्ध में कौरवों के द्वारा रचित चक्रव्यूह का भेदन करते हुवे सातवें द्वार पर वीरगति को प्राप्त हुवे।
होली गीत...
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सुन हो घनानंद, सुन हो मुरारी ।
मेरो अभिमन्यु कहां गयो है ।।
तेरो अभिमन्यु रण में गयो हैं ।
पहला भी तोड़ा, दूसरा भी तोड़ा ।
तीसरे द्वारा में युद्ध भयो है ।। सुन हो...
तीसरा तोड़ा चौथा भी तोड़ा ।
पांचवे द्वार पे युद्ध भयो है ।। सुन हो...
पांचवा तोड़ा छठा भी तोड़ा ।
सातवे द्वार पे मरो गयो है ।।
सुन हो घनानंद, सुनो मुरारी ।
मेरो अभिमन्यु कहां गयो हैं ।।
तेरो अभिमन्यु मारो गए हैं..
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