मनुष्य नित्य उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त कर रहा है । जीवन में सुविधा संसाधनों से नई-नई सभ्यताएं जुड़ती जा रही है।
रहन-सहन खान पान पहनावे नित्य हर रोज परिवर्तित हो रहे हैं। मनुष्य के अतीत में देखें और आज को देखें तो मनुष्यों के रहन-सहन खानपान में बहुत सुविधाओं का आयाम बड़ा है। मनुष्य नित्य नई बुलंदियों को छू रहा है ।
बुलंदियों को छूने के कारण मनुष्य अपने अतीत को भूल रहा है। अपनी पुरानी सभ्यताओं को भूल रहा है। अपने रहन-सहन खान के तौर तरीकों को भूल रहा है। खेती खलिहान को भूल रहा है। जिससे मनुष्य में काफी सभ्यताओं का ह्रास भी देखने को मिलता है
मनुष्य आज खेती-बाड़ी नहीं करना चाहता ,मजदूरी करना नहीं चाहता, पशुपालन नहीं करना चाहता । आज के दौर मे हर किसी को बैठे-बैठे नौकरी चाहिए। जिससे वह अपना अपने परिवार का अपने बच्चों का भरण पोषण कर सके।
मनुष्य तुम्हें जागना होगा क्योंकि एक दौर ऐसा आएगा फिर आपको पुरानी दिनचर्या पर वापस लौटना होगा । पुराने संसाधनों को वापस अस्तित्व में लौटाना होगा। और यह आपकी मजबूरी होगी । जब मनुष्य के पास खाने पहनने के लिए भोजन वस्त्र नहीं होंगे । कीड़े मकोड़े कि तरह दर-दर रेंगते रहेंगे ।
ना रहने को छत होगी , ना खाने को भोजन होगा। पहनने को कपड़ा नही मिलेगा । इसका उदाहरण आज दिख रहा जिस तरह दुनिया में भय का माहौल व्याप्त है । सारे संसाधन समाप्त हो जाएंगे तो फिर मनुष्य अपने पुराने रूप में अवतरित जरूर होगा। इसलिए हिंसा को छोड़िए और भगवान का भजन करिए दूसरों को पीड़ा देना बंद करें ।
यह जगत भगवान का है ,और भगवान के ही ऊपर छोड़ दीजिए ।आविष्कार करना ठीक है। मगर आविष्कार का दुर्पयोग करना गलत है । जो मानव के हित में नहीं है ।
मनुष्य का प्रथम धर्म है , मानव सहित पूरी सृष्टि किया रक्षा करना । जब हम मानव की रक्षा कर पाएंगे तभी यह श्रृष्टि आगे बढ़ेगी । यू ही देश- देश आपस में लड़ झगड़ कर अंत में क्या मिलेगा ,शून्य जीरो जितना आपने कमाया था। उसका दुगुना गवां भी दिया ।चार गुना करो भरपाई।क्या मिला ,शून्य
आचार्य हरिश्चंद्र लखेड़ा
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