शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

💐ब्रह्मचारिणी💐

ब्रह्मचारिणी--

 दधाना कर पद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।

 देवि प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।। 

भगवती ब्रह्मचारिणी ब्रह्म ( तप ) का आचरण करने वाली हैं । ( वेदस्तत्त्वं तपोब्रह्म - वेद , तत्व एवं तप ब्रह्म शब्द का अर्थ हैं ) इनका स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय एवं अत्यन्त भव्य है । इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बांये हाथ में कमण्डलु है तथा ये आनन्द से परिपूर्ण हैं ।

ये पूर्व जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हेमवती थी । तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी । इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया । कई हजार वर्ष तप करते - करते पहले इन्होंने केवल फल - फूल खाये फिर शाक पर निर्वाह किया , कुछ समय कठिनउपवास रख खुले आकाश के बीच वर्षा , धूप , शीत के आघात सहे , इसके पश्चात् केवल जमीन पर पड़े हुए सूखे बेल पत्ते खाकर आराधना की । अन्त में सूखे बेल पत्तों को भी खाना छोड़ दिया तथा निर्जल और निराहार तपस्या करती रही । पत्तों को भी खाना छोड़देने के कारण इनका नाम अर्पणा पड़गया । 


कठिन तपस्या से जब इनका शरीर अत्यंत कृश हो गया तब इनकी माता मेनका अत्यन्त दुःखी हो उठी । उन्होंने कहा पुत्री उ - मा ! ( तप मत करो ) तबसे इनका नाम उमा भी प्रसिद्ध हो गया । उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने आकाशवाणी के द्वारा इन्हें संबोधित करते हुए कहा - हे देवि तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी । भगवान चन्द्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे ।

माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला हैं । इनकी उपासना से मनुष्य में तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम की वृद्धि होती है । उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्ति होती है । दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है । इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है । इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है । 

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