होलिका दहन पूजन व मान्यतायें
होली के एक दिन पूर्व पूर्णिमा की रात्रि में होलिका दहन किया जाता है । शास्त्रों के अनुसार भद्रा में होलिका दहन वर्जित है । होली एक सामाजिक पर्व है। जिसमे अमीर गरीब स्त्री पुरुष बच्चे बूढ़े जात पात की दीवार तोड़कर आपसी भाईचारा सदभावना से होलिका दहन व होली में सभी लोग मिलजुल कर रंग उड़ाते है। और होली के गीतों का आनन्द लेते हुए नाना प्रकार के व्यंजनों का आनंद उठाते है ।
गांव घरों में होलिका दहन की तैयारी वसंत पंचमी के दिन से प्रारम्भ हो जाती है । महिलाएं होलिका दहन के दिन दोपहर से पूजन करना शुरू कर देती है ,जो शाम तक चलता है।
होलिका पूजन सामग्री --
होलिका पूजन के लिए महिलाएं एक पात्र में जल व थाली में रोली, चावल ,कच्चा सूत ,कलावा ,अबीर, गुलाल , नारियल आदि लेकर जाती है । होलिका माई की पूजा कर जल चढ़ाती है और होलिका की जलती लपटों का दर्शन करने के बाद भोजन ग्रहण करती है ।
दूसरे दिन जली हुई होली की पूजा करके होली गीत गाये जाते है ।एक दूसरे को रंग लगते है गाँव के पुराने कहते थे कि छरड़ी दिन हर किसी को गीली होली खेलनी चाहिए जिससे शरीर मे खाज ,खुजली ,चर्म रोगादि खत्म हो जाते है।
होलिका दहन की परम्परा सदियों से चली आ रही है ।जिसे सनातन धर्मी इस परम्परा को हर वर्ष हर्षोल्लास के साथ मानते है ।
मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन के दिन बुराइयों का अंत हो भगवान और भक्त का सम्बन्ध बना रहे ,पाप पर पुण्य विजयी हो, बुराई पर अच्छाई की विजय हो इस लिए होलिका दहन सामुहिक रूप से किया जाता है।
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पौराणिक मान्यताएं --
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1 - राजा रघु के समय की बात है राजा रघु के शासन काल के समय एक दैत्य जिसका आतंक बहुत था। उसको भय सिर्फ बच्चे व अग्नि से लगता था ।एक बार राजा ने लकड़ी के ढेर में आग लगा दी और बच्चों को चिल्लाने को कहा जिससे फलस्वरूप दैत्य का वध हो गया । वह दिन फाल्गुन पूर्णिमा होली के एक दिन पहले का था ।इस लिए प्रतिवर्ष होलिका दहन के रूप में मनाया जाने लगा ।
होलिका दहन के दिन जोर जोर से चिल्लाने ,अट्टहास, मंत्रोचारण ,होली गीत गाने से बुरे पापात्माओं का नाश होता है ।
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2 - राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था । जिसके फलस्वरूप उसने अपने राज्य में देव पूजा ,यज्ञ ,जप ,तप बन्द करवा दिया ।और स्वयं को ईश्वर मनाने लगा और उसकी इच्छा थी कि उसी की पूजा हो,लेकिन उसका स्वयं का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था ।पिता के लाख समझाने के बाद भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु जी का नाम मंत्र जप बन्द नही किया।पिता के आदेश पर नाना प्रकार के दंड दिया गया ,तब भी प्रह्लाद की भक्ति व आस्था कोई कमी नही दिखी तब प्रह्लाद को अग्नि में जलने के आदेश होलिका को दिया गया, होलिका को भगवान शिव द्वारा वरदान प्राप्त था कि वो कभी भी अग्नि में नही जलेगी।
होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि चिता में बैठ गई होलिका जल गई और प्रह्लाद नारायण का जप करते हुए बच गए । और तभी से होलिका दहन मनाये जाने लगा ।
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3 - वैदिक आचार्य ब्राह्मण होली के पहले दिन पूर्णिमा को वसोर्धारा होम करते थे। जिसका नाम होलिका पड़ा और होलिका के रूप में मनाया मनाया जाने लगा ।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
वसई
Nice jankari
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर आचार्य जी
जवाब देंहटाएंहरि ॐ बहुत सुंदर
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