सोमवार, 12 जुलाई 2021

जगन्नाथ जी रथ यात्रा

जगन्नाथ जी रथ यात्रा 

आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीय 

नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने।

बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः।।

जगदानन्द कन्दाय  प्रणतार्तहराय  च।

नीलाचलनिवासाय जगन्नाथाय ते नमः।।

भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य में स्थित जगन्नाथ पुरी पुण्य पवित्र धाम है ।वहाँ के प्रधान देवता भगवान कृष्ण जिन्हें जगन्नाथ जी के नाम से जाना जाता है । इसी स्थान पर जगन्नाथ जी की रथयात्रा त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है 


जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ जी का एक बहुत ही भव्य विशाल मन्दिर है । इस मन्दिर की एक अन्य विशेषता भी है कि यही भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधाजी की नहीं , बल्कि उनकी बहिन सुभदा, भाई बलराम जी की मूर्तियां स्थित है और तीनों भाई बहिनों की सयुक्त रूप में आराधना की जाती है ।

इन तीनों मूर्तियों को वर्ष में एक बार आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मन्दिर से निकालकर जनकपुरी ले जाया जाता है जहां ये मूर्तियां तीन दिन तक लक्ष्मी जी के निकट रहती हैं और तीन दिन बाद पुनः उन्हीं रथों में जगन्नाथपुरी के मन्दिर में वापस लाई जाती हैं । रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ जी , बलराम जी और सुभद्रा के लिए प्रतिवर्ष तीन नए रथ बनाए जाते हैं ।जो अत्यन्त भव्य होते हैं । जगन्नाथजी का रथ 45 फुट ऊंचा , 35 फुट लम्बा और उतना ही चौडा बनाया जाता है । उसमें 7 फुट व्यास के 16 पहिए लगाए जाते हैं । बलभद्र जी का रथ 44 फुट ऊंचा होता है और उसमें 14 पहिए होते हैं । सुभद्रा जी का रथ 43 फुट ऊंचा होता है और उसमें 12 पहिए लगाए जाते हैं । मन्दिर के सिंहद्वार पर भगवान् रथों में बैठ कर जनकरपुरी की ओर जाते हैं । रथों को चार हजार से अधिक लोग खींचते हैं । इन्हें खींचने के लिए मोटे - मजबूत और बहुत लम्बे - लम्बे रस्से लगाए जाते हैं । हजारों व्यक्ति पूर्ण भक्तिभाव से मिलकर इन रथों को खींचते हैं । इस रथयात्रा की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि प्राचीन काल से ही जाति - पाँति और धर्म का कोई अन्तर नहीं रखा जाता । इस यात्रा में चाण्डाल तक को रथ खींचने में सहयोग देने का अधिकार प्राचीन काल से ही मिला हुआ है । जगन्नाथपुरी में दूर - दूर से लाखों व्यक्ति इस महोत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं । अब तो स्थानीय स्तर पर अनेक नगरों में रथ यात्रा निकाली जाने लगी हैं ।

जगन्नाथ पुरी भारत के चार प्रमुख धामों में एक धाम है जो आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित गोवर्धन पीठ है ।


आदि शंकराचार्य प्रथम बार पूरी धाम स्थित जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए पहुंचे, तो भगवान् को देखकर उन्होंने जगन्नाथ जी की स्तुति की,ओर अष्टकम का निर्माण किया जिसके पाठ से जगन्नाथ स्वामी प्रसन्न हो जाते है, मनुष्य की आत्मा पापो से मुक्त होकर विशुद्ध हो जाती है। इस अष्टकम के पाठ से आत्मा पवित्र होकर अंत में विष्णु लोक को प्राप्त करती है। हर वैष्णव को मुक्ति देने वाला यह स्तोत्र भगवन जगन्नाथ जी को अतिशय प्रिय है।

 

कदाचि त्कालिंदी तटविपिनसंगीतकपरो

मुदा गोपीनारी वदन कमला स्वाद मधुपः

रमा शंभु ब्रह्मा मरपति गणेशार्चित पदो

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ १ ॥


हे प्रभु आप कदाचित जब अति आनंदित होते है,तब कालिंदी तट के निकुंजों में मधुर वेणु नाद द्वारा सभी का मन अपनी ओर आकर्षित करने लगते हो, वह सब गोपबाल ओर गोपिकायें ऐसे आपकी ओर मोहित हो जाते है जैसे भंवरा कमल पुष्प के मकरंद पर मोहित रहता है, आपके चरण कमलों को जोकि लक्ष्मी जी, ब्रह्मा,शिव,गणपति ओर देवराज इंद्र द्वारा भी सेवित है ऐसे जगन्नाथ महाप्रभु मेरे पथप्रदर्शक हो,मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे।


भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिंछं कटितटे

दुकूलं  नेत्रांते  सहचर  कटाक्षं  विदधते

सदा श्रीमद्बृंदावन वसति लीला परिचयो

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ २ ॥


आपके बाए हस्त में बांसुरी है और शीश पर मयूर पिच्छ तथा कमर में पीत वस्त्र बंधा हुआ है ।आप अपने कटाक्ष नेत्रों से तिरछी निगाहो से अपने प्रेमी भक्तो को निहार कर आनंद प्रदान कर रहे है, और अपनी लीलाओं का जो की वृन्दावन में आपने की उनका स्मरण करवा रहे है और स्वयं भी लीलाओं का आनंद ले रहे है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक बनकर मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे ।


महांभोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे

वसन्प्रासादांत -स्सहजबलभद्रेण बलिना

सुभद्रा मध्यस्थ स्सकलसुरसेवावसरदो

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ३ ॥


हे मधुसूदन  विशाल सागर के किनारें, सुन्दर नीलांचल पर्वत के शिखरों से घिरे अति रमणीय स्वर्णिम आभा वाले श्री पूरी धाम में आप अपने बलशाली भ्राता बलभद्र जी और आप दोनों के मध्य बहन सुभद्रा जी के साथ विध्यमान होकर सभी दिव्य आत्माओं भक्तों और संतों को अपनी कृपा दृष्टि का रसपान करवा रहे है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथपर्दशक हो और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे ।


कथापारावारा स्सजलजलदश्रेणिरुचिरो

रमावाणीसौम स्सुरदमलपद्मोद्भवमुखैः

सुरेंद्रै राराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ४ ॥


जगन्नाथ स्वामी दया और कृपा के अथाह सागर है। उनका रूप ऐसा जैसे जलयुक्त काले बादलों की गहन श्रंखला हो अर्थात अपनी कृपा की वृष्टि करने वाले मेघो के जैसे है, आप श्री लक्ष्मी और सरस्वती को देने वाले भण्डार है, अर्थात आप अपनी कृपा से लक्ष्मी और सरस्वती प्रदान करते है,आपका मुख चंद्र पूर्ण खिले हुए उस कमल पुष्प के समान है जिसमे कोई दाग नहीं है अर्थात पूर्ण आभायुक्त खिले हुए पुण्डरीक के जैसा आपका मुखकमल है, आप देवताओं और साधु संतों द्वारा पूजित है, और उपनिषद भी आपके गुणों का वर्णन करते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक हो और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे ।


रथारूढो गच्छ न्पथि मिलङतभूदेवपटलैः

स्तुतिप्रादुर्भावं प्रतिपद मुपाकर्ण्य सदयः

दया सिंधुर्भानुस्सकल जगता सिंधुसुतया

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ५ ॥


हे आनंद स्वरूप  जब आप रथयात्रा के दौरान रथ में विराजमान होकर जनसाधारण के मध्य उपस्थित होतें हैं तो अनेको ब्राह्मणो,संतो,साधुओं और भक्तों द्वारा आपकी स्तुति वाचन,मंत्रों द्वारा स्तुति सुनकर प्रसन्नचित भगवान् अपने प्रेमियों को बहुत ही प्रेम से निहारते हे,अर्थात अपना प्रेम वर्षण करते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी लक्ष्मी जी सहित जोकि सागर मंथन से उत्पन्न सागर पुत्री है । मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे ।


परब्रह्मापीडः कुवलयदलोत्फुल्लनयनो

निवासी नीलाद्रौ निहितचरणोनंतशिरसि

रसानंदो राधा सरसवपुरालिंगनसुखो

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ६ ॥

जगन्नाथ स्वामी आप ब्रह्मा के शीश के मुकुटमणि है, और आपके नेत्र कुमुदिनी की पूर्ण खिली हुयी पंखुड़ियों के समान आभा युक्त है, आप नीलांचल पर्वत पर रहने वाले है, आपके चरण कमल अनंत देव अर्थात शेषनाग जी के मस्तक पर विराजमान है, आप मधुर प्रेम रस से सराबोर हो रहे है जैसे ही आप श्रीराधा जी को आलिंगन करते है, जैसे कमल किसी सरोवर में आनंद पता है,ऐसे ही श्री जी का हृदय आपके आनंद को बढ़ाने वाला सरोवर है। ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक और शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो।


न वै प्रार्थ्यं राज्यं न च कनकितां भोगविभवं

न याचेहं रम्यां निखिल जनकाम्यां वरवधूं

सदा काले काले प्रमथपतिना चीतचरितो

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ७ ॥


हे मधुसूदन मैं न तो राज्य की कामना करता हूँ, ना ही स्वर्ण,आभूषण,कनक कामिनी भोग वैभव की कामना कर रहा हूँ, न ही लक्ष्मी जी के समान सूंदर पत्नी की अभिलाषा से प्रार्थना कर रहा हूँ, मैं तो केवल यही चाहता हूँ की भगवान् शिव जिन के गुण का कीर्तन श्रवण करते है वही जगन्नाथ स्वामी मेरे को शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो ।


हर त्वं संसारं द्रुततर मसारं सुरपते

हर त्वं पापानां वितति मपरां यादवपते

अहो दीनानाथं निहित मचलं निश्चितपदं

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ८ ॥


हे देवो के स्वामी, आप अपनी संसार की दुस्तर माया जोकि मुझे भौतिक सुख साधनो और स्वार्थ साधनो की आकांक्षा के लिए अपनी ओर घसीट रहे है, अर्थात अपनी ओर लालायित कर रहे है, उनसे मेरी रक्षा कीजिये, हे यदुपति आप मुझे मेरे पाप कर्मो के गहरे ओर विशाल सागर से पार कीजिये जिसका कोई किनारा नहीं नज़र आता है, आप दीं दुखियों के एकमात्र सहारा हो, जिस ने अपने आपको आपके चरण कमलो में समर्पित कर दिया हो, जो इस संसार में भटककर गिर पड़ा हो, जिसे इस संसार सागर में कोई ठिकाना न हो, उसे केवल आप ही अपना सकते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो ।

जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।

सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥

जो पुण्यात्मा ओर विशुद्ध हृदय वाला व्यक्ति इस जगन्नाथ अष्टक का पाठ करता है, वह पूर्ण विशुद्ध होकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं है ।



गुरुवार, 8 जुलाई 2021

अथ शिवतांडव - स्तोत्रम्

 

 ।। शिवताण्डव - स्तोत्रम् ।।


जटाटवी  गलज्जल प्रवाह  पावि  तस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् । 

डमड् डमड् डमड् डमन्निनाद वड्डमर्वयं 

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।। १ ।। 


जटा कटा हसम्भ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी

विलोल वीचि वल्लरी विराजमान मूर्द्धनि ।

धगद् -धगद् -धगज्ज्वलल्ललाट पट्ट पावके

किशोर चन्द्र शेखरे  रतिः प्रतिक्षणं  मम ।। २ ।।


धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बन्धु बन्धुर

स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे ।

कृपा कटाक्ष धोरणी  निरुद्ध  दुर्धरापदि 

क्वचिच्चिदम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।३ ।।


जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा

कदम्ब कुङ्कुम द्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदान्ध सिन्धु रस्फुरत्त्वगुत्तरीय मेदुरे 

मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूत भर्तरि ।। ४ ।।


सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर

प्रसून धूलि धोरणी विधूसराङघ्रि पीठभूः ।

भुजङ्गराज मालया निबद्ध जाट जूटकः 

श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः ।।५ ।।


ललाट चत्व रज्वलध्दनञ्जय फुलिंगभा

निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् ।

सुधा  मयूख लेखया  विराजमान  शेखरं

महाकपालि सम्पदे शिरी जटाल मस्तु नः ।।६ ।।


कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वलद्

धनन्जया हुती कृत प्रचण्ड पञ्च सायके ।

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक

प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ।।७ ।।


नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत्

कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।

निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः

कला निधान बन्धुरः श्रियं जगध्दुरन्धरः।।८ ।।


प्रफुल्ल नीलपंकज प्रपञ्च कालि मप्रभा

विलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम् । 

स्मरच्छिदं  पुरच्छिदं  भवच्छिदं  मखच्छिदं

गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ।।९ ।।


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी

रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधु व्रतम्  ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे ।।१० ।।


जयत्वद भ्रविभ्रम भ्रमद्भुजङ्ग मस्फुरत्

विनिर्गमत्क्रमत्स्फुरत्कराल भाल हव्यवाट् । 

घिमिद् घिमिद् धिमिध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल

ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ।।११ ।।


दृषद् विचित्र तल्पयोर्भुजङ्ग मौक्तिक स्रजो

र्गरिष्ठ रत्न लोष्टयोः सुहृद्विपक्ष पक्षयोः ।

तृणा रविन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः 

सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ।।१२ ।।


कदा निलिम्प निर्झरी निकुँज कोटरे वसन्

विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थ मञ्जलिं  वहन् ।

विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः 

शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।१३ ।। 


इमं हि नित्य मेव मुक्त मुत्त मोत्तमं    स्तवं 

पठन् स्मरन् ब्रुवन् नरो विशुद्ध मेति सन्ततम् । 

हरे गुरौ सु भक्तिमाशु याति  नान्यथा  गतिं 

विमोहनं हि देहिनां सु शंकरस्य चिन्तनम् ।।१४ ।।

 

     पूजा वसान समये दश वक्त्र गीतं 

     यः शम्भु पूजन मिदं पठति प्रदोषे ।

     तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां 

     लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ।।१५ ।। 


।। इति श्री रावणकृतं शिवताण्डव स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।। 


बुधवार, 7 जुलाई 2021

रुद्राष्टाकम्

रुद्राष्टाकम् का नित्य पाठ करने से बड़े से बड़े विघ्नों पर विजय प्राप्त कर सकते है ।


नमामी  शमीशान  निर्वाणरूपं

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेद स्वरूपम् ।

अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

चिदाकाश माकाशवास भजेऽहं ।।१ ।। 


निराकार   मोंकार   मूलं   तुरीयं 

गिरा ज्ञान गोती तमीशं गिरीशम् ।

करालं  महाकाल कालं  कृपालु 

गुणागार  संसार  पारं  नतोऽहं ।।२ ।।


तुषाराद्रि - संकाश - गौरं  गभीरं

मनोभूतकोटि - प्रभा- श्रीशरीरम् ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा

लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे  भुजङ्गा ।।३ ।।


चलत्कुण्डलं  भू   सुनेत्रं  विशालं

प्रसन्नाननं   नीलकण्ठं   दयालुम् ।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्ड - मालम् 

प्रियं शङ्करं  सर्वनाथं  भजामि ।।४ ।।


प्रचण्डं   प्रकृष्टं    प्रगल्भं   परेशं 

अखण्डं अजं भानुकोटि प्रकाशम् ।

त्रयः   शूल - निर्मूलनं   शूलपाणिं

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।५ ।।


कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी

सदा सज्जना नन्द दाता  पुरारी ।

चिदानन्द   सन्दोह   मोहापहारी 

प्रसीद  प्रसीद  प्रभो  मन्मथारी ।।६ ।।


न  यावद्  उमानाथ  पादारविन्दं 

भजन्तीह  लोके  परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति - सन्तापनाशं

प्रसीद  प्रभो  सर्वभूताधि वासम् ।।७ ।।


न  जानामि  योगं  जपं नैव  पूजां

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।

जरा  जन्म  दुःखौघ  तातप्यमानं

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ।।८ ।।



रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रदीदति ।। ९ ।। 


।। इति श्री गोस्वामितुलसीदासकृतं श्री रुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ।।

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रविवार, 4 जुलाई 2021

चमत्कारी सर्प सूक्त

चमत्कारी सर्प सूक्त 

यह सर्प सूक्त सर्प शाप दोष शान्ति के लिए अत्यन्त प्रभावकारी है।

एक जोड़ी स्वर्ण सर्प पूजन करके किसी वेदपाठी विद्वान को दान देने से सर्प शाप दोष परिहार हो जाता है । 

सर्प शाप के कारण यदि सन्तान बाधा , बुरे स्वप्न, कार्यो में विघ्न हो तो सर्प सूक्त का 101 पाठ करके हवन करें । तत्पश्चात् गो दान करें या गो निष्क्रिय दक्षिणा देकर ब्राह्मणों से आशीर्वाद लें । इस विधि को करने से उत्तम सन्तान की प्राप्ति होती है ।

 सर्प सूक्त --

ब्रह्मलोकेषु  ये  सर्पाः शेषनाग  पुरोगमाः ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदाः।।१।।

इन्द्रलोकेषु  ये  सर्पाः वासुकि  प्रमुखादयः । 

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥२।। 

कद्रवे याश्च  ये  सर्पाः मातृभक्ति  परायणा ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥३।।

इन्द्रलोकेषु  ये  सर्पाः तक्षका  प्रमुखादयः ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥४।।

सत्यलोकेषु ये सर्पाः वासुकिना च रक्षिता ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ।।५।।

मलये चैव ये सर्पाः कर्कोटक प्रमुखादयः ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥६।।

पृथिव्यांश्चैव ये सर्पाः ये  साकेत वासिना ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥७।।

सर्वग्रामेषु ये  सर्पाः वंसुतिषु  संच्छिता ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥८।। 

ग्रामे वा यदि वा रण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥९।।

समुद्रतीरे  ये  सर्पाः    सर्वाजलवासिनः । 

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥१०।।

रसातलेषु ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः ।

नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥११।।


योगिनी एकादशी

योगिनी एकादशी 

( आषाढ़ कृष्ण एकादशी ) 


आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को भगवान नारायण की पूजा - आराधना की जाती है । श्रीनारायण भगवान विष्णु का ही एक नाम है अतः अन्य एकादशियों के समान ही भगवान विष्णु अथवा उनके लक्ष्मीनारायण रूप की पूजा - आराधना करें । इस एकादशी का व्रत करने से सम्पूर्ण पापों का क्षय होता है , और पीपल का पेड़ काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है । किसी के दिए हुए शाप तक का निवारण हो जाता है । योगिनी एकादशी का व्रत करने से कुष्ट रोग नष्ट होता है ।अन्य एकादशियों के समान ही इस एकादशी के व्रत का विधान है । इस व्रत को करने वाला भी इस लोक में सभी सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर श्रीहरि के चरणों में निवास प्राप्त करता है , ऐसा शास्त्रों में परिणीत है । 

कथा - 

अति प्राचीन काल में अलकापुरी के राजा कुबेर के यहां हेममाली नामक एक अनुचर था । उसका कार्य नित्यप्रति पूजा के फूल लाना था । एक दिन भार्या के साथ विहार करते रहने के कारण उसे फूल लाने में बहुत देर हो गई । इससे क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया । इस शाप से कोढ़ी हुआ हेममाली इधर - उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा । ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुःखी होने का कारण जान लिया । उन्होंने उसे योगिनी एकादशी व्रत करने को कहा । व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण करके पुनः स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गया ।

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ॐ जय गौरी नंदा

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