सोमवार, 12 जुलाई 2021
गुरुवार, 8 जुलाई 2021
अथ शिवतांडव - स्तोत्रम्
।। शिवताण्डव - स्तोत्रम् ।।
जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावि तस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् ।
डमड् डमड् डमड् डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ।। १ ।।
जटा कटा हसम्भ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराजमान मूर्द्धनि ।
धगद् -धगद् -धगज्ज्वलल्ललाट पट्ट पावके
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ।। २ ।।
धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे ।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिच्चिदम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ।।३ ।।
जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा
कदम्ब कुङ्कुम द्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदान्ध सिन्धु रस्फुरत्त्वगुत्तरीय मेदुरे
मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूत भर्तरि ।। ४ ।।
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर
प्रसून धूलि धोरणी विधूसराङघ्रि पीठभूः ।
भुजङ्गराज मालया निबद्ध जाट जूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः ।।५ ।।
ललाट चत्व रज्वलध्दनञ्जय फुलिंगभा
निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् ।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरी जटाल मस्तु नः ।।६ ।।
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वलद्
धनन्जया हुती कृत प्रचण्ड पञ्च सायके ।
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ।।७ ।।
नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत्
कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।
निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कला निधान बन्धुरः श्रियं जगध्दुरन्धरः।।८ ।।
प्रफुल्ल नीलपंकज प्रपञ्च कालि मप्रभा
विलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ।।९ ।।
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी
रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधु व्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे ।।१० ।।
जयत्वद भ्रविभ्रम भ्रमद्भुजङ्ग मस्फुरत्
विनिर्गमत्क्रमत्स्फुरत्कराल भाल हव्यवाट् ।
घिमिद् घिमिद् धिमिध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ।।११ ।।
दृषद् विचित्र तल्पयोर्भुजङ्ग मौक्तिक स्रजो
र्गरिष्ठ रत्न लोष्टयोः सुहृद्विपक्ष पक्षयोः ।
तृणा रविन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः
सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ।।१२ ।।
कदा निलिम्प निर्झरी निकुँज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरःस्थ मञ्जलिं वहन् ।
विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।१३ ।।
इमं हि नित्य मेव मुक्त मुत्त मोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन् नरो विशुद्ध मेति सन्ततम् ।
हरे गुरौ सु भक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सु शंकरस्य चिन्तनम् ।।१४ ।।
पूजा वसान समये दश वक्त्र गीतं
यः शम्भु पूजन मिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ।।१५ ।।
।। इति श्री रावणकृतं शिवताण्डव स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
बुधवार, 7 जुलाई 2021
रुद्राष्टाकम्
रुद्राष्टाकम् का नित्य पाठ करने से बड़े से बड़े विघ्नों पर विजय प्राप्त कर सकते है ।
नमामी शमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेद स्वरूपम् ।
अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश माकाशवास भजेऽहं ।।१ ।।
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोती तमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालु
गुणागार संसार पारं नतोऽहं ।।२ ।।
तुषाराद्रि - संकाश - गौरं गभीरं
मनोभूतकोटि - प्रभा- श्रीशरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा
लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।३ ।।
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्ड - मालम्
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।४ ।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटि प्रकाशम् ।
त्रयः शूल - निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।५ ।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जना नन्द दाता पुरारी ।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।६ ।।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति - सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधि वासम् ।।७ ।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ।।८ ।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रदीदति ।। ९ ।।
।। इति श्री गोस्वामितुलसीदासकृतं श्री रुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ।।
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रविवार, 4 जुलाई 2021
चमत्कारी सर्प सूक्त
चमत्कारी सर्प सूक्त
यह सर्प सूक्त सर्प शाप दोष शान्ति के लिए अत्यन्त प्रभावकारी है।
एक जोड़ी स्वर्ण सर्प पूजन करके किसी वेदपाठी विद्वान को दान देने से सर्प शाप दोष परिहार हो जाता है ।
सर्प शाप के कारण यदि सन्तान बाधा , बुरे स्वप्न, कार्यो में विघ्न हो तो सर्प सूक्त का 101 पाठ करके हवन करें । तत्पश्चात् गो दान करें या गो निष्क्रिय दक्षिणा देकर ब्राह्मणों से आशीर्वाद लें । इस विधि को करने से उत्तम सन्तान की प्राप्ति होती है ।
सर्प सूक्त --
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पाः शेषनाग पुरोगमाः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदाः।।१।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः वासुकि प्रमुखादयः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥२।।
कद्रवे याश्च ये सर्पाः मातृभक्ति परायणा ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥३।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः तक्षका प्रमुखादयः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥४।।
सत्यलोकेषु ये सर्पाः वासुकिना च रक्षिता ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ।।५।।
मलये चैव ये सर्पाः कर्कोटक प्रमुखादयः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥६।।
पृथिव्यांश्चैव ये सर्पाः ये साकेत वासिना ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥७।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पाः वंसुतिषु संच्छिता ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥८।।
ग्रामे वा यदि वा रण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥९।।
समुद्रतीरे ये सर्पाः सर्वाजलवासिनः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीता : मम सर्वदा ॥१०।।
रसातलेषु ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः ।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा ॥११।।
योगिनी एकादशी
योगिनी एकादशी
( आषाढ़ कृष्ण एकादशी )
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को भगवान नारायण की पूजा - आराधना की जाती है । श्रीनारायण भगवान विष्णु का ही एक नाम है अतः अन्य एकादशियों के समान ही भगवान विष्णु अथवा उनके लक्ष्मीनारायण रूप की पूजा - आराधना करें । इस एकादशी का व्रत करने से सम्पूर्ण पापों का क्षय होता है , और पीपल का पेड़ काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है । किसी के दिए हुए शाप तक का निवारण हो जाता है । योगिनी एकादशी का व्रत करने से कुष्ट रोग नष्ट होता है ।अन्य एकादशियों के समान ही इस एकादशी के व्रत का विधान है । इस व्रत को करने वाला भी इस लोक में सभी सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर श्रीहरि के चरणों में निवास प्राप्त करता है , ऐसा शास्त्रों में परिणीत है ।
कथा -
अति प्राचीन काल में अलकापुरी के राजा कुबेर के यहां हेममाली नामक एक अनुचर था । उसका कार्य नित्यप्रति पूजा के फूल लाना था । एक दिन भार्या के साथ विहार करते रहने के कारण उसे फूल लाने में बहुत देर हो गई । इससे क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया । इस शाप से कोढ़ी हुआ हेममाली इधर - उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा । ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुःखी होने का कारण जान लिया । उन्होंने उसे योगिनी एकादशी व्रत करने को कहा । व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण करके पुनः स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गया ।
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