योगिनी एकादशी
( आषाढ़ कृष्ण एकादशी )
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की इस एकादशी को भगवान नारायण की पूजा - आराधना की जाती है । श्रीनारायण भगवान विष्णु का ही एक नाम है अतः अन्य एकादशियों के समान ही भगवान विष्णु अथवा उनके लक्ष्मीनारायण रूप की पूजा - आराधना करें । इस एकादशी का व्रत करने से सम्पूर्ण पापों का क्षय होता है , और पीपल का पेड़ काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है । किसी के दिए हुए शाप तक का निवारण हो जाता है । योगिनी एकादशी का व्रत करने से कुष्ट रोग नष्ट होता है ।अन्य एकादशियों के समान ही इस एकादशी के व्रत का विधान है । इस व्रत को करने वाला भी इस लोक में सभी सुख भोगकर अन्त में मोक्ष को प्राप्त कर श्रीहरि के चरणों में निवास प्राप्त करता है , ऐसा शास्त्रों में परिणीत है ।
कथा -
अति प्राचीन काल में अलकापुरी के राजा कुबेर के यहां हेममाली नामक एक अनुचर था । उसका कार्य नित्यप्रति पूजा के फूल लाना था । एक दिन भार्या के साथ विहार करते रहने के कारण उसे फूल लाने में बहुत देर हो गई । इससे क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया । इस शाप से कोढ़ी हुआ हेममाली इधर - उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा । ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुःखी होने का कारण जान लिया । उन्होंने उसे योगिनी एकादशी व्रत करने को कहा । व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण करके पुनः स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गया ।
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