मनुष्य प्राणी जीव का जब उद्भव होता है तो पूर्व जीवन चक्र के आधार पर मानव या अन्य प्राणीयों का जीवन चक्र निर्धारित होता है । जिसके आधार पर वह संसार का भोग करते है । प्राणी चाहे जितनी लालसा रख ले मिलेगा उतना ही जितना पूर्व निर्धारित कर्मों से अर्जित रखा पूण्य या पाप जो जीव को भोगना पड़ता है । जैसे बहरा अपने से बहरा नही बनता , चोर अपने से चोर नही बनता , राजा अपने से राजा नही बनता । इसलिए शुभ कर्म का शुभ फल ,अशुभ कर्मो का अशुभ फल जरूर मिलता है । यह निश्चित है कि लूला , लंगड़ा ,बहरा , अंधा , भिखारी , चोर , डाकू , राजा यह सभी पूर्व जन्मार्जित कर्मो का भोग कर रहे है ।
आयु: कर्म वित्तं च विद्या निधन मेव च ।
पंचैतानि ही सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ।।
माँ के गर्भ में जब जीव का आविर्भाव होता है तो उसी समय आयु ,कर्म ,बिद्या , वित्त और मृत्यु निर्धारित हो जाता है । जो जीव को सुख व दुःख के रूप में भागना पड़ता है ।
जीव जब संसार मे प्रविष्ट होता है ।तो मनुष्य जीव प्राणी मात्र की उम्र ,उसका कर्म , वह कितना विद्या व धन अर्जित करेगा। तथा उसकी मृत्यु कब कहाँ कैसे होगी यह सब माँ के गर्भ में ही पूर्व जन्मार्जित कर्मो के आधार पर निर्धारित हो जाता है ।
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Jai ho
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंअति सुन्दर जानकारी दी गई है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंधन्यबाद जी टिप्पणी व ब्लॉग से जुड़ने के लिए
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