शनिवार, 27 जुलाई 2024

ब्राह्मण कौन है ।

        ।। ब्राह्मण कौन है ।।

ब्राह्मण जो ब्रह्म का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।

जो सृष्टि का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।

जो वेदों का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।

जो पुराणों का ज्ञान रखता है। वह ब्रह्मण है।

जो नियमों पर चलता है । वह ब्राह्मण है ।

जिसके पास ज्ञान का भंडार है । वह ब्राह्मण है ।

जो समाज को ज्ञान देने का काम करता है । वह ब्राह्मण है ।

जो समाज को जीने की कला सिखाता है। वह ब्राह्मण है ।

जो गुरु परंपरा पर चलता है । वह ब्राह्मण है ।

वेद, पुराण उपनिषद ,ज्योतिष वास्तु आयुर्वेद सनातन संस्कृति संस्कारों की रक्षा करने वाला,वह है ब्राह्मण ।


अपनी परम्पराओं ज्ञान देना वाला है । ब्राह्मण।

जिससे देवता भी डरते है । वह है ब्राह्मण ।




सनातन को जिंदा रखने वाला वह ब्राह्मण है ।


नाम सुनकर ऐसा लगता है जैसे कोई दीनहीन होगा । लोगों की भावना ब्राह्मण नाम सुनकर परिवर्तित हो जाती है । कई लोग तो आदर करते हैं, और कई लोग तिरस्कार भी करते हैं।

पृथ्वी में जितने भी तीर्थ पवित्र नदियां है , वे सभी समुद्र में मिलते है । और समुद्र के सारे तीर्थ ब्राह्मण के दाहिने पैर में बसते है ।


देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनाश्च  देवता:।

तेमंत्रा: ब्राह्मणाधिना: तस्मात् ब्राह्मण देवता: । ।


सारा संसार देवताओं के अधीन है । और देवता मन्त्रों के अधीन है । मंत्र ब्राह्मण के अधीन है । इस लिए इस वसुंधरा के ब्राह्मण ही देवता है ।


ब्राह्मण कि यारी ,शेर की सवारी 

जिसने ब्राह्मण को मित्र बना लिया समझो उसने शेर कि सवारी कर ली । 

जय ब्राह्मण देवता ।



शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

रुद्राभिषेक व शिवपूजन पदार्थ जिससे अनिष्ट का नाश होता है

शिवलिंग पर अक्सर जल और बिल्वपत्र तो चढ़ाया ही जाता है लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ अर्पित किया जाता है। शिवजी का कई प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है। सभी तरह के अभिषेक का अलग-अलग फल दिया गया है। शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है? जानिए-

श्लोक :-

जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै।

दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।।

मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।

पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।

बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।

ज्वरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।

घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।

तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशय:।।

प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।

केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषत:।।

शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।

श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च।।

सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह।

पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधि: सर्पिषा तथा।।

जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।

पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।।

महलिंगाभिषेकेन सुप्रीत: शंकरो मुदा।

कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।।

 

- जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।

- कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग व दु:ख से छुटकारा मिलता है।

- दही से अभिषेक करने पर पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।

- गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

- मधुयुक्त जल से अभिषेक करने पर धनवृद्धि होती है।

- तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

- इत्र मिले जल से अभिषेक करने से रोग नष्ट होते हैं।

- दूध से अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति होगी। प्रमेह रोग की शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं

 - गंगा जल से अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है।

- दूध-शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।

- घी से अभिषेक करने से वंश विस्तार होता है।

- सरसों के तेल से अभिषेक करने से रोग तथा शत्रुओं का नाश होता है।

- शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करने से पाप क्षय होते हैं। इसके अलावा

1. शिवलिंग पर कच्चे चावल चढ़ाने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

2. तिल चढ़ाने से समस्त पापों का नाश होता है।

3. शिवलिंग पर जौ चढ़ाने से लंबे समय से चली रही परेशानी दूर होती है।

4. शिवलिंग पर गेहूं चढ़ाने से सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है।

5. शिवलिंग पर जल चढ़ाने से परिवार के किसी सदस्य का तेज बुखार कम हो जाने की मान्यता है।

6. शिवलिंग पर दूध में चीनी मिलाकर चढ़ाने से बच्चों का मस्तिष्क तेज होता है।

7. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाने से सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

8. शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाने से मनुष्य को भौतिक सुखों के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

9. शिवलिंग पर शहद अर्पित करना करने से टीबी या मधुमेह की समस्या में राहत मिलती है।

10. शिवलिंग पर गाय के दूध से बना शुद्ध देसी घी चढ़ाने से शारीरिक दुर्बलता से मुक्ति मिलती है।

11. शिवलिंग पर आंकड़े के फूल चढ़ाने से सांसारिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

12. शिवलिंग पर शमी के पेड़ के पत्तों को चढ़ाने से सभी तरह के दु:खों से मुक्ति प्राप्त होती है।

उपरोक्त कार्य सोमवार, त्रयोदशी, शिवरात्रि या श्रावण के मास में नित्य करेंगे, तो लाभ मिलेगा।

भगवान शिव के रुद्राभिषेक से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही, ग्रह जनित दोषों व रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है। 

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आचार्य हरीश लखेड़ा 

शनिवार, 20 जुलाई 2024

मेरी शादी कब होगी

विवाह संस्कार जीवन का पवित्र बंधन माना जाता है । कभी न टूटने वाला बंधन । संसार के उत्सर्जन गृहस्थ जीवन के द्वारा अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाना , संसार के गतिविधियों को आगे बढ़ना , संसार की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रथम आवश्यक होता है संतान उत्पत्ति , यहीं से पुरुष की अपनी जिम्मेदारी के साथ अपने परिवार के साथ जीवन निर्वाह करता है । गृहस्थ जीवन में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । किंतु आनंद भी गृहस्थ जीवन में ही है । जहां मनुष्य सभी प्रकार भोगों का आनंद प्राप्त करता है । साथ में  भजन भी होता रहता है । सबसे बड़ी तपस्या गृहस्थ जीवन में ही होती है । जहां मनुष्य को हर द्वार से गुजरना पड़ता होता है। विशेष कर के जीवन में हमे अपनी साख को बचा के रखना होता है । जो निरन्तर वंशवाद के द्वारा हम आगे बढ़ाते रहते है । शदियों तक चलता रहता है ।


अब लगता है। यह सब टूट जाएगा और टूट रहा है । जात पात सिर्फ नाम का होगा । नाम के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्ध रह जाएंगे ।  

बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जिनकी लड़कियों ने प्रेम विवाह करके दूसरे समाज में चली गई है । और अपने लड़के के लिए उन्हें बहू अपनी जात धर्म कि चाहिए , तो संतुलन कैसे बनेगा । समाज के सभी विद्वानों ने इस पर गहन चिंतन करना चाहिए और सभी माता-पिता ने भी इस पर विचार करना । आज अपने समाज में देखें बहुत सारे युवा, युवती बिना शादी के घर बैठे है


 आज प्रेम विवाह का समय चल रहा है । यह ठीक नहीं है ।जो समाज के लिए दीमक का काम कर रहा है । ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में आपको जानने वाले , आपकी पहचान क्या है , आपकी सभ्यता क्या है ,आपकी प्रथाएं क्या है ,आपकी कुल परम्परा यह सब समाप्त होती जाएगी। देव ,पितृ सब लुप्त हो जाएंगे । 

आज के समय में बहुत से परिवारों के यहां एक से दूसरा बच्चा नहीं दिखाई देता । यहां पर देखा जाय तो दो में से एक परिवार वैसे ही लुप्त हो जाता है । यहां पर आपका धर्म सीमित ,परिवार सीमित , बच्चे सीमित हो जाते हैं । क्या पाया , क्या खोया ।

आज के समय में बच्चों के विवाह के लिए बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । आज आप एक लड़के की कुंडली पर सौ लड़कियों की कुंडली जुड़ा दीजिए  फिर भी बात नहीं बनती । आज के युवा 35 , 40 के ऊपर आ जाते है तब विवाह हो रहा है। कई कई परिवार बहुत परेशान है। 

समाज अगर ऐसा ही चला रहा आने वाले समय में क्या होने वाला है कोई नहीं जनता इतना जरूर है समाज की व्यवस्थाएं  जरूर चरमरा जाएगी । 



🚩।।सत्य सनातन अखंड धर्म जय।।🚩
पंडित हरीश चंद्र लखेड़ा 
ज्योतिषाचार्य

रविवार, 14 जुलाई 2024

वर्ण संकर

वर्ण संकर 

वर्ण संकर किसे कहते हैं । मां की अन्य जात हो, पिता किसी अन्य जात का हो इन दोनों के संयोग से जो संतान उत्पन्न होती है । उसे वर्ण संकर कहा जाता है । वर्ण संकर संतान के द्वारा किए जान वाले सभी धार्मिक कार्यों में सिद्धि नहीं मिलती और पितरों को दिया हुआ अन्नदान जल दान भी किसी काम नहीं आता । और २१ पीढ़ी के पितृ नरक को भोगते हैं ।


गीता में कहा गया है :- 


गीता के प्रथम अध्याय मैं वर्णित है ।


कुलक्षये प्रणश्यन्ति  कुल धर्मा: सनातना:।

धर्मे नष्टे  कुलं कृत्स्नमधर्मोभिभवत्युत ।।

कुल के नाश से कुल धर्म नष्ट हो जाते है जिससे संपूर्ण कुल में पाप फैल जाता है ।


अधर्माभि भवात्कृष्ण प्रदुष्यंती कुलस्त्रिय: ।

स्त्रीषु दुष्टासु  वार्ष्णेय  जयते  वर्णसंकरः ।।


अत्यंत पाप बढ़ जाने पर कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती है और इससे वर्ण संकर संताने होती हैं ।


सन्क नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।

पतन्ति पितरों ह्येषां लुप्त पिण्डोदक क्रिया: ।।


वर्ण संकर कुल को नर्क में ले जाता है और श्रद्धा एवं तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ।



दोषैरेतै:  कुलघ्नानां वर्ण संकर कारकै:।

उत्साद्यन्ते जाति धर्मा कुलधर्मान्च शाश्वता: ।।

इस प्रकार वर्ण संकर कारक दोषों से कुल घातियों के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं ।

जिसका कुल धर्म नष्ट हो जाता है उसका अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है ।

हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गये हैं ।

अपना धन अपना राज्य अपना सुख पाने के लिए हम अपनों को ही करने के लिए  उद्यत हो रहे हैं ।

ॐ जय गौरी नंदा

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