वर्ण संकर किसे कहते हैं । मां की अन्य जात हो, पिता किसी अन्य जात का हो इन दोनों के संयोग से जो संतान उत्पन्न होती है । उसे वर्ण संकर कहा जाता है । वर्ण संकर संतान के द्वारा किए जान वाले सभी धार्मिक कार्यों में सिद्धि नहीं मिलती और पितरों को दिया हुआ अन्नदान जल दान भी किसी काम नहीं आता । और २१ पीढ़ी के पितृ नरक को भोगते हैं ।
गीता में कहा गया है :-
गीता के प्रथम अध्याय मैं वर्णित है ।
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुल धर्मा: सनातना:।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोभिभवत्युत ।।
कुल के नाश से कुल धर्म नष्ट हो जाते है जिससे संपूर्ण कुल में पाप फैल जाता है ।
अधर्माभि भवात्कृष्ण प्रदुष्यंती कुलस्त्रिय: ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जयते वर्णसंकरः ।।
अत्यंत पाप बढ़ जाने पर कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती है और इससे वर्ण संकर संताने होती हैं ।
सन्क नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरों ह्येषां लुप्त पिण्डोदक क्रिया: ।।
वर्ण संकर कुल को नर्क में ले जाता है और श्रद्धा एवं तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ।
दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्ण संकर कारकै:।
उत्साद्यन्ते जाति धर्मा कुलधर्मान्च शाश्वता: ।।
इस प्रकार वर्ण संकर कारक दोषों से कुल घातियों के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं ।
जिसका कुल धर्म नष्ट हो जाता है उसका अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है ।
हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गये हैं ।
अपना धन अपना राज्य अपना सुख पाने के लिए हम अपनों को ही करने के लिए उद्यत हो रहे हैं ।
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