शनिवार, 30 जनवरी 2021

श्री सन्तानगणपति स्तोत्रम्

     ।।श्री सन्तानगणपति स्तोत्रम् । ।

सन्तानगणपति स्तोत्र का पाठ करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है ।नित्य 11 पाठ करें ।


ॐ नमोस्तु गणनाथाय सिद्धि बुद्धि युताय च ।

 सर्वप्रदाय  देवाय  पुत्र बृद्धि   प्रदाय च ॥१ ॥ 


गुरुदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्य सिताय ते ।

गोप्याय नोदिताशेषभुवनाय चिदात्मने ॥२ ॥ 


विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।

नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ॥३ ॥


एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः ।

 प्रपन्नजन  पालाय प्रकृतार्ति विनाशिने ॥ ४ ॥ 


शरण  भव देवेश सन्ततिं सुदृढां कुरु । 

भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ॥५ ॥ 


ते सर्वे  त  पूजार्थे  निरताः  स्युर्वरोमतः ।

पुत्रपदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धिप्रदायकम् ॥६ ॥ ॥ 


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      ।। इति सन्तान गणपति स्तोत्रम् ॥  
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
         वसई

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

पञ्चाङ्ग क्या है।पञ्चाङ्ग कैसे समझें

पञ्चाङ्ग क्या हैं--

भारतीय सनातन संस्कृति में वेद ,पुराण , रामायण, महाभारत ,उपनिषद, वेदान्त, साहित्य ,ज्योतिष, व्याकरण, आदि अनेक शास्त्र है।जो हमारे ज्ञान , विज्ञान ,रहन, सहन,खान ,पान, अस्त्र , शस्त्र हर तरह की जीने की कला सिखाते है। शास्त्रों में ज्योतिष को नेत्र की संज्ञा दी है।जो हमे रास्ता दिखता है।ज्योतिष हमे ब्रह्माण्ड में होने वाली हलचल ग्रहों की दशा व दिशा का ज्ञान कराता है।

ज्योतिष काल की गणना के आधार से हमे तिथि, बार, नक्षत्र, योग,करण व समय की गणना ,शुभाशुभ योगों की गणना, करके हमे पञ्चाङ्ग के रूप में देता है । पञ्चाङ्ग के पांच अंग होते है। इन्हें जानें बिना कोई भी पञ्चाङ्ग की गणना नही कर सकता है। कौन - कौन हैं पञ्चाङ्ग के अंग ,जिन्हें समझना जरूरी है । जिससे हम दैनिक शुभशुभ  को जान सकें ।

पञ्चाङ्ग के अंग --

1-तिथि

2-वार

3-नक्षत्र

4-योग

5-करण

इन पांचों से पञ्चाङ्ग का निर्माण होता है ।और पञ्चाङ्ग को जानने के लिए पाँचो अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है ।

1 - तिथि --

तिथियां तीस होती है। १५ तिथि शुक्ल पक्ष की और १५ कृष्ण पक्ष की होती है ।जिससे एक माह का निर्माण होता है।

१ - प्रतिपदा               ९ - नवमी
२ - द्वितीया                १० - दशमी
३ - तृतीया                 ११ - एकादशी
४ - चतुर्थी                 १२ - द्वादशी
५ - पञ्चमी               १३ - त्रयोदशी
६ - षष्ठी                    १४ -  चतुर्दशी
७ - सप्तमी                १५ - पूर्णिमा
८ - अष्टमी                 ३० - अमावस्या

२ - वार --

वार सात होते है।जो इस प्रकार है ।

1-रविवार

2 -सोमवार

3 -मंगलवार

4 -बुधवार

5 - वृहस्पतिवार

6 -शुक्रवार

7 -शनिवार

३ - नक्षत्र --

 १. अश्विनी , २. भरणी , ३. कृत्तिका , ४. रोहिणी , ५. मृगशीर्ष , ६. आर्द्रा , ७. पुनर्वसु , ८. पुष्य , ९ . आश्लेषा , १०. मघा , ११. पूर्वाफाल्गुनि , १२. उत्तरा फाल्गुनि , १३. हस्त , १४. चित्रा , १५. स्वाती , १६. विशाखा , १७. अनुराधा , १८. ज्येष्ठा , १ ९ . मूल , २०. पूर्वाषाड़ा , २१. उत्तराषाढ़ा , २२. अभिजित् , २३. श्रवण , २४ .. धनिष्ठा , २५. शतभिषा , २६. पूर्वाभाद्रपद , २७. उत्तरा भाद्रपद , २८. रेवती ।

 प्रमुख रूप से नक्षत्र २७ ही होते हैं । उ ० षा ० और श्रवण के एक - एक चरण को लेकर एक अभिजित् नक्षत्र हो जाता है । साभिजित् गणना में नक्षत्रों की संख्या २८ हो जाती है ।

४ - योग -- 

१ .विष्कुम्भ ,२ . प्रीति , ३ .आयुष्मान् , ४ .सौभाग्य ,५ . शोमन , ६.अतिगण्ड , ७ .सुकर्मा , ८ .धृति , ९ .शूल ,१० . गण्ड ,११ . बृद्धि , १२ .ध्रुव , १३ .व्याघात , १४ .हर्षण , १५ .वज्र , १६ .सिद्धि ,१७ . व्यतिपात , १८ .वरीयान ,१९ . परिघ , २० .शिव , २१ .सिद्धि , २२ . साध्य ,२३ . शुभ ,२४ .शुक्ल ,२५ . ब्रह्म , २६ .ऐन्द्र ,२७ . वैधृति ये २७ चर योग होते हैं । 

५ - करण --

१ . बब ,

२ . बालव , 

३ .कौलव ,

४ .तैतिल , 

५ .गर , 

६ .वणिज , 

७ .विष्टि 

ये सात चर करण है ।

 एक तिथि में दो करण होते हैं । " तिथ्यधं करणम् " । तिथि के प्रारम्भ से करण भी प्रारम्भ होता है । तिथि के आधे भाग से दूसरे करण को प्रवृत्ति होती है । विष्टि करण को भद्रा कहते हैं ।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
9004013983



बुधवार, 20 जनवरी 2021

उत्तराखंड भूमि मनै बात

उत्तराखंड भूमि मनै बात

मै छू देवभूमि ,मै छू उत्तराखंड,मै छू पहाड़ ।

सिरक ताज तुमकै पहना तुम नै गच्छा भ्यार ।।

मै छू देवभूमि उत्तराखंड पैली मै उत्त्तर प्रदेश छी, अब में उत्तराखंड हैगू ,मेरी उम्र बहुत छ , म्यर परिवार पैली छव्ट छि अब पुर भारत मे म्यर परिवार बसी रह। पर नई प्रदेश बनी बै मै 21 सालक जवान हेगु।कैकि नजर लागी मिपरि और म्यर देवभूमि स्वरूप कुटुम्ब पै, कि म्यर परिवार मिकणि छोड़ी नेगो मै आज इकले रह गु। न कैके मेरी याद आणि न कोई भाटूलि लगणे सब आपु में मगन छी।में खुसी छू म्यर परिवार खुश रहे । बार त्यौहार याद कनै रहाया । आपण कुल देवतों के भेंटने रह्या । 

य भूमि में तुमर पुरखों खून पासिणी समै रै । जो आज फलदार डाउ जस फली रह ।

आप सबु हैं कामना छू आपण बार त्यौहार ,संस्कार, आपणी  संस्कृति ,अपणी बोली भाषा,आपणी पछ्यांण कै आपण पीढ़ी दर पीढ़ी आघीन बढ़ाने रह्या । मै सदा तुमर इंतजार करूनु कब तुम मैके मिलण आला । में आज उन लोंगो दगे रहनु जेक घर टूटी गयी।उनर द्यबत्त म्यर दगड़ी छै । जावो राजी रहो खुसी रहो य मेरी देवभूमी की आवाज छ।

क्यछ पहाड़ में --

खूबसूरत पहाड़ छी, बहुते भल वातावरण छू ,ठंड- ठंड पाणी छू ,सब तरफ हरिया हरि डान छि ,सीडीदार पाटो छि, बहुते भल रशिल खाण प्यूण छ, नी संकोच घुमण फिरण , मनुहा,झूँगार भट ,गहत,राजमा, सुयाबिन, रेंस, मॉस, कोणी,बाजरा,चू, गेहूं , चावल सब प्रकारक नाज छ, अगर तुम खुज्याला तो बहुत कुछ मिलल ।मै स्वर्ग छू ।

क्यछ पहाड़ों विशेषता--

या चार धाम ,या पांच बद्री,पांच केदार, पाँच प्रयाग छि,जागेस्वर ,बागनाथ ,नंदा देवी,  जो सबु के आस्था एक सूत्र बंधन में पिरोणक काम करै , पितरों कै तारणे  लिजी बहुत विषेष छू। याँ दूर दूर बे लोग आबे  आपण  पितरो मुक्ति हेतु कामना करनी । भगवानों आशीर्वादल सबकेँ सद गति,मुक्ति  प्राप्त है सको। 

पहाड़ो में रोजगारक साधन --

शिक्षा ,चिकित्सा, खेती, कारपेंट्री,पशुपालन, बालबर, पर्यटन, व्यापार,बाग बगीचा,आयुर्वेदिक जड़ी का स्रोत,  करण यस बहुते काम छू, य भूमि में बहुते आसार छु रोजगारक जो बहुते लोगों कै आजीविका दयंच। मेहनती व सफल लोगोंहे केँ कमी निछ।

म्यर शब्दों में गलती हैली तो माफ करिया।य कुमाऊँनी भाषा मे लिखणक प्रयास छू ।

।जय देवभूमि ।

।जय उत्तराखंड।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
           बसई

सोमवार, 18 जनवरी 2021

श्री गणेश पञ्चरत्नम्

          ।। गणेश पञ्चरत्नम् ।।

मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्ति साधकं

कला धरावतंसकं विलासिलोक रञ्जकम् ।

अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकं 

नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ १ ॥ 

नतेतराति भीकरं नवोदितार्कभास्वरं  

नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।

सुरेश्वरं    निधीश्वरं  गजेश्वरं  गणेश्वरं

महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ २ ॥ 

समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरं

दरेतरोदरं   वरं   वरेभवक्त्रमक्षरम् ।

कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्कर 

नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ ३ ॥ 

अकिंचनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनं 

पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् 

प्रपञ्चनाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणं 

कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥ ४ ॥ 

नितान्त कान्त दन्त कान्ति मन्त कान्त कात्मजं 

मचिन्त्य रूप मन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् । 

हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां 

तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ॥ ५ ॥ 

महागणेश पञ्चरत्न मादरेण योऽन्वहं

प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वम् ।

अरोगता मदोषतां सुसाहिती सुपुत्रतां 

समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ ६

 ॥

 ॥श्रीमच्छङ्कशचार्यकृतं गणेशपञ्चरत्नस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

महामृत्युंजय कवचम्।।

नित्य महामृत्युंजय कवच का पाठ करने से व्याधि का नाश,ग्रहपीड़ा से मुक्ति,दुःस्वप्न का नाश सभी प्रकार से रक्षा व आयुआरोग्यता मिलती है।

।।महामृत्युञ्जयकवचम्।।

देव्युवाच--

भगवन सर्वधर्मज्ञ सष्टि - स्थिति लगात्मक ।

मृत्युंञ्जयस्य  देवस्य  कवचं   प्रकाशय ॥२ ॥

ईश्वर उवाच--

शृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि कवचं सर्व - सिद्धिदम् । 

मार्कण्डेयोऽपि यद् धृत्वा चिरजीवी व्यजायत ।।२ ।। 

तथैव   सर्वदिव्याला    अमरावमवाप्नुयुः ।

कवचस्य ऋषि ब्रह्मा छंदोनुष्टुबुदाहृतान ।।३ ।।

 मृत्युञ्जयः समुद्दिष्टो देवता पार्वतीपतिः ।

देहारोग्याबला युष्ट्वे विनियोगः प्रकीर्तितः ॥४ ॥

कवचम्--          

ॐ त्र्यम्बकं मे शिरः पातु ललाट मे यजामहे । 

सुगन्धिं  पातु  हृदयं  जठरं   पुष्टिवर्धनम् ॥५ ॥

 नाभियुर्वारुकमिव पातु मां पार्वतीपतिः ।

बन्धनादूरुयुग्मं मे पातु कामाङ्गशासनः ॥६ ॥

 मृत्योर्जानुयुगं पातु दक्षयज्ञ - विनाशनः । 

जङ्घायुग्मं च मुक्षीय पातु मां चन्द्रशेखरः ॥७ ॥ 

माऽमृताच्च  पदद्वन्द्वं पातु  सर्वेश्वरो  हरः ।

ॐ सौ मे श्रीशिवः पातु नीलकण्ठश्च पार्श्वयोः ।।८ ।।

 ऊर्ध्वमेव  सदा  पातु  सोम  सूर्याग्निलोचनः ।

अधः पातु सदा शम्भुः सर्वापद्विनिवारणः ॥९ ॥

 वारुण्यामर्धनारीशो वायव्यां पातु शङ्करः । 

कपर्दी पातु कौवेर्यामैशान्यां ईश्वरोऽवतु ॥१० ॥

ईशानः सलिले पायादघोरः पातु कानने ।

अन्तरिक्ष वामदेवः पायात्तत्पुरुषो भवि ॥११ ॥ 

श्रीकण्ठः शयने पातु भोजने नीललोहितः । 

गमने त्र्यम्बकः पातु सर्वकार्येषु सुव्रतः ॥१२ ॥ 

सर्वत्र सर्वदेह में सदा मृत्युञ्जयाऽवतु । 

इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्वकामदम् ॥१३ ॥ 

फलश्रुतिः--

सर्वरक्षाकरं सर्वग्रहपीडा - निवारणम् । 

दुःस्वप्ननाशनं - पुण्यमायुरारोग्यदायकम् ॥१४ ॥

त्रिसन्ध्यं यः पठेतन्मृत्युस्तस्य न विद्यते ।

लिखितं भूर्जपत्रे तु य इदं मे व्यधारयेत् ॥१५ ॥

तं दृष्ट्वैव पलायन्ते भूत - प्रेत - पिशाचकाः । 

डाकिन्यश्चैव योगिन्यःसिद्ध - गन्धर्व - राक्षसाः ॥१६ ॥ 

बालग्रहादिदोषा हि नश्यन्ति तस्य दर्शनात् । 

उपग्रहाश्चैव   मारीभयं   चौराभिचारिणः ॥१७ ॥

इदं  कवचमायुष्यं कथितं  तव  सुन्दरि ।।

न दातव्यं प्रयत्नेन न प्रकाश्यं कदाचन ॥१८ ॥ 

।।इति महामृत्युंजयकल्ये देवीश्वरसंवादे महामृत्युंजय कवचं समाप्तम् ।।

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रविवार, 22 नवंबर 2020

कार्तिक पुर्णिमा देव दीपावली

 कार्तिकी पूर्णिमा --

कार्तिक मास की पूर्णिमा ' त्रिपुरी पूर्णिमा ' भी कहलाती है । इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो ‘ महाकार्तिकी ' होती है , भरणी नक्षत्र होने से विशेष फल देती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है । इसी दिन सायंकाल में भगवान का मत्स्यावतार हुआ था ।इस दिन दिये हुए दानादि का दस यज्ञों के समान फल होता है ।

कार्तिक पूर्णिमा का दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है । जिसका फल- ब्रह्मा , विष्णु , शिव , अंगिरा और आदित्य ने इसे महापुनीत - पर्व कहा है । इस दिन किये हुए गंगा - स्नान , दीप - दान , होम , यज्ञ , उपासना आदि का विशेष महत्त्व है और इन सभी सत्कर्मों का अनंत फल होता है । इस दिन कृत्तिका पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह ‘ महापूर्णिमा ' कहलाती है । कृत्तिका पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हों तो ‘ पद्भक ' योग होता है जो पुष्कर में भी दुर्लभ है । इस दिन संध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीप - दान करने से पुनर्जन्मादि नहीं होता । इस तिथि में कृत्तिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान् होता है । 


इस दिन चन्द्रोदय के समय शिवा , संभूति , संतति , प्रीति , अनुसूया और क्षमा - इन छह कृतिकाओं का पूजन करना चाहिए । कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके वृषदान करने से शिव - पद प्राप्त होता है । गाय , हाथी , घोड़ा , रथ , घी आदि का दान करने से सम्पत्ति बढ़ती है । इस दिन उपवास करके भगवान् का स्मरण - चिन्तन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और सूर्य लोक की प्राप्ति होती है । मेष अर्थात भेड़ दान करने से ग्रहयोग के कष्ट नष्ट हो जाते हैं । कार्तिकी को अपनी अथवा परायी अलंकृता कन्या का दान करने से ' संतान - व्रत ' पूर्ण होता है । कार्तिकी पूर्णिमा में प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं , ऐसा शास्त्रों का कथन है ।

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बुधवार, 18 नवंबर 2020

देवोत्थानी ( देव - उठानी )

 देवोत्थानी ( देव - उठानी )

एकादशी ( कार्तिक शुक्ला एकादशा ) 

दीपावली के पश्चात् कार्तिक शुक्ला एकादशी को देवात्थान या देवठान होता है । इस दिन सारे घर को लीप पोत कर साफ करना चाहिये । आंगन को खड़िया मिट्टी और गेरू से काढ़ना चाहिये । 

आंगन के बीचोबीच या फिर एक ओखली में गेरू से चित्र ऋतुफल आर गन्ना उस स्थान पर रखकर एक परात अथवा डलिया से ढक दिया है तथा एक दीपक भी जला दिया जाता है । रात्रि में परिवार के सभी वयस्क सदस्य तथा बालक और महिलाएं देवताओं की भगवान् विष्णु सहित पूजा और भजन कीर्तन भी करते हैं । इसके साथ ही घड़ियाल बजाकर या थाली बजाकर इस प्रकार कहें। 

  उठो देवा , बैठो देवा , आंगुरिया चटकाओ देवा ।

 यह एकादशी देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है । आषाढ़ शुक्ला एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक शुक्ला एकादशी के दिन देव उठते हैं । इसीलिये इस एकादशी को देवोत्थानी या देव - उठानी एकादशी कहा जाता है । इस एकादशी से ही सभी शुभ कार्य , विवाह , उपनयन इत्यादि प्रारम्भ हो जाते हैं ।

कुछ धार्मिक व्यक्ति देवोत्थान के दिन तुलसी और सालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं । तुलसी के वृक्ष और सालिग्राम की यह शादी पूरे धूमधाम से उसी प्रकार की जाती है जिस प्रकार सामान्य विवाह । जिन दम्पत्तियों के कन्या नहीं होती , वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें , ऐसी शास्त्रों की मान्यता है ।

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मंगलवार, 17 नवंबर 2020

सूर्य-षष्ठी व्रत,छठ पूजा

सूर्य षष्ठी व्रत--

 ( कार्तिक शुक्ला षष्ठी ) 

भरतीय नारि हर तरफ अपने साहस व धैर्य का परिचय गृहस्थ जीवन हो पूजा पाठ जप तप या हो कठिन से कठिन व्रत जो पुत्रवती सुहागिन नारियाँ ही करती हैं यह व्रत । इस व्रत में पंचमी से सप्तमी तक तीन दिन उपवास किया जाता है । जिसे छठ पूजा, सूर्य षष्ठी कहा जाता है।

पंचमी के दिन केवल एक बार नमक रहित भोजन किया जाता है , तो षष्ठी के पूरे दिन जल भी नहीं पिया जाता । शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर फल , पकवान , नमकीन और पुष्प आदि भगवान भास्कर को अर्पित किए जाते हैं । निराहार रहकर रात्रि भर जागरण करती हैं और दूसरे दिन सूर्योदय के पूर्व ही नदी अथवा सरोवर पर जाकर स्नान करने और उदित होते हुए भगवान भास्कर की पूजा करने एवं अर्घ्य देने के बाद मुँह में जल डाला जाता है।

काफी कठिन है यह व्रत , परन्तु इसे करने वाली स्त्रियां पति - पुत्रों , धन - सम्पति एवं एश्वर्य से परिपूर्ण भी रहती हैं ।


सोमवार, 16 नवंबर 2020

माघी गणेश चतुर्थी अथवा सकट चौथ

 गणेश चतुर्थी अथवा सकट चौथ

 ( माघ शुक्ल चतुर्थी ) 

प्रत्येक मास के प्रारम्भ अर्थात कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यों तो । गणेश चौथ कहलाती है , और धार्मिक प्रवृत्ति की महिलाएं उस दिन व्रत एवं गणेश जी की पूजा करती है। परन्तु जहां तक माघ मास के शुक्ल पक्ष की इस चतुर्थी का प्रश्न है सभी महिलाएं इस व्रत को करती हैं । यह व्रत संकट विनायक गणेशजी के निमित किया जाता है , परन्तु लोक व्यवहार में अधिकांश महिलाएं इसे सकट चौथ ही कहती हैं । वक्रतुण्डी चतुर्थी , माघी चौथ अथवा तिलकुट्टा चौथ भी कुछ क्षेत्रों में इसे कहा जाता है । 

आज के दिन संकट मोचन गणेश जी , गौरी और चन्द्रमा की पूजा की जाती है । एक पटरे पर मिट्टी की डली को गणेश जी के रूप में रखकर उनकी पूजा की जाती है और कहानी सुनने के बाद लोटे में भरा जल चन्द्रदेव को चढ़ाने के बाद व्रत खोला जाता है । रात्रि को चन्द्रमा पर जल चढ़ाने के बाद ही महिलाएं भोजन करती हैं , पूरे दिन पानी भी नहीं पीतीं । चौथ का चन्द्रमा रात्रि दस बजे के लगभग उदित होता है । यही कारण है कि पूरे दिन पानी भी नही पिया जाता है।जहां तक भोजन का विषय है।तो सामान्य भोजन ही किया जाता है । 

सकट चौथ का व्रत एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता के बनाया जाता है । सफेद तिल व गुड़ का तिलकुट बनाया जाता है।उस दिन तिल के लड्डू चौथ का सबसे प्रमुख उपादान है । तिलकुटा का पूजन किया जाता है ,इसका ही बायना निकालते हैं और तिलकुट को भोजन के साथ खाते भी हैं । जिस घर में लड़का उत्पन्न होता है या लड़के की शादी होती है , उस वर्ष इस चौथ को सवा किलोग्राम तिलों को सवा किलोग्राम शक्कर या गुड़ के साथ कूटकर इसके तेरह लड्डू बनाए जाते हैं । बहु इन लड्डूओं को बायने के रूप में सासु जी को देती है । वैसे सभी स्त्रियां इस दिन तिलकुट का सामान्य बायना तो निकालती हैं ।


 कथा -

 किसी नगर में एक कुम्हार रहता था । एक बार जब उसने बर्तन बना कर आंवा लगाया तो आंवा पका ही नहीं । ऐसा कई बार हुआ । वह आंवे में बर्तन रखता परन्तु आंवा न पकता । हार कर वह राजा के पास गया और प्रार्थना करने लगा । राजा ने राजपंडित को बुला कर कारण पूछा । राज - पण्डित ने कहा यदि हर बार आंवा लगाते समय बच्चे की बलि दी जाएगी तो आंवा पक जाएगा । 

राजा का आदेश हो गया । बलि आरम्भ हुई । जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता । इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बुढ़िया के इकलौते लड़के की बारी आई । बुढ़िया के लिए वही जीवन का सहारा था । दुःखी बुढ़िया सोच रही थी कि मेरा यही तो एक बेटा है , वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा । बुढ़िया ने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा , “ अब भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना । सकट माता रक्षा करेंगी । " बालक आंवा में बिठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठ कर पूजा - प्रार्थना करने लगी । पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे ; पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया । सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया । आंवा पक गया था । बुढ़िया का बेटा तथा पहले आंवे में बैठाए गये अन्य बालक भी जीवित तथा सुरक्षित थे।नगर निवासियों ने सकट की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना।

उस दिन राजा ने नगर में ढिंढ़ोरा पिटवा दिया कि आज से हर कोई माता सकट माता की पूजा अवश्य करें।

हे सकट माता जैसे आपने बुढ़िया के बेटे की रक्षा की वैसे ही सबकी रक्षा करना।

।।बोलो सकट माता की जय।।

।।श्री गणेश महाराज की जय।।

नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और हनुमान जयंती

 नरक चतुदर्शी , रूप चौदस और हनुमान जयन्ती

 ( कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी )

धनतेरस के आगामी दिन को लोक व्यवहार में छोटी दीवाली कहा जाता है , क्योंकि इसके आगामी दिन दीपावली मनाई जाती है । कृष्ण पक्ष की इस चतुर्दशी का विशिष्ट नाम नरक चतुर्दशी है , क्योंकि यह माना जाता है कि आज जो व्यक्ति स्नान - ध्यान और शाम को दीपदान करता है , उसे नरक में नहीं जाना पड़ता । आज घर और स्वयं के शरीर की सम्पूर्ण सफाई विशेष रूप से करनी चाहिए , क्योंकि यह माना जाता है कि जो व्यक्ति आज के दिन मलीन अर्थात् गन्दा रहता है वह पूरे वर्ष दरिद्र और दीनहीन बना रहता है । यद्यपि अब तो दीपावली हेतु घरों की पूर्ण सफाई और सजावट कई दिनों पूर्व ही कर ली जाती है , परन्तु पहले घरों और सम्पूर्ण गांव की सफाई आज विशेष रूप से की जाती थी । आज शाम को दीपक जलाते समय तो स्त्रियां विशिष्ट वस्त्र और आभूषण पहनकर सम्पूर्ण श्रृंगार करती ही हैं , प्रातः स्नान का भी विशिष्ट विधान है । प्रातःकाल सम्पूर्ण शरीर में उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए । स्नान के बाद तीन अंजुलि जल से यमराज 

करते हैं यमराज के निमित्त यह तर्पण । धन तेरस को यमराज के निमित्त दीपक जलाने और आज प्रातः यह तर्पण करने से यमराज ही उस व्यक्ति को नर्क में जाना पड़ता है । आज शाम को ग्यारह , प्रसन्न होते हैं । उस घर में न तो अकाल मृत्यु होती है और न 1 इक्कीस अथवा इक्कत्तीस दीपक जलाने का विधान है । पांच अथवा सात दीपक तो घी के जलाए जाते हैं और शेष तेल के घी का एक - एक दीपक पूजा के स्थान , रसोई , पानी रखने के स्थान , भण्डारगृह और गोशाला में रखा जाता है । शेष दीपक विभिन्न स्थानों पर रख दिए जाते हैं । दीपक जलाते समय रोली , चावल , खील और बताशों से इनकी पूजा भी की जाती है ।

अधिकांश धर्मग्रन्थ तो चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म दिन मानते हैं और उसी दिन हनुमान जयन्ती मनाते हैं । देश के कुछ भागों में आज के दिन को हनुमान जी का जन्म दिन मानकर हनुमान जयन्ती भी मनाई जाती है । शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने आज के दिन ही नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था और इसी कारण छोटी दीपावली का एक नाम नरक चौदस भी है , जबकि पूर्ण स्वच्छता कारण रूप चतुर्दशी ।

भीष्म पंचक स्नान एवं व्रतविधि

 भीष्म पंचक स्नान एवं व्रत --

( कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक )

जो महिलाएं पूरे कार्तिक मास तक किसी पवित्र नदी अथवा  सरोवर में स्नान नहीं कर पातीं , वे भी पांच दिन का यह पंचक स्नान तो करती ही हैं । सामान्य स्नान और पूजा के स्थान पर जब यह क्रिया निम्न विधि से की जाती है , तब कहलाने लगती है भीष्म पंचक व्रत ।

कार्तिक शुक्ला एकादशी के दिन स्नानादि से शुद्ध होकर पापों के नाश और धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस व्रत का संकल्प करें । घर के आंगन या नदी के तट पर चार दरवाजों वाला मण्डप बनाकर उसे गोबर से लीप देना चाहिए । बाद में सर्वतोभद की वेदी बनाकर उस पर तिल भरकर कलश स्थापित करें । “ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय " इस मन्त्र से भगवान् वासुदेव की पूजा करनी चाहिए । पांच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलाना चाहिए और मौन होकर मन्त्र का जाप करना तथा “ ॐ विष्णवे नमः स्वाहा " इस मन्त्र से घी , तिल और जौ की एक सौ आठ आहुतियां देकर हवन करना चाहिए । पांचों दिन ऐसा ही किया जाता है । काम - क्रोधादि का त्याग करके ब्रह्मचर्य , क्षमा , दया और उदारता धारण करनी चाहिए । 

पूजन में सामान्य पूजा के अतिरिक्त पहले दिन भगवान् के हृदय का कमल के पुष्पों से , दूसरे दिन कटि - प्रदेश का विल्बपत्रों से , तीसरे दिन घुटनों का केतकी के पुष्पों से , चौथे दिन चरणों का चमेली के पुष्पों से और पांचवें दिन सम्पूर्ण विग्रह का तुलसी की मंजरियों से पूजन करना चाहिए । हमारे देश में अधिकतर स्त्रियां एकादशी और द्वादशी को निराहार , त्रयोदशी को शाकाहार और चतुर्दशी तथा पूर्णमासी को फिर निराहार रहकर प्रतिपदा को प्रातःकाल में द्विज - दम्पती को भोजन कराकर इस व्रत को पूर्ण करती हैं ।

ॐ जय गौरी नंदा

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