रविवार, 22 नवंबर 2020

कार्तिक पुर्णिमा देव दीपावली

 कार्तिकी पूर्णिमा --

कार्तिक मास की पूर्णिमा ' त्रिपुरी पूर्णिमा ' भी कहलाती है । इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो ‘ महाकार्तिकी ' होती है , भरणी नक्षत्र होने से विशेष फल देती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है । इसी दिन सायंकाल में भगवान का मत्स्यावतार हुआ था ।इस दिन दिये हुए दानादि का दस यज्ञों के समान फल होता है ।

कार्तिक पूर्णिमा का दिन देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है । जिसका फल- ब्रह्मा , विष्णु , शिव , अंगिरा और आदित्य ने इसे महापुनीत - पर्व कहा है । इस दिन किये हुए गंगा - स्नान , दीप - दान , होम , यज्ञ , उपासना आदि का विशेष महत्त्व है और इन सभी सत्कर्मों का अनंत फल होता है । इस दिन कृत्तिका पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह ‘ महापूर्णिमा ' कहलाती है । कृत्तिका पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हों तो ‘ पद्भक ' योग होता है जो पुष्कर में भी दुर्लभ है । इस दिन संध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीप - दान करने से पुनर्जन्मादि नहीं होता । इस तिथि में कृत्तिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान् होता है । 


इस दिन चन्द्रोदय के समय शिवा , संभूति , संतति , प्रीति , अनुसूया और क्षमा - इन छह कृतिकाओं का पूजन करना चाहिए । कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके वृषदान करने से शिव - पद प्राप्त होता है । गाय , हाथी , घोड़ा , रथ , घी आदि का दान करने से सम्पत्ति बढ़ती है । इस दिन उपवास करके भगवान् का स्मरण - चिन्तन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है और सूर्य लोक की प्राप्ति होती है । मेष अर्थात भेड़ दान करने से ग्रहयोग के कष्ट नष्ट हो जाते हैं । कार्तिकी को अपनी अथवा परायी अलंकृता कन्या का दान करने से ' संतान - व्रत ' पूर्ण होता है । कार्तिकी पूर्णिमा में प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं , ऐसा शास्त्रों का कथन है ।

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