वट सावित्री व्रत या बड़ - मावस ( ज्येष्ठ अमावस्या )
यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है । इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है ।मान्यता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे बैठ कर सत्यवान को दोबारा जीवित किया था। स्त्रियां बड़े सवेरे स्नान करती हैं और केशों को धोती हैं । जल , मोली , रोली , चावल , गुड़ , भीगे चने , फूल , धूप - दीप से वट वृक्ष की पूजा की जाती है और उसके चारों ओर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है । भीगे हुए चनों का भोग लगाया जाता है । कहीं - कहीं पर यह त्यौहार ज्येष्ठ कृष्णपक्ष त्रयोदशी से अमावस्या तक किया जाता है । यह व्रत स्त्रियों द्वारा अखण्ड सौभाग्यवती की कामना से किया जाता है । सुहागिन नारियां पूर्ण श्रृंगार करके और सुन्दर वस्त्राभूषण धारणकर सामूहिक रूप में पूजा करती हैं । वट वृक्ष के तने पर जल चढ़ाकर रोली चन्दन लगाया जाता हैं ,और पूजन के लिए लाई गई सभी सामग्री चढ़ा दी जाती है । घी का दीपक जलाकर कच्चे सूत के धागे को हल्दी से रंगकर वृक्ष के तने पर लपेटते हुए वृक्ष की सात परिक्रमाएं की जाती हैं । यदि आपके आस - पास बड़ का कोई पेड़ न हो तब भी निराश न हों , कहीं से एक टहनी मंगा लें अथवा दीवार पर वट वृक्ष को अंकित करके पूजा कर लें । पूजा - आराधना में मुख्य महत्व भावना , श्रद्धा , विश्वास और आस्था का है अतः आप दीवार पर बड़ के पेड़ का अंकन करें अथवा वास्तविक वट वृक्ष का पूजन , इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता । इस अवसर पर सत्यवान - सावित्री की यह कहानी कही और सुनी जाती है । -
कथा-
बहुत समय पूर्व मद्रदेश में अश्वपति नामक एक परम ज्ञानी राजा थे । उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए पण्डितों की सम्मति से भगवती सावित्री की आराधना की । इस पूजा से उनके यहां एक पुत्री का जन्म हुआ । उन्होंने इसका नाम सावित्री रखा । सावित्री सर्वगुण सम्पन्न थी । जब वह विवाह योग्य हुई तब राजा ने उसे स्वयं अपना वर चुनने को कहा । एक दिन महर्षि नारद राजा अश्वपति के घर आये हुए थे । तभी सावित्री भी अपने लिए वर चुनकर लौटी । उसने आदरपूर्वक नारदजी को प्रणाम किया । नारदजी के पूछने पर सावित्री ने बताया कि महाराज , राज्यच्युत राजा धुमत्सेन के आज्ञाकारी पुत्र सत्यवान को मैंने अपना पति बनाने का निश्चय किया है । तीनों लोकों में भ्रमण करने वाले नारदजी ने उसके भूत , वर्तमान और भविष्य को देखकर राजा से कहा - राजन् तुम्हारी कन्या ने वर खोजने में निस्सन्देह भारी परिश्रम किया है । सत्यवान गुणवान और धर्मात्मा है । वह सावित्री के लिए सब प्रकार से योग्य है परन्तु उसमें एक भारी दोष है । वह अल्पायु है और एक वर्ष के पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त होगा । नारदजी के वचन सुनकर राजा ने पुत्री को कोई अन्य वर खोजने की सलाह दी । परंतु सावित्री ने दृढ़तापूर्वक कहा कि जिसे मैंने एक बार मन से पति स्वीकार कर लिया है , वह अब चाहे जैस भी है , वही मेरा पति होगा । सावित्री के ऐसे दृढ़ वचन सुनकर राजा अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया । सावित्री अपने पति और अंध सास - ससुर की सेवा करती हुई सुखपूर्वक वन में रहने लगी । नारदजी के कथनानुसार जब उसके पति के जीवन के तीन दिन बचे , तभी से वह उपवास करने लगी । तीसरे दिन उसने पितरों का पूजन किया । तत्पश्चात् वह सत्यवान के साथ वन में जाने की
उद्यत हुई । इसके लिए उसने सास - ससुर से आज्ञा प्राप्त कर ली । सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक वृक्ष पर चढ़ा , परन्तु शीघ्र ही सिर में पीड़ा होने के कारण नीचे उतर आया और सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया । तभी सावित्री ने यमराज और उसके दूतों को सत्यवान का जीव निकालकर ले जाते हुए देखा । यह देख वह भी उनके पीछे - पीछे चल पड़ी । यमराज ने उसे.समझाकर वापस लौट जाने के लिए कहा । सावित्री ने कहा - धर्मराज , पति के पीछे जाना ही स्त्री का धर्म है । पतिव्रत के प्रभाव और आपकी कृपा से कोई मेरी गति नहीं रोक सकता । सावित्री के धर्मयुक्त वचनों से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे वर मांगने को कहा । सावित्री ने अपने सास - ससुर को दिखाई देने का वरदान मांगा । वर प्राप्त करके भी सावित्री ने अपने पति का साथ नहीं छोड़ा । यमराज ने दूसरी बार वर मांगने को कहा । सावित्री ने अपने ससुर के खोए हुए राज्य की प्राप्ति और अपने पिता के लिए सौ पुत्रों का वरदान मांगा । वर देने के बाद यमराज ने पुनः सावित्री को वापस लौट जाने का आग्रह किया , किन्तु सावित्री अपने प्रण पर अडिग रही । तब यमराज ने उससे अंतिम वर मांगने के लिए कहा । सावित्री ने सत्यवान से सौ पुत्र प्राप्त होने का वरदान मांगा । सावित्री की पतिभक्ति और युक्तिपूर्ण वचनों के बंधन में बंधे यमराज ने सत्यवान के जीव को पाश से मुक्त कर दिया । सावित्री को वर देकर यमराज अंतर्ध्यान हो गये और वह लौटकर वट वृक्ष के नीचे आई । सत्यवान के मृत शरीर में पुनः जीवन का संचार हो गया था । इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म का पालन करके अपने ससुर कुल एवं पितृकुल दोनों का कल्याण कर दिया ।
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