गुरुवार, 27 मई 2021

शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात

।। शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात।।


शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से मिलता है क्या फल ,

किसी भी देवी-देवता का पूजन करते समय उनको अनेक चीज़ें अर्पित की जाती है। प्रायः भगवान को अर्पित की जाने वाली हर चीज़ का फल अलग होता है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है की भगवान शिव को अर्पित करने वाली अलग-अलग चीज़ों का क्या फल होता है। शिवपुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को चढ़ाने से क्या फल मिलता है:

१. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।

२. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।

३. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।

४. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए।


शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है -

१. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

२. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।

३. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

४. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।

५. शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

६. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

७. मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा (टीबी) रोग में आराम मिलता है।

शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है -

१. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

२. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

३. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

४. शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

५. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

६. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

७. कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

८. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

९. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।

१०. लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।

११. दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।




बिल्व वृक्ष लगाने का फल

बिल्व वृक्ष-




जीवन काल मे प्रत्येक मनुष्य को वृक्षारोपण करना चाहिये । मनुष्य जब एक वृक्ष का रोपण करता है तो उसे दस पुत्रों के सदृश फल प्राप्त होता हैं।प्रयास यह हो कि हम ऐसे वृक्षों का रोपण करें की मानव जाती को उसका लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी हो, साथ साथ प्रकृति की सुंदरता बनी रहे। वृक्ष होंगे तो मानव जाति भी सुरक्षित रहेगी ।

१. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते ।

२. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है ।

३. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है ।

४. चार, पांच, छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्र पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है।

५. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है एवं बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।

६. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।

७. बेल वृक्ष को सींचने से पित्र तृप्त होते है।

८. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

९. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।

१०. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी जीव सभी पापों से मुक्त हो जाते है l

११. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।

कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये और बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं ।

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बुधवार, 26 मई 2021

पार्थिव शिवलिंग के पूजन का महात्म्य

पार्थिव शिवलिंग पूजन का महत्व
एक बार ऋषि गणों के पूछने पर सूत जी महाराज ने पार्थिव शिवलिंग पूजन का महात्म्य बताते हुवे कहा ।

ब्रह्मा , विष्णु , प्रजापति तथा अनेक ऋषियों ने पार्थिव लिंग की पूजा करके अभीष्ट को प्राप्त किया है । देव , असुर ,मनुष्य , गन्धर्व ,नाग , राक्षसगण और अन्य प्राणियों ने भी पार्थिव लिंग पूजा करके परम सिद्धि को प्राप्त किया है ।

सतयुग में मणि लिंग ,त्रेतायुग में स्वर्ण लिंग, द्वापरयुग में पारद लिँग और कलयुग में पार्थिव लिङ्ग पूजन को श्रेष्ठ माना गया है ।

भगवान शिव की सभी पूजा में पार्थिव मूर्ति श्रेष्ठ है ।नव निर्मित पार्थिव मूर्ति की पूजा करने से तपस्या से भी अधिक फल मिलता है ।

जैसे सभी देवताओं में शंकर श्रेष्ठ है उसी प्रकार सभी लिंग मुर्तियों मे पार्थिव लिंग श्रेष्ठ है ।

जैसे सभी नदियों में गंगा जेष्ठ व श्रेष्ठ कही गयी है ,वैसे ही सभी लिंग मुर्तियों मे पार्थिव लिंग श्रेष्ठ कहा जाता है ।

जैसे सभी मंत्रो में प्रणव (ॐ) महान कहा गया है , उसी प्रकार शिव का पार्थिव शिवलिंग श्रेष्ठ आराध्य तथा पूजनीय है ।

जैसे मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है ,उसी प्रकार देवों में शिव पार्थिव लिंग पूजन श्रेष्ठ है।

जो मनुष्य पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करके विल्बपत्रों से ग्यारह वर्ष  तक पूजन करता है ,वह मनुष्य रुद्रलोक में प्रतिष्ठित होता है।उसके दर्शन ,स्पर्श से मनुष्यों के पाप नष्ट हो जाते है ।

जो मनुष्य जीवन पर्यंत पार्थिव लिंग का पूजन करता है , वह असंख्य वर्षो तक शिवलोक में वास करता है । जो मनुष्य निष्काम भाव से विधिवत पार्थिव शिवलिंग पूजन करता है ,वह सदा के लिये शिवलोक में वास करता है और शिव सायुज्य को प्राप्त कर लेता है।

निष्कामः पूजयेन्नित्यं पार्थिवं लिंग मुत्तमम् ।

शिवलोके सदा तिष्ठेत्तस्य सायुज्यमाप्नुयात् ।।

शिव पार्थिव लिंग पूजन से मनुष्यों की सभी प्रकार मनोकामना पूर्ण होती है ।

आचार्य हरीश लखेड़ा
9004013983


पापमोचनी एकादशी

पापमोचनी एकादशी ( चैत्र कृष्णा एकादशी ) 

यह एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है । इस दिन विष्णु की पूजा की जाती है । इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुख समृद्धि प्राप्त होती है । 

कथा - 

प्राचीन काल में चित्ररथ नामक वन में देवराज इन्द्र गन्धर्वो और अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे । वहीं महर्षि के मेधावी ऋषि भी तपस्या कर रहे थे । मेधावी ऋषि के सुन्दर रूप को देखकर मंजुघोषा नामक अप्सरा उन पर आसक्त हो गई । उसने अपने हाव - भावों से ऋषि को मोहित कर लिया । अनेकों वर्ष उन दोनों ने साथ - साथ गुजारे । 

एक दिन जब मंजुघोषा वापस जाने लगी , तब ऋषि को अपनी तपस्या भंग होने का भान हुआ । उन्होंने क्रोधित होकर अप्सरा को पिशाचनी होने का शाप दिया । बहुत अनुनय - विनय करने पर ऋषि का हृदय पसीज गया और उन्होंने उसे चैत्र कृष्णा एकादशी को विधिपूर्वक व्रत करने के लिए कहा और बताया कि इसके करने से उसके पाप और शाप समाप्त हो जायेंगे और वह पुनः अपने पूर्व रूप को प्राप्त करेगी । मंजुघोषा से इतना कहकर ऋषि मेधावी अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुंचे । च्यवन ऋषि ने सारी बात सुनकर कहा - पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया । तुमने अप्सरा को शाप देकर स्वयं पाप कमाया है अतः तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो । इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजुघोषा ने शाप से और ऋषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई । 

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अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया अर्थात अखातीज

अक्षय तृतीया का यह दिन विशेषकर पवित्र व शुभ माना गया है। जो युगादि तिथि के नाम से भी जानी जाती है।इस दिन होम जप तप दान स्नान आदि से प्राप्त होने वाला पुण्य अक्षय होता है ।इसी कारण इस तिथि का नाम अक्षय तृतीया पड़ा ।इस दिन गंगा स्नान का भारी महत्व है ।जो मनुष्य आज के दिन गंगा आदि तीर्थो में स्नान करता है , वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

अक्षय तृतीया के दिन प्रातःकाल में घड़ी , पंखा , चावल, दाल, साग, फल , वस्त्र ,दक्षिणा ब्राह्मणों को दान देनी चाहिए ।

यह दिन वर्ष के सभी दिनों में विशेष महत्व रखता है ।

इसी दिन भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था ,इसी दिन श्रीबद्री नारायण के पट खुलते है , जिन लोगों के घरों में ठाकुर जी नही है वे लोग आज के दिन नारायण श्रीबद्री विशाल को स्थापित कर मिश्री व चने का भोग लगावे ,तुलसी दल चढ़ाकर विधिवत भक्तिभाव से पूजन आरती करें ।

इस  दिन कि कुछ महत्वपुर्ण जानकारियाँ:


🕉 ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण।

🕉 माँ अन्नपूर्णा का जन्म।

🕉 चिरंजीवी महर्षी परशुराम का जन्म हुआ था इसीलिए आज परशुराम जन्मोत्सव भी हैं।

🕉 कुबेर को खजाना मिला था।

🕉 माँ गंगा का धरती अवतरण हुआ था।

🕉 सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया।

🕉 महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।

🕉 वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ आरम्भ किया था।

🕉 प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।

🕉 प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम का कपाट आज ही खोले जाते है।

🕉 बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन होते है।

🕉 जगन्नाथ भगवान के सभी रथों को बनाना प्रारम्भ किया जाता है।

🕉 आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।

🕉 अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है ।

कथा -- 

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्णचन्द्र से पूछा - हे भगवान ! कृपा करके अक्षय तृतीया का माहात्म्य वर्णन करें । इसे सुनने की मेरी बड़ी भारी इच्छा है । 

भगवान श्रीकृष्ण बोले - हे राजन् ! सुनो । यह परम पुण्यमयी तिथि है । इस दिन दोपहर से पहले स्नान , जप , तप , होम , स्वाध्याय , पितृतर्पण और दानादि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्य फल का भागी होता है । इसी दिन से सत्ययुग का भी आरम्भ होता है । इसलिए यह ' युगादि तृतीया ' के नाम से भी प्रसिद्ध है । 

हे युधिष्ठिर प्राचीनकाल में एक बहुत निर्धन , सदाचारी और देव - ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला वैश्य था । उसका कुटुम्ब - कबीला बहुत बड़ा था , जिसके कारण वह सदैव व्याकुल रहता था । उसने किसी से वैशाख शुक्ला तृतीया के माहात्म्य में सुना कि इस दिन किये हुए दान , जप , हवन आदि से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है । उसने अक्षय तृतीया के दिन प्रातःकाल गंगाजी के पावन जल में स्नान करके विधिपूर्वक देवताओं और पितरों का पूजन किया । फिर उसने गोले के लड्डू , पंखा , जल से भरे घड़े , जौ , गेहूं , नमक , सत्तू , दही , चावल , गुड़ , स्वर्ण , वस्त्र आदि दिव्य वस्तुओं का भक्तिपूर्वक दान किया । स्त्री के बार - बार मना करने तथा कौटुम्बीजनों से चिन्तित और बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म - कर्म से विमुख नहीं हुआ । इसी कारण समय पाकर उस वैश्य का जन्म कुशावती नगरी में एक क्षत्रिय के घर में हुआ । वह अक्षय तृतीया के प्रभाव से बहुत धनवान और प्रतापी हुआ । वैभव सम्पन्न होकर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई । यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य - प्रभाव है ।

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सोमवार, 24 मई 2021

खग्रासचंद्रग्रहण २६ मई २०२१

 खग्रासचन्द्रग्रहण - 

वैशाखशुक्ल पूर्णिमा बुधवार ( दिनांक २६ मई २०२१ )  खग्रासचन्द्रग्रहण भारत में केवल पूर्वी भाग बंगाल आसाम के कुछ क्षेत्रो में मोक्ष काल के समय दृश्य होगा । शेष भारत मे ग्रहण दृश्य नही होगा । भारत के अलावा यह ग्रहण दक्षिणपूर्व एशिया , आस्ट्रेलिया ,जापान ,रूस , कनाडा , उत्तरी अमेरिका आदि क्षेत्रों में दृश्य होगा ।

भारतीयसमयानुसार खण्डचन्द्रग्रहण का प्रारंभ घं .०३ मि .१४ पर होगा तथा

ग्रहण का मध्य पं .०४ मि .४ ९ सायं

इसका मोक्ष घं .०६ मि . २३ सायं पर होगा । 

यह खग्रासचन्द्रग्रहण की कुल अवधि  घं०३ मि.९ को है ।

ग्रहण का सूतक प्रातः ०९:१४ से प्रारंभ होगा ।

भारत के पूर्वी भाग के अलावा यह ग्रहण अन्य भागों में दृश्य नही होगा ।जो भारत के उन क्षेत्रों में तत सम्बन्धी नियम लागू नही होते ।

नोट-

बालक, वृद्ध और रोगी को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति को ग्रहणकाल एवं  ग्रहण के सूतककाल मे भोजन करना निषेध है ।

ग्रहण का महात्म्य --

ग्रहण के समय गंगा स्नान का विशेष महत्व है ।मत्स्य पुराण में कहा कि ग्रहण काल मे तीर्थ स्नान व जप दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है ।

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शनिवार, 22 मई 2021

शिववास तिथि ज्ञान

रुद्रहृदयोपनिषद के अनुसार सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र मौजूद हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। ... धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।

ज्योतिषाचार्यो की मानें तो रुद्राभिषेक तभी करना चाहिए जब शिव जी का निवास मंगलकारी हो ।

हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी को शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।हर महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और अमावस्या को भी शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।

शिववास तिथि एवं फल

शिववास मुहूर्त के अनुसार यह तिथियाँ लिखी  गयी  हैं .. मासिक शिवरात्रि शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को भी होता है जिसे प्रदोष व्रत कहते हैं और उसमे रुद्राभिषेक का विधान है ऐसा हमारे पंचांग कहते हैं  .. वैसे त्रयोदशी तिथि भगवान् शिव को ही समर्पित है परन्तु कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मैं रुद्राभिषेक की सलाह नहीं देता .. महाशिवरात्रि शिव जी के विशेष दिन के कारण क्षम्य है साथ ही श्रावण मास में तिथि या मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती अतः पूरे श्रावण पर्यंत रुद्राभिषेक कर सकते हैं

शिव वास ज्ञान : 

वर्तमान तिथि को २ से गुणा करके पांच जोड़ें फिर ७ का भाग दें . शेष १ रहे तो शिव वास कैलाश में, २ से गौरी पाशर्व में, ३ से वृषारूड़ श्रेष्ठ, ४ से सभा में सामान्य एवं ५ से ज्ञानबेला में श्रेष्ठ होता है. यदि शेष ६ रहे तो क्रीड़ा में तथा शून्य से शमशान में अशुभ होता है. तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए. शिवार्चन के लिए शुभ तिथियाँ शुक्ल पक्ष में २,५,६,७,९,१२,१३,१४ और कृष्ण पक्ष में १,४,५,६,८,११,१२,१३,३० 

शिव वास देखने का सूत्र

शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल संख्या 30 होती है । इस तरह से कोई भी मुहूर्त देखने के लिए 1 से 30 तक की संख्या को ही लेना चाहिए ।

तिथी च द्विगुणी कृत्वा तामे पञ्च समाजयेत ।।सप्तभि (मुनिभिः) हरेद्भागं शेषे शिव वाससं ।।एक शेषे तू कैलाशे, द्वितीये गौरी संनिधौ ।।

तृतीये वृष भारुढौ सभायां च चतुर्थके ।।

पंचमे तू क्रीडायां भोजने च षष्टकं ।।

सप्तमे श्मशाने च शिववास: प्रकीर्तितः ।।

अर्थ:- तिथि को दुगुना करें,उसमे पांच को जोड़ देना चाहिए,कुल योग में, 7 का भाग देने पर, 1.2.3. शेष बचे तो इच्छा पूर्ति होता है,शिववास अच्छा बनता है । बाकि बचे तो हानिकारक होता है, शुभ नहीं है ।।

इसे इस प्रकार समझना चाहिए ...

१.कैलाश अर्थात = सुख

२. गौरिसंग = सुख एवं संपत्ति

३.वृषभारूढ = अभिष्ट्सिद्धि

४.सभा = सन्ताप

५.भोजन = पीड़ा

६.क्रीड़ा = कष्ट

७.श्मशाने = मरण 

इस समय नहीं किया जाता तिथियों का विचार

कुछ व्रत और त्यौहार रुद्राभिषेक के लिए हमेशा शुभ ही होते हैं। उन दिनों में तिथियों का ध्यान रखने की जरूरत नहीं होती है ।

1. शिवरात्री, प्रदोष और सावन के सोमवार को शिव के निवास पर विचार नहीं किया जाता। 

2. सिद्ध पीठ या ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में भी शिव के निवास पर विचार नहीं किया जाता।

रुद्राभिषेक के लिए ये स्थान और समय दोनों हमेशा ही मंगलकारी माने जाते हैं।

फुलदेई व फुल सग्यान

फूलदेई अर्थात फुल सग्यान 

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फुलदेई त्यौहार भारत के उत्तराखंड राज्य का लोकपर्व फूल देई संक्रान्ति चैत्र मास के १गते(पैट) को मनाया जाता है ।जो चैत्र मास के आगमन पर मनाया जाता है।

देवभूमि उत्तराखंड में बच्चे चैत्र मास के पहले दिन  बुराँस, फ्योंली, सरसों, कठफ्योंली, गुलाब, सेब, आड़ू, खुमानी,हिसार आदि फूलों को तोड़कर घर लाते हैं।

फिर दूसरे दिन वो एक थाल या रिंगाल की टोकरी में चावल के साथ रखकर गाँव के सभी बच्चे घर-घर जाकर फूलदेई का ये माँगल आशीष गीत गाते है ।

लोग बच्चों को आशीर्वाद देकर चावल, मिठाई और पैसे दक्षिणा के रूप में प्रस्तुत करते हैं।।


फुलदेई मंगल आशीष --

फूल देई, छम्मा देई,

देणी द्वार, भर भकार,

ये देली स बारम्बार नमस्कार,

फूले द्वार

हमर टुपर भरी जेँ

तुमर भकार भरी जौ

फूल देई-छ्म्मा देई


माँगल गीत के बोल का अर्थ :-


फूल देई – देहली फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो ।

छम्मा देई – देहली, क्षमाशील अर्थात सबकी रक्षा करे ।

दैणी द्वार – देहली, घर व समय सबके लिए दांया अर्थात सफल हो।

भरि भकार – सबके घरों में अन्न धन्न का पूर्ण भंडार भरा हो।

देखा जाए तो "फूल संक्रान्ति" बच्चों को प्रकृति प्रेम और सामाजिक चिंतन की शिक्षा उनके बचपन से ही देने का एक आध्यात्मिक पर्व है।।

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बुधवार, 28 अप्रैल 2021

श्री बटुकभैरव मंत्र जप विधि

                ॥ ॐ गं महागणपतये नमः ॥

॥ श्रीबटुकभैरवमंत्र जप विधि ॥


विनियोगः --

ॐ अस्य श्री आपदुद्धारण - बटुकभैरव मंत्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः त्रिष्टुप्  छन्दः श्री बटुकभैरवो देवता ह्रीं बीजं स्वाहा शक्ति:कीलकं मम धर्मार्थ काम  मोक्षार्थं जपे विनियोगः।

अथ ऋष्यादिन्यासः --

बृहदारण्यक ऋषये नमः।        शिरसि

त्रिष्टुप् छन्दसे नमः ।                मुखे

श्रीबटुकभैरव देवतायै नमः ।     हृदये

ह्रीं शक्तये नमः।                      पादयोः

भैरव कीलकाय नमः।             सर्वांगे      

  

अथ करन्यासः -

ॐ ह्रां वां अगुष्ठाभ्यां नमः । 

ॐ ह्रीं वीं तर्जनीभ्यां ।

ॐ ह्रूं वूं  मध्यमाभ्यां नमः ।  

ॐ ह्रैं वैं अनामिकाभ्यां नमः ।  

ॐ ह्रौं वौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रः वः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । 


 अथ षडङ्गन्यासः --

ॐ ह्रां वां हृदयाय नमः ।

ॐ ह्रीं वी शिरसे स्वाहा ।

ॐह्रूं वूं शिखायै वष

ॐ ह्रैं वैं कवचाय हूँ । 

ॐ ह्रौं वौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ हः वः अस्त्राय फट् । 


अथ ध्यानम्

करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणि-

स्तरुणतिमिरनील - व्यालयज्ञोपवीती । 

क्रतुसमयसपर्य्याविघ्न - विच्छेदहेतुर्

जयति बुटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥ 


इस प्रकार न्यास एवं ध्यान करके पहले बताये अनुसार मानसोपचार पूजा करें तथा माला लेकर उसकी गन्धाक्षत से पूजा करके प्रार्थना करें।

ॐ  लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि । 

ॐ  हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि । 

ॐ  यं वाय्यात्मकं धूपमाघ्रापयामि । 

ॐ  रं वह्नयात्मकं दीपं दर्शयामि । 

ॐ  वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि । 

ॐ  सं सर्वात्मकं राजोपचारन् परिकल्पयामि । 

मालाप्रार्थना :--

महामाले महामाये ! सर्वशक्तिस्वरूपिणि । 

चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥ 

अविघ्नं कुरुमाले ! त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।

जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये ॥ 

जप मन्त्र : --

'ॐ ह्रीं  वुटुकाय आपदुद्वारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं ॐ, 

108 बार या यथाशक्ति जप करें ।


इसके पश्चात जप को श्री भैरवार्पण करें 

अनेन श्रीवटुकभैरवमन्त्रजपाख्येन कर्मणा श्रीवटुकभैरवः प्रीयताम् ।। 

                    ॥ इति जपविधिः ॥ 

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आचार्य हरीश चन्द्र लखेड़ा 
         वसई

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

॥ महामृत्युंजय जप विधि ॥

 ॥ महामृत्युंजय जप विधि ॥


 

मनुष्य जीवन मे होने वाली अपमृत्यु दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है ।जीवन मे कभी ऐसी दुर्घटना होती है कि बहुत उपचार करने पर लाभ नही होता उस परिस्थिति में सबसे प्रभावशाली उपचार है महामृत्युंजय जप जिसके द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकते है । ग्रहो के द्वारा जीवन में होनी वाली दुर्घटना भी  महामृत्युंजय जप के द्वारा उन्हें रोका जा सकता है ।जो मनुष्य नित्य महामृत्युंजय जप करता है उसका जीवन निर्विकार निर्विरोध के जीवन यापन करता है । महामृत्युंजय भगवान बड़े दयालु , सदा भक्तों की रक्षा के लिए तत्पर रहते है ।

संकल्प : - 

हाथ में जल लेकर संकल्प करे।

ॐ विष्णु : ३। अद्येहेत्यादि पूर्वोच्चारित एवं ग्रह गुणविशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ गोत्रः---  आत्मनः मम श्रुति स्मृति पुराणोक्त शुभपुण्यफल प्रापत्यर्थं । यजमानस्य ( वा ) मम शरीरे उत्पन्न पीड़ा सम्नार्थं तथा उत्तरोत्तर आरोग्यता प्राप्त्यर्थ श्री महामृत्युञ्जय देवता प्रीत्यर्थ श्री महामृत्युञ्जय मंत्र जपम् अहं करिष्ये ।

 विनियोगः- 

ॐ अस्य श्री महामृत्युञ्जय मंत्रस्य वशिष्ठः ऋषिः श्रीमहामृत्युञ्जय देवता  अनुष्टुप छन्दः ह्रौं  बीजम् जूं शक्तिः सः कीलकम् श्री मृत्युञ्जय प्रीत्यर्थे जपे न्यासे विनियोगः ।

 न्यास : - 

ऋष्यादिन्यास करें ।

             वशिष्ठ ऋषये नमः शिरसि ।

             अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे । 

             श्री महामृत्युञ्जय रुद्र देवतायै नमः हृदये ।

             ह्रौं बीजाय नमः गुह्ये । 

             जूं शक्तये नमः पादयोः ।

             सः कीलकाय नमः सर्वांगेषु ।

करन्यासः --

 ॐ त्र्यम्बक अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

 ॐ यजामहे तर्जनीभ्यां नमः । 

ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं मध्यमाभ्यां 

ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् अनामिकाभ्यां नमः । 

ॐ मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । 

ॐ मामृतात् करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः । 

 हृदयादि न्यासः  -- 

 ॐ त्र्यम्बक हृदयाय नमः ।

 ॐ यजामहे सिरसे स्वाहा ।

ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं शिखायै वषट् ।

ॐ उर्वारुकमिव बन्धनान् कवचाय हुम् ।

ॐ मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौखट् ।

ॐ मामृतात् अस्त्राय फट ।


ध्यानम् : - 

भगवान महामृत्युंजय जी का ध्यान करें।

चन्द्रोद्भासित मूर्धजं  सुरपति पीयूष पात्रं महद् ।

हस्ताब्जेनदधत् सुदिव्य ममलंहास्यास्य पंकेरुहम् ।

सूर्येन्द्रग्नि विलोचनं करतलैः पाशाक्षसूत्रांकुशान् ।

भोज विभ्रतमक्षयं पशुपति मृत्युञ्जयं संस्मरेत् ।।

 मंत्र :- १०८ कि माला लेकर मंत्र का जप करें ।

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुव : स्व : ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्  ॐ स्वः भुवः भूः ॐ स : जूं हौं ॐ।

जप पूर्ण करने के पश्चात न्यास कर जप भगवान महामृत्युंजय महादेव जी को अर्पित करें ।

 उत्तरन्यासं कृत्वाः-

गुह्यातिगुह्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।

सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर ॥

मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि माम शरणागतम् ।

जन्म मृत्यु जरारोगैः पीड़ितं कर्म बन्धनैः ।।

 अर्पण : - अनेन महामृत्युञ्जय जपाख्येन कर्मणा श्रीमहामृत्युञ्जय रुद्रो  देवताः प्रियतां न मम।।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
          वसई
9004013983

श्री बगलाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

।। श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्।। 

विनोयोगः --

ॐ अस्य श्री बगलामुखी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्रस्य भगवान नारद ऋषि अनुष्टुप छन्दः श्री बगलामुखी देवता श्री बगलामुखी देवी प्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः ।

अथ ध्यानं-

सौवर्णा सनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशु कोल्लासिनी ।

हेमाभांसुरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पक सर्ग्युतां ।।

हस्तेमुद्गर  पाश बद्ध  रसना स विभ्रति  भूषणै ।

र्व्याप्ताङ्गी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनी चिंतयें ।

स्तोत्रं :-

ब्रह्मास्त्र रुपिणी देवी माता श्री बगलामुखी । 

चिच्छक्तिर्ज्ञान रूपा च ब्रह्मानंद प्रदायनी ।।

महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुर सुन्दरी ।

भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।।

ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।

वाराही छिन्न मस्ता च तारा काली सरस्वती ।।

जगत्पूज्या महामाया कामेशी भग मालिनी ।

दक्ष पुत्री शिवांकस्था शिवरूपा शिवप्रिया ।।

सर्व सम्पत करीदेवी सर्वलोक वशंकरी ।

वेद विद्या महापूज्या भक्ता द्वेषी भयंकरी ।।

स्तम्भरूपा स्तम्भिनी च दुष्ट स्तंभन कारिणी ।

मेना पुत्री शिवा नंदा मातंगी भुवनेश्वरी ।

नारसिंही नरेंद्राच  नृपाराध्या नरोत्तमा ।।

नागिनी नागपुत्री च नगराज सुता उमा ।

पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्र प्रिया शुभा ।।

पीतगन्ध प्रिया रामा पीत रत्नार्चिता शिवा ।

अर्धचंद्र धरी देवी गदा मुद्गार धारिणी ।।

सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।

विष्णु रूपा जगन्मोहा ब्रह्मरूपा हरि प्रिया ।।

रूद्र रूपा रूद्र शक्ति श्चिन्मयी भक्त वत्सला ।

लोकमाता शिवा संध्या शिव पूजन तत्परा ।।

धनाध्यक्षा धनेशी  च  धर्मदा धनदा धना ।

चण्डदर्पहरी देवी  शुम्भासुर  निवर्हिणी ।।

राजराजेश्वरी देवी   महिषासुर  मर्दिनी ।

मधुकैटभ हंत्री च रक्त बीज विनाशिनी ।।

धूम्राक्ष दैत्यहंत्री  च भण्डासुर विनाशीनी ।

रेणु पुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।।

ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रु नाशिनीी। 

इंद्राणी  इंद्र पूज्या च  गुह माता गुणेश्वरी ।।

वज्रपाश धरादेवी  जिह्वा मुद्गर  धारिणी ।

भक्तानन्दकरी  देवी  बगला  परमेश्वरी ।।

अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगला यास्तु यः पठेत ।

रिपुबाधा विनिर्मुक्त: लक्ष्मीस्थैर्य मवाप्नुयात ।।

भूत प्रेत  पिशाचाश्च  ग्रह पीड़ा  निवारणम ।

राजानों वश्य मांयान्ति सर्वेश्वर्यम च विन्दति ।।

नाना विद्याम च लभते राज्यम प्राप्नोति निश्चितम ।

भुक्ति मुक्ति मवाप्नोति साक्षात शिव समय भवेत ।।

।।इति रुद्रयामले बागलाष्टोत्तरशत नाम स्तोत्रम।।


ॐ जय गौरी नंदा

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