मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

शनि की दस पत्नियों के नाम जपने से शनि का प्रभाव नही होता है।

शनि की दस पत्नियों के नाम

ॐ ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलह प्रिया ।

कलाह कंटिकि चापि अजा महिषी तुरंगमा ।।

1-ध्वजिनी

2-धामिनी

3-कंकाली

4-कलह

5-प्रिया

6-कलाह

7-कंटिकि

8-अजा

9-महिषी

10-तुरंगमा

शनि की दशा जिसे पीड़ित करती है वह लोग शनि की 10 पत्नियों का नाम जप करने से शनि उन्हें कभी भी परेशान नहीं करता और हमेशा अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं । 

।।जय शनि देव ।।

खण्डग्रास चंद्रग्रहण 28अक्टूबर2023

 चंद्रग्रहण--
चंद्र ग्रहण आश्विन शुक्ल पूर्णिमा शनिवार 28 अक्टूबर 2023 को लगने वाला खंड ग्रास चंद्र ग्रहण भारत में दृश्य होगा ।भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण पश्चिमी तथा दक्षिण प्रशांत महासागर ऑस्ट्रेलिया ,एशिया, यूरोप ,अफ्रीका ,अमेरिका आदि अटलांटिक महासागर ,हिंद महासागर में दृश्य होगा।

चंद्रस्त के समय ग्रहण का प्रारंभ ऑस्ट्रेलिया उत्तरी प्रशांत महासागर रूस के पूर्वी भाग में होगा।

चंद्रोदय के समय ग्रहण का अंत उत्तर तथा दक्षिण अटलांटिक महासागर ब्राजील के पूर्वी भाग तथा कनाडा में दिखाई देगा ।

भारतीय मानक समय अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि में 1:05 मिनट पर तथा मध्य रात्रि के 1:44 मिनट तथा मोक्ष रात्रि में 2:24 मिनट पर होगा ।

ग्रहण का स्पर्श मध्य मोक्ष पूरे भारत में दिखाई देगा ।

चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले लग जाएगा ।

सावधानी --

ग्रहण काल में विशेष सावधानियां बरतने की जरूरत होती है । जो हमारे जीवन को खुशहाल ,समृद्ध बनती है । और जीवन के जो कष्ट हैं ,दुख हैं वह ग्रहण काल में सावधानी रखने से दूर हो जाती है। 

विशेष --

1- ग्रहण काल में भोजन का त्याग करें।

2- ग्रहण काल जल का त्याग करें ।

3-ग्रहणकाल में निद्रा का त्याग करें।

4- ग्रहण काल मे जप करें, पाठ करें,दान करें।

ग्रहण काल में सिर्फ और सिर्फ जप, तप, पूजा ,साधना आदि कर सकते हैं। गंगा स्नान कर सकते हैं ।गंगा में खड़े होकर के भगवान का अपने इष्ट या चंद्रमा के मंत्र का गायत्री मंत्र का जप कर सकते हैं ।ग्रहण काल के निवृति होने पर चावल अन्न वस्त्र का दक्षिणा सहित दान दान करना चाहिए। और घर में जो भी अन्न आदि खाद्य सामग्री रखी होती हैं उनमें कुश या तुलसी दल रखने से ग्रहण का दोष नहीं लगता है और ग्रहण के निवृति होने के बाद घर में जो रखा हुआ बर्तन में पानी है या पहले का बासी खाना है उसको ना खाएं और जल को ना पिए, ग्रहण की निवृत्ति के बाद नया जल और नया भोजन बनाकर के ग्रहण करना चाहिए ।

विशेषकर गर्भवती महिलाएं ग्रहण का दर्शन ना करें । ग्रहण काल में भगवान का नाम जप करना चाहिए। भगवान का नाम जप करने से बच्चे की रक्षा करें और स्वयं की रक्षा करें ग्रहण का दर्शन करने से गर्भ पर ग्रहण का बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए भगवान का जाप करें । 

ग्रहण फल --

चंद्रग्रहण में राशियों पर क्या होगा शुभ और अशुभ प्रभाव।

मेष राशि वालों के लिए हानि, वृषभ राशि वालों के लिए हानि है, मिथुन राशि वालों के लिए लाभ है ,कर्क राशि वालों के लिए सुख है ,सिंह राशि वालों के लिए मानहानि है ,कन्या राशि वालों के लिए कष्ट है, तुला राशि वालों के लिए स्त्री पीड़ा, वृश्चिक राशि वालों के लिए सुख,धनु राशि वालों के लिए चिंता का कारण रहेगा, मकर राशि वालों के लिए दुःख, कुंभ राशि वालों के लिए शुभ रहेगा लाभदायक रहेगा ,मीन राशि वालों के लिए हानिकारक है ।

।। हर हर महादेव।।

शारदीय नवरात्र१५अक्टूबर२०२३

 शारदीय नवरात्रि 2023 

सनातन हिंदू धर्म में मास परिवर्तन, पक्ष परिवर्तन ,ऋतु परिवर्तन ,वर्ष परिवर्तन के उपरांत या प्रथम दिन घरों में विशेष उपासना पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है । घरों की महिलाएं प्रात:काल में उठकर घरों की देहली लिप कर घरों को सुसज्जित करके घर के ईशान कोण में इष्ट देवता कुल देवता पूजा प्रधान देवता की स्थापना की जाती है। और उस दिन घरों की महिलाएं सुंदर पकवान बनाकर भगवान को भोग लगती हैं। और भगवान को सुंदर वस्त्र आभूषण अलंकार से सुसज्जित किया जाता है।

इस वर्ष शादी नवरात्र 15 अक्टूबर 2023 से प्रारंभ होगी यह नवरात्र 9 दिन की है 9 दिन में माता के नौ रूपों की प्रधानता है जिसमें हर रोज एक-एक देवी की पूजा की जाती है और उनको मनाया जाता है और उनकी पूजा में लगने वाली सामग्री उन्हें अर्पित की जाती है प्रथम दिन से लेकर 9 दिन तक माता रानी का व्रत किया जाता है और जो लोग व्रत करने में सक्षम नहीं है वे लोग पहले दिन और अंतिम दिन का व्रत रख करके अपने नवरात्र व्रत को पूर्ण करते हैं ,कुछ लोग निराहार रहकर के व्रत रखते हैं, कुछ लोग दिन में एक समय फलाहार लेकर व्रत रखते हैं, और कुछ लोग दिन में एक टाइम भजन लेकर के व्रत रखते हैं ।व्रत रखने के अलग-अलग प्रकार के विधान हैं अपनी शक्ति और सामर्थ्य की अनुरूप भगवान की पूजा अर्चना करनी चाहिए पूजा में कभी भी किसी की देखा देखी करके पूजा नहीं करनी चाहिए।

नवरात्र व्रत सारणी--

प्रथम दिवस -१५/१०/२०२३-शैलपुत्री।


द्वितीय दिवस -१६/१०/२०२३-ब्रह्मचारिणी।


तृतीय दिवस -१७/१०/२०२३-चंद्रघंटा।


चतुर्थ दिवस -१८/१०/२०२३-कुष्मांडा।


पंचम दिवस -१९/१०/२०२३-स्कंदमाता।


षष्ट दिवस -२०/१०/२०२३-कात्यायनी।


सप्तम दिवस -२१/१०/२०२३-कालरात्रि।


अष्टम दिवस -२२/१०/२०२३ -महागौरी।


नवम दिवस -२३/१०/२०२३-दुर्गा नवमी महानवमी।


दशम दिवस -२४/१०/२०२३ -नवरात्र व्रत परायण श्रीदुर्गा विसर्जन।

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

कंकणाकृति सूर्यग्रहण १४अक्टूबर 2023

 सूर्य ग्रहण--

सूर्यग्रहण आश्विन कृष्ण अमावस्या १४ अक्टूबर २०२३ को लगाने वाला कंकणाकृति सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा । यह ग्रहण उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका तथा दक्षिण अमेरिका ,दक्षिण भाग को छोड़कर उत्तरी अफ्रीका पश्चिमी किनारा अटलांटिक और प्रशांत महासागर में दिखाई देगा। भारतीय मानक समय अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि में 8:34 मिनट पर तथा मोक्ष रात्रि में 2:25 मिनट पर होगा।

सावधानी--

सूर्य ग्रहण के दिन भारत में ग्रहण दृश्य नहीं होने के कारण हमको ज्यादातर सावधानियां रखने की जरूरत नहीं है, इसलिए सामान्य की तरह चलता रहेगा।

मंगलवार, 29 अगस्त 2023

क्रोध किये ह्रृदय जले ---

क्रोध किये हृदय जले, रक्त जले और मांस ।

क्रोधी नर यू देखिए ,ज्यूँ वन सूखा बांस ।।

क्रोध भयंकर रोग है ,सन्निपात यह जान ।

क्रोध युक्त नर हो जभी, भूले सब पहचान ।।

क्रोध भये नर राक्षसी, करते कार व्यवहार ।

क्रोधी की छाया जहां,वही है हाहाकार ।।

क्रोध किया रावण मरा, दुर्योधन का नाश ।

राज गया दुर्गति भई ,मिला नर्क का वास ।।

क्रोध भरे भड़क उठे ,नेत्र लाल हो ज्वाल ।

रंग रूप सब नष्ट हो ,सुन्दर मुख विकराल ।।

क्रोध ज्वाला से क्षीण हो ,सुंदर मुख विकराल ।

स्वस्थ्य नष्ट यौवन घटे, और घटे सब ज्ञान ।।

स्वस्थ्य प्रिय तज क्रोध को ,सुंदर शील को पाके ।

धनी सुयस्वि रूपमयी ,जग में माना जावे ।।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

हिंदू नववर्ष, विक्रम संवत २०८०

नारायणं  नमस्कृत्य   नरं चैव नरोत्तम्म ।

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जय मुदीरयेत ।।

   हिन्दू नव संवत्सर २०८०

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इस वर्ष पिंगल नाम संवत्सर का प्रवेश हो रहा है। इस वर्ष राजा बुध मंत्री शुक्र है । राजा व मंत्री में मित्रता होने के से सत्ता पक्ष में सरलता पूर्वक कार्य होंगे। समाज में एकता बनी रहेगी । देश मे धनधान्य की स्थिति अच्छी रहेगी।व्यापारिक क्षेत्र में भारत की पकड़ मजबूत रहेगी ।

यह वर्ष विश्व शांति की दृष्टि से शुभ नहीं है । राष्ट्रों की आंतरिक स्थिति बिगड़ेगी। पड़ोसि देशों में अच्छे संबंध  नहीं रहेगें। विश्व में रक्तपात जनित नरसंहार का परिणाम दिखाई देगा ।विश्व व्यापार में आकस्मिक मंदी की स्थिति रहेगी। अनेक राष्ट्र की सीमाओं पर सैन्य संगठन अथवा युद्ध जैसा वातावरण होगा । भारत के पड़ोसी देशों व उसके सीमावर्ती राज्यों के भूखंड क्षेत्रों में राजनीतिक दृष्टि से अस्थिरता तथा आतंकवाद की वजह से यह क्षेत्र प्रभावित रहेंगे। वाहन दुर्घटना , अंतरिक्ष उत्पाद विस्फोट से जनधन की हानि होगी । कहीं कहीं किसी प्राकृतिक आपदा से जनधन की हानि संभव है । विरोधी दलों का वर्चस्व बढ़ेगा। भारत में विशेष कानून व्यवस्था लागू होगी। भारत नित्य उन्नति  की ओर बढ़ेगा । यह वर्ष वर्षा के सामान्य योग रहेंगे पश्चिमी भागों में वर्षा की कमी होगी । उत्तर एवं दक्षिण भागों में अत्यधिक वर्षा से जनजीवन अस्त व्यस्त होगा।

रोहिणी का वास समुद्र में होने से वर्षा अच्छी होगी और फसलों की अच्छी पैदावार होने से किसानों में खुशी रहेगी ।

चंद्र बल--

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संवत्सर प्रतिपदा के दिन मेष, सिंह, धनु राशि के जातकों को तथा विषुवत संक्रांति वैशाख एक गते के दिन मिथुन, तुला, कुंभ राशि के जातकों को चंद्रमा अशुभ (अपैट)है। शांति के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तथा पुरोहित जी को चावल,दही,श्वेत वस्त्र,चांदी की पादुका, दक्षिणा आदि का दान करें ।

शनि की साढ़ेसाती तथा ढय्या संवत २०८०--

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इस वर्ष पर्यंत शनि देव कुंभ राशि पर रहेंगे अतः मकर, कुंभ तथा मीन राशि वालों के लिए शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा । कर्क और वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि की ढैया चलेगी शनि की साढ़ेसाती मीन राशि वालों के लिए सिर पर ,कुंभ राशि वालों के लिए हृदय पर और मकर राशि वालों के पैर पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा। जिन राशि वालों के लिए शनि की ढैया व साढ़ेसाती चल रही है ।उन्हें सुंदरकांड, रामायण, हनुमान चालीसा का नित्य पाठ व शनि चालीसा का पाठ व्रत करना चाहिए शनिवार को नित्य उड़द की दाल, काला कपड़ा, लोहा ,सरसों का तेल इत्यादि का दान  करना चाहिए और शनिवार प्रातः पीपल के वृक्ष में जल दान और सायं मे दीप दान करना चाहिए।

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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

पूजा पाठ व मंदिर में ध्यान देने योग्य बातें--

शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना में वर्जित काम --

१) गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं ।

२) किसी देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं ।

३) शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं।

४) विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं।

५) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें।

६) मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें ।

७) तुलसी पत्र चबाकर न खाएं।

८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें ।

९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा न बजाएं।

१०) एक हाथ से आरती नहीं लेना चाहिए ।

११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना नहीं चाहिए ।

१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है ।

१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए ।

१४) घर में पूजा करने अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें।

१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न हो ।

१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना है।

१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल नहीं फोडना है ।

१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश वर्जित है

१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श न करें ।

२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा नहीं किया जाता ।

२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए ।

२२) एक हाथ से प्रणाम न करें ।

२३) दूसरे के दीपक में अपना दीपक जलाना नहीं चाहिए ।

२४)चरणामृत लेते समय दायें हाथ के नीचे एक नैपकीन रखें ताकि एक बूंद भी नीचे न गिरे ।

२५) चरणामृत पीकर हाथों को शिर या शिखा पर न पोछें बल्कि आंखों पर लगायें शिखा पर गायत्री का निवास होता है उसे अपवित्र न करें ।

२६) देवताओं को लोभान या लोभान की अगरबत्ती का धूप न करें ।

२७) स्त्री द्वारा हनुमानजी शनिदेव को स्पर्श वर्जित है ।

२८) कंवारी कन्याओं से पैर पडवाना पाप है ।

२९) मंदिर परिसर में स्वच्छता बनाए रखने में सहयोग दें ।

३०) मंदिर में भीड़ होने पर  लाईन पर लगे हुए। भगवन्नामोच्चारण करते रहें एवं अपने क्रम से ही  अग्रसर होते रहें।

३१) शराबी का भैरव के अलावा अन्य मंदिर प्रवेश वर्जित है।

३२) मंदिर में प्रवेश के समय पहले दाहिना पैर और निकास के समय बाया पांव रखना चाहिए ।

३३)घंटी को इतनी जोर से न बजायें कि उससे कर्कश ध्वनि उत्पन्न हो ।

३४)हो सके तो मंदिर जाने के लिए एक जोड़ी वस्त्र अलग ही रखें ।

३५) मंदिर अगर ज्यादा दूर नहीं है तो बिना जूते चप्पल के ही पैदल जाना चाहिए ।

३६) मंदिर में भगवान के दर्शन खुले नेत्रों से करें और मंदिर से खड़े खड़े वापिस नहीं हों,दो मिनट बैठकर भगवान के रूप माधुर्य का दर्शन लाभ लें ।

३७) आरती लेने अथवा दीपक का स्पर्श करने के बाद हस्तप्रक्षालन अवश्य करें ।

इन सभी बताई गई बातें हमारे ऋषि मुनियों से परंपरागत रूप से प्राप्त हुई है। 


मंगलवार, 8 नवंबर 2022

शिवरामाष्टकं

     ।। शिवरामाष्टकम् ।।

।।ओम श्री गणेशाय नमः ।।

शिव, हरे शिव राम, सखे प्रभो,  त्रिविधताप निवारण हे प्रभो , ।।

अज जनेश्वर यादव पाहि मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ।।०१।।


कमलोचन राम दयानिधे हर गुरो गजरक्षक गोपते।।

शिवतनो भव शंकर पाही मां शिव हरेo ।।०२।।


स्वजनरंजन मंगल मंदिर भजती ते पुरुषं परम पदम्।।

 भवति तस्य सुखं परमाद्भुतं शिव हरेo ।।०३।।


जय युधिष्ठिरवल्लभ भूपते जय जयार्जित पुण्यपयो निधे ।।

जय कृपामय कृष्ण नमोस्तु ते शिव हरे o ।।०४।।


भवविमोचन माधव मापते सुक विमांन सहंस शिवारते ।।

जनकजारत राघव रक्ष मां शिव हरे o।।०५।।


अवनीमंडल मंगल मापते जलसुंदर राम रमापते निगमकीर्तिगुणार्णव गोपते शिवा हरे ०।।०६।।


पतित पावन नाममयी लता तव यशो विमलं परि गीयते ।। 

तदपि माधव मां किमुपक्ष से शिव हरे ॥७।।


अमरता परदेव रामापते विजयस्तव नाम धनोपमा ।।

मयि कथम् करुणार्णव जायते शिव हरेo॥०८।।


हनुमात: प्रिय चापकर  प्रभो भगवान, सुर सारिध्दृतशेखर,हे गुरो।।

मम विभो किमु विस्मरणम् कृतम् शिव हरे०।।०९ ।।


नरहरेति परं जनसुंदरं पठति यः शिवरामकृतस्तवम् ।।

विशती रामरामचरणांबुजे शिव हरेo॥१०।।


प्रातरुत्थाय यो भक्त्या पठेदेकाग्र मानसः।।

विजयो जायते तस्य विष्णु सान्निध्य माप्नुयात् ११


।।इति श्री रामानंद विरचितम् शिवराम स्तोत्रम् संपूर्णम् ।।

रविवार, 2 अक्टूबर 2022

श्रीराधाकृपाकटाक्ष स्तोत्रम्


।। श्रीराधिका कृपाकटाक्षस्तोत्रम् ।।

मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणि

प्रसन्न-वक्त्र-पण्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि

व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि व्रजेन्द्र–सूनु–संगते

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१॥



अशोक–वृक्ष–वल्लरी वितान–मण्डप–स्थिते

प्रवालबाल–पल्लव प्रभारुणांघ्रि–कोमले ।

वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥२॥


अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां

सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त–बाणपातनैः ।

निरन्तरं वशीकृत प्रतीत नन्दनन्दने

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥३॥


तडित्–सुवर्ण–चम्पक –प्रदीप्त–गौर–विग्रहे

मुख–प्रभा–परास्त–कोटि–शारदेन्दुमण्डले ।

विचित्र-चित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥४॥


मदोन्मदाति–यौवने प्रमोद–मान–मण्डिते

प्रियानुराग–रञ्जिते कला–विलास – पण्डिते ।

अनन्यधन्य–कुञ्जराज्य–कामकेलि–कोविदे

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥५॥


अशेष–हावभाव–धीरहीरहार–भूषिते

प्रभूतशातकुम्भ–कुम्भकुम्भि–कुम्भसुस्तनि ।

प्रशस्तमन्द–हास्यचूर्ण पूर्णसौख्य –सागरे

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥६॥


मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते

लताग्र–लास्य–लोल–नील–लोचनावलोकने ।

ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ–मुग्ध–मोहिनाश्रिते

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥७॥


सुवर्णमलिकाञ्चित –त्रिरेख–कम्बु–कण्ठगे

त्रिसूत्र–मङ्गली-गुण–त्रिरत्न-दीप्ति–दीधिते ।

सलोल–नीलकुन्तल–प्रसून–गुच्छ–गुम्फिते

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥८॥


नितम्ब–बिम्ब–लम्बमान–पुष्पमेखलागुणे

प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले ।

करीन्द्र–शुण्डदण्डिका–वरोहसौभगोरुके

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥९॥


अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्

समाज–राजहंस–वंश–निक्वणाति–गौरवे ।

विलोलहेम–वल्लरी–विडम्बिचारु–चङ्क्रमे

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१०॥


अनन्त–कोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते

हिमाद्रिजा–पुलोमजा–विरिञ्चजा-वरप्रदे ।

अपार–सिद्धि–ऋद्धि–दिग्ध–सत्पदाङ्गुली-नखे

कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥११॥


मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि

त्रिवेद–भारतीश्वरि प्रमाण–शासनेश्वरि ।

रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद–काननेश्वरि

व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥१२॥


इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी

करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष-भाजनम् ।

भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप–कर्म नाशनं

लभेत्तदा व्रजेन्द्र–सूनु–मण्डल–प्रवेशनम् ॥१३॥


राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।

एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥१४॥


यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।

राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥१५॥


ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।

राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥१६॥


तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।

ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥१७॥


तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।

येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥१८॥


नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।

अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥१९॥

॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥

 




 


शनिवार, 24 सितंबर 2022

शारदीय नवरात्र २६सितम्बर२०२२

शारदीय नवरात्र दुर्गा पूजा --

शारदीय नवरात्र दुर्गा पूजन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी पर्यन्त तक चलने वाले उत्सव जिसमे माता रानी का व्रतपूजन पाठ आदि का विशेष महत्व है । जो आस्थावान जन होते है वे मातारानी को रिझाने सुख संपत्ति का आशीर्वाद  पाने के लिए कही कमी नही रखते ।नव रात्रियों तक व्रत करने से व्रत पूर्ण होता है ।

दुर्गा पूजन विधि--

माता रानी की स्थापना के लिए पूर्व , ईशान दिशा में कही पर गोबर से लिप् कर स्वस्ति वाचन गणपति ,कलश मातृका ,ग्रह स्थापन पूजन के नंतर दुर्गा जी को सुंदर घट के ऊपर "सुवर्ण ,रजत,कांस्य, ताम्र , मिट्टी से बनी मूर्ति की स्थापना करके पंचोपचार ,षोडशोपचार पूजन करें किसी विद्वान ब्राह्मण से सप्तसती का पाठ करवाएं देवी का आवाहन, स्थापन ,पूजन, विसर्जन प्रातःकाल में किया जाता है ।

किसी बाँस या मिट्टी के पात्र में जयंती कुल परम्परा के अनुसार बोनी चाहिए ।

नवरात्र व्रत सारणी --

 💐शारदीय नवरात्रि व्रत सारणी💐

सोमवार २६-  सितम्बर- प्रतिपदा- शैलपुत्री 

मंगलवार २७ - सितम्बर - द्वितीया- ब्रह्मचारिणी

बुधवार २८- सितम्बर - तृतीया-   चंद्रघंटा 

बृहस्पतिवार २९-सितम्बर चतुर्थी-    कुष्मांडा 

शुक्रवार ३० - सितम्बर पंचमी-   स्कन्धमाता 

शनिवार ०१- अक्टूबर - षष्ठी      कात्यायनि 

रविवार ०२- अक्टूबर - सप्तमी- कालरात्री 

सोमवार०३ -अक्टूबर - दुर्गाष्टमी- महागौरी 

मंगलवार ०४ -अक्टूबर - रामनवमी- सिद्धिधात्री व दशहरा रावण दहन ४ तारीख को किया जायेगा ।

 बुधवार ०५-अक्टूबर - विजयी दशमी व्रत परायण विसर्जन

व्रत विधि--

 यदि कोई नवरात्र पर्यन्त व्रत रखने में असमर्थ हो तो प्रतिपदा से सप्तमी तक 'दूसरा सप्तमी ,अष्टमी ,नवमी व्रत रखें ' तीसरा पहला व नवां 'चौथ एक समय भोजन प्रसाद लेकर व्रत करके अभीष्ट सिद्ध किया जा सकता है ।

रविवार, 18 सितंबर 2022

श्राद्ध का प्रचलन कब शुरू हुआ ।

श्राद्ध का प्रचलन कब शुरु हुआ ? सबसे पहले किसने किया था श्राद्ध 

प्राचीन काल में ब्रह्माजी के पुत्र हुए महर्षि अत्रि,उन्हीं के वंश में भगवान दत्तात्रेयजी का आविर्भाव हुआ । दत्तात्रेयजी के पुत्र हुए महर्षि निमि और निमि के एक पुत्र हुआ श्रीमान्। श्रीमान् बहुत सुन्दर था। कठोर तपस्या के बाद उसकी मृत्यु होने पर महर्षि निमि को पुत्र शोक के कारण बहुत दु:ख हुआ। अपने पुत्र की उन्होंने शास्त्रविधि के अनुसार अशौच (सूतक) निवारण की सारी क्रियाएं कीं । फिर चतुर्दशी के दिन उन्होंने श्राद्ध में दी जाने वाली सारी वस्तुएं एकत्रित कीं।


अमावस्या को जागने पर भी उनका मन पुत्र शोक से बहुत व्यथित था । परन्तु उन्होंने अपना मन शोक से हटाया और पुत्र का श्राद्ध करने का विचार किया । उनके पुत्र को जो-जो भोज्य पदार्थ प्रिय थे और शास्त्रों में वर्णित पदार्थों से उन्होंने भोजन तैयार किया। 

महर्षि ने सात ब्राह्मणों को बुलाकर उनकी पूजा-प्रदक्षिणा कर उन्हें कुशासन पर बिठाया । फिर उन सातों को एक ही साथ अलोना सावां परोसा । इसके बाद ब्राह्मणों के पैरों के नीचे आसनों पर कुश बिछा दिये और अपने सामने भी कुश बिछाकर पूरी सावधानी और पवित्रता से अपने पुत्र का नाम और गोत्र का उच्चारण करके कुशों पर पिण्डदान किया। 


श्राद्ध करने के बाद भी उन्हें बहुत संताप हो रहा था कि वेद में पिता-पितामह आदि के श्राद्ध का विधान है, मैंने पुत्र के निमित्त किया है । मुनियों ने जो कार्य पहले कभी नहीं किया वह मैंने क्यों कर डाला ?


उन्होंने अपने वंश के प्रवर्तक महर्षि अत्रि का ध्यान किया तो महर्षि अत्रि वहां आ पहुंचे । उन्होंने सान्त्वना देते हुए कहा‘डरो मत ! तुमने ब्रह्माजी द्वारा श्राद्ध विधि का जो उपदेश किया गया है, उसी के अनुसार श्राद्ध किया है।’ ब्रह्माजी के उत्पन्न किये हुए कुछ देवता ही पितरों के नाम से प्रसिद्ध हैं; उन्हें ‘उष्णप’ कहते हैं । श्राद्ध में उनकी पूजा करने से श्राद्धकर्ता के पिता-पितामह आदि पितरों का नरक से उद्धार हो जाता है।


सबसे पहले श्राद्ध कर्म करने वाले महर्षि निमि


इस प्रकार सबसे पहले निमि ने श्राद्ध का आरम्भ किया । उसके बाद सभी महर्षि उनकी देखादेखी शास्त्र विधि के अनुसार पितृयज्ञ (श्राद्ध) करने लगे। ऋषि पिण्डदान करने के बाद तीर्थ के जल से पितरों का तर्पण भी करते थे । धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में देवताओं और पितरों को अन्न देने लगे। 


श्राद्ध में पहले अग्नि का भोग क्यों लगाया जाता है ?


लगातार श्राद्ध में भोजन करते-करते देवता और पितर पूरी तरह से तृप्त हो गये । अब वे उस अन्न को पचाने का प्रयत्न करने लगे। अजीर्ण से उन्हें बहुत कष्ट होने लगा। सोम देवता को साथ लेकर देवता और पितर ब्रह्माजी के पास जाकर बोले ‘निरन्तर श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण हो गया है, इससे हमें बहुत कष्ट हो रहा है, हमें कष्ट से मुक्ति का उपाय बताइए।


ब्रह्माजी ने अग्निदेव से कोई उपाय बताने को कहा । अग्निदेव ने कहा देवताओ और पितरो ! अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन करेंगे । मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण दूर हो जाएगा।


यह सुनकर सबकी चिन्ता मिट गयी; इसीलिए श्राद्ध में पहले अग्नि का भाग दिया जाता है । श्राद्ध में अग्नि का भोग लगाने के बाद जो पितरों के लिए पिण्डदान किया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस दूषित नहीं करते हैं । श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं।


सबसे पहले पिता को, उनके बाद पितामह को और उनके बाद प्रपितामह को पिण्ड देना चाहिए—यही श्राद्ध की विधि है । प्रत्येक पिण्ड देते समय एकाग्रचित्त होकर गायत्री-मन्त्र का जप और ‘सोमाय पितृमते स्वाहा’ का उच्चारण करना चाहिए ।


इस प्रकार मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिण्डदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं। पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, संतति, सौभाग्य, समृद्धि, कामनापूर्ति, वाक् सिद्धि, विद्या और सभी सुखों की प्राप्ति होती है। सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, भवन और सुख साधन श्राद्ध कर्ता को स्वयं ही सुलभ हो जाते है।

ॐ जय गौरी नंदा

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