अक्षय तृतीया का यह दिन विशेषकर पवित्र व शुभ माना गया है। जो युगादि तिथि के नाम से भी जानी जाती है।इस दिन होम जप तप दान स्नान आदि से प्राप्त होने वाला पुण्य अक्षय होता है ।इसी कारण इस तिथि का नाम अक्षय तृतीया पड़ा ।इस दिन गंगा स्नान का भारी महत्व है ।जो मनुष्य आज के दिन गंगा आदि तीर्थो में स्नान करता है , वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन प्रातःकाल में घड़ी , पंखा , चावल, दाल, साग, फल , वस्त्र ,दक्षिणा ब्राह्मणों को दान देनी चाहिए ।
यह दिन वर्ष के सभी दिनों में विशेष महत्व रखता है ।
इसी दिन भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था ,इसी दिन श्रीबद्री नारायण के पट खुलते है , जिन लोगों के घरों में ठाकुर जी नही है वे लोग आज के दिन नारायण श्रीबद्री विशाल को स्थापित कर मिश्री व चने का भोग लगावे ,तुलसी दल चढ़ाकर विधिवत भक्तिभाव से पूजन आरती करें ।
इस दिन कि कुछ महत्वपुर्ण जानकारियाँ:
🕉 ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण।
🕉 माँ अन्नपूर्णा का जन्म।
🕉 चिरंजीवी महर्षी परशुराम का जन्म हुआ था इसीलिए आज परशुराम जन्मोत्सव भी हैं।
🕉 कुबेर को खजाना मिला था।
🕉 माँ गंगा का धरती अवतरण हुआ था।
🕉 सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया।
🕉 महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।
🕉 वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के साथ आरम्भ किया था।
🕉 प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।
🕉 प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण धाम का कपाट आज ही खोले जाते है।
🕉 बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन होते है।
🕉 जगन्नाथ भगवान के सभी रथों को बनाना प्रारम्भ किया जाता है।
🕉 आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।
🕉 अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है ।
कथा --
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्णचन्द्र से पूछा - हे भगवान ! कृपा करके अक्षय तृतीया का माहात्म्य वर्णन करें । इसे सुनने की मेरी बड़ी भारी इच्छा है ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले - हे राजन् ! सुनो । यह परम पुण्यमयी तिथि है । इस दिन दोपहर से पहले स्नान , जप , तप , होम , स्वाध्याय , पितृतर्पण और दानादि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्य फल का भागी होता है । इसी दिन से सत्ययुग का भी आरम्भ होता है । इसलिए यह ' युगादि तृतीया ' के नाम से भी प्रसिद्ध है ।
हे युधिष्ठिर प्राचीनकाल में एक बहुत निर्धन , सदाचारी और देव - ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला वैश्य था । उसका कुटुम्ब - कबीला बहुत बड़ा था , जिसके कारण वह सदैव व्याकुल रहता था । उसने किसी से वैशाख शुक्ला तृतीया के माहात्म्य में सुना कि इस दिन किये हुए दान , जप , हवन आदि से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है । उसने अक्षय तृतीया के दिन प्रातःकाल गंगाजी के पावन जल में स्नान करके विधिपूर्वक देवताओं और पितरों का पूजन किया । फिर उसने गोले के लड्डू , पंखा , जल से भरे घड़े , जौ , गेहूं , नमक , सत्तू , दही , चावल , गुड़ , स्वर्ण , वस्त्र आदि दिव्य वस्तुओं का भक्तिपूर्वक दान किया । स्त्री के बार - बार मना करने तथा कौटुम्बीजनों से चिन्तित और बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म - कर्म से विमुख नहीं हुआ । इसी कारण समय पाकर उस वैश्य का जन्म कुशावती नगरी में एक क्षत्रिय के घर में हुआ । वह अक्षय तृतीया के प्रभाव से बहुत धनवान और प्रतापी हुआ । वैभव सम्पन्न होकर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई । यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य - प्रभाव है ।
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Charan Vandana Gurudev
जवाब देंहटाएंAapko Akshay Tirtiya ki dher sari shubhkamnaye
जवाब देंहटाएंApko Akshay Tirtiya ki dher sari subhkamnaye
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