श्री विश्वकर्मा पूजा विधि --
हम जिस प्रकार सभी अन्य पर्व त्योहार पर देवताओं के लिए पीठ तैयार करते हैं ,उसी प्रकार विश्वकर्मा पूजा के लिए पीठ तैयार करें , उसके ऊपर विश्वकर्मा की पौराणिक चित्र लगाए या मूर्ति स्थापित करें । विश्वकर्मा जी की पूजा करे । हो सके तो संगीत कीर्तन आदि से श्रद्धा का वातावरण बनाएं ।
पूजन क्रम --
शुद्ध वस्त्र आदि पहनकर दीप,धूप प्रज्वलित कर आचमनी, पवित्रीकरण, आसन शुद्धि, तिलक धारण, भूतोत्साधन , शिखा स्पर्श, सूर्य ध्यान प्राणायाम करके स्वस्तिवाचन संकल्प आदि करके प्रथम गणपति कुलदेवी कुलदेवता, वरुण भगवान का पूजन करें नवग्रहों का ध्यान पूजन करें । विश्वकर्मा जी का पूजन करे।
श्री विश्वकर्मा जी का ध्यान --
कम्बा सूत्राम्बु पात्रम् वहती करतले पुस्तकं ज्ञान सूत्रम्।
हंसारूढ़स्त्रिनेत्र: शुभमुकुटशिरा सर्वेतो वृद्धकाय: ।।
त्रैलोक्यम् येन सृष्टं सकलसुर गृह ं राज हर्म्यादि हर्म्यं ।
देवोंअ्सो सूत्र धारों जगत खिल हित: पातु वो विश्व कर्मन् ।।
श्री विश्व कर्मणे नमः ।।
ध्यान आवाहन प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार करें ।
प्रार्थना --
नमामि विश्व कर्माणं द्विभुजं विश्व वंदितं।
गृह वास्तु विधातारं महा बल पराक्रमम् ।।
प्रसिद विश्व कर्मस्त्वं शिल्पविद्या विशारद: ।
दण्डपाणे ! नमस्तुभ्यं तेजोमूर्तिधरप्रभो ।।
विश्वकर्मा जी के हाथ में चार प्रतिक कहे गए हैं ।
१ - पुस्तक
२ - पैमाना
३ - जल पात्र
४ - सूत्र
१ - पुस्तक ज्ञान का प्रतीक
२ - पैमाना मूल्यांकन का प्रतीक
३ - जल पात्र शक्ति साधन का प्रतीक
४ - सूत्र कौशल का प्रतीक
यह सारे प्रतीक विश्वकर्मा के सम्मुख रखना चाहिए। और इनका पूजन करना चहिए ।
विश्वकर्मा जी से प्रार्थना करें।
हमें सृजन का ज्ञान दें । हम उसका लाभ उठा सकें ।
हमें सृजन का उत्साह प्रदान करें।
मैं शक्ति और साधन दें ।
हमें कौशल वहन करने की साहस दें।
विश्वकर्मा जी को ५ या २४ दीपदान करें ।
तत्पश्चात विश्वकर्मा जी के निमित्त यज्ञ करें ।
मंत्र --
ॐ विश्व कर्मन हविषा वावृधान: स्वयं यजस्व पृथिवी मुतद्याम्।
मुह्यन्त्वन्ये अमित: सपत्ना इहास्माकं मनवा सूरिरस्तु स्वाहा । इस मंत्र से विश्वकर्मा जी को आहुति प्रदान करें।
पूर्णाहुति प्रदान करके आरती करें ।
।।आरती श्री विश्वकर्माजी की।।
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जयश्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टी मे विधि को श्रुति उपदेश दिया ।।
जीव मात्र का जग मे ज्ञान विकास किया ।
ऋषि अंगिरा तप से शांति नही पाई ।।
रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बनकर दूर दुख कीना ।।
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जयश्री विश्वकर्मा।
जब रथकार दम्पति, तुम्हारी टेक करी ।
सुनकर दीन प्रार्थना विपत हरी सगरी।।
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे ।
द्विभुज चतुभुज दशभुज, सकल रूप सजे ।।
ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे ।
मन द्विभुज मिट जावे, अटल शक्ति पावे ।।
श्री विश्वकर्मा भगवान की आरती जो कोई गावे ।
भजत गजानंद स्वामी सुख संपति पावे ।।
जय श्रीविश्वकर्मा प्रभु जय श्रीविश्वकर्मा ।
मंत्र पुष्पांजलि नमस्कार आदि करके विश्वकर्मा जी का नाम जयकार घोष करें । सभी को प्रसाद वितरण करें।
।।इति श्री विश्वकर्मा पूजा।।
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