शनिवार, 27 जून 2020

मेरी माँ

माँ आपकी बहुत याद आती है।शायद आप ठीक होंगी मेरा मन हमेशा आप पर रहता है।वो बचपन की यादें मुझे बहुत बेचैन कर देती है जब में सोचता हूँ।जब बचपन मे आप हमें नेक रास्ता दिखाने के लिए हमे डाँटना डण्डे से पीटा करती थी पर उस डण्डे में माँ का प्यार और गुरु रूप में माँ आपने बच्चे को नेक पथ पर चलने की राह दिखाती है।आप हर काम छोड़कर हमारा ध्यान रखती थी,स्वयं खाना छोड़कर हमें खाना खिलाकर सुला देती।सो जा बेटा सुबह स्कूल जाना है,सुबह जल्दी उठकर नाश्ता तैयार कर स्कूल के लिये भेजना।मेरे बेटे मन लगाकर पढ़ाई करना नटखट बचपन का जीवन क्या जाने पढ़ाई,

उस समय तो बस दोस्तो के साथ खेलना पढ़ाई से अच्छा लगता था।ज्यूँ बड़े हुये तो पढ़ाई का महत्त्व समझ आया शायद इसी पढ़ाई ने माँ से दूर कर दिया जीने की कला सीखने के लिए घर बाहर भेज दिया।जो आज समझ आया की माँ बाप इतना त्याग क्यों किया करते है।अपने बच्चों के लिए ।मेरे पास माँ दुर्गा जी की मूर्ति है।उनमे आपको देख कर मन को संतोष प्राप्त होता है ।इस वक्त कॅरोना महामारी ने अपना प्रकोप जगत में फैलाया है।जन्मनुष बहुत त्रस्त है।बस माँ दुर्गा से यही कामना करता हूँ।मेरी माँ ने हर कष्टो में मेरी रक्षा की ,आप जगत की माँ है आप इस संसार के सभी बच्चों की रक्षा करना ,यह जीवन आपके द्वारा मिला है।आप जगत की माँ है।मै आज भी आपके ही सहारे से इस जगत में भ्रमण करता हूं।कॅरोना नाम का दैत्य जगत के ऊपर मानव को ग्रसने पर लगा है।आपने न जाने कितने दैत्यों से इस संसार की और आपने बच्चो की रक्षा की है।आगे भी करते रहना।ये मेरी नित्य सुबह की प्रार्थना है।ये कहकर पुकारा करता हुँ।लोग आपने पराये से दूर हो गये है।फिर अपनो से मिला देना।।                    

                      मेरी माँ 

              आचार्य हरीश लखेड़ा
                       वसई
                      जय माँ
              मो 9004013983


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                   English translation

 Mother misses you so much. Maybe you will be fine. My heart is always on you. Those childhood memories make me very restless when I think. When in childhood you used to beat us with sticks to show us the right path.  But in that stick, mother's love and mother in the form of Guru, you show your child the path to walk on the noble path. You used to leave our work and take care of us, give up food and feed us food. So go son to school in the morning,  Wake up early in the morning and prepared breakfast and sent it to school.

 At that time, just playing with friends was better than studying. When I grew up, I understood the importance of studies, perhaps this study has turned away from mother and sent them out of the house to learn the art of living. It was understood that parents today  Why do you sacrifice so much for your children. I have an idol of Mother Durga ji. Seeing them, the mind is satisfied. At this time, the Carona epidemic has spread its wrath in the world. The birth mother is very hurt.  This is my wish to Mother Durga. My mother protected me in every trouble, you are the mother of the world, you have to protect all the children of this world, this life is found by you. You are the mother of the world. I am still your  With the help of this world, I travel on this world. The monster named Karona is on the human side on the world.  It is a prayer of prayer. I call this. People have turned away from the alien. Then reunite with you. My mother's welfare.

 Acharya Harish Lakhera

 Vasai

 hail Mother
Mo 9004013983

💐।।पुरुषसूक्त।।💐

  पुरुषसूक्त 
ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमि छ , सर्वत स्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥ 
पुरुष एवेद & सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् । 
उता मृतत्वस्ये शानो यदन्ने नातिरोहति ॥ 
एता वनस्य  महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ।।
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहा भवत् पुनः।
ततो  विष्वंग व्यक्रा मत्साशना नशने अभि ॥ 
ततो विराड जायत विराजो   अधि   पूरुषः ।
स   जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमि मथो पुरः ॥
तस्मा द्यज्ञात् सर्वहुतः   सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशुंस्ताँश्चक्रे वायव्या नारण्या  ग्राम्याश्च  ये।
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे । 
छन्दा छ सि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मा दजायत ।।
तस्मादश्वा  अजायन्त।  ये  के  चोभयादतः । 
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥
यत्पुरुषं  व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादा उच्यते ॥ 
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीबाहू राजन्यः कृतः । 
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्या  छ शूद्रो अजायत ॥ 
चन्द्रमा मनसो  जातश्चक्षोः सूर्यो  अजायत । 
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च  मुखादग्निरजायत ॥ 
नाभ्या आसीदन्तरिक्ष & शीर्णो द्यौः समवर्तत । 
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ २ अकल्पयन् ॥
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्म:शरद्धवि: ।।
सप्तास्यासन् परिधय स्त्रि : सप्त समिधः कृताः ।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम् ।। 
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । 
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥ 

          
          आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
            जय बद्री विशाल

पंचमहायज्ञ क्यो किया जाता है।क्या है फल

 1 सृष्टिके कार्यका सुव्यवस्थितरूपसे संचालन और सब जीवोंका यथायोग्य भरण - पोषण पाँच श्रेणियोंके जीवोंकी पारस्परिक सहायतासे सम्पन्न होता है । वे पाँच हैं - देवता , | ऋषि , पितर , मनुष्य और पशु - पक्षी आदि भूतप्राणी । देवता संसारभरमें सबको इष्ट भोग देते हैं , ऋषि - मुनि सबको ज्ञान देते हैं , पितर सन्तानका भरण - पोषण करते हैं , रक्षा करते हैं और कल्याण - कामना करते हैं , मनुष्य कर्मों के द्वारा सबका हित करते हैं और पशु - पक्षी , वृक्षादि सब जीवोंके सुखके लिये अपना आत्मदान देते रहते हैं । इन पाँचोंके सहयोगसे ही सबका निर्विघ्न जीवननिर्वाह होता है , अतः प्रत्येक व्यक्तिपर इन पाँचोंके ऋण हैं - देव - ऋण , ऋषि ऋण , पितृ - ऋण , मनुष्य - ऋण और भूत - ऋण । पंच - महायज्ञसे इन पाँचों प्रकारके ऋणसे मुक्ति होती है । अतः प्रत्येक मनुष्यको प्रतिदिन निम्नलिखितरूपसे पंचमहायज्ञ सम्पन्न ऋषिश्यज्ञ पितृ - यज्ञ मनुष्य - यज्ञ भूतदयज्ञ सम्पन्न करना चाहिये।
मनुष्य अपने आजीविका से अर्जित धन में से इन सबका भाग देकर शेष अपने उपयोग में लेता है।
जो मनुष्य धन अर्जित करने के बाद स्वयं भोग करता है।वह इन सभी का दोषी होता है।पंचमहा यज्ञ से समस्त प्राणियों की तृप्ती होती है।अतः पंचयज्ञ करने के बाद गृहस्थ को भोजन करना चाहिये।इससे धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति होती है।

                                        पंचमहायज्ञ का स्वरूप
 १ - ब्रह्मयज्ञ - वेद , पुराण , रामायण , महाभारत आदि इतिहास  ग्रन्थोंके अध्ययन , अध्यापन तथा स्वाध्याय को  ब्रह्मयज्ञ कहा जाता है । ब्रह्मयज्ञ करनेसे ज्ञानकी वृद्धि होती है , इसके सम्पन्न करनेसे व्यक्ति ऋषि ऋणसे मुक्त हो जाता है ।

२ - देवयज्ञ - अपने इष्टदेवकी उपासना तथा परब्रह्म परमात्माके निमित्त अग्निमें किये गये हवनको देवयज्ञ कहते हैं । देव - ऋणसे उऋण होनेके लिये देवयज्ञ करना परमावश्यक है ।

 ३ - भूतयज्ञ - कृमि , कीट - पतंग , पशु - पक्षी आदिकी सेवाको भूतयज्ञ कहते हैं । सामान्यतः प्रत्येक प्राणी सुखके लिये अनेक  जीवोंको प्रतिदिन क्लेश देता है । क्योंकि ऐसा हुए बिना शरीरयात्रा नहीं चल पाती । अतः भूतों - जीवोंसे उऋण होनेके लिये भूतयज्ञ करना आवश्यक है । भूतयज्ञसे कृमि - कीट , पशु - पक्षी आदिकी तृप्ति होती है।

४ - पितृयज्ञ - पितरोंके निमित्त तर्पण तथा श्राद्ध आदि करना पितृयज्ञ है । पितृयज्ञके रूपमें कम - से - कम कर पितृतर्पण प्रतिदिन अवश्य करना चाहिये । इससे समस्त लोको में पितरोंकी तृप्ति होती है । इससे लोकमें यश , धन तथा सन्तान प्राप्तिका सुख प्राप्त होता है ।
 तर्पणका फल - एक - एक पितरको तिलमिश्रित जलकी तीन , तीन अंजलियाँ प्रदान करे ।( इस प्रकार तर्पण करनेसे ) जन्मसे आरम्भकर तर्पणके दिनतक किये पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं । 
तर्पण न करनेसे प्रत्यवाय ( पाप ) -ब्रह्मादिदेव ब एवं पितृगण  तर्पण न करनेवाले मानवके शरीरका रक्तपान ना करते हैं अर्थात् तर्पण न करनेके पापसे शरीरका रक्तशोषण होता है 
' अतर्पिताः शरीराद्रुधिरं पिबन्ति ' 
-इससे यह सिद्ध होता है कि गृहस्थ मानवको प्रतिदिन तर्पण अवश्य करना चाहिये । 

५ - मनुष्ययज्ञ - क्षुधा से अत्यन्त पीड़ित मनुष्य के घर आ जाने पर उसकी भोजनादि से की जानेवाली सेवा को मनुष्ययज्ञ कहते हैं । अतिथिके घर आ जाने पर चाहे वह किसी जाति या सम्प्रदायका हो उसकी सम्मानपूर्वक मधुर वचन , जल तथा अन्न आदिसे यथाशक्ति सेवा करनी चाहिये । मनुष्ययज्ञसे धन , आयु , यश और स्वर्ग आदिकी प्राप्ति होती है । 
         
         आचार्य हरीश लखेड़ा
                   वसई मुम्बई
           जय श्री बद्री विशाल
           मो 9004013983
             

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                     English translation

Panchamahagya

 1 The orderly operation of the work of nature and the proper maintenance of all organisms is accomplished by mutual support of the five categories of organisms.  They are five - gods,  Sages, ancestors, humans and animals - birds etc.  Gods give favored enjoyment to all over the world, sages - sages give knowledge to everyone, ancestors, nurture, protect and welfare - human beings, do everything for the benefit of human beings and animals - birds and trees  They give their self-sacrifice for happiness.  With the help of these five, everyone lives uninterrupted, so the debts of these five are on each person - Dev-loan, Rishi loan, Pitru-loan, Man-loan and Ghost loan.  Pancha - Mahayagya relieves these five types of debt.  Therefore, every person should perform Panchamahayagya Rishi Pitra Yagya Pitra - Yagya Man - Yagya Bhoota Yajna in the following manner.

 Man makes a part of all the money earned from his livelihood and uses the rest for his use.

 A person, who earns himself after earning wealth, is guilty of all of this. Panchamaha Yajna satisfies all beings. Therefore, after performing Pancha Yagya, the householder should eat.  .


 Nature of panchamahagya

 1 - Brahmayagya - The study, teaching and Swadhyaya of history texts such as Vedas, Puranas, Ramayana, Mahabharata etc. are called Brahmayagya.  By performing Brahm Yajna, there is an increase of knowledge, by completing it, a person becomes free from debt.

 2 - Devyagya - The worship of his presiding deity and the fire done for the sake of the divine God is called Havan.  Dev - To get loan from debt, it is absolutely necessary to do devayagya.

 3 - Ghostly - Worm, insect - kite, animal - bird etc. The service is called 'ghost'.  Generally, every creature gives tribulations daily to many creatures for happiness.  Because without doing this, the yatra cannot go on.  Therefore, it is necessary to perform ghosts to get rid of ghosts and creatures.  From ghosts, insects - insects, animals - birds, etc. are satisfied.

 4 - Pitra Yajna - Performing tarpan and shraadh etc. for ancestors is paternity.  As a paternal sacrifice, at least one should do patriarchy daily.  This leads to satiety of fathers in all locos.  It brings fame, wealth and child happiness in public.

 The Tarnapaka fruit - one - one Pitroka should provide three Anjalias of stinky water. (By performing this kind of Tartan), the sins committed from the day of birth till the day of Tarna are destroyed at the same time.

 The refusal (sin) by not doing tarpan - Brahmadidev B and the ancestors do not drink the body of the human who does not do the tarpan, that is, the sin of not doing tarpan causes the body to bleed

 'Atarpita: Shahiradrudhiram Pibanti'

 -It proves that the householder must do the Tarapan daily.

 5 - Managyagya - When a person suffering from apps comes to his home, the service performed by his meal is called Managya.  On coming to the guest house, whether he is of any caste or community, he should do his respectful service with respect and sweet words, water and food etc.  Managyajna brings wealth, age, fame and heaven.


Acharya harish chandra lakhera
       Vasai   Mumbai
       Jai badri vishal
      Mo 9004013983

💐अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला💐

 ।।अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला ।।
                    दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।।
                    दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ।।
                    दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा ।।
                    दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ।। 
                    दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।।
                    दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ।। 
                    दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी ।।
                    दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी। । 
                    दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी ।। 
                    दुर्गामाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।। 
                    दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ।। 
                    नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः।।
                    पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः।।


आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
              मुम्बई

💐।।मंत्रपुष्पांजलिं।।💐

 ॐ यज्ञेन यज्ञ मयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्या सन् 
 तेहनाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ।। 
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।नमो वयं वैश्रवणाय कुर्म हे । समे कामान काम कामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु । कुबेराय  वैश्रवणाय  महाराजाय नमः।

ॐ स्वस्ति । साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठयं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्त पर्यायी स्यात् सार्वभौमः  सार्वायुष आन्तादापरार्धात् । पृथिव्यै समुंद्र पर्यन्ताया एक राडिति। तदप्येष श्लोकोऽभि गीतो मरुतः परिवेष्टारो मरूत स्यावसन् गृहे।आविक्षितस्य काम प्रेर्विश्वे देवाः सभासद् इति ।।  

 सेवन्तिका वकुल चम्पक पाटलाब्जैः।
 पुन्नाग जाति करवीर रसाल पुष्पैः।।
 बिल्व प्रवाल तुलसीदल मंजरीभिः।
 त्वां पूजयामि जगदीश्वरी मे प्रसीद ।।

 नाना सुगंधि पुष्पाणि यथाकालोद् भवानि च । 
  पुष्पंजलिर्मया मया दत्त गृहाण परमेश्वर ।।

 कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।
बुद्धयात्मना वानुसृत स्वभावात् । ।      
 करोमि यद्यत् सकलं परस्मै ।
नारायणायेति समर्पयेतत् ।। 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । 
सर्वे भद्राणि पश्यन्ति मा कश्चिद दुःख भाग भवेत् ।। 

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
 त्वमेव सर्वं मम देव देवः ।। 


॥ क्षमा -प्रार्थना ।।

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशंमया । 
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।१ ।।
आवाहनंन जानामि , न जानामि विसर्जनम् । 
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥२ ॥ 
मन्त्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । 
यत्यूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।३ ।।
अपराधशतंकृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् । 
यांगतिंसमवाप्नोति न तांब्रह्मादयाः सुराः ।।४ ।। सापराधोऽस्मिशरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके । 
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।।५ ।। अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्यूनमधिकं कृतम् । 
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि।।६ ।। 
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
 गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि।।७ ।। 
गुह्यातिगुह्यगोप्ती त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । 
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि।।८ ।। 

शुक्रवार, 26 जून 2020

पांच पवित्र कन्याओं का रहस्य


अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा ।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥

अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, और मंदोदरी, इन पाँचों के नित्य स्मरण से (गुण और जीवन स्मरण से) महापातक का नाश होता है।

पंचकन्या 1 : अहिल्या पद्मपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार देवराज इन्द्र स्वर्गलोक में अप्सराओं से घिरे रहने के बाद भी कामवासना से घिरे रहते थे। एक दिन वो धरती पर विचरण कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक कुटिया के बाहर गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या दैनिक कार्यों में व्यस्त हैं। अहिल्या इतनी सुंदर और रूपवती थी कि इन्द्र उन्हें देखकर मोहित हो गए।

इस तरह इन्द्र रोजाना देवी अहिल्या को देखने के लिए कुटिया के बाहर आने लगे। धीरे-धीरे उन्हें गौतम ऋषि की दिनचर्या के बारे में पता चलने लगा। इन्द्र को अहिल्या के रूप को पाने की एक युक्ति सूझी। उन्होंने सुबह गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या के साथ कामक्रीडा करने की योजना बनाई क्योंकि सूर्य उदय होने से पूर्व ही गौतम ऋषि नदी में स्नान करने के लिए चले जाते थे।

इसके बाद करीब 2-3 घंटे बाद पूजा करने के बाद आते थे। इन्द्र आधी रात से ही कुटिया के बाहर छिपकर ऋषि के जाने की प्रतीक्षा करने लगे। इस दौरान इन्द्र की कामेच्छा उनपर इतनी हावी हो गई कि उन्हें एक और योजना सूझी। उन्होंने अपनी माया से ऐसा वातावरण बनाया जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि सुबह हो गई हो। ये देखकर गौतम ऋषि कुटिया से बाहर चले गए। उनके जाने के कुछ समय बाद इन्द्र ने गौतम ऋषि का वेश बनाकर कुटिया में प्रवेश किया। उन्होंने आते ही कहा अहिल्या से प्रणय निवेदन किया.।

अपने पति द्वारा इस तरह के विचित्र व्यवहार को देखकर पहले तो देवी अहिल्या को शंका हुई लेकिन इन्द्र के छल-कपट से सराबोर मीठी बातों को सुनकर अहिल्या भी अपने पति के स्नेह में सबकुछ भूल बैठी। दूसरी तरफ नदी के पास जाने पर गौतम ऋषि ने आसपास का वातावरण देखा जिससे उन्हें अनुभव हुआ कि अभी भोर नहीं हुई है। वो किसी अनहोनी की कल्पना करके अपने घर पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने देखा कि उनके वेश में कोई दूसरा पुरुष उनकी पत्नी के साथ रति क्रियाएं कर रहा है।

ये देखते ही वो क्रोध से व्याकुल हो उठे। वहीं दूसरी ओर उनकी पत्नी ने जब अपने पति को अपने सामने खड़ा पाया तो उन्हें सारी बात समझ में आने लगी। अंजाने में किए गए अपराध को सोचकर उनका चेहरा पीला पड़ गया। इन्द्र भी भयभीत हो गए। क्रोध से भरकर गौतम ऋषि ने इन्द्र से कहा ‘मूर्ख, तूने मेरी पत्नी का स्त्रीत्व भंग किया है। उसकी योनि को पाने की इच्छा मात्र के लिए तूने इतना बड़ा अपराध कर दिया। यदि तुझे स्त्री योनि को पाने की इतनी ही लालसा है तो मैं तुझे श्राप देता हूं कि अभी इसी समय तेरे पूरे शरीर पर हजार योनियां उत्पन्न हो जाएगी’।

कुछ ही पलों में श्राप का प्रभाव इन्द्र के शरीर पर पड़ने लगा और उनके पूरे शरीर पर स्त्री योनियां निकल आई। ये देखकर इन्द्र आत्मग्लानिता से भर उठे। उन्होंने हाथ जोड़कर गौतम ऋषि से श्राप मुक्ति की प्रार्थना की। ऋषि ने इन्द्र पर दया करते हुए हजार योनियों को हजार आंखों में बदल दिया। वहीं दूसरी ओर अपनी पत्नी को शिला में बदल दिया। बाद में प्रभु श्रीराम ने उनका पैरों से स्पर्श कर उद्धार किया।

इन्द्र को ‘देवराज’ की उपाधि देने के साथ ही उन्हें देवताओं का राजा भी माना जाता है लेकिन उनकी पूजा एक भगवान के तौर पर नहीं की जाती। इन्द्र द्वारा ऐसे ही अपराधों के कारण उन्हें दूसरे देवताओं की तुलना में ज्यादा आदर- सत्कार नहीं दिया जाता।

पंचकन्या 2 : तारा किष्किंधा की महारानी और बाली की पत्नी तारा का पंचकन्याओं में दूसरा स्थान है। कुछ ग्रंथों के अनुसार तारा, बृहस्पति की पौत्री थीं तो कुछ के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकली मणियों में से एक मणि तारा थी। तारा इतनी खूबसूरत थी कि देवता और असुर सभी उनसे विवाह करना चाहते थे।

बाली की पत्नी :बाली और सुषेण, मंथन में देवताओं के सहायक के तौर पर मौजूद थे। जब तारा क्षीर सागर से निकली तब दोनों ने ही उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। बाली, तारा के दाहिनी तरफ खड़ा था और सुषेण उनकी बाईं ओर। तब विष्णु ने इस समस्या का हल किया कि जो व्यक्ति कन्या की दाहिनी ओर खड़ा होता है वह उसका पति और बाईं ओर खड़ा होने वाला उसका पिता होता है। ऐसे में बालि को तारा का पति घोषित किया गया।

सुग्रीव के साथ युद्ध :असुरों के साथ युद्ध के दौरान बाली की मृत्यु को प्राप्त जैसी अफवाह उड़ने पर सुग्रीव ने बाली की पत्नी के साथ विवाह कर खुद को किष्किंधा का सम्राट घोषित कर दिया। लेकिन जब बाली वापस आया तब उसने अपने भाई से राज्य और अपनी पत्नी को हासिल करने के लिए आक्रमण कर दिया।

बाली ने सुग्रीव को अपने राज्य से बाहर कर दिया और साथ ही उसकी प्रिय पत्नी रुमा को अपने पास ही रखा। जब सुग्रीव को राम का साथ प्राप्त हुआ तब उसने वापस आकर फिर बाली को युद्ध के लिए ललकारा।

तारा का सुझाव :तारा समझ गई कि सुग्रीव के पास अकेले बाली का सामना करने की ताकत नहीं है इसलिए हो ना हो उसे राम का समर्थन प्राप्त हुआ है। उसने बाली को समझाने की कोशिश भी की लेकिन बाली ने समझा कि सुग्रीव को बचाने के लिए तारा उसका पक्ष ले रही है। बाली ने तारा का त्याग कर दिया और सुग्रीव से युद्ध करने चला गया।

बाली का कथन :जब राम की सहायता से सुग्रीव ने बाली का वध किया तो मृत्यु शैया पर रहते हुए बाली ने अपने भाई सुग्रीव से कहा कि वे हर मामले में तारा का सुझाव अवश्य लें, तारा के परामर्श के बिना कोई भी कदम उठाना भारी पड़ सकता है।

पंचकन्या 3 :  मंदोदरी तीसरा नाम है असुर सम्राट रावण की पत्नी मंदोदरी का, जिसने रावण की हर बुरे कदम पर खेद प्रकट किया और उसे हर बुरा काम करने से रोका। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में मंदोदरी को एक ऐसी स्त्री के रूप में दर्शाया गया है जो हमेशा सत्य के मार्ग पर चली। मंदोदरी, असुर राजा मयासुर और हेमा नामक अप्सरा की पुत्री थी। मंदोदरी की सुंदरता पर मुग्ध होकर रावण ने उससे विवाह किया था।

पंच कन्याओं में से एक मंदोदरी को चिर कुमारी के नाम से भी जाना जाता है। मंदोदरी अपने पति द्वारा किए गए बुरे कार्यों से अच्छी तरह वाकिफ थी, वह हमेशा रावण को यही सलाह देती थी कि बुराई के मार्ग को त्याग कर सत्य की शरण में आ जाए, लेकिन अपनी ताकत पर गुमान करने वाले रावण ने कभी मंदोदरी की बात को गंभीरता से नहीं लिया।

रावण की मृत्यु के पश्चात, भगवान राम के कहने पर विभीषण ने मंदोदरी से विवाह किया था।

पंचकन्या 4 : कुंती रामायण काल के बाद चौथा नाम आता है कुंती का। हस्तिनापुर के राजा पांडु की पत्नी और तीन ज्येष्ठ पांडवों की माता, कुंती को ऋषि दुर्वासा ने एक ऐसा मंत्र दिया था, जिसके अनुसार वह जिस भी देवता का ध्यान कर उस मंत्र का जाप करेंगी, वह देवता उन्हें पुत्र रत्न प्रदान करेगा।

मंत्र का प्रभाव : कुंती को इस मंत्र के प्रभावों को जानना था इसलिए एक दिन उन्होंने भगवान सूर्य का ध्यान कर उस मंत्र का जाप आरंभ किया। सूर्य देव ने प्रकट हुए और उन्हें एक पुत्र प्रदान किया। वह पुत्र कर्ण था, लेकिन उस समय कुंती अविवाहित थी इसलिए उन्हें कर्ण का त्याग करना पड़ा।

स्वयंवर में कुंती और पांडु का विवाह हुआ। पांडु को एक ऋषि द्वारा यह श्राप मिला हुआ था कि जब भी वह किसी स्त्री का स्पर्श करेगा, उसकी मृत्यु हो जाएगी। पांडु की मृत्यु के पश्चात कुंती ने धर्म देव को याद कर उनसे युधिष्ठिर, वायु देव से भीम और इन्द्र देव से अर्जुन को प्राप्त किया।

माद्री की प्रार्थना : पांडु की दूसरी पत्नी माद्री ने कुंती से इस मंत्र का जाप कर पुत्र प्राप्त करने की अनुमति मांगी, जिसे कुंती ने स्वीकार कर लिया। अश्विनी कुमार को याद कर माद्री ने उनसे नकुल और सहदेव को प्राप्त किया।

पंच कन्या 5 : द्रौपदी महाभारत की नायिका द्रौपदी भी पंच कन्याओं में से एक हैं। पांच पतियों की पत्नी बनने वाली द्रौपदी का व्यक्तित्व काफी मजबूत था। स्वयंवर के दौरान अर्जुन को अपना पति स्वीकार करने वाली द्रौपदी को कुंती के कहने पर पांचों भाइयों की पत्नी बनकर रहना पड़ा।

काली का अवतार : -  द्रौपदी को वेद व्यास ने यह वरदान दिया था कि पांचों भाइयों की पत्नी होने के बाद भी उसका कौमार्य कायम रहेगा। प्रत्येक पांडव से द्रौपदी को एक-एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। चौपड़ के खेल में हारने के बाद जब पांडवों को अज्ञातवास और वनवास की सजा हुई, तब द्रौपदी ने भी उनके साथ सजा का पालन किया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने पुत्र, पिता और भाई को खोने वाली द्रौपदी को कुछ ग्रंथों में मां काली तो कुछ में धन की देवी लक्ष्मी का अवतार भी कहा जाता है।
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                   English translation
Secret of the Five Holy Girls!

 Ahalya Draupadi Sita Tara Mandodari and.
 Panchakam na Smrennityam Mahapatakanashanam

 Ahalya, Draupadi, Sita, Tara, and Mandodari, the Mahapataka, are destroyed by the daily remembrance of these five (by virtue and remembrance of life).

 Panchakanya 1: According to a legend described in Ahilya Padmapurana, Devaraja was surrounded by sex in Indra Swargalok even after being surrounded by apsaras.  One day he was wandering on the earth.  Then he saw that outside a hut, Goddess Ahilya, wife of Gautama Rishi, is busy with daily tasks.  Ahilya was so beautiful and beautiful that Indra was fascinated to see her.

 In this way, Indra started coming out of the hut to see Goddess Ahilya daily.  Gradually he came to know about the routine of Gautam Rishi.  Indra figured out a way to get Ahalya's form.  He planned to do kamkrida with Ahilya in the morning disguised as Gautam Rishi because Gautam Rishi used to go to bathe in the river before sun rise.

 After this, they used to come after worshiping after about 2-3 hours.  Indra hid outside the hut and waited for the sage to leave.  During this time Indra's libido became so much dominated by him that he figured out another plan.  He created such an atmosphere with his illusion that it seemed that it was morning.  Seeing this, Gautam Rishi walked out of the hut.  Shortly after his departure, Indra entered the hut disguised as Gautam Rishi.  As soon as he came, he said to Ahilya.

 Goddess Ahilya was skeptical at first seeing such strange behavior by her husband, but after listening to Indra's demeanor and sweet things, Ahilya too forgot everything in her husband's affection.  On the other hand, Gautam Rishi, on approaching the river, saw the surrounding environment, which made him feel that it is not yet dawn.  He arrived at his house after imagining something untoward.  Going there, he saw that another man in his disguise was performing rituals with his wife.

 On seeing this, he got distraught with anger.  On the other hand, when his wife found her husband standing in front of him, he started to understand the whole thing.  Thinking of the crime committed, he had a pale face.  Indra also got frightened.  Filled with anger, the sage Gautam said to Indra, "Fool, you have disturbed the femininity of my wife.  You committed such a big crime just for want of getting her vagina.  If you have such a longing to get a woman's vagina, then I curse you that right now a thousand vagrants will be born on your whole body '.

 In a few moments the curse started to affect Indra's body and female vaginas came out on his entire body.  On seeing this, Indra was filled with self-aggrandizement.  He folded his hands and prayed to the Gautam sage for curse.  The sage, taking pity on Indra, turned thousands of yonias into thousand eyes.  On the other hand, he changed his wife into Shila.  Later Lord Prabhu touched them with feet.

 In addition to giving the title of 'Devaraja' to Indra, he is also considered the king of the gods but he is not worshiped as a god.  Due to such crimes by Indra, he is not given more respect than other gods.

 Panchakanya 2: Tara is the second of the Panchakanya, the queen of Kishkindha and Tara, wife of Bali.  According to some texts, Tara was the granddaughter of Jupiter and according to some, one of the beads that emerged during the churning of the ocean was Tara.  Tara was so beautiful that the gods and asuras all wanted to marry her.

 Bali's wife: Bali and Sushen were present in the churning as assistants to the deities.  When Tara came out of Kshira Sagar, both of them expressed their desire to marry him.  Bali was standing on Tara's right and Sushen on his left.  Vishnu then solved the problem that the person who stands to the right of the girl is her husband and her father who stands on the left.  In such a situation, Bali is declared as Tara's husband.

 War with Sugriva: Sugriva declared himself Emperor of Kishkindha by marrying Bali's wife as rumors of Bali's death during battle with Asuras flew.  But when Bali returned, he attacked his brother to gain the kingdom and his wife.

 Bali drove Sugriva out of his kingdom and also kept his beloved wife Ruma with him.  When Sugriva received Rama's support, he came back and again challenged Bali to battle.

 Tara's suggestion: Tara understood that Sugriva does not have the strength to face Bali alone, so Ho Naa Ho has the support of Rama.  He also tried to convince Bali but Bali understood that Tara was taking his side to save Sugriva.  Bali abandons Tara and goes to war with Sugriva.

 Bali's statement: When Sugriva slaughtered Bali with the help of Rama, while on his deathbed, Bali told his brother Sugriv to take Tara's suggestion in every case, without Tara's consultation, it would be heavy to take any step.  Can.

 Panchkanya 3: Mandodari The third name is Mandodari, wife of the Asura emperor Ravana, who regrets Ravana's every bad move and prevents him from doing every bad deed.  Hindu mythological texts depict Mandodari as a woman who always walked the path of truth.  Mandodari was the daughter of the demon king Mayasura and Apsara named Hema.  Enchanted by the beauty of Mandodari, Ravana married her.

 One of the Panch Kanya Mandodari is also known as Chir Kumari.  Mandodari was well aware of the evil done by her husband, she always advised Ravana to abandon the path of evil and come to the shelter of truth, but Ravana, who pretended to his strength, never spoke of Mandodari  Not taken seriously.

 After Ravana's death, Vibhishan married Mandodari at the behest of Lord Rama.

 Panchakanya 4: Kunti is the fourth name after the Ramayana period.  Kunti, the wife of King Pandu of Hastinapur and the mother of the three eldest Pandavas, was given a mantra by sage Durvasa, according to which, every god she would meditate and chant that mantra, the deity would bestow on her a son.

 Impact of Mantra: Kunti wanted to know the effects of this mantra, so one day he meditated on Lord Surya and started chanting that mantra.  Surya Dev appeared and provided him with a son.  That son was Karna, but at that time Kunti was unmarried so he had to sacrifice Karna.

 Kunti and Pandu were married at Swayamvar.  Pandu was cursed by a sage that whenever he touches a woman, he will die.  After Pandu's death, Kunti remembered Dharma Deva and received Yudhishthira from him, Bhima from Vayu Deva and Arjuna from Indra Deva.

 Madri's Prayer: Pandu's second wife Madri sought permission from Kunti to recite this mantra and obtain a son, which Kunti accepted.  Remembering Ashwini Kumar, Madri received Nakula and Sahadeva from him.

 Pancha Kanya 5: Draupadi Mahabharata's heroine Draupadi is also one of the Panch Kanya.  Draupadi, who became the wife of five husbands, had a strong personality.  Draupadi, who accepted Arjuna as her husband during Swayamvar, had to live as the wife of the five brothers at the behest of Kunti.

 Kali's Avatar: - Ved Vyas was granted a boon to Draupadi that even after being the wife of the five brothers, her virginity will remain.  Draupadi got one son each from each Pandava.  When the Pandavas were sentenced to exile and exile after losing in the game of Chaupar, Draupadi also followed the punishment with them.  Draupadi, who lost her son, father and brother in the battle of Kurukshetra, is also called the incarnation of Lakshmi, the goddess of wealth, in some texts as mother Kali.

बुधवार, 24 जून 2020

वास्तु व घर संसार

वास्तुविद्या बहुत प्राचीन है।विश्व के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में इसका उल्लेख मिलता है।इस विद्या के अधिकांश ग्रन्थ लुप्त हो चुके है।वास्तु का अर्थ है निवास करना।जिस भूमि में मनुष्य वास करता है उसे वास्तु कहते है।कुछ वर्षों से लोगो का ध्यान वास्तुविद्या पर गया जिससे भवन निर्माण आदि कार्यो में भवन निर्माताओं ने वास्तु पर विशेष ध्यान दिया।हमारे प्राचीन गर्न्थो में न जाने ऐसी कितनी विद्याएँ छिपी पड़ी है।वास्तु विद्या बहुत विशाल है।गृह वास्तु, प्रासाद वास्तु, नगर वास्तु, पुर वास्तु, दुर्ग वास्तु, आदि अनेक भेद है।

                                  जब मनुष्य अपने निवास के लिए ईट पत्थर आदि के गृह निर्माण करता है। तब उस गृह में वास्तु नियम लागू हो जाते है।वास्तु में दिशाओ का महत्त्व विशेष है। 

जमीन,घर,दुकान,ऑफिस क्रय निर्माण करते समय वास्तुविद की सलाह जरूर लानी चाहिये।

।।वास्तु का प्रादुर्भाव।।

भगवान शंकर जी ने जब अंधकासुर का वध किया ,उस समय उनके ललाट से पृथ्वी में पसीने की बूंदें गिरी।उनसे एक विकराल मुख वाला प्राणी उत्पन्न हुआ।उस प्राणी ने पृथ्वी पर गिरे हुए अन्धको के रक्त का पान किया जब वह तृप्त नही हुआ,तब वह भगवान शंकर जी के सम्मुख घोर तपस्या करने लगा।उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर जी ने उससे कहा की तुम्हारी जो कामना है वर माँग लो।उसने वर मांगा की में तीनों लोकों को ग्रसने में समर्थ होना चाहता हूँ।वर प्राप्त करके अपने विशाल शरीर तीनों लोकों अवरुद्ध करता हुआ पृथ्वी पर आ गिरा ।तब भयभीत देवताओं उसको अधोमुख करके वही स्तम्भित कर दिया।जिस देवता ने उसको जहाँ से दवा रखा था ।वह देवता उसके उसी स्थान पर निवास करने लगे।सभी देवताओं के निवास करने के कारण वह वास्तु नाम से प्रसिद्ध हुआ।

              जब भवन निर्माण किया जाता है तो सबसे पहले भूमि का शोधन ,पूजन, खनन ,शिलान्यास, फिर भवन का निर्माण कार्य किया जाता है।भवन निर्माण में वास्तु दिग्दर्शन के अनुसार,मुख्यद्वार,खिड़की,पूजास्थल,रसोईघर,भण्डारघर,शयनकक्ष,शौचालय,विद्याकक्ष,आदि वास्तु शास्त्र सम्मत निर्माण करना चाहिए।जिससे भवन में निवास करने पर किसी समस्या का सामना नही हो।प्रतिष्ठत भवन में तोड़ फोड़ करने से वास्तुभंग का दोष लगता है

भवन प्रासाद कार्य पूर्ण होने पर भवन की वास्तुशान्ति प्रतिष्ठा कर्म के बाद गृहप्रवेश करना चाहिये जिससे चिर सुख व आनन्द प्राप्त हो।






English transletar


Architecture is very ancient. It is mentioned in the Rigveda, the ancient text of the world. Most of the texts of this discipline have become extinct. Vaastu means to reside. The land in which man resides is called Vastu. People of some years.  The focus was on architecture so that the builders paid special attention to Vastu in construction work etc. There are so many such things hidden in our ancient garanthos. Vastu Vidya is very vast.  Durg Vastu, etc. have many differences.

 When man builds houses of bricks and stones etc. for his residence.  Then Vastu rules are applied in that house. The importance of directions in the object is special.

 The architect must be consulted while purchasing land, house, shop, office.

 The emergence of the object.

 When Lord Shankar ji killed Andhakasura, drops of sweat fell into the earth from his forehead. He gave birth to a ravenous creature. That creature drank the blood of the fallen darkness on the earth when it was not satisfied,  Then he started doing severe austerities in front of Lord Shankar ji. Pleased with his austerity, Lord Shankar Ji asked him to ask for whatever you wished for. He asked for the groom to be able to make all the three worlds able to bear.  His huge body fell on the earth blocking all the three worlds. Then the frightened gods turned to him and stunned him. The god from whom he had kept the medicine. That god began to reside in the same place.  The reason he became famous by the name Vastu.

 When the building is constructed, firstly the refining of the land, worship, mining, foundation, then the construction of the building is done. According to the architectural reference in the building, the main gate, window, place of worship, kitchen, warehouse, bedroom, toilet,  Vidyaksha, etc. should be constructed according to Vastu Shastra, so that no problem is faced while residing in the building.

 After the completion of the building work, the architecture of the building should enter the house after the prestige work, so that there is everlasting happiness and joy.






         आचार्य हरीश लखेड़ा
                     मुम्बई
         जय श्री बद्री विशाल
         मो  9004013983


सोमवार, 22 जून 2020

देवकार्य मे विचारणीय तथ्य

धार्मिक पूजा अनुष्ठान में पूजा कर्म का विशेष महत्व है।व्यक्ति अपने सुख शान्ति ,आरोग्यता,धन धान्य ,व्यापार वृद्धि ,वंश वृद्धि कार्यसिद्धि ,इष्ट की प्रसन्नता,मन इच्छित मनोकामना हेतु देव पूजन करता है। पूजा कार्य मे होने वाली त्रुटि से कभी कभी अनेक प्रकार की हानि होने के आसार बन जाते है।इस लिए पूजा कार्य शुद्धता व सावधानी से करना चाहिये।योग्य गुरु आचार्य जी से परामर्श से ही कार्य संपादित करें।देवतार्चन में कौन सा पदार्थ किस प्रकार अर्पित करना है।क्या करना है, क्या नही कुछ तथ्यों को जानने का प्रयास करते है।

1- देव पूजन में पुष्प अधोमुख कर नही चढ़ाये।विल्व पत्र अधोमुख करके चढ़ाये।कुशा के अग्र भाग से देवताओं पर जल न छिड़के।

2- शरीर के ऊपर या धोती में रखा, जल में डुबाया पुष्प देवता  ग्रहण नही करते है।

3 -श्री विष्णु को अक्षत, गणेश को तुलसी, शिव को केतकी , दुर्गा को दूर्वा,सूर्य को  विल्वपत्र नही चढ़ाये।

4-देवताओं को अर्पित  प्रज्वलित दीपक को बुझाना नही चाहिए।दीपक से दीपक जलाने से मनुष्य दरिद्र व रोगी होता है।

5-मांगलिक कार्यो में दूसरे की पहनी अंगूठी धारण नही करना चाहिए।

6-सभी शुभ कार्यो में पत्नी की दाये (दक्षिण) में बैठने का विधान है।किन्तु अभिषेक विप्रपाद प्रक्षालन तथा सिंदूर दान, भोजन ,यात्रा शयन के समय वामभाग में बैठाने का विधान है।

7-स्त्री आचमन के स्थान पर जल से नेत्रो को पोछ लें।

8 -स्त्री के बाएं हाथ व कन्या के दाहिने हाथ मे रक्षा सूत्र बाँधना चाहिए।

9-बिना तिलक यज्ञोपवीत के धौत वस्त्र के पूजन कार्य नही करना चाहिये।

10-खुले सर पूजा निषेध है।गमच्छा टोपी या रूमाल से सिर ढककर रखना शुभ है।

11-पतला चन्दन देवताओ को कदापि न चढ़ाये।

12-जो ब्राह्मण को यज्ञ के उपरान्त संतुष्ट न कर सके ।उसका यज्ञ असफल होता है।

13-ब्राह्मण के लिए चार बातों का विशेष ध्यान दें, प्रणाम , भोजन,दान,दक्षिणा।

14-ताम्बे के पात्र में रखा चन्दन अपवित्र होता है।

15-कमल पुष्प पांच रात,विल्व पत्र दश रात,तुलसी ग्यारह रात के बाद पुनः प्रक्षालन करके चढ़ाया जा सकता है।

16-स्त्री व शूद्र के शंख ध्वनि करने से लक्ष्मी रुष्ट होकर चली जाती है।

17-यज्ञादि में भूमिशयन करना ,ब्रह्मचर्य का पालन करना व अल्पाहार करना चाहिये।

18-यज्ञादि कर्म में मसूर की दाल ,बेगन ,पालक,लहसुन ,प्याज, गरम मसाले आदि का निषेद करें।

19-यज्ञादि कर्म शुरू होने के बाद दाड़ी बाल नख छेदन तेल मर्दन आदि का प्रयोग वर्जित है। 

20- पूजा मण्डप पूर्व ,पश्चिम,उत्तर दिशा में होना चाहिए।

21- दक्षिण दिशा में पितृ कार्य करना चाहिए।

22-मुख्य प्रवेश द्वार देहली में ॐ स्वस्तिक शुभ लाभ चिह्न अंकित करने से घर मे बाधाये प्रवेश नही करती।

22-रात्रि में कलश स्थापन नही करे।

23- पूजन कार्य मे शंख व घण्टी का पूजन करना न भूले।

24-सूंघा हुआ ,धोया हुआ,बासी फूल भगवान को न चढ़ाये।

25-पूजन में जलपात्र  घंटा ,धूपदानी ,तेल का दीपक,बायी ओर ही रखे।घी का दीपक,शंख,जल से भरा शंख दायीं ओर               रखे।

26-कुछ भी उपलब्ध न हो तो मानसिक पूजा ही करें।

27- शालीग्राम व नर्मदेश्वर की प्राण प्रतिष्ठा नही होती है।

28-पत्थर, काष्ठ,सोना,व अन्य धातुओं की प्रतिष्ठा घर व मंदिर में करनी चाहिए।

29-घर मे चल व मन्दिर में अचल प्रतिष्ठा करनी चाहिए।

30-ताम्बे के वर्तन में दूध रखकर शिव जी को नही चढ़ाये।

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                        English translation
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Facts to consider in devkarya-----------------------------;-

 Pooja karma is of special importance in religious worship rituals. The person worships God for his happiness, peace, wealth, wealth growth, business growth, growth of lineage, happiness of favors, desire for desired desires.  Sometimes there is a possibility of many types of loss due to the error in the worship work. Therefore, the worship work should be done with purity and caution. Edit the work only in consultation with the qualified Guru Acharya ji.  We have to offer, what to do, what not, we try to know some facts.

 1- Do not offer flowers in front of the deities in worshiping them. Offer them after bowing down the leaflets. Do not sprinkle water on the deities from the front part of Kusha.

 2- Placed above the body or in a dhoti, flowers immersed in water do not accept the deity.

 3 - Do not offer Sri Vishnu to Akshat, Ganesh to Tulsi, Shiva to Ketki, Durga to Durva, Sun to Vilvapatra.

 4- extinguish the lit lamp offered to the gods

 Do not want. By lighting a lamp with lamp, a person is poor and sick.

 5-Do not wear a ring worn by others in mangalic activities.

 6 - In all auspicious works, there is a law for sitting in the right (south) of the wife. But Abhishek is the law of sitting on the left side at the time of viprapada ablution and sindoor donation, food, travel and sleeping.

 7-Wipe the eyes with water in place of the female achaman.

 8 - Raksha Sutra should be tied in the left hand of the woman and right hand of the girl.

 9 - Without tilak Yagyopaveet, one should not do worship work of dhoti cloth.

 10- Open head worship is prohibited. It is auspicious to keep the head covered with a wish cap or handkerchief.

 11 - Never offer thin sandalwood to the gods.

 12 - One who cannot satisfy a Brahmin after a yajna. His yagna is unsuccessful.

 13-Pay special attention to four things for a Brahmin, salutation, food, charity, Dakshina.

 14-The sandalwood placed in a copper vessel is impure.

 15-Lotus flower can be offered after five nights, Vilva Patra Das night, Tulsi eleven night after being ablaze.

 16-Lakshmi goes away with anger due to the sound of a woman and a Shudra.

 17-In Yajnadi, one should perform Bhumiyan, observe Brahmacharya and take snacks.

 18-Yajnadi Karma consists of lentils, bean, spinach, garlic, onion,

 Dispose of hot spices etc.

 19-After the start of Yajnadi Karma, use of hairy hair nail piercing oil etc. is prohibited.

 20- The puja pavilion should be in East, West, North direction.

 21- Pitra work should be done in south direction.

 22-Main entrance door in Delhi, ॐ Swastik does not enter the house by imposing auspicious benefit sign.

 22 - Do not install the urn in the night.

 23- Do not forget to worship conch and bell in worship work.

 24- Do not offer smell, washed, stale flowers to God.

 25-In the worship, keep the vessel hour, incense, oil lamp, on the left side. Keep the lamp of the ghee, the conch, the conch filled with water on the right.

 26-If nothing is available then do mental worship.

 27- Shaligram and Narmadeshwar do not have life.

 28- Stone, wood, gold, and other metals should be respected in the home and temple.

 29-Must walk in the house and have a real reputation in the temple.

 30-Do not offer milk to Shiva by placing milk in the copper vatana.




                        आचार्य हरीश लखेड़ा
                                 वसई
                        जय श्री बद्री विशाल

               

 


श्रीकाल भैरवाष्टकम

  ।।श्री काल भैरवाष्टकम ्।।

ॐ देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रि पङ्कजं

व्याल यज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम

नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरं

काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥


भानु कोटि भास्वरं भवाब्धि तारकं परं

नील कण्ठ मीप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम ।

काल काल मंबुजाक्ष मक्षशूल मक्षरं

काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥


शूल टङ्क पाश दण्ड पाणि मादि कारणं

श्याम काय मादि देव मक्षरं निरामयम ।

भीम विक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं

काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥


भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्त चारु विग्रहं

भक्त वत्सलं स्थितं समस्त लोक विग्रहम ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं

काशिका पुराधि नाथ कालभैरवं भजे ॥४॥


धर्मसेतु पालकं त्वधर्म मार्गनाशकं

कर्मपाश मोचकं सुशर्मदायकं विभुम ।

स्वर्ण वर्ण शेष पाश शोभिताङ्ग मण्डलं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥


रत्नपादुका प्रभाभिरामपादयुग्मकं

नित्यमद्वितीयमिष्ट दैवतं निरञ्जनम ।

मृत्यु दर्प नाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥


अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं

दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥


भूतसङ्घनायकं विशाल कीर्तिदायकं

काशिवास लोकपुण्य पापशोधकं विभुम ।

नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥


कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं,

ज्ञानमुक्ति साधनं विचित्र पुण्यवर्धनम ।

शोक मोह दैन्य लोभ कोप ताप नाशनं

ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम ॥९॥


।।इति श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम ।।



शनिवार, 20 जून 2020

शिखाबन्धन का महत्व

सनातन धर्म के अनुसार सिर के पिछले भाग पर शिखा (चोटी)अवश्य रखनी चाहिये।शिखा रखने से बुद्धि बल का विकास होता है।शिखा शरीर मे निहित शक्तियों को संचार करती है।जहाँ चोटी का स्थान होता है।वह स्थान ब्रह्म स्थान(ब्रह्मरंध्र)के रूप में जानी जाती है।

                          जब यज्ञादि शुभ कर्म करते है। उस समय शिखा सिर के भाग का आछादन किया जाता है।जिससे मन मे चंचलता न हो।शुभ कार्यो में शिखा का बन्धन निम्न मंत्र से करना चाहिये।

चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवी शिखा मध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे।।


आध्यात्मिक  विज्ञान के अनुसार किसी भवन मंदिर की प्रतिष्ठा में शिखर में ध्वजा लगायी जाती है।उसी प्रकार शरीर भी एक मंदिर है।इसमें आत्मा रूप परमात्मा निवास करते है।अतः शिखर पर चोटी रूपी ध्वजा होनी चाहिये।मेरुदण्ड के भीतर रहने वाली ज्ञान तथा क्रिया शक्ति की आधार सुषुम्णा नाडी समाप्त होती है।यह स्थान शरीर का मर्म स्थान होता है।इस स्थान में चोटी रखने से मर्म स्थान सुरक्षित रहने से ज्ञानशक्ति क्रियाशक्ति सुरक्षित रहती है।जिससे भजन ध्यान जप तप आदि शुभ कर्म सुचारू रूप से सम्पन्न होते है।

 इस लिए कहा है

ध्याने दाने जपे होमे संध्यायां देवतार्चने।

शिखाग्रन्थिम सदा कुर्यादित्येतन्मनुरब्रवीत।।

स्त्री पुरुष में शिखा चोटी गूँथना बांधने से दिव्य तेज का संचार होता है।


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                English translation

Importance of dictation

 According to Sanatan Dharma, one must place a Shikha (peak) on the back of the head. Keeping a Shikha develops the power of intellect. Shikha communicates the powers inherent in the body. Where the peak is located. That place is the place of Brahma (Brahmarandhra)  ).

 When Yajnadis perform auspicious deeds.  At that time, the part of the Shikha head is covered, so that there is no agitation in the mind.

 Chidrupini Mahamaya Divyatej: Samyandte.

 Tishtha Devi Shikha Madhyay Tejovriddhin Kurushva.


 According to metaphysics, the flag of the building is flagged in the prestige of a temple. Similarly the body is also a temple, in which the divine form resides in the soul. Therefore, there should be a flag of the peak on the peak. Knowledge and action residing within the spinal cord.  Sushumna Nadi, the base of Shakti, ends. This place is the heart of the body. By keeping the peak in this place, keeping the heart of the place safe, the Jnashakti Kriyashakti is protected, due to which the auspicious deeds like chanting meditation, auspicious deeds etc. are completed smoothly.

 Asked for this

 Dhyane rashe chape homme evening

 Shikhagranthim Sada Kuryadityetanmanurbrabveet.

 Tying the crest peak in a male and a male is a divine teaser.




                  पं●हरीश चंद्र लखेड़ा
                     जय बद्री विशाल
                            वसई

शनिवार, 13 जून 2020

एकादशी व्रत व नाम


  • चैत्र कृष्ण पक्ष को यह एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है।इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है।और सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

  • चैत्र शुक्ल पक्ष को यह एकादशी कामदा एकादशी कहलाती है।इस दिन भगवान वासुदेव का पूजन किया जाता है।इस व्रत में अन्न व नमक नही खाया जाता।

  • बैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी बरूथिनी एकादशी व्रत कहलाती है।इस दिन भगवान मधुसूदन का पूजन किया जाता है।बरूथिनी व्रत करने से सभी पापो का नाश होता है ।सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है।चरणामृत ग्रहण करने से आत्म शुद्धि होती है

  • वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी मोहनी एकादशी व्रत कहलाती है।इस दिन भगवान पुरुषोत्तम राम की पूजा की जाती है इस व्रत से सभी निंदित पापो से मुक्ति होती है।

  • जेष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी अपरा या अचला एकादशी व्रत कहलाती हैं इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है।इस व्रत से कीर्ति पुण्य तथा धन की वृद्धि होती है।इस दिन फलाहार किया जाता है।

  • जेष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी निर्जला एकादशी व्रत कहलाती है ।वर्ष में चौबीस एकादशी आती है ।किंतु उसमे जेष्ठ शुक्ल एकादशी सबसे बढ़कर फल देने वाली है।इस एकादशी में व्रत रखने से वर्ष भर की एकादशी का फल प्राप्त होता है।एकादशी सूर्योदय से द्वादशी सूर्योदय तक जल भी न  ग्रहण करने का विधान है।यह व्रत अत्यंत संयम साध्य  है ।इस दिन भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है।

  • आषाढ़ कृष्ण पक्ष एकादशी योगिनी एकादशी व्रत कहलाती हैं।इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन किया जाता है।इस व्रत से पीपल वृक्ष काटने जैसे पापो से मुक्ति मिलती है।

  • आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी हरिशयनी या देवसोनी एकादशी कहलाती है इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए बलि के द्वार पर पाताल में रहते है ।और कार्तिक मास में शुक्ल एकादशी को लौटते है।इन चार माह भगवान विष्णु सागर में शयन करने के कारण विवाह आदि शुभ कर्म नही होते है।सभी एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है इस दिन भगवान को ताम्बूल अर्पण करना चाहिए।और स्तुति की जाती है।

  • सुप्ते  त्वयि जगन्नाथ जगतसुप्तम भवेदिदम ।
  • विबुद्धे त्वयि बुद्धम च जगत्सर्वं चरचरम ।।

  • श्रावण कृष्ण एकादशी पवित्रा अथवा कामिनी एकादशी कहलाती है।इस दिन भगवान श्रीधर की पूजा का विधान है।इस व्रत से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।इसके करने से ब्रह्म हत्या तक का दोष का निवारण हो जाता है।सभी पापो से मुक्ति दिलाने वाली है

  • श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी पुत्रदा एकादशी नाम से जानी जाती है।इस दिन भगवान जनार्दन की श्रद्धा पूर्वक पूजन की जाती है।इस व्रत से संतान की प्राप्ति होती है

  • भाद्रपद कृष्ण एकादशी प्रबोधनी या अजा एकादशी कहलाती है।इस दिन भगवान उपेंद्र स्वरूप की पूजा की जाती है

  • भाद्रपद शुक्ल एकादशी परिवर्तनी (वामन)एकादशी की नाम से प्रसिद्ध है।इस दिन शेष शय्या पर निद्रा मग्न भगवान विष्णु करवट बदलते है।इस दिन भगवान वामन अवतार की पूजा की जाती है।इसका फल वाजपेय यज्ञ समान होता हैवमं भगवान की कथा सुननी चाहिए।

  • आश्विन कृष्ण एकादशी इंदिरा एकादशी कहलाती है।इस व्रत के करने से सात पीढ़ियो के पितृ तर जाते है उन्हें अनन्त मोक्ष प्राप्त होता है।पितरो को दिव्य लोक में प्रवेश मिलता है।इस दिन भगवान शालिग्राम की पूजा का विधान है।पूजा व प्रसाद में तुलसी के पत्तो का प्रयोग किया जाता है।

  • आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी पापांकुशा एकादशी के रूप में जानी जाती है।पापरूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पापांकुशा एकादशी हुआ।इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए जान हितकारी कार्य ,मंदिर,धर्मशाला ,तालाब,प्याऊ,बाग,आदि बनवाने के कार्य प्रारम्भ करने चाहिए।पापांकुशा एकादशी उत्तम मुहूर्त है।

  • कार्तिक कृष्ण एकादशी रमा एकादशी कहलाती है।इस दिन भगवान कृष्ण रूप की पूजा करनी चाहिए।इस व्रत से बैभव की प्राप्ति होती है

  • कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी देवोत्थानी(देव उठानी)या देवठान होता है।इस दिन घर को लीप पोत सफाई करनी चाहिए।इस दिन देव उठाते है।इस एकादशी से सभी प्रकार के शुभ कार्य,विवाह,उपनयन,इत्यादि प्रारम्भ हो जाते है।इस दिन तुलसी व शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते है।जिन दम्पत्ति को कन्या नही होती वे जीवन मे तुलसी का विवाह कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त करते है।

  • मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते है।इस दिन भगवान कृष्ण का पूजन करना व फलों का भोग लगाया जाता है। 

  • मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी मोक्षदा एकादशी एवं गीता जयंती के नाम से प्रसिद्ध हैं।इस दिन भगवान कृष्ण व व्यास जी का पूजन करके गीता का व्याख्यान करना चाहिए।

  • पौष कृष्ण एकादशी सफला एकादशी का व्रत किया जाता है।भगवान अच्युत की पूजा की जाती है।इस व्रत के करने से अनेक कार्यो में सफलता प्राप्त होती है।

  • पौष शुक्ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।इस दिन सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।इस व्रत से सन्तान प्राप्ति व सन्तान रक्षा हिती है।

  • माघ कृष्ण एकादशी षटतिला  एकादशी कहते है।इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।इस दिन काले तिल  व श्यामा गाय के दान का विशेष महत्त्व है।शरीर मे तिल के तेल की मालिश तिल जल का स्नान व तिलों का पकवान का विशेष महत्व है।विधिपूर्वक व्रत करने से रोग मुक्ति होती है।

  • माघ शुक्ल एकादशी जया एकादशी कहलाती है इस दिन केशव की पूजा की जाती है।इस व्रत से भूत ,प्रेत,पिशाच,आदि निकृष्ट योनियो में जाने का भय नही रहता  ।परलोक में सुख प्राप्त होते है।

  • फाल्गुन कृष्ण एकादशी विजया एकादशी कहलाती है। इसके प्रभाव से दुःख दरिद्रता से मुक्त होता है।भगवान राम जी ने लंका पर विजय पाने के लिए ये व्रत किया था।

  • फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी आमलकी एकादशी कहलाती है ।इस दिन आंवले वृक्ष में नारायण का वास होने से आंवले के नीचे पूजन से नारायण प्रशन्न होते है।इस दिन आँवला खाना व दान देना चाहिए। 
  • कृष्णाय वासुदेवाय  हरये परमात्मने। 

  • प्रणत कलेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।

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डॉक्टर से कैसे बचें

चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल। सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही।। अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना। ई बार...