गुरुवार, 21 दिसंबर 2023
जनन मरण अशौच विचार
।।अशौच - विचार।।
अशौच दो प्रकारका होता है - १ - जननाशौच तथा २ - मरणाशौच । यहाँ मरणाशौचके संदर्भमें कुछ विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं ।
( १ ) मरणाशौचके सम्बन्धमें शास्त्रके वचनानुसार ब्राह्मणको दस दिनका , क्षत्रियको बारह दिनका , वैश्यको पंद्रह दिनका और शूद्रको एक महीनेका अशौच लगता है । परंतु शास्त्रमें निर्णयात्मक यह व्यवस्था है कि चारों वर्णोकी शुद्धि दस दिनमें हो जाती है । यह कायशुद्धि अर्थात् सामान्य शुद्धि है । इसके अनन्तर अस्पृश्यताका दोष नहीं रहता । अन्नादिप्रयुक्त पूर्ण शुद्धि बारहवें दिन सपिण्डीकरणके बाद ही होती है । इसीलिये देवार्चन आदि इसके अनन्तर ही किये जा सकते हैं ।
( २ ) दस दिनके लिये प्रवृत्त अशौचके अन्तर्गत यदि दूसरा दस दिनतकके लिये प्रवृत्त अशौच हो जाय ( किसी व्यक्तिको मृत्यु हो जाय ) तो पूर्वप्रवृत्त दशाहाशौचकी शुद्धिके साथ उत्तरप्रवृत्त दशाहाशौचकी भी निवृत्ति हो जायगी अर्थात् पहले व्यक्तिको मृत्युतिथिके अनुसार दूसरेके अशौचको भी निवृत्ति हो जायगी , किंतु प्रथम मरणाशौचके दसवें दिनकी रातके तीन प्रहरतक दस दिनतक रहनेवाला यदि दूसरा मरणाशौच हो गया तो पहले के दस दिनके बाद दूसरे मरणाशौच को निमित्त दो दिन और मरणाशौच रहता है । यदि पूर्वोक्त शत के चौथे प्रहरमें दूसरा मरणाशीच हो गया तो दूसरे मरणाशौच के लिये प्रथम मरणाशौच के बाद तीन दिनका और मरणाशीच रहता है । क्रिया - कर्म करनेवालेको तो पूरे दस दिनतक मरणाशौच रहता है ।
( 3 ) पिताके मरनेके दस दिनके भीतर माताको भी मृत्य होनेपर पिताके मृत्यु दिवश दिनसे डेढ़ दिन ( पक्षिणी ) मरणाशौच अधिक रहता है । यह पक्षिणी मरणाशौच दशम रात्रि के पूर्व मरने पर होता है । दशम रात्रिके तीन प्रहर तक मृत्यु होनेपर दो दिनका तथा चौथे प्रहर में मरने तक तीन दिनका ही अशौच होगा , पक्षिणी अशौच नहीं होगा ।
( ४ ) पिताके मरने के अनन्तर माताको मृत्यु हो जाय और माताका पक्षिणी अथवा दो या तीन दिनका अधिक अशौच प्रवृत्त हो तो भी ग्यारहवें दिन पिताका आद्यश्राद्ध महैकोदिष्ट , शय्यादान तथा वृषोत्सर्ग आदि कृत्य करने चाहिये । अन्य सपिण्डोंके ग्यारहवें दिन आद्यश्राद्धदि के विषयमें दोनों पक्ष है । कुछ का मत है करना चाहिये तथा कुछका मत है नहीं । अत : देशाचारके अनुसार करना चाहिये ।
( 5 ) माताको मृत्यु के बाद दस दिनके भीतर पिताकी भी मृत्यु हो जाय तो पिताके मरणदिनसे पूरे दस दिनतक मरणाशौच रहता है अर्थात् माताके मरणाशौच कि शुध्दि होनेपर भी पिताके मरणाशौचकी शुद्धि नहीं होती ।
( ६ ) किसी कारण वश मृत्यु दिवस के दिन दाह - संस्कार न हो सके और किसी दूसरे दिन दाह - संस्कार करना पड़े तो भी मृत्युदिनसे हो गिनकर पूरे दस दिनका अशौच लगता है , किंतु अग्निहोत्रीके मरनेपर दाह संस्कारके दिनसे ही दस दिनका अशौच लगता है ।
( ७ ) किसी कारणवश माता - पिताका दस दिनके भीतर ही पुत्तलदाह करना पड़े और उसका पहले अशौचसम्बन्धी क्रियाकर्म नहीं किया हो तो मरणदिनसे पूरे दस दिनका अशौच रहता है । मृत्युदिवससे दस दिनके बाद माता - पिताका पुत्तलदाह करके क्रियाकर्म करना पड़े तो पुत्र और पली को दाह संस्कारके दिनसे पूरे दस दिनका अशौच रहता है । माता - पिताके अतिरिक्त यदि दस दिनके अनन्तर किसीका पुतलदाह करना पड़े तो तीन दिनका अशौच रहता है ।
( ८ ) माता - पिताके मरनेपर विवाहिता लड़की को तीन दिन का अशौच लगता है ।
( ९ ) घर में जबतक शव रहे तब तक वहाँ अन्य गोत्रियों को भी अशौच रहता है ।
( १० ) एक जाति के व्यक्ति यदि किसी शव को कन्धा देते हैं , उसके घरमें रहते हैं और वहाँ भोजन करते हैं तो उन्हें भी दस दिनका अशौच रहेगा । यदि वे केवल भोजनमात्र करते हैं अथवा मात्र गृहवास करते हैं तो उन्हें तीन रातका अशौच लगेगा । यदि केवल शवको कन्धा देते हैं तो उन्हें एक दिनका अशौच लगता है ।
( ११ ) दिनमें शवका दाह - संस्कार होनेपर शवयात्रामें शामिल होनेवाले लोगोंको सूर्यास्त होनेके पूर्वतक अशौच रहता है । सूर्यास्त होने पर नक्षत्र - दर्शनके अनन्तर स्नान आदि करके यज्ञोपवीत बदल देना चाहिये । रात्रि में दाह - संस्कार होनेपर सूर्योदयके पूर्वतक का अशौच रहता है ।
बालकों की मृत्यु पर अशौच - विचार।
( १ ) नाल कटने के बाद नामकरण के पूर्व अर्थात् बारह दिनके भीतर यदि बालक मर गया तो बन्धुवर्ग स्नानमात्रसे मरणाशौचसे निवृत्त हो जाते हैं । माता - पिताको पुत्रके मरने पर तीन रात्रि का तथा कन्या के मरने पर एक दिन का अशौच रहता है , परंतु जनना शौच पूरे दस दिन तक रहता है ।
( २ ) नामकरण के पश्चात् दाँत की उत्पत्ति ( छः मास ) -के पूर्व बालक के मरनेपर बन्धुवर्ग स्नान मात्र से शुद्ध हो जाते हैं । माता - पिता को पुत्रके मरने पर तीन रात्रिका तथा कन्याके मरनेपर एक दिनका अशौच रहता है ।
( ३ ) दाँतको उत्पत्ति तथा चूडाकर्म ( मुण्डन - संस्कार - तीन वर्ष ) हो चुके बालकके मरनेपर माता - पिताको तीन दिनका मरणाशीच लगता है और सपिण्डको एक दिनका मरणाशीच लगता है ।
( ४ ) नामकरणके बाद उपनयन संस्कारके पहले मरनेपर तीन दिनका मरणाशीच रहता है ।
( ५ ) उपनयन संस्कार होनेके बाद मृत्यु होनेपर सात पुश्त के भीतरके लोगोंको दस दिनका मरणाशौच रहता है । चूंकि ब्राह्मण बालक के उपनयनका मुख्य काल आठ वर्षका है । अतः आठ वर्षकी अवस्था हो जानेपर उपनयन न होनेपर भी बालकको मृत्यु होनेपर पूरे दस दिनका मरणाशौच रहता है । इसी प्रकार अन्य वर्णो के लिये भी उपनयनके लिये निर्धारित मुख्य कालके अनन्तर उपनयन न होनेपर भी बालकको मृत्यु होनेपर दस दिनका मरणाशौच रहता है ।
( ६ ) अनुपनीत बालक तथा अविवाहिता कन्याको माता और पिताके मरनेपर ही दस दिनका अशौच होता है । अन्य सगोत्रियोंके मरनेपर कोई अशौच नहीं होता ।
-------------------------------------/------------------------------------
English translation
.. Ashouch - Thoughts.
There are two types of Ashouches - 1 - Jannashouch and 2 - Death. Here some ideas are being presented in the context of death.
(1) According to the scripture in relation to death, Brahmins think ten days, Kshatriyas twelve days, Vaishyas fifteen days and Shudras one month Ashoka. But in scripture, it is a decisive arrangement that the purification of the four varnas is done in ten days. This is Kayasuddhi i.e. general purification. Apart from this, there is no fault of untouchability. The complete purification of the Annadipruta is done on the twelfth day only after the intensification. That is why Devarchan etc. can be done only within it.
(2) Under Ashoka, the tenure for ten days, if the Ashoka is in force for the second ten days (if a person dies) then the condition of the predecessor will be retired along with the purity of the predecessor i.e. the first person will also be retired according to the death date. If the second death has occurred for ten days for three days of the night of the tenth day of death, then after the first ten days, there is two more days for the second death. If the second death has taken place in the fourth half of the aforesaid terms, then for the second death row, there will be three more days after the first death. The person who performs Kriya-karma remains mortified for the whole ten days.
(3) Within ten days of the father's death, if the mother also dies, the death of the father is more than one and a half days from the day of death (birds). This bird death occurs before the night of the tenth night. On the death of three nights till the tenth night, there will be ashoka for two days and till death in the fourth day, there will be no ashoka.
(4) If the mother dies within the death of the father, and if the mother's wife or more than two or three days of ill-treatment is prevalent, then on the eleventh day, the father's Adyashradha should perform acts of Mahayakoda, Shayadan and Vrishotsarga etc. On the eleventh day of the other sapindas, there is both sides regarding the Adyasradhadhi. Some have their opinion and some have no opinion. Therefore, it should be done according to the behavior.
(5) If the father also dies within ten days after the mother's death, then the death of the father remains for the entire ten days, that is, even after the purity of the mother's death, the death of the father is not purified.
(4) Due to some reason the cremation cannot be done on the day of death and even if you have to perform the cremation on another day, even after the death day, the whole ten day's ashach takes place, but on the death of Agnihotri, ten days from the cremation itself.
(4) For some reason, the parents have to do the work within ten days and if they have not done Ashoka-related work before, then there is a full ten-day Ashoka from the day of death. After ten days from the day of death, if the parents have to perform the rituals by performing the work, then the son and the wife have a complete ten days of the cremation day. In addition to the parents, if one has to do mannequin within ten days, then there will be three days of Ashoka.
(4) Married girl gets a three-day Ashoka on the death of her parents.
(4) As long as there is a dead body in the house, other tribes also remain unhappy there.
(10) If a person gives shoulders to a dead body, lives in his house and dines there, he will also have ten days of uneasiness. If they eat only food or stay home only, then they will suffer three nights. If only the bodies are shaved then they feel ashaka for a day.
(11) After the cremation of the body in the day, the people who attend the funeral procession remain untouched before sunset. After sunset, the Yajnopavit should be changed by taking a bath in the constellation - darshan. As the rites are cremated, Ashoka remains before sunrise.
Ashouch on the death of children - thoughts.
(1) Before naming, after cutting the placenta, that is, if the child dies within twelve days, then the exile is removed from the bathing body. The parents have three nights on the death of their son and one day of death on the death of the girl child, but the massacre lasts for ten days.
(2) After naming, the origin of the tooth (six months) - Before the child dies, the exiles are purified from bathing. The parents have three nights on the death of their son and one day's rest on the death of the girl child.
(3) On the death of a child having been born of tooth and chudakarma (shaving - rites - three years), the parents feel death for three days and the spindle feels death for one day.
(4) After naming, there is a three-day death after dying before the Upanayana ceremony.
(5) On the death of the people after the Upanayana rituals, the people within seven ancestors have ten days of death. Since the main period of upanayaka of a Brahmin child is eight years. Therefore, even after the completion of eight years of age, there is no death for the child, even if the child dies, the death of the child remains complete for ten days. In the same way, even if there is no upanayan within the main period prescribed for Upanayana for other characters also, the child remains ten days old after death.
(4) Ten days of unhappiness takes place only after the death of the mother and father of the unmarried child and unmarried girl. There is no Ashoka on the death of other siblings.
शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023
नीति श्लोक
नीति श्लोक--
नमस्कारों प्रियो भानु: , जलधारा शिवप्रिया ।
अलंकारों प्रियो कृष्ण:, ब्राह्मण मोदक प्रिय ।।
शतं विहाय भोक्तव्यं ,सहस्रं नाम आचारेत ।
लक्ष्य त्यक्त्वा दातव्यं, कोटी त्यक्त्वा हरी भजेत ।।
प्रदक्षिणा क्रम--
एक चंड़या रवे सप्त:, तिस्र कार्या विनायके ।
हरे चत्रश्च कर्तव्या शिवस्थ अर्थ प्रदक्षिणा ।।
आयु कर्म वित्तं च , विद्या निधन मेंव च ।
पंचैतानी ही सृजन्ते ,गर्भस्थस्यैव देहिन: ।।
बलं विद्यां च विप्राणां , राज्ञां सैन्यं बलं तथा ।
बलं वितं वैश्याणां , शुद्रानां परिचर्याका।।
सोमवार, 4 दिसंबर 2023
गिरिराज गोवर्धन पर्वत की उत्पति
गिरिराज गोवर्धन की उत्पत्ति के विषय में नंद जी ने सानंद जी से पूछा।
गोवर्धन गिरिराज पर्वत की उत्पत्ति कैसे हुई और इनको गिरिराज क्यों कहते हैं।
सानंद जी ने कहा कि एक समय की बात है हस्तिनापुर में महाराज पांडु ने धर्मधारियों में श्रेष्ठ श्री भीष्म जी से ऐसा ही प्रश्न किया था।
उनके उन प्रश्न को भीष्म द्वारा दिए गए उत्तर को अन्य बहुत से लोग भी सुन रहे थे उसमें भीष्म जी ने उत्तर दिया वही मैं यहां सुन रहा हूं साक्षात परी पूर्णतम भगवान श्री कृष्णा जो असंख्य ब्रह्मांड के अधिपति गोलोक के नाथ और सब कुछ करने में समर्थ है जब पृथ्वी का भार उतारने के लिए स्वयं इस भूतल पर पधारने लगे उन भगवान जनार्दन देवाधिदेव ने अपनी प्राण बल्लभा राधा से कहा प्रिये तुम मेरे वियोग में भयभीत रहती हो अतः तुम भी भूतल पर चलो.
श्रीराधा जी बोली - प्राणनाथ जहां वृंदावन नहीं है, जहां वह यमुना नदी नहीं है,तथा जहां गोवर्धन पर्वत नहीं है, वहां मेरे मन को सुख नहीं मिल सकता।
श्री राधा जी की बात सुनकर स्वयं श्री हरि ने अपने धाम से 84 कोश विस्तृत भूमि गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी को गोलोक भूतल पर भेजा।
उस समय 84 कोश विस्तार वाली गोलोंक की सर्वलोक बंदिता भूमि 24 वनों के साथ यहां आई गोवर्धन पर्वत ने भारतवर्ष से पश्चिम दिशा में शाल्मली द्वीप के भीतर द्रोणाचल की पत्नी के गर्भ से जन्म ग्रहण किया.
उस अवसर पर देवताओं ने गोवर्धन के ऊपर फूल बरसाए हिमालय और सुमेर आदि समस्त पर्वतों ने वहां जाकर प्रणाम किया और परिक्रमा करके गोवर्धन का विधिवत पूजन किया पूजन के पश्चात उन महान पर्वतों ने उसकी स्तुति प्रारंभ की.
पर्वत बोले तुम साक्षात पूर्ण परिपूर्णतम भगवान श्री कृष्ण के गोलोक धाम में जहां दिव्य गौ का समुदाय निवास करता है तथा गोपाल एवं गोप सुंदरिया शोभा पाती है तुम्हीं गोवर्धन नाम से वृंदावन में विराजित हो इस समय तुम ही हम समस्त पर्वतों में गिरिराज हो तुम वृंदावन की गोद में निवास करने वाले गोलोक मे मुकुट मणि हो तुम गोवर्धन को सादर प्रणाम है।
तभी से यह गिरीश श्रेष्ठ गोवर्धन साक्षात गिरिराज कहलन लगे।
एक समय मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य जी तीर्थ यात्रा के लिए भूतल पर भ्रमण करने लगे उन मुनिश्रेष्ठ ने द्रोणाचल के पुत्र श्याम वर्ण वाले श्रेष्ठ पर्वत गोवर्धन को देखा जिसके ऊपर माधवी लता के सुमन सुशोभित हो रहे थे वहां वृक्ष फलों के भार से लगे हुए थे झरनों के झर झर शब्द वहां गूंज रहे थे उन पर्वत पर उनकी बड़ी शांति विराज रही थी|
पुलस्त्य जी उसे पर्वत से बोले कि तुम पर्वतों के स्वामी हो समस्त देवता तुम्हारा सादर सत्कार करते हैं तुम दिव्य औषधियां से संपन्न तथा मनुष्यों को सदा जीवन देने वाले हो।
मुनिवर पुलस्त्य जी के मन मे उस पर्वत को प्राप्त करने की इच्छा हुई इसके लिए वह द्रोणाचल के समीप गए ओर द्रोणगिरि ने उनका पूजन सत्कार किया।
इसके बाद पुलस्त्य जी उस पर्वत से बोले मैं काशी निवासी हूं तुम्हारे निकट याचक बनकर आया हूं
तुम अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दो यहां अन्य वस्तुओं से मेरा कोई प्रयोजन नहीं है?
भगवान विश्वेश्वर की महानगरी काशी नाम से प्रसिद्ध है ,जहां मरण को प्राप्त हुआ पापी पुरुष भी तत्काल परम मोक्ष प्राप्त कर लेता है ,जहां गंगा नदी प्राप्त होती है ,जहां साक्षात विश्वनाथ विराजमान है ,मैं वहीं तुम्हारे पुत्र को स्थापित करूंगा जहां कोई दूसरा पर्वत नहीं है ।मैं वहां तुम्हारे ऊपर बैठकर तपस्या करूंगा ऐसी मेरी अभिलाषा है।
द्रोणाचल बोले -मैं पुत्र स्नेह से आकूल हूं यह पुत्र मेरा अत्यंत प्रिय है तथापि आपके शाप के भय से इसे मैं आपके हाथों में देता हूं।
पुलस्त्य जी - बेटा तुम मेरे हाथ पर बैठकर सुख पूर्वक चलो जब तक काशी नहीं आ जाती तब तक मैं तुम्हें हाथ पर ही लेके चलूंगा।
गोवर्धन ने कहा - मुनि मेरी एक प्रतिज्ञा है आप जहां कहीं भी भूमि पर मुझे एक बार रख देंगे वहां की भूमि से मैं पुनः उत्थान नहीं करूंगा।
पुलस्त्य जी बोले मैं इस शल्मली द्वीप से लेकर भारत के कौशल देश तक तुम्हें कहीं भी रास्ते में नहीं रखूंगा यह मेरी प्रतिज्ञा है।
ऋषि पुलस्त्य जी हाथ में गिरिराज पर्वत को हाथ में रखकर चलने लगे और लोगों को अपना तेज दिखाने लगे चलते चलते ब्रजमंडल पहुंचे और ब्रज मंडल पहुंचते ही मुनिवर को लघुशंका लगी और भूल बस उन्होंने गोवर्धन पर्वत को ब्रज मंडल में रख दिया और लघु शंका स्नान से निवृत्त होकर पर्वत उठाने लगे ओर नहीं उठने पर गोवर्धन पर्वत ने उनकी प्रतिज्ञा याद दिलाई,
मुनिवर के अथक प्रयास करने के बाद भी पर्वत हिला नहीं ।
मुनिवर ने गिरिराज पर्वत को श्राप दे दिया कि तू बड़ा ढीठ है तूने मेरा मनोरथ पूर्ण नहीं होने दिया, इसलिए तू तिल तिल छोटा होता चला जाएगा ।
सोमवार, 13 नवंबर 2023
प्रकटेश्वर महादेव मन्दिर बसई की खोज
प्रकटेश्वर महादेव वसई का इतिहास
श्री प्रकटेश्वर महादेव जी कि उत्पत्ति का उल्लेख सन १९६० के दशक में हुआ । जिसकी स्थापना श्रीकिशन गिरि बाबा ने की थी। किशन गिरि बाबा के बाद श्रीलिखेश्वर महाराज जी को इस मंदिर का उत्तराधीकारी माना जाता था। महाराज जी के शरीर छुटने पर ग्राम बसई वालो ने मंदिर का देखभाल करना शुरू किया।
प्रकटेश्वर महादेव मंदिर अल्मोड़ा जनपद के स्याल्दे तहसील बसई गांव के अंर्तगत आता है ।जिसमे समस्त ग्रामवासियों के द्वारा धनराशि एकत्रित करके मन्दिर व धर्मशाला का निर्माण किया गया ।
मन्दिर में पुजारी के रूप में लखेड़ा ब्राह्मणों को नियुक्त किया गया । समय समय पर सभी ग्राम वासियों के द्वारा योगदान मिलता रहा है ।
सन १९९८ में मंदिर का जीर्णोद्धार श्री महेश चंद्र बेलवाल जी के कर कमलों द्वारा शिव मन्दिर ,भैरव मंदिर ,माता का मन्दिर व धर्मशाला का पुनः निर्माण किया गया ।
क्षेत्र के श्रद्धालु भक्तों के द्वारा शिवरात्रि जागरण ,श्रावण माह में अभिषेक पूजन व भण्डारा किया जाता है ।
प्रकटेश्वर महादेव जी को हलवा, पूरी, चना ,रोट का भोग लगाया जाता है ।भगवान भोलेनाथ सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते है ।
बसई ग्राम वासियों के द्वारा मन्दिर में पूजा अर्चना का कार्य मन्दिर को सुसज्जित व व्यवस्थित बनाने का कार्य ग्रामवासियों द्वारा किया जाता है। ।
भगवान भोलेनाथ हिमालय क्षेत्रों में शिव पार्वती जी की अनेक लीलाओं के द्वारा प्रकटेश्वर रूप धारण करके भक्तों के कष्टों का निवारण कर मनोकामना पूर्ण करते है।
। । जय श्री प्रकटेश्वर महादेव।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आचार्य हरीश चन्द्र लखेड़ा
श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्रम्
॥ श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्रम् ॥
सन्तान प्राप्ति के लिये अद्भुत अनुष्ठान
यदि कोई महानुभाव कि किसी कारणवश सन्तान न होनेसे निराश हों तो विश्वासपूर्वक श्रीषष्ठीदेवीस्तोत्र का नियमित रूप से नित्य पाठ करें ।
ध्यानम्-
षष्ठांशा प्रकृतेः शुद्धां प्रतिष्ठाप्य च सुप्रभाम् ।
सुपुत्रदां च सुभगां दयारूपां जगत्प्रसूम् ॥
श्वेतचम्पकवर्णाभां रक्तभूषणभूषिताम् ।
पवित्ररूपां परमां देवसेना परां भजे ।।
मंत्र:--
ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा । ( यथाशक्ति जप करें )
स्तोत्रं श्रृणु मुनिश्रेष्ठ सर्वकामशुभावहम् ।
आज्ञाप्रदं च सर्वेषां गूढं वेदेषु नारद ॥
प्रियव्रत उवाच :--
नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नमः ।
शुभायै देवसेनायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥१॥
वरदाय पुत्रदायै। धनदायै नमो नमः ।
सुखदायै मोक्षदायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ २॥
शक्तिषष्ठांशरूपायै सिद्धाय च नमो नमः ।
मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ३॥
साराय शारदायै च पारायै सर्वकारिण्यै ।
बालाधिष्ठायै देव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।। ४॥
कल्याणदाय कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम् ।
प्रत्यक्षायै च भक्तानां षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥५॥
पूज्यायै स्कन्दकान्तायै सर्वेषां सर्वकर्मसु ।
देवरक्षणकारिण्यै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ६॥
शुद्धसत्त्वस्वरूपायै वन्दितायै नृणां सदा ।
हिंसाक्रोधवर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ७॥
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि ।
धर्म देहि यशो देहि षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ८॥
भूमिं देहि प्रजां देहि विद्यां देहि सुपूजिते ।
कल्याणं च जयं देहि षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ९॥
इति देवीं च संस्तुत्य लेभे पुत्रं प्रियव्रतः ।
यशस्विनं च राजेन्द्रं षष्ठीदेवी प्रसादतः ॥१०॥
षष्ठीस्तोत्रमिदं ब्रह्मन् यः शृणोति च वत्सरम् ।
अपुत्रे लभते पुत्रं वरं सुचिरजीविनम् ॥११॥
वर्षमेकं च या भक्त्या संस्तुत्येदं शृणोति च ।
सर्वपापविनिर्मुक्ता महावन्ध्या प्रसूयते ॥ १२॥
वीरं पुत्रं च गुणिनं विद्यावन्तं यशस्विनम् ।
सुचिरायुष्मन्तमेव। षष्ठीदेवी प्रसादतः ॥ १३॥
काकवन्ध्या च या नारी मृतापत्या च या भवेत् ।
वर्षं श्रुत्वा लभेत् पुत्रं षष्ठीदेवीप्रसादतः ॥१४॥
रोगयुक्ते च बाले च पिता माता शृणोति चेत् ।
मासेन मुच्यते बालः षष्ठीदेवी प्रसादतः ॥ १५॥
प्रणाम - मन्त्र
जय देवि जगन्मातर्जगदानन्दकारिणि ।
प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठि देवते ॥
नित्य प्रायः सायं स्मरणीय मंगल श्लोक
प्रातः व सायंकाल नित्य मंगल श्लोक का पाठ करने से बहुत कल्याण होता है। दिन अच्छा बीतता है। दुःस्वप्न भय नही होता है। धर्म मे वृद्धि ,अज्ञानता का नाश , निर्धन से धनी होना । सभी प्रकार की बाधाओं से छुटकारा मिलता है।
इससे व्यक्ति में दैवीय गुणों का आधान होता है। प्रातः काल मे मंगलकारी मंगलाचरण के साथ दैनिक दिनचर्या को प्रारम्भ करना चाहिये।
।। प्रथम गणपति वन्दना ।।
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्व कार्येषु सर्वदा ।।
गजाननं भूत गणादि सेवितं ।
कपित्थ जम्बू फल चारु भक्षणं।।
उमा सुतं शोक विनाश कारकं ।
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
।। गुरु वन्दना ।।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु: गुरु देवो महेश्वर:।
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
मुकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् ।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानंद माधवम ।।
अज्ञानंतिमिरांधस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
।। व्यास जी ध्यान ।।
व्यसाय विष्णु रूपाय ,व्यास रूपाय विष्णवे ।
नमो वै ब्रह्मनिधये , वाशिष्ठाय नमो नमः ।।
नमोस्तुते व्यास विशाल बुद्धे
फुल्लार रविन्दाय तपत्र नेत्रं ।
येन त्वया भारत तैल पूर्णे:
प्रज्वालितो ज्ञान मयः प्रदीप ।।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तम्म ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जय मुदीरयेत ।।
सीता राम समारम्भाम श्रीरामानंदार्य मध्यमाम् ।
अस्मदाचार्य पर्यंतां वन्दे श्रीगुरु परम्पराम् ।
।।श्री विष्णु वन्दना ।।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्म नाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघ वर्णम शुभांगम।।
लक्ष्मीकान्तम कमलनयनं योगीभिर्ध्यान गम्यम ।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकैकनाथम् ।।
।। कृष्ण वन्दना ।।
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं।
देवकी परमानन्दम कृष्णम वन्दे जगदगुरूम।।
श्री कृष्ण गोबिन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव।
हे नाथ नारायण वासुदेव हे नाथ नारायण वासुदेव ।।
।।श्री राम वन्दना ।।
रामाय राम भद्राय राम चंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम ततुल्यं राम नाम वरानने ।।
।। हनुमान वंदना ।।।
मानोजपं मारुत तुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ।।
।।श्री गौरी शंकर वन्दना ।।
कर्पूर गौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं ।
सदा वसन्तम हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितंनमामि।।
।। श्री दुर्गा देवी वन्दना ।।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते।।
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
।।श्री महालक्ष्मी वन्दना ।।
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।
हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।।
नमोस्तुते महामाये श्री पीठे सुर पूजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते ।।
।।श्री सरस्वती वन्दना ।।
सरस्वती महाभागे विध्ये कमल लोचने।
विद्या रूपी विशालाक्षी विद्याम देहि नमोस्तुते।।
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः ।
वेद वेदान्त वेदाङ्ग बिद्या स्थनीभ्यः एवं च ।।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रा वृता ।
या वीणा वर दंड मण्डित करा या श्वेत पद्मासना ।।
या ब्रह्मा च्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवै: सदा वंदिता ।
सा मा पातु सरस्वती भगवती निः शेष जाड्या पहा ।।
शुक्लां ब्रह्म विचार सार परमा माद्यम जगदव्यापिनी
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधती पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरि भगवती बुद्धि प्रदां शारदाम् ।।
।। सूर्य वन्दना ।।
आदित्यं च नमस्कार ये कुर्वन्ति दिने दिने।
जन्मांतर सहस्रेषु दारिद्रम नोप जयते ।।
नमो धर्म विधात्रे हि नमो कर्म सुसाक्षिणे।
नमो प्रत्यक्ष देवाय भास्कराय नमोनमः।।
।। नवग्रह स्मरण ।।
ब्रह्मा मुरारि स्त्रिपुरान्त कारी ।
भानुः शशी भूमि सुतो बुधश्च।।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहु केतवः।
सर्वेग्रहा शान्तिकरा भवन्तु।।
।। मंत्र पुष्पांजलि । ।
यज्ञेन यज्ञ मयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्या सन्
तेहनाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ।।
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे । समे कामान काम कामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु । कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।।
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठयं राज्यं महाराज्य माधिपत्य मयं समन्त पर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुष आन्तादापरार्धात् । पृथिव्यै समुंद्र पर्यन्ताया एक राडिति। तदप्येष श्लोकोऽभि गीतो मरुतः परिवेष्टारो मरूत स्यावसन् गृहे।आविक्षितस्य काम प्रेर्विश्वे देवाः सभासद् इति ।।
सेवन्तिका वकुल चम्पक पाटलाब्जैः।
पुन्नाग जाति करवीर रसाल पुष्पैः।।
बिल्व प्रवाल तुलसीदल मंजरीभिः।
त्वां पूजयामि जगदीश्वर मे प्रसीद ।।
नाना सुगंधि पुष्पाणि यथाकालोद् भवानि च ।
पुष्पांजलिर्मया दत्त गृहाण परमेश्वर ।।
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।
बुद्धयात्मना वानुसृत स्वभावात् ।।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै ।
नारायणायेति समर्पयेतत् ।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्ति मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत् ।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्वं मम देव देवः ।।
।।प्रदक्षिणा।।
यानी कानी च पापानि जन्मांतर कृतानि च ।
तानी सर्वाणि पश्यन्तु प्रदक्षिणाम पदे पदे ।।
।। क्षमा प्रार्थना ।।
अपराध सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।१ ।।
आवाहनंन जानामि , न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥२ ॥
मन्त्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्यूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।३ ।।
अपराध शतंकृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयाः सुराः ।।४ ।।
सापराधोऽस्मिशरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानी मनु कम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।।५ ।।
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि।।६ ।।
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि।।७ ।।
गुह्याति गुह्यगोप्ती त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि।।८ ।।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
पं हरीश चंद्र लखेड़ा
ज्योतिषाचार्य
वसई
जय बद्री विशाल
------–------------------------------------------------------------
जीवन से पल्ला झाड़
मनुष्य जीवन कितना विचित्र है किसी वस्तु विशेष को पाने कि बहुत विचित्र ललक तो कभी पल्ला झाड़ने की ललक , मनुष्य के जीवन मे न जाने कितने उतार चढ़ाव आते है ,समय असमय पर वह अपना पल्ला झाड़ने का प्रयास करता रहता है ।
जब मनुष्य किसी से कुछ सहायता पाने की चेष्टा करता है । किन्तु कार्यों की उपलब्धि के बाद व अपना पल्ला झाड़ने लगता है ।जैसे वह कभी किसी को जानता न हो ।यह मनुष्य कि कमजोरी हो या जीव का लक्षण, सदा अपने ईष्ट (लक्ष्य) को साधते रहता है ।
बाल अवस्था -शिक्षा ,
युवा अवस्था - रोजगार ,
यौवन अवस्था - विवाह ,सन्तान
प्रौढ़ अवस्था - परिवार व कार्यो का निर्वहन करते वृद्धावस्था को प्राप्त हो अपने जीवन से भी पल्ला झाड़ देता है ।
जीवन के सभी महत्वपूर्ण कार्यो को करते करते मनुष्य कब अपने आप को भूल जाता है पता ही नही चलता ।
मनुष्य सदैव अपने जीवन काल मे अनेक अध्यायों को जोडता चला जाता है, पता नही चलता ।
दृष्टान्त --
गुरुकुल से विद्या अध्यन पूर्ण करने के बाद विद्यार्थी गुरु जी के पास गया बोला गुरु जी में आज शिक्षा प्राप्त करके गांव लौट रहा हूँ ,कृपया आप अनुमति दें ।
गुरुजी बोले बेटा आपको आशीर्वाद है , किन्तु आप मेरे से पल्ला झाड़ लोगे मुझे भूल जाओगे ,शिष्य बोला नही गुरु जी में आपको सदा याद करूँगा ।शिष्य अपने गाँव को चला गया ।
कुछ वर्ष बीत जाने के बाद गुरु जी के पास गया , प्रणाम करके बोला गुरुजी में आपको भूला नही मै आपको विवाह का निमंत्रण देने आया हूँ ।गुरुजी बोले अब आप अपने माता पिता को भी भूल जाएगा व पल्ला झाड़ेगा दूर चला जायेगा ।
शिष्य बोला गुरु जी में सबको संयुक्त करके रखुंगा ।
शिष्य को जब पुत्र हुआ तब भी गुरु जी के पास गया । गुरु जी बोले अब तुम पत्नी को भी भूल जाओगे पुत्र पुत्र में रह जाओगे । परिवार के भरण पोषण में तुम कब अपने आप को भी भूल जाओगे ,पैसा पैसा करते जीवन से कब पल्ला झाड़ लोगे पता नही चलेगा ।
कोई तन दुःखी ,
कोई मन दुःखी ।
कोई धन बिन रहत उदास
थोड़े थोड़े सब दुःखी ,
सुखी राम के दास
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
छोटी सी भूल कभी बड़ी बन जाती है ।
सोचो समझो --
जीवन है ,चलता है ,चलता रहेगा पर सोचो समझो कभी कभी हम कही एक भूल करदें ,जिसकी सजा यहाँ तो मिलती है ,और वहाँ भी मिलती है ,यह निश्चित है ।
इस लिए सावधान सोच समझ कर जीवन चक्र के पथ पर चलें। मानव जीवन है ,बहुत कठिनाईयां ,अनेक संघर्ष के बाद जीवन सफल होता है ।
जीवन मे आप कभी मठ , मंदिर , तीर्थ गुरु ,संत ,महंत आदि ,आदि के यहाँ जाते है ,कामना करते हैं, प्रभु ऐसा काम हो जाता कृपा करें । ऐसा बोल कर आ जाते हैं और भगवान से कामना करते हैं, कि मेरा काम हो जाएगा तो - मैं आपको अमुक वस्तु चढ़ाऊंगा ,और भूल जाते है, जिसकी वजह से जीवन में अनेके कठिनाइयाँ आती ,अनेक प्रकार की तकलीफ शुरू हो जाती है , यही एक भूल है , जिसे हम भूल जाते हैं ,और जीवन में अपने वजह से अपनी कामना की वजह से पूरे परिवार को तकलीफ में डाल देते हैं । बस प्रार्थना करें ।
जीवन की दूसरी भूल सच्ची बात है एक बार किसी व्यक्ति को बैंक से लोन की जरूरत थी । और वह बैंक गया बैंक वालों ने उससे बोला कि आप अपने साथ में उस व्यक्ति को ले आओ जो आपको जनता है ।
तो उस व्यक्ति को बगल गांव का कोई व्यक्ति मिला , उससे बोला भाई मेरे को लोन चाहिए ,बैंक किसी पहचान वाले का साइन मांग रही है।
आपके एक गवाही से मेरा काम हो जाएगा । उसने सिग्नेचर कर दिया ।
वह व्यक्ति बैंक से अपना काम कर पैसा ले करके वहां से निकल गया ।
और जब क़िस्त भरने का समय आया तो लोन लेने वाला व्यक्ति गायब हो गया ।
इस स्थिति में बैंक गारंटर को खोजती है । जब फार्मा चेक किया गया उस पर जिस व्यक्ति का साइन था एड्रेस डाला हुआ था ।बैंक वाले उसके घर पर गए उससे लोन का पैसा भरने को कहा। वह व्यक्ति अंदर से टूट गया ।
कोर्ट में केस चला मगर कुछ भी परिणाम ना मिला और मरते दम तक केस चलता रहा ।
जीवन में ऐसी गलती कभी भी भूल के भी न करें।
तीसरी घटना एक बार एक बच्चा बहुत गाली देता है बचपन से गाली देने की बहुत आदत थी। बड़ा होकर नौकरी करने लगा । कुछ समय बाद में उसकी मीटिंग हुई वहां पर बड़े बॉस के साथ में बातचीत के दौरान उसकी कहा सुनी हो गई और उसने बॉस के साथ असभ्य भाषा का प्रयोग करके संबोधित किया जिसके कारण सीनियर बॉस ने उस व्यक्ति को उसके स्थान से हटा दिया ।
वह व्यक्ति जब वहां से निकला तो उसका जीवन का आधा सफर निकल चुका था जिसके कारण उसके मुंह से बोले गए वाक्यों से उसका जीवन का सफर वहां पर खत्म हो गया और वह अकेला हो गया ।
इसलिए जो भी शब्द आप बोलो वह सोच और समझ कर बोलें वही शब्द हमारे लिए मित्र बनाते हैं वही शब्द हमारे लिए शत्रु बना देते हैं ।
जीवन का हर कदम अच्छे से रखें ।जीवन कोरे कागज की तरह है ।एक बार दाग लगाने पर छुपता नही ।
जीवन मे कुछ काम मनुष्य ऐसा करता है । जिसका फल जीवन छूट जाने के बाद नरक के रूप में भोगना पड़ता है ।
श्री सत्यनारायण पूजन सामग्री
।।श्री सत्यनारायण पूजन सामग्री।।
०१ - रोली , चन्दन पाउडर
०२ - मोली , जनेऊ
०३- अविर ,सिंदूर ,गुलाल ,अभ्र्क
०४- लौंग, इलायची, पान ,सुपारी
०५ - रुई ,दिया, कपूर ,तेल ,मर्चिस
०६ - फल मिठाई पञ्चमेवा
०७- दूध ,दही, घी, शहद, शक्कर
०८ - नारियल, गोला
०९- फूल , फूलमाला, दूर्वा, तुलसी, बेलपत्र
१० - केले का खम्बा ४
११ - लाल कपड़ा ,पीला कपड़ा ,सफेद कपड़ा
१२ - सत्यनारायण जी की फोटो
१३ - चावल
१४ - दोना
१५ - चौरंगा ,पाट
१६ - गंगाजल, गौमूत्र, ईत्र
१७- जौ, सफेद तिल
१८- ब्राह्मण वस्त्र
श्री गणेश पूजन सामग्री
।।श्री गणेश पूजन सामग्री।।
१- रोली ,चन्दन
२- मौली,जनेऊ
३- अबीर ,सिंदूर ,अभ्रक,गुलाल ,हल्दी पाउडर
४- पान सुपारी, लौंग ,इलायची
५ धूप , रुई , दिया कपूर , मर्चिस
६- नारियल , गोला
७- दूध ,दही , घी ,शहद ,शक्कर
८- फल ,मिठाई पञ्चमेवा
९- फूल , फूलमाला , दूर्वा ,तुलसी , बेलपत्र
१०- लाल कपड़ा , सिंदूरी कपड़ा
११- तिल का तेल
१२- चावल
१३-गणपति जी का वस्त्र आभूषण
१४- दोना
१५ - गंगाजल, गौमूत्र
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
ॐ जय गौरी नंदा
डाउनलोड ऐप आज की तिथि त्योहार मंदिर आरती भजन कथाएँ मंत्र चालीसा आज का विचार प्रेरक कहानियाँ ब्लॉग खोजें होम भजन ओम जय ग...

-
प्रातः व सायंकाल नित्य मंगल श्लोक का पाठ करने से बहुत कल्याण होता है। दिन अच्छा बीतता है। दुःस्वप्न भय नही होता है। धर्म मे वृद्धि ,अज्ञानता...
-
असुर मर्दिनी माँ दुर्गा का ही एक रूप है वनदुर्गा उन्हें जंगलों की देवी बनदेवी या शाकम्भरी भी कहते है ।जो हर जीव की माँ के रूप में रक्षा करती...