सोमवार, 15 जनवरी 2024

सत्संग बड़ा या तप

एक बार की बात है विश्वामित्र व वशिष्ठ जी मे बहस हो गयी कि सत्संग बड़ा या तप,।

विश्वामित्र जी की राय थी कि मैने तप के बल से सिद्धियाँ प्राप्त की है ,अतः तप का बल बड़ा है।वशिष्ठ जी उनके तर्क से सहमत नहीं थे,उन्होने कहा सत्संग अधिक श्रेष्ठ है।

अब दोनों इस बात को सिद्ध करने के लिये ब्रह्मा जी के पास गये और अपना प्रश्न उनके आगे रखा।ब्रह्मा जी ने कहा में अभी सृष्टि के कार्य मे व्यस्त हुँ ,इस लिये आप दोनों विष्णु जी के पास जायँ वहाँ आपके शंका का समाधान होगा ।

दोनों मुनि विष्णु जी के पास गयें ,प्रश्न सुनकर भगवान विष्णु जी ने मन में विचार किया अगर तप को श्रेष्ठ कहुँ तो वशिष्ठजी जी नाराज हो जायँगे ,इस लिए विष्णु जी ने बात टालते हुये ,कह दिया में सृष्टि के पालन कार्य में लगा हुँ ,इसलिये आप दोनो शिव जी के पास जाएं ।

जब दोनों ने भगवान शिव जी को प्रश्न रखा तो शिव जी ने शेषनाग के पास भेज दिया।शेषनाग को शंका का समाधान करने को कहा,शेषनाग जी ने कहा मैने अपने सिर पर पृथ्वी का भार उठा रखा है।इसलिए कुछ देर के लिये दोनों में से कोई पृथ्वी के भर को संभाल सको तो में किंचित विश्राम करके आपके प्रश्न का समाधान कर सकूंगा।

इस बात पर तप के अहंकार में विश्वामित्र ने कहा कि पृथ्वी को आप मुझे दीजिये।जब पृथ्वी नीचे की ओर आने लगी तो शेषनाग ने कहा सम्भालिये पृथ्वी रसातल को जा रही है।

तब विश्वामित्र ने कहा में अपना सारा तपोबल देता हूँ।पृथ्वी रुक जा परन्तु पृथ्वी नही रुकी।

यह देखकर वशिष्ठ जी ने कहा में आधी घड़ी के सत्संग का बल देता हूँ, वशिष्ठ जी के इतना कहते ही पृथ्वी रुक गयी।

अब पृथ्वी को शेषनाग जी ने अपने सिर पर धारण कर लिया और दोनों को जाने के लिये कहा।

विश्वामित्र जी मे कहा हमारे प्रश्न का उत्तर हमे मिला नही।तब शेषनाग जी ने कहा फैसला तो हो गया  कि पृथ्वी जीवन का सारा तपोबल लगाने से भी स्थिर नही हुई और आधी घड़ी के सत्संग से ठहर गयी।अथार्त  सत्संग तप से बड़ा होता है।।


बिनु सतसंग विवेक न होई।

राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।

यानी सत्संग से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है


एक घड़ी ,आधी घड़ी,आधी में पुनि आध।

तुलसी चर्चा राम की, हरे  कोटि  अपराध ।।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा

2 टिप्‍पणियां:

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