सोमवार, 15 जनवरी 2024

अपामार्जन विधान एवं कुशापामार्जन स्तोत्रम्

॥ अपामार्जनविधानं ॥

अपनी तथा दूसरों की रक्षा का उपाय है, उसका नाम है मार्जन या (अपामार्जन) यह वह रक्षा है,जिसके द्वारा मानव सभी दुःख से छूट जाता है और निरन्तर सुख को प्राप्त करता है ।

भगवान वराह ,नृसिंह , वामन को नमस्कार करके कुशपामार्जन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ,विष्णु जी के स्मरण मात्र से जगत में फैले समस्त दूषित रोग शांत होते है ।भगवान नारायण जी के शरीर से उत्पन्न कुशा के द्वारा रोग नष्ट होते है ।

विधि:-

शरीर में उत्पन्न रोग व जगत में फैलने वाली बीमारियों के समूल नाश के लिए

कुशपामार्जन स्तोत्र के पाठ से आसाध्य रोगी के रोग को ठीक किया जा सकता है, कुशा २१ गांठ बनाकर इस स्तोत्र का पाठ करते हुए रोगी को २१बार झाड़ा जय तो रोगी का रोग हरता चला जाता है ।

॥ कुशापामार्जन स्तोत्रम्॥

ॐ वराह  नरसिंहश  वामनेश  त्रिविक्रम ।

हयग्रीवेश  सर्वेश  हृषीकेश  हराशुभम ॥१॥

अपराजित    चक्राद्यैश्चर्भि    परमायुधैः । 

अखण्डितानुभावस्त्वं सर्वदुष्टहरो भव॥2॥

हरामुकस्य दुरितं  सर्व  च  कुशलं कुरु । 

मृत्युबन्धार्ति भयदं दुरिष्टस्य च यत्फलम् ॥३॥

पराभिध्यान सहितै: प्रयुक्तं चाभिचारिकम् । 

गरस्पर्शमहारोगप्रयोगं        जरया   जर ॥४॥

ॐ नमो वासुदेवाय नमः कृष्णाय खगिने खड्गिने ।

नमः पुष्करनेत्रा    केशवायादिचक्रिणे  ॥५॥ 

नमः कमल किन्जल्कपीतनिर्मलवाससे । 

महाहव रिपुस्कन्ध धृष्टचक्राय   चक्रिणे ॥६॥

 दँष्ट्रोधृत    क्षितिभूते त्रयीमूर्तिमते नमः ।

महायज्ञ वराहाय शेषभोगाङ्कशायिने ॥७॥ 

तप्तहाटक केशान्त  ज्वलत्पावक लोचन ।

वज्राधिक नख स्पर्श दिव्यसिंह नमोऽस्तु ते ॥८॥ 

कश्यपायाति ह्रस्वाय ऋग्यजु सामभूषिणे । 

तुभ्यं वामनरूपायानमते मां   नमो   नमः ॥९॥

वराहारोषदुष्टानि   सर्वपापफलानि  वै ।

मर्द मर्द महादंष्ट्र मर्द मर्द च तत्फलम् ॥१०॥ 

नारसिंह करालास्य दंत प्रांता नलोज्जवल ।

भंज भंज  निनादेन दुष्टान् पश्यार्तिनाशन ॥११॥

ऋग्यजुःसाम गर्भाभिर्वाग्भिर्वा मनरुपधृक् ।

प्रशमं सर्वदुःखानि नयत्वस्य जनार्दन ॥१२॥ 

ऐकाहिकं द्वयाहिकं च तथा त्रिदिवसं ज्वरम् । 

चातुर्थिकं तथा त्युग्रं तथैव सतनं ज्वरम् ॥ १३॥ 

दोषोत्थं संनिपातोत्यं तथैवागन्तुकं ज्वरम् । 

शमं नयाशु गोविन्द च्छिन्धि च्छिन्ध्यस्य वेदनाम् ॥१४॥

नेत्रदुःखं शिरोदुःखं दुःखं बोदरसम्भवम् । 

अनिश्वासमतिश्वासं परितापं सवेपथुम् ॥१५॥ 

गुद घ्राणाङघ्रिरोगांश्च कुष्टरोगांस्तथा क्षयम् ।

कामलादींस्तथा रोगान् प्रमेहांश्चातिदारुणान् ॥१६॥

भगन्दरातिसारांश्च मुखरोगांश्च बल्गुलीम् । 

अश्मरीं मूत्रकृच्छ्रांश्च रोगानन्यांश्च दारुणान् ॥१७॥

ये वातप्रभवा रोगा ये च पित्तसमुद्भवाः । 

कफोद्भवाश्च ये केचिद् ये चान्ये सांनिपातिकाः ॥१८॥

आगन्तुक ये रोगा लूताविस्फोटकादयः ।

ते सर्वे प्रशम यान्तु वासुदेवस्य कीर्तनात् ॥१९॥ 

विलयं यान्तु ते सर्वे विष्णोरुच्चारणेन च ।

क्षयं गच्छन्तु चाशेषास्ते चक्राभिहता हरेः ॥२०॥

अच्युतानन्तगोविन्दनामोचारणभेषजात् ।

नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥२१॥

स्थावर जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम् । 

दन्तोद्भव नखभवमाकाशप्रभवं विषम् ॥२२॥ 

लूतादिप्रभवं यच्च विषमन्यत्तु दुःखदम् । 

शमं नयतु तत्सर्व वासुदेवस्य कीर्तनम् ॥२३॥ 

ग्रहान् प्रेतग्रहांश्चापि तथा वै डाकिनीग्रहान् । 

बेतालांच पिशाचांश्च गन्धर्वान् यक्षराक्षसान् ॥ २४॥ 

शकुनीपूतनाद्यांश्च तथा वैनायकान् ग्रहान् । 

मुखमण्डी  तथा  क्रूरां  रेवती  वृद्धरेवतीम् ॥२५॥ 

वृद्धिकाख्यान्ग्रहांश्चोग्रांस्तथा मातृग्रहानपि ।

बालस्य विष्णोचरितं हन्तु बालग्रहानिमान् ॥२६॥ 

वृद्धाश्च ये ग्रहाः केचिद् ये च बालग्रहाः क्कचित् । 

नसिंहस्य ते दृष्ट्या दग्धा ये चापि यौवने ॥२७॥ 

सटाकरालवदनो   नारसिंहो  महाबलः । 

ग्रहानशेषान्नि: शेषान् करोतु जगतो हितः ॥२८॥ 

नरसिंह महासिंह ज्वालामालोज्ज्वलानन । 

ग्रहानशेषान्  सर्वेश खाद खादाग्निलोचन ॥२९॥

ये रोगा ये महोत्पाता  यद्विषं ये महाग्रहाः । 

यानि च क्रूरभूतानि प्रहपीडाञ्च दारुणाः ॥३०॥ 

शस्त्रक्षतेषु ये दोषा  ज्वालागर्दभकादयः । 

तानि सर्वाणि सर्वात्मा परमात्मा जनार्दनः ॥३१॥ 

किंचिद्रुपं  समास्थाय  वासुदेवास्य नाशय । 

क्षिप्त्वा सुदर्शनं चक्र ज्वालामालातिभीषणम् ॥३२॥

सर्वदुष्टोपशमनं     कुरु      देववराच्युत ।

सुदर्शन महाज्वाल च्छिन्धि च्छिन्धि महारव ॥३३॥

सर्वदुष्टानि  रक्षांसि  क्षयं यान्तु  विभीषण । 

प्राच्या प्रतीच्यां च दिशि दक्षिणोत्तरतस्तथा ॥३४॥ 

रक्षां करोतुह सर्वात्मा  नरसिंहः  स्वगर्जितै:। 

दिवि भुज्यन्तरिक्षे च पृष्ठतः पाश्वतोऽग्रतः ॥३५॥

रक्षां  करोतु भगवान्  बहुरूपी  जनार्दनः। 

यथा विष्णुर्जगत्सर्व सदेवासुरमानुषम् ॥३६॥ 

तेन सत्येन दुष्टानि  शममस्य व्रजन्तु  वै ।

यथाविष्णौस्मृते सद्य: संक्षयं यान्ति पातकाः ॥३७॥

सत्येन तेन सकलं  दुष्टमस्य प्रशाम्यतु । 

यथा यज्ञेश्वरो विष्णुर्देवेष्वपि हि गीयते ॥३८॥

सत्येन न सकलं  यन्मयो  तथास्तु  तत् । 

शान्तिरस्तु शिवं चास्तु दुष्टमस्य प्रशाम्यतु ।।३९।। 

वासुदेवशरीरोत्थेः  कुशेनिर्णाशितं  मया । 

अपामार्जन गोविन्दो नरो नारायणस्तथा ॥ ४०॥

तथास्तु सर्वदुःखानां  प्रशमो वचनाद्धरे:। 

अपामार्जनकं शस्तं सर्वरोगादिवारणं ॥४१॥

अहं हरि: कुशा विष्णुहर्ता रोगा मया तव ।।४२ ॥

॥ इति कुशपामार्जन स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

नोट:-

मेरे गुरुजी कमलाकान्त शुक्ल जी ने इस स्तोत्र को मुझसे कहा जब वे जीवित थे । आज उनका स्मरण होने पर मुझे इस स्तोत्र की याद आयी जी आप तक पहुंचाने की जिज्ञासा हुई । 

जय गुरुदेव

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा



4 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद गुरु जी इस दिव्य ज्ञान को मानव कल्याण के लिए समाज में प्रेषित करने के लिए।

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  2. जय बद्री विशाल, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय,
    बहुत सुंदर पंडितजी।
    धन्यवाद, आभार।

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