शनिवार, 27 जनवरी 2024
रविवार, 21 जनवरी 2024
मानव सभ्यता का विकास या ह्रास हो रह है
मतलब की दुनिया, मतलब का प्यार है ।
माया तू नही रही , तो सब निराधार है ।।
संसरति इति संसार:
संसार जब रंग बदल सकता है ,तो मानव भी बदल सकता है । दोनो में एक समानता है ? संसार समय समय पर खिसकता है मानव का नव नया करता है ।ये दोनो समय समय पर रंग बदलते है ।
मानव की कल्पना के आगे शायद भगवान भी सोचते होंगे मेरे बनाए नियमों का उलंघन करता है जिसके फल स्वरूप दुनिया में अशांति का माहौल बनने लगता है।
इतिहास गवाह है जब जब इस वसुंधरा पर विद्वानों का प्रादुर्भाव हुवा उन्होंने समाज को भ्रमित ही किया है या यू कह सकते अपनी रोटी सेकी और समाज को तोड़ मरोड़ कर संसार से चले गए ।सनातन सभ्यता से ही कितनी सभ्यताओं ,धर्मो, पंथों का जन्म हुआ ,उसके कारण जनक कॉन थे _? ।
सोमवार, 15 जनवरी 2024
सत्संग बड़ा या तप
एक बार की बात है विश्वामित्र व वशिष्ठ जी मे बहस हो गयी कि सत्संग बड़ा या तप,।
विश्वामित्र जी की राय थी कि मैने तप के बल से सिद्धियाँ प्राप्त की है ,अतः तप का बल बड़ा है।वशिष्ठ जी उनके तर्क से सहमत नहीं थे,उन्होने कहा सत्संग अधिक श्रेष्ठ है।
अब दोनों इस बात को सिद्ध करने के लिये ब्रह्मा जी के पास गये और अपना प्रश्न उनके आगे रखा।ब्रह्मा जी ने कहा में अभी सृष्टि के कार्य मे व्यस्त हुँ ,इस लिये आप दोनों विष्णु जी के पास जायँ वहाँ आपके शंका का समाधान होगा ।
दोनों मुनि विष्णु जी के पास गयें ,प्रश्न सुनकर भगवान विष्णु जी ने मन में विचार किया अगर तप को श्रेष्ठ कहुँ तो वशिष्ठजी जी नाराज हो जायँगे ,इस लिए विष्णु जी ने बात टालते हुये ,कह दिया में सृष्टि के पालन कार्य में लगा हुँ ,इसलिये आप दोनो शिव जी के पास जाएं ।
जब दोनों ने भगवान शिव जी को प्रश्न रखा तो शिव जी ने शेषनाग के पास भेज दिया।शेषनाग को शंका का समाधान करने को कहा,शेषनाग जी ने कहा मैने अपने सिर पर पृथ्वी का भार उठा रखा है।इसलिए कुछ देर के लिये दोनों में से कोई पृथ्वी के भर को संभाल सको तो में किंचित विश्राम करके आपके प्रश्न का समाधान कर सकूंगा।
इस बात पर तप के अहंकार में विश्वामित्र ने कहा कि पृथ्वी को आप मुझे दीजिये।जब पृथ्वी नीचे की ओर आने लगी तो शेषनाग ने कहा सम्भालिये पृथ्वी रसातल को जा रही है।
तब विश्वामित्र ने कहा में अपना सारा तपोबल देता हूँ।पृथ्वी रुक जा परन्तु पृथ्वी नही रुकी।
यह देखकर वशिष्ठ जी ने कहा में आधी घड़ी के सत्संग का बल देता हूँ, वशिष्ठ जी के इतना कहते ही पृथ्वी रुक गयी।
अब पृथ्वी को शेषनाग जी ने अपने सिर पर धारण कर लिया और दोनों को जाने के लिये कहा।
विश्वामित्र जी मे कहा हमारे प्रश्न का उत्तर हमे मिला नही।तब शेषनाग जी ने कहा फैसला तो हो गया कि पृथ्वी जीवन का सारा तपोबल लगाने से भी स्थिर नही हुई और आधी घड़ी के सत्संग से ठहर गयी।अथार्त सत्संग तप से बड़ा होता है।।
बिनु सतसंग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
यानी सत्संग से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है
एक घड़ी ,आधी घड़ी,आधी में पुनि आध।
तुलसी चर्चा राम की, हरे कोटि अपराध ।।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
अपामार्जन विधान एवं कुशापामार्जन स्तोत्रम्
॥ अपामार्जनविधानं ॥
अपनी तथा दूसरों की रक्षा का उपाय है, उसका नाम है मार्जन या (अपामार्जन) यह वह रक्षा है,जिसके द्वारा मानव सभी दुःख से छूट जाता है और निरन्तर सुख को प्राप्त करता है ।
भगवान वराह ,नृसिंह , वामन को नमस्कार करके कुशपामार्जन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ,विष्णु जी के स्मरण मात्र से जगत में फैले समस्त दूषित रोग शांत होते है ।भगवान नारायण जी के शरीर से उत्पन्न कुशा के द्वारा रोग नष्ट होते है ।
विधि:-
शरीर में उत्पन्न रोग व जगत में फैलने वाली बीमारियों के समूल नाश के लिए
कुशपामार्जन स्तोत्र के पाठ से आसाध्य रोगी के रोग को ठीक किया जा सकता है, कुशा २१ गांठ बनाकर इस स्तोत्र का पाठ करते हुए रोगी को २१बार झाड़ा जय तो रोगी का रोग हरता चला जाता है ।
॥ कुशापामार्जन स्तोत्रम्॥
ॐ वराह नरसिंहश वामनेश त्रिविक्रम ।
हयग्रीवेश सर्वेश हृषीकेश हराशुभम ॥१॥
अपराजित चक्राद्यैश्चर्भि परमायुधैः ।
अखण्डितानुभावस्त्वं सर्वदुष्टहरो भव॥2॥
हरामुकस्य दुरितं सर्व च कुशलं कुरु ।
मृत्युबन्धार्ति भयदं दुरिष्टस्य च यत्फलम् ॥३॥
पराभिध्यान सहितै: प्रयुक्तं चाभिचारिकम् ।
गरस्पर्शमहारोगप्रयोगं जरया जर ॥४॥
ॐ नमो वासुदेवाय नमः कृष्णाय खगिने खड्गिने ।
नमः पुष्करनेत्रा केशवायादिचक्रिणे ॥५॥
नमः कमल किन्जल्कपीतनिर्मलवाससे ।
महाहव रिपुस्कन्ध धृष्टचक्राय चक्रिणे ॥६॥
दँष्ट्रोधृत क्षितिभूते त्रयीमूर्तिमते नमः ।
महायज्ञ वराहाय शेषभोगाङ्कशायिने ॥७॥
तप्तहाटक केशान्त ज्वलत्पावक लोचन ।
वज्राधिक नख स्पर्श दिव्यसिंह नमोऽस्तु ते ॥८॥
कश्यपायाति ह्रस्वाय ऋग्यजु सामभूषिणे ।
तुभ्यं वामनरूपायानमते मां नमो नमः ॥९॥
वराहारोषदुष्टानि सर्वपापफलानि वै ।
मर्द मर्द महादंष्ट्र मर्द मर्द च तत्फलम् ॥१०॥
नारसिंह करालास्य दंत प्रांता नलोज्जवल ।
भंज भंज निनादेन दुष्टान् पश्यार्तिनाशन ॥११॥
ऋग्यजुःसाम गर्भाभिर्वाग्भिर्वा मनरुपधृक् ।
प्रशमं सर्वदुःखानि नयत्वस्य जनार्दन ॥१२॥
ऐकाहिकं द्वयाहिकं च तथा त्रिदिवसं ज्वरम् ।
चातुर्थिकं तथा त्युग्रं तथैव सतनं ज्वरम् ॥ १३॥
दोषोत्थं संनिपातोत्यं तथैवागन्तुकं ज्वरम् ।
शमं नयाशु गोविन्द च्छिन्धि च्छिन्ध्यस्य वेदनाम् ॥१४॥
नेत्रदुःखं शिरोदुःखं दुःखं बोदरसम्भवम् ।
अनिश्वासमतिश्वासं परितापं सवेपथुम् ॥१५॥
गुद घ्राणाङघ्रिरोगांश्च कुष्टरोगांस्तथा क्षयम् ।
कामलादींस्तथा रोगान् प्रमेहांश्चातिदारुणान् ॥१६॥
भगन्दरातिसारांश्च मुखरोगांश्च बल्गुलीम् ।
अश्मरीं मूत्रकृच्छ्रांश्च रोगानन्यांश्च दारुणान् ॥१७॥
ये वातप्रभवा रोगा ये च पित्तसमुद्भवाः ।
कफोद्भवाश्च ये केचिद् ये चान्ये सांनिपातिकाः ॥१८॥
आगन्तुक ये रोगा लूताविस्फोटकादयः ।
ते सर्वे प्रशम यान्तु वासुदेवस्य कीर्तनात् ॥१९॥
विलयं यान्तु ते सर्वे विष्णोरुच्चारणेन च ।
क्षयं गच्छन्तु चाशेषास्ते चक्राभिहता हरेः ॥२०॥
अच्युतानन्तगोविन्दनामोचारणभेषजात् ।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥२१॥
स्थावर जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम् ।
दन्तोद्भव नखभवमाकाशप्रभवं विषम् ॥२२॥
लूतादिप्रभवं यच्च विषमन्यत्तु दुःखदम् ।
शमं नयतु तत्सर्व वासुदेवस्य कीर्तनम् ॥२३॥
ग्रहान् प्रेतग्रहांश्चापि तथा वै डाकिनीग्रहान् ।
बेतालांच पिशाचांश्च गन्धर्वान् यक्षराक्षसान् ॥ २४॥
शकुनीपूतनाद्यांश्च तथा वैनायकान् ग्रहान् ।
मुखमण्डी तथा क्रूरां रेवती वृद्धरेवतीम् ॥२५॥
वृद्धिकाख्यान्ग्रहांश्चोग्रांस्तथा मातृग्रहानपि ।
बालस्य विष्णोचरितं हन्तु बालग्रहानिमान् ॥२६॥
वृद्धाश्च ये ग्रहाः केचिद् ये च बालग्रहाः क्कचित् ।
नसिंहस्य ते दृष्ट्या दग्धा ये चापि यौवने ॥२७॥
सटाकरालवदनो नारसिंहो महाबलः ।
ग्रहानशेषान्नि: शेषान् करोतु जगतो हितः ॥२८॥
नरसिंह महासिंह ज्वालामालोज्ज्वलानन ।
ग्रहानशेषान् सर्वेश खाद खादाग्निलोचन ॥२९॥
ये रोगा ये महोत्पाता यद्विषं ये महाग्रहाः ।
यानि च क्रूरभूतानि प्रहपीडाञ्च दारुणाः ॥३०॥
शस्त्रक्षतेषु ये दोषा ज्वालागर्दभकादयः ।
तानि सर्वाणि सर्वात्मा परमात्मा जनार्दनः ॥३१॥
किंचिद्रुपं समास्थाय वासुदेवास्य नाशय ।
क्षिप्त्वा सुदर्शनं चक्र ज्वालामालातिभीषणम् ॥३२॥
सर्वदुष्टोपशमनं कुरु देववराच्युत ।
सुदर्शन महाज्वाल च्छिन्धि च्छिन्धि महारव ॥३३॥
सर्वदुष्टानि रक्षांसि क्षयं यान्तु विभीषण ।
प्राच्या प्रतीच्यां च दिशि दक्षिणोत्तरतस्तथा ॥३४॥
रक्षां करोतुह सर्वात्मा नरसिंहः स्वगर्जितै:।
दिवि भुज्यन्तरिक्षे च पृष्ठतः पाश्वतोऽग्रतः ॥३५॥
रक्षां करोतु भगवान् बहुरूपी जनार्दनः।
यथा विष्णुर्जगत्सर्व सदेवासुरमानुषम् ॥३६॥
तेन सत्येन दुष्टानि शममस्य व्रजन्तु वै ।
यथाविष्णौस्मृते सद्य: संक्षयं यान्ति पातकाः ॥३७॥
सत्येन तेन सकलं दुष्टमस्य प्रशाम्यतु ।
यथा यज्ञेश्वरो विष्णुर्देवेष्वपि हि गीयते ॥३८॥
सत्येन न सकलं यन्मयो तथास्तु तत् ।
शान्तिरस्तु शिवं चास्तु दुष्टमस्य प्रशाम्यतु ।।३९।।
वासुदेवशरीरोत्थेः कुशेनिर्णाशितं मया ।
अपामार्जन गोविन्दो नरो नारायणस्तथा ॥ ४०॥
तथास्तु सर्वदुःखानां प्रशमो वचनाद्धरे:।
अपामार्जनकं शस्तं सर्वरोगादिवारणं ॥४१॥
अहं हरि: कुशा विष्णुहर्ता रोगा मया तव ।।४२ ॥
॥ इति कुशपामार्जन स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
नोट:-
मेरे गुरुजी कमलाकान्त शुक्ल जी ने इस स्तोत्र को मुझसे कहा जब वे जीवित थे । आज उनका स्मरण होने पर मुझे इस स्तोत्र की याद आयी जी आप तक पहुंचाने की जिज्ञासा हुई ।
जय गुरुदेव
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
॥ हनुमद्वडवानलस्तोत्रम् ॥
॥ हनुमद्वडवानलस्तोत्रम् ॥
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
यह वाडवानल स्तोत्र सर्वसिद्धि प्रदायक है ।इसके पाठ से मनुष्य की सभी कामनाएं पूर्ण होती है ।
संकल्प: --
ॐ अस्य श्रीहनुमद्वडवानलस्तोत्रमंत्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीवडवानल हनुमान् ,देवता , मम् समस्तरोगप्रशमनार्थं ,आयुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्ध्यर्थं समस्तपापक्षयार्थम् सीतारामचंद्र हनुमद्वडवानलस्तोत्रजपमहं करिष्ये ।।
ध्यान:-
मनोजवं मारुत तुल्य वेगं ,जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं ,श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ।।
स्तोत्रम --
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते प्रकटपराक्रम सकलदिङमण्डलय - शोवितानधवलीकृत - जगतत्रितय वज्रदेह रूद्रावतार लंकापुरी - दहन उमाअर्गल मंत्र उदधिबंधन दशशिरः कुतान्तक सीताश्वासन वायुपुत्र अंजनीगर्भसंभूत श्रीरामलक्ष्मणानन्दकर कपिसैन्यप्राकार सुग्रीव सहाय रणपर्वतोत्पाटन कुमारब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्वपापग्रहवारण सर्वज्वरोच्चाटन डाकिनीविध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीरवीराय सर्वदुःखानिवारणाय ग्रहमंडल - सर्वभूतमंडल सर्वपिशाचमडलोच्चाटन - भूतज्वर -एकाहिकज्वर- द्व्याहिकज्वर- त्रयाहिकज्वर -चातुर्थिकज्वर -संतापज्वर - विष मज्वर - तापज्वर - माहेश्वरवैष्णवज्वरान् छिंधि छिंधि यक्ष -ब्रह्मराक्षस -भूत - प्रेत - पिशाचान् उच्चाटय उच्चाटय ।
ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं हः आं हां हां हां हां औं सौं एहि एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते श्रवणचक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषमदुष्टानां सर्वविषं हर हर आकाशभुवने भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय सकलमायां भेदय भेदय ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महाहनुमते सर्वग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकलबंधन - मोक्षणं कुरू कुरू शिरःशूल - गुल्मशूल - पर्वशूलानिर्मूलय निर्मूलय नागपाशानंतवासुकि - तक्षक - कर्कोटक - कालियान् यक्षकुल - जगत- रात्रिचर - दिवाचर - सर्पा निर्विषान् कुरू कुरू स्वाहा ।
राजभय - चोरभय -परमंत्र -परयंत्र -परतंत्र परविद्याश्छेदय छेदय स्वमंत्र - स्वयंत्र -स्वतंत्रका - विद्याः प्रकटय प्रकटय सर्वारिष्टान्नाशय नाशय सर्वशत्रूनाशय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।।
॥ इति विभीषणकृतं हनुमद्वडवानलस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
रविवार, 7 जनवरी 2024
विश्व के रामभक्तों से निवेदन
विश्व के राम भक्तों से निवेदन माताओं ,बहनों एवं भाइयों आगामी पौष शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत २०८० सोमवार दिनांक २२ जनवरी २०२४ के शुभ दिन प्रभु श्री राम के बाल रूप नूतन विग्रह को श्री राम जन्मभूमि पर बना रहे नवीन मंदिर भूतल के गर्भगृह में विराजित करके प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी ।
इस अवसर पर अयोध्या में अभूतपूर्व आनंद का वातावरण होगा, आप भी प्राण प्रतिष्ठा के दिन पूर्वाह्न ११:०० बजे से अपराह्न १:०० बजे के मध्य अपने ग्राम मोहल्ले कॉलोनी में स्थित किसी मंदिर के आस पड़ोस के राम भक्तों को एकत्रित करके भजन कीर्तन करें।
टेलीविजन अथवा कोई पर्दा एलईडी स्क्रीन लगाकर अयोध्या का प्राण प्रतिष्ठा समारोह समाज को दिखाएं शंख ध्वनि घंटानाद आरती करे प्रसाद वितरण करें कार्यक्रम का स्वरूप मंदिर केंद्रित रहे अपने मंदिर में स्थित देवी देवताओं का भजन कीर्तन आरती पूजा तथा श्री राम जय श्री राम जय श्री राम विजय महामंत्र का 108 बार सामूहिक जाप करें इसके साथ हनुमान चालीसा सुंदरकांड राम रक्षा स्तोत्र आदि का सामूहिक पाठ भी कर सकते हैं सभी देवी देवता प्रसन्न होंगे वातावरण सर्वत्र सात्विक एवं राममय हो जाएगा ।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह दूरदर्शन द्वारा सीधे प्रसारित किया जाएगा। अनेक चैनलों के माध्यम से भी प्रसारण किया जाएगा।
प्राण प्रतिष्ठा के दिन सायंकाल सूर्यास्त के बाद अपने घर के सामने देवताओं की प्रसन्नता के लिए दीपक जलाएं दीपमालिका सजा विश्व के करोड़ों घरों में दीपोत्सव मनाया जाएगा ।
आपसे निवेदन है की प्राण प्रतिष्ठा के दिन के उपरांत प्रभु श्री रामलला तथा नव निर्मित मंदिर के दर्शन हेतु अपने अनुकूल समय अनुसार अयोध्या जी में परिवार सहित पधारे ।
जय श्री राम भगवान श्री राम आपकी कृपा बनाए रखें
सोमवार, 1 जनवरी 2024
ईसवी नववर्ष २०२४
आंग्ल नव वर्ष २०२४
आंग्ल नववर्ष २०२४ की सभी जनमानुष को शुभ मंगलकामनाएं ,
नया वर्ष आया, नई राहें हैं खुली,
आशा की किरणें, दिल में हैं भरी।
सपनों में ऊँचाई, राह में चुनौतियां,
जीवन में विश्वास, और लिए दिल में एहसास।
नव वर्ष में हो नव सृजन,मिले नई सौगात,सुख,
समृद्धि मिलें,बना रहे अपनों का साथ।।
आपके जीवन में सुख, सम्पदा का लाभ ,
शुभ,लाभ, रिद्धि, सिद्धि,वैभव हो हाथ,
विगत कई वर्षों से मनाते आ रहे हिंदू, अंग्रेजी नव वर्ष जिसका संबंध सनातन धर्म से कही दूर दूर तक नही है ।बड़े धूम धाम से लोग आनंद उठाते है। कई लोग तो मांस मदिरा का उपयोग कर नया साल के आने पर उत्सव मनाते है मानो संसार में जैसे मनुष्य नही असुर नया साल मना रहे है ।
सनातन धर्म में नववर्ष के आगमन पर तो प्रथम देव पूजन से नववर्ष का स्वागत किया जाता है।
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