शनिवार, 10 अप्रैल 2021

धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त

धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त---

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धोबी--

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त्रेतायुग की बात है , अयोध्यापुरी में श्रीरामचन्द्रजी राज्य करते थे । उनके राज्य काल में प्रजा की मनोवृत्ति एवं दुःख - सुख जानने के लिये गुप्तचर घूमा करते थे । एक दिन उन गुप्तचरों के सुनते हुए किसी धोबी ने अपनी भार्यासे कहा ' तू दुष्टा है और दूसरे के घर मे रहकर आयी है । इसलिये अब तुझे मैं नहीं रक्खूगा । स्त्री के लोभी राजा राम भले ही सीता को रख लें , किंतु मैं तुझे नहीं स्वीकार करूँगा । ' इस प्रकार बहुत से लोगों के मुख से आक्षेप युक्त बात सुनकर श्रीराघवेन्द्र ने लोकापवाद के भय से सहसा सीता को वन में त्याग दिया । रघु - कुल - तिलक श्रीरामने उस धोबीको दण्ड देनेकी इच्छा नहीं की । वही द्वापर के अन्त मे मथुरा पुरी में फिर धोबी ही हुआ । उस ने सीता के प्रति जो  कुवाच्य कहा था , उस दोष की शान्तिके लिये श्रीहरि ने स्वयं ही उसका  वध किया , तथापि उन श्रीकरुणानिधि ने उस धोबी को मोक्ष प्रदान किया ।

दर्जी--

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पहले मिथिलापुरी मै एक दर्जी था , जो भगवान् श्रीहरि के प्रति भक्तिभाव रखता था । उसने श्रीरामके विवाह के समय राजा जनक की आज्ञा से श्रीराम और लक्ष्मण के दुल्हा वेष के लिये महीन डोरों से कपड़े सीये थे । वह वस्त्र सीने की कला में अत्यन्त कुशल था । राजन् ! करोड़ों कामदेवों के समान लावण्य वाले सुन्दर श्रीराम और लक्ष्मण को देखकर वह महामनस्वी दजी मोहित हो गया था । उसने मन ही मन यह इच्छा की कि मैं कभी अपने हाथोंसे इनके अङ्गों में वस्त्र पहिनाऊँ । श्रीरघुनाथजी सर्वज्ञ हैं । उन्होंने मन - ही मन उसे वर दे दिया कि द्वापरके अन्त मे ब्रजमण्डल में तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा । श्रीरामचन्द्र जी के वरदान से वही यह दर्जी मथुरा में प्रकट हुआ था , जिसने उन दोनों बन्धुओं की वेष रचना करके उनका सारूप्य प्राप्त कर लिया ।

सुदामा --

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राज कुबेर का एक परम रमणीय सुन्दर वन है , जो चैत्ररथ - वनके नाम से प्रसिद्ध है । उसमें फूल लगाने वाला एक माली था , जो हेममाली के नाम से पुकारा जाता था। वह भगवान विष्णु के भजन में तत्पर,शान्त, दानशील महान सत्संगी था। उसने भगवान कृष्ण की प्राप्ति के लिये देवताओं की पूजा की ,पांच हजार वर्षों तक प्रतिदिन तीन सौ कमल पुष्प लेकर वह भगवान शंकर जी के आगे रखता व प्रणाम करता था ।एक दिन करुणानिधि त्रिनेत्रधारी भगवान शिव उसके ऊपर प्रसन्न हो बोले-"परम बुद्धिमान मालाकार तुम इच्छानुसार वर मांगो।" तब हेममाली ने हाथ जोड़कर महादेव जी को नमस्कार किया और परिक्रमा करके सामने मस्तक झुका कर कहा "प्रभु श्रीकृष्ण कभी मेरे घर पधारें औऱ इन नेत्रों से उनका प्रत्यक्ष दर्शन  करुँ - ऐसी मेरी इच्छा है 

भगवान महादेव ने कहा द्वापर के अंत मे तुम्हारा मनोरथ पूर्ण सफल होगा ।

वही महामना हेममाली द्वापर के अन्त में सुदामा माली हुआ था ।

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गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

।।देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम्

              ॥ देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम् ॥ 

अयि गिरि नन्दिनि नन्दित मेदिनि विश्व - विनोदिनि नन्दिनुते 

गिरिवर विन्ध्य शिरोधि -निवासिनि विष्णु विलासिनि जिष्णुनुते। 

भगवति हे  शितिकण्ठ - कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि   भूतिकृते 

जय जय हे  महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।१ ।।


सुरवर वर्षिणि    दुर्धर धर्षिणि  दुर्मुख    मर्षिणि  हर्षरते 

त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि कल्मषमोषिणि घोषरते ।

दनुज - निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।२ ।।


अयिजगदम्ब ! कदम्ब - वन प्रियवासिनि तोषिणि हासरते 

शिखरि - शिरोमणि - तुंगहिमालय - श्रृंग - निजालय मध्यगते ।

मधु मधुरे मधु कैटभ - भञ्जिनि महिष विदारणि रासरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।३ ।।


अयि  निजहुँकृति - मात्रनिराकृत     धूम्रविलोचन - धूम्रशते 

समर - विशोषित - शोणित - रोषित बीजसमुद्भव बीजलते ।

शिव - शिव शुम्भ - निशुम्भ - महाहव तर्पित - भूत - पिशाचरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।४ ।।


अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड - गजाधिपते 

निज - भुजदण्ड - निपातित-चण्ड विपातित मुण्ड - भटाधिपते । 

रिपुगजगण्ड - विदारण - चण्ड  पराक्रम     शुण्ड - मृगाधिपते  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि    शैलसुते।।५ ।।


धनुरनुसंग - रणक्षणसंग      परिस्फुरदंग् - नटत्कट के 

कनक - पिशंग - पृषत्कनिषंग रसद्भट श्रृंग - हताबटु के । 

हत - चतुरंग - बल - क्षितिरंग घटद् - बहुरंग - रटद्बटुके  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।६ ।।


अयि रणदुर्मद - शत्रुवधोद्धर दुर्धर - निर्भर - शक्तिभृते 

चतुर - विचार - धुरीण - महाशय दूतकृत - प्रमथाधिपते । 

दुरित - दुरीह - दुराशय - दुर्मति दानवदूत - दुरन्तगते  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।७ ।। 


अयि शरणागत वैरिवधू जन वीरवराभय दायिकरे  

त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे ।

दुमि दुमितामर दुन्दुभिनाद मुहुर्मुखरीकृत दिङ् निकरे  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।८ ।।


सुरललना - ततथेयित थेयित थाभिनयोत्तर - नृत्यरते 

कृतकुकुथा कुकुथोदि दडादिक तालकुतूहल गानरते ।

धुधुकुट - धूधुट - धिन्धिमितध्वनि धीर मृदङ्ग निनादरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।९ ।।


जय जय जाप्यजये जयशब्द परस्तुति - तत्पर - विश्वनुते 

झण - झण झिंझिम - झिंकृत नूपुर - शिञ्जित मोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध - नटीनटनायक नाटित - नाट्य - सुगानरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१० ।।


अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोरम - कान्तियुते 

 श्रितरजनी - रजनी - रजनी रजनी - रजनीकर - वक्त्रवृते ।

 सुनयन - विभ्रम - रभ्रम - रभ्रम रभ्रम - रभ्रमराभिदृते  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।११ ।।


महित - महाहव - मल्लमतल्लिक वल्लित - रल्लित- भल्लिरते 

विरचित बल्लि कपालिक पल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते । 

श्रुतकृतफुल्ल - समुल्लसितारुण तल्लज - पल्लव - सल्ललिते 

जय जय हे  महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि   शैलसुते।।१२ ।।


अयि सुदतीजन - लालस - मानस मोहन - मन्मथ - राजसुते 

अविरल - गण्डगलन् - मदमेदुर मत्त - मत्तंगजराजपते ।

त्रिभुवन - भूषण - भूतकलानिधि रूप - पयोनिधि - राजसुते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि ! शैलसुते।।१३ ।।


कमलदलामल - कोमलकान्ति कलाकलितामल - भालतले 

सकल - विलास  कलानिलय - क्रम केलि चलत्कल - हंसकुले । 

अलिकुल संकुल - कुवलय मण्डल मौलिमिलद् - बकुलालिकुले 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि ! शैलसुते।।१४ ।।


 करमुरलीरव - वर्जित - कूजित लजित - कोकिल - मंजुमते 

मिलित - पुलिंद मनोहर - गुञ्जित रञ्जित - शैल निकुञ्ज गते ।

निजगुण भूत - महाशबरीगण   सद्गुण सम्भृत - केलितले 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१५ ।।


 कटितट - पीत - दुकूल - विचित्र मयूख - तिरस्कृत - चंद्ररुचे 

जित  कनकाचल मौलि - पदोर्जित निर्झर कुञ्जर - कुम्भ कुचे । 

प्रणत - सुराऽसुर - मौलिमणि स्फुर दंशुक - सन्नख - चन्द्ररुचे 

 जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि   शैलसुते।।१६ ।।


विजित - सहस्र - करैक - सहस्र करैक - सहस्र - करैकनुते 

कृत - सुरतारक - संगरतारक     संगरताकर - सूनुनुते । 

सुरथ - समाधि - समान - समाधि समान - समाधिसुजाप्यरते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१७ ।।


 पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे  

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं नभवेत् । 

तव पदमेव परं पदमेमनु शीलयतो ममकि न शिवेः  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।१८ ।।


कनक - लसत् - कलशीकजलै रनुषिञ्चति तेऽङ्गण - रंगभुवम् 

भजति स कि न शची कुच कुम्भ नटी परिरम्भ - सुखानुभवम् ।

तवचरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवे 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१९ ।। 


तव विमलेन्दुकलं वदनेन्दुमलं सकलं न नुकूलयते 

किमु पुरुहूत - पुरींन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखी क्रियते । 

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमु न क्रियते 

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२० ।।


अयिमयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे 

अयि जगतो जननी कृपयाऽसि यथाऽसि तथाअनुमतासिरते ।

यदुचितमत्रभवत्पुरगं    कुरुशाम्भवि देवि दयां कुरुमे  

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि  शैलसुते।।२१ ।।


स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत् । 

परमया रमयापि निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत्।।२२।।

             ॥ इति देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
        वसई

आरती संग्रह

       💐 ॥ गणपति वन्दना ॥ 💐

ॐ जय गौरीनन्दा हरि जय गिरिजानन्दा ।

 गणपति आनन्दकन्दा जय चरणनवृन्दा ।। ॐ जय गौरी 

सुन्ड सुडाला नेत्र विशाला कुण्डल झलकन्ता ।

कुंकुंम   केसरचन्दन   सिन्दुर   वदनवृन्दा ।।ॐ जय गौरी

सुन्दर मुकुट  सुशोभित  मस्तक शोभन्ता । 

बइयाँ   बाजूवन्दा    पौजी      सेवन्ता ।। ॐ जय गौरी 

रत्नजड़ित सिंहासन शोभित आनन्दा ।

गलमोतियन की माला सुरनर मुनिवृन्दा ।। ॐ जय गौरी 

मूषकवाहन राजत शिवसुत आनन्दा ।

कहत शिवानन्द स्वामी भेदत भवफन्दा ।। ॐ जय गौरी


     💐॥ श्री गणेश जी की आरती ।। 💐

गणेश जय गणेश जय गणेश देवा , 

माता जाकी पार्वती , पिता महादेवा।।जै गणेश

एकादंत दयावंत चार भुजाधारी ,

 माथे सिंदूर सोहे , मुषे की सवारी ।।जै गणेश

अन्धन को आँख देत , कोढ़िन को काया , 

बाँझन को पुत्र देत , निर्धन  को  माया ।।जै गणेश

हार चढ़े , फूल चढ़े और चढ़े मेवा ,

लडुवन को भोग लगे , संत करे सेवा । ।जै गणेश

दीनन की लाज राखो , शंभुपुत्र वारी , 

कामना को पूरा करो , जाऊँ बलिहारी । जै गणेश


गजाननं भूत गणादिसेवितम् ,

कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम् । 

उमासुतं शोक विनाशकारकम् , 

नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ।। 

लम्बोदरं परमसुंदर मेकदंत ,

पीताम्बरं त्रिनयनं परम पवित्र । 

उद्यदिवाकरविभोजलकांतिकांत , 

विघ्नेश्वर सकल विघ्नहर नमामि ।।


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      💐॥ श्री लक्ष्मी जी की आरती ।।💐

ॐ जय लक्ष्मी माता , मैय्या जय लक्ष्मी माता । 

तुमको निशिदिन सेवत हर - विष्णु - धाता।।ॐ ।। 

उमा , रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग - माता ।

सूर्य - चन्द्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता।।ॐ ।। 

दुर्गारूप निरजनि , सुख - सम्पत्ति दाता । 

जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि -सिद्धि -धन पाता।॥ॐ ॥

तुम पाताल - निवासिनि , तुम ही शुभदाता ।

कर्म - प्रभाव - प्रकाशिनि ,भवनिधि को त्राता।।ॐ ।।

जिस घर में तुम रहती , सब सद्गुण आता । 

सब संभव हो जाता , मन नहिं घबराता।।ॐ ।। 

तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न हो पाता । 

खान - पान का वैभव सब तुमसे आता।।ॐ ।। 

शुभ - गुण - मंदिर सुन्दर , क्षीरोदधि - जाता ।

रत्ल चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।।ॐ ॥ 

महालक्ष्मी जी की आरती , जो कोई नर गाता । 

उर आनन्द समाता , पाप उतर जाता।।ॐ ॥

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     💐॥ दुर्गा जी की आरती ॥ 💐

जय अम्बे गौरी , मैया जय श्यामा गौरी । 

तुमको निशिदिन ध्यावत , हरि ब्रह्मा शिवजी ।। जय अम्बे ... 

माँग सिंदूर विराजत , टीको मृगमद को । 

उज्जवल से दोउ नयना , चन्द्रवदन नीको ।। जय अम्बे ... 

कनक समान कलेवर , रक्ताम्बर राजे । 

रक्त पुष्प गलमाला , कण्ठन पर साजे ।। जय अम्बे ... 

केहरि वाहन राजत , खड्ग खप्परधारी । 

सुर नर मुनि जन सेवत , तिनके दु : ख हारी ।। जय अम्बे ...

कानन कुण्डल शोभित , नासाग्रे मोती । 

कोटिक चंद्र दिवाकर , राजत सम जोती ।। जय अम्बे ... 

शुम्भ - निशुम्भ विदारे , महिषासुर घाती । 

धूम्र - विलोचन नयना , निशिदिन मदमाती ।। जय अम्बे ... 

चण्ड - मुण्ड संहारे , शोणित बीज हरे । 

मधु कैटभ दोउ मारे , सुर - भयहीन करे ।। जय अम्बे ... 

ब्रह्माणी  रुद्राणी , तुम  कमला   रानी । 

आगम - निगम बखानी , तुम शिव पटरानी ।। जय अम्बे ... 

चौंसठ योगिनि गावत , नृत्य करत भैरूँ । 

बाजत ताल मृदंगा , और बाजत डमरू ।। जय अम्बे ... 

तुम ही जग की माता , तुम ही हो भर्ता । 

भक्तन की दु : खहर्ता , सुख - सम्पत्ति कर्ता ।। जय अम्बे ... 

भुजा चार अति शोभित , वर मुद्राधारी । 

मनवांछित फल पावत , सेवत नर - नारी ।।जय अम्बे ... 

कंचन थाल विराजत , अगर कपूर बाती । 

श्रीमालकेतु में राजत , कोटिरतन ज्योति ।।जय अम्बे ... 

माँ अम्बे की आरती , जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी , मनवांछित फल पावे ।। जय अम्बे ...


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         💐॥ शिवजी की आरती ॥ 💐

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा । 

ब्रह्मा    विष्णु     सदाशिव  अर्धांगी   धारा ।। 

ॐ हर हर हर महादेव

महादेव एकानन चतुरानन पचानन राजे । 

हंसासन , गरुड़ासन , वृषवाहन  साजे ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें । 

तीनों  रुप निरखता त्रिभुवन  जन  मोहें ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

अक्षमाला , वनमाला , रुण्डमालाधारी । 

चंदन , मृदमग सोहें , भाले शशिधारी ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

श्वेताम्बर , पीताम्बर , बाघाम्बर अंगे । 

सनकादिक , ब्रह्मादिक , भूतादिक संगे ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

कर मध्ये च कमंडलु, चक्र त्रिशूल धरता । 

जगकर्ता , जगहर्ता , जग पालन  कर्ता ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । 

प्रणवाक्षर  के  मध्ये, ये  तीनों  एका ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

काशी में विश्वनाथ विराजे नन्दो ब्रह्मचारी । 

नित उठि भोग लगावे महिमा अति भारी ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

त्रिगुणनाथ शंकर जी की आरती जो कोई नर गावे । 

कहत  शिवानंद  स्वामी मनवांछित  फल  पावे ।। 

ॐ हर हर हर महादेव 

ॐ जय शिव ओंकारा , भोले हर शिव ओंकारा । 

ब्रह्मा   विष्णु    सदाशिव ,  अर्धांगी   धारा ।। 

ॐ हर हर हर महादेव

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~॥ आरती ॐ जय जगदीश हरे ॥ 

ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे । 

भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे।।ॐ ... 

जो ध्यावे फल पावे , दु:ख विनशे मन का । 

सुख सम्पत्ति घर आवे , कष्ट मिटे तन का।।ॐ ... 

मात - पिता तुम मेरे , शरण गहूँ किसकी । 

तुम बिन और न दूजा , आस करूँ जिसकी।।ॐ ... 

तुम पूरण परमात्मा , तुम  अन्तर्यामी । 

पार ब्रह्म परमेश्वर , तुम सबके स्वामी।।ॐ ... 

तुम करुणा के सागर , तुम पालनकर्ता । 

मैं मूरख खल कामी , कृपा करो भर्ता।।ॐ ... 

तुम हो एक अगोचर , सबके प्राणपति । 

किस विधि मिलूँ दयामय , तुमको मैं कुमति।।ॐ ... 

दीन बन्धु दु : खहर्ता , तुम ठाकुर मेरे । 

अपने हाथ उठाओ , द्वार पड़ा तेरे।।ॐ .... 

विषय विकार मिटाओ , पाप हरो देवा । 

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ , सन्तन की सेवा।।ॐ ... 

तन , मन , धन अरु जीवन सब कुछ है तेरा । 

तेरा तुझको अर्पण , क्या लागे मेरा।।ॐ ... 


नवाम्बोज नेत्रं रमा केलिपत्रं 

चतुरबाहु चामी करंचारुगात्रम् । 

जगत्राण हेतुं रिपोधूमकेतुं 

सदा सत्यनारायणं स्तोमि देवम् ॥

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॥ आरती श्री कुंजबिहारी जी की ॥ 

आरती कुंजबिहारी की , श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ।
 
गले में बैजंती माला , बजावै मुरली मधुर बाला । 
श्रवण में कुण्डल झलकाला , नंद के आनंद नंदलाला ॥ 
नंद के आनन्द मोहन बृज चन्द , परमानन्द , 
राधिका रमण बिहारी की श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ॥ 
आरती .. 
गगन सम अंग कांति काली , राधिका चमक रही आली ,                                                       लतन में ठाढ़े बनमाली ,
भ्रमर - सी अलक , कस्तूरी तिलक , चंद्र - सी झलक , 
ललित छवि श्यामा प्यारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ।।आरती ...

कनकमय मोर मुकुट बिलसै , देवता दरसन को तरसैं ,                                                  गगन सों सुमन रासि बरसै ,
बजे मुरचंग , मधुर मृदंग , ग्वालिन सग , 
अतुल रति गोप कुमारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ आरती ... 

चमकती उज्ज्वल तट रेनू , बज रही बृन्दाबन बेनू , 
                               चहुँ दिसि गोपि ग्वाल धेनु , 
हँसत मृदु मंद , चाँदनी चंद , कटत भव - फंद , 
टेर सुनु दीन दुखारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ 
आरती ... 

आरती कुंजबिहारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ।
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💐 ॥ आरती श्री बाँकेबिहारी जी की ॥ 💐

श्री बाँके बिहारी तेरी आरती गाऊँ । 
कुंजबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।। 
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ । 
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।। 

मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे । 
प्यारी बंशी मेरो मन मोहे ।। 
देखि छवि बलिहारी जाऊँ । 
श्री बाँके बिहारी तेरी आरती गाऊँ ।। 

चरणों से निकली गंगा प्यारी । 
जिसने सारी दुनिया तारी ।। 
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ । 
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।। 

दास अनाथ के नाथ आप हो । 
दुःख - सुख जीवन प्यारे साथ हो ।। 
हरि चरणों में शीश नवाऊँ । 
श्री बाँके बिहारी तेरी आरती गाऊँ ।। 

श्री हरिदास के प्यारे तुम हो । 
मेरे मोहन जीवन धन हो ।। 
देखि युगल छवि बलि - बलि जाऊँ । 
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।। 

आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ । 
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ ।। 
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ । 
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
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    💐श्रीहनुमान जी आरती 💐

आरती कीजै हनुमानललाकी । दुष्टदलन रघुनाथ कलाकी॥ टेक।।

जाके बलसे गिरिवर काँपै । रोग दोष जाके निकट न झाँपै ॥ 

अंजनिपुत्र महा बलदाई । संतनके प्रभु सदा सहाई ।।

 दे बीरा रघुनाथ पठाये । लंका जारि सीय सुधि लाये ।

 लंका - सो कोट समुद्र - सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ॥ 

लंका जारि असुर संहारे । सीतारामजीके काज सँवारे ॥ 

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे । आनि सजीवन प्रान उबारे ॥ 

पैठि पताल तोरि जम - कारे । अहिरावनकी भुजा उखारे ॥ 

बायें भुजा असुरदल मारे । दहिने भुजा संतजन तारे ॥

सुर नर मुनि आरती उतारे । जय जय जय हनुमान उचारे ॥ 

कंचन थार कपूर लौ छाई । आरति करत अंजना माई ॥ 

जो हनुमानजीकी आरति गावै । बसि बैकुंठ परम पद पावै ॥ 

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     💐आरती श्री बदरीनारायण जी 💐

पवन मंद सुगंध शीतल , हेम मंदिर शोभितम् ।

 निकट गंगा बहत निर्मल , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।

शेष सुमिरन करत निशिदिन ध्यान धरत महेश्वरम् ।

श्री वेद ब्रहमा करत स्तुती ,श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।

इंन्द्र चंद्र कुबेर दिनकर , धूप द्वीप निवेदितम् सिद्ध। 

मुनिजन करत जय जय , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।

शक्ति गौरी गणेश शारद ,नारद मुनि उच्चारणम् ।

योग ध्यान अपार लीला ,श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।। 

यक्ष किन्नर करत कौतुक , गान गन्धर्व प्रकाशितम् ।

श्री भूमि लक्ष्मी चंवर डोले , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।

कैलाश में एक देव निरंजन , शैल - शिखर महेश्वरम् ।

राजा युधिष्ठिर करत स्तुती , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।

श्री बदरीनाथ जी की परम स्तुती यह पढत पाप विनाशनम् ।

कोटि - तीर्थ सुपुण्य सुन्दर सहज अति फलदायकम् ।।

पवन मंद सुगंध शीतल , हेम मंदिर शोभितम् ।

निकट गंगा बहत निर्मल , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।

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 ।।💐आरती केदारनाथ जी की 💐।।

जय केदार उदार शंकर, भवभयंकर दुःख हरम ।

 गौरी गणपति स्कन्द नंदी, जय केदार नमाम्यहम् ।।

शैल सुंदर अति हिमालय, शुभ मंदिर सुन्दरम् ।

निकट मंदाकिनी सरस्वती जय केदार नमाम्यहम् ।। 

उदक कुंण्ड है अधम पावन, रेतस कुंण्ड मनोहरम।

हंस कुंड  समीप सुंदर, जय  केदार  नमाम्यहम् ।।

अन्नपूर्णा सह अपर्णा, काल भैरव शोभितम् ।

पांच पांडव द्रोपदी सह, जय केदार नमाम्यहम् ।।

शिव दिगंम्बर भस्मधारी  अर्द्धचंन्द्र विभूषितम् ।

शीश गंगा कंठ फणिपति , जय केदार नमाम्यहम् ।।

कर त्रिशूल विशाल डमरु , ज्ञान गान विशारदम् ।

मद्य महेश्वर तुंग ईश्वर , रुद्र कल्प महेश्वरम् ।।

पंच धन्य विशाल आलय , जय केदार नमाम्यहम्

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
      ज्योतिषाचार्य

कुमाऊँनी भजन माला

॥ भजन ।।

जै जै हो बदरीनाथा ॥ 

ॐ जै जै हो बदरीनाथा ,जै काशी केदारा ,जै जै हिमाला।

 देवतों की तपोभूमि ,संतों की तपोभूमि ,जै हरि हरिद्वारा ।। 

 जै जै हिमाला । 


नीलकंठ जै त्रिशूल , जै जै हो चौखम्बा । 

नंदा देवी पंचचूली , जै तेरी गौमुखा ।

शिवजी की तपोभूमि , पार्वती को मैता ।। 

जै जै हिमाला । 


यह हमारि स्वर्गभूमि , बदरीनाथ धाम रे ।

ढुंग - माटू में राम - श्याम , डाय - बोटि भगवान रे ।।

बागनाथा जागनाथा , रुद्रनाथा तुंगनाथा , 

भगवती को थाना ।। 

जै जै हिमाला ।


जै घन्याल , जै पटवाल , भूमि का भूम्याला रे । 

स्वर्गजनी भूमि मेरि , जै जै हो घन्याल रे ।। 

रंग - रंगीलो मुलुक मेरो , देवतों को वासा ।। 

जै जै हिमाला ।


॥ भजन।।

 जै मैया दुर्गा भवानी ॥ 

ॐ जै मैया दुर्गा भवानी जै मैया ।

तेरी सिंह की माता सवारी , हाथ चक्र सुदर्शनधारी । 

डान कानौ में तेरो निवास , दूनागिरि में जली रै जोत ।। 

जै मैया ...

तेरी जैकार माता उपट्टा , तेरी जै जै हो देवी का धूरा । 

तेरी जैकार माता गंगोली , तेरी जै जै हो कायी गाड़ काली ।। 

जै मैया ...

दूनागिरि की सिंहवाहिनी , तेरी जै जै हो चन्द्रबदनी । 

तेरी जैकार हे माता नन्दा , तेरी जै जै हो देवी मानीला ।। 

जै मैया ... 

तेरा नाना रूपों मैं प्रणाम , दिए भक्ति का हमें तू ज्ञान ।

तेरा भगत जोड़नी हाथ , धरि दिए सबू की तू लाज ।। 

जै मैया ...



निर्वाण भजन--

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जपि ले भाई हरिक नाम । अन्त समय जो आल काम ।। 

हाथ ओ पैर थाकिला जब । यम का दूत मारीला तब ।।

भाई भतीजा सब कुटुम । दगड़ रये सारे जनम ।। 

अन्त समय निआना काम । जपि ले भाई हरिक नाम । 

छोड़दे भाई माया के जाल । एकदिन आल जरूरे काल ।। 

तेकड़ी जब काल बुलाल । फांसी लीवेर यमदूत आल ॥ 

च्यलायो ब्वारी निभाना काम । जपिले भाई हरिक नाम ॥ 

धन दौलत माल खजान । दगड़ कोई चीज नियान ॥ 

निकय तीरथ निकय दान । एति रहल सब समान ।। 

धरी ढकिया निलाग काम । जपि ले भाई हरिक नाम ।। 

जब तक भाई ज्योंन छ जिया । दान धरम करि लैलिया । 

दान धरम भल बुलाण । अन्त सम यइ ली जाण ।। 

खिमानन्द क लेखणं काम । जपि ले भाई हरिक नाम ।।

देव परिक्रमा करने का महत्व

परिक्रमा का महत्व 

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जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान की परिक्रमा जरुर लगाते है । पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है? शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है | यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है।

कैसे करें परिक्रमा -

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देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है । बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है | जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है |

किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये ?

वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है | सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं।

1.  महिलाओं द्वारा “वटवृक्ष” की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है।


2.  शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है  शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे खयालात और अनर्गल स्वप्नों का खात्मा होता है। भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को न लांघे।


3. “देवी मां” की एक परिक्रमा की जानी चाहिए।


4.  “श्रीगणेशजी और हनुमानजी” की तीन परिक्रमा करने का विधान है गणेश जी की परिक्रमा करने से अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है गणेशजी के विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं।


5. “भगवान विष्णुजी” एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते हैं।


6. सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं हमें भास्कराय मंत्र का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर “ॐ भास्कराय नमः” का जाप करना देवी के मंदिर में महज एक परिक्रमा कर नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है; इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।


परिक्रमा के संबंध में नियम

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1.  परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए; साथ ही परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी  ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती।


2. – परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें  जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें।


3. उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ परिक्रमा नहीं करनी चाहिये।


इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है। इस प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ती होती है।

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आचार्य हरीश लखेड़ा
वसई

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

खग्रास सुर्यग्रहण 10 जून 2021

🌞सूर्यग्रहण - विवरण ( संवत् २०७८ ) 

* संवत् २०७८ ( सन् २०२१-२२ ) में भूमण्डल पर कुल चार ग्रहण होंगे ।

इनमें - दो सूर्यग्रहण होंगे । 

 🌒 पहला खग्रास सूर्यग्रहण- १० जून २०२१ , गुरुवार ( पूर्वी भारत में दृश्य )


🌑भूमण्डलीय खग्रास सूर्यग्रहण

  खग्रास सूर्यग्रहण ज्येष्ठ कृष्णपक्ष अमावस्या दिन गुरुवार दि ० १० जून २०२१ को भारत के पूर्वी भागों के दृश्य होगा ।

ज्योतिषीय गणनानुसार यह ग्रहण भूमण्डल पर दिन १:४३ से ६:४१ बजे के मध्य दृश्य होगा। भारत के अधिकतर भागों में यह सूर्यग्रहण दिखाई नहीं देगा इसलिये सूतक सम्बन्धित धार्मिक कृत्य करना आवश्यक नहीं है । नित्य की भांति जप व्रत पूजा पाठ चलता रहेगा ।

इस ग्रहण का सूतक प्रातः ५-५१ से प्रारम्भ होगा । ग्रहण के सूतक में बाल , वृद्ध और अस्वस्थजनों को छोड़कर शेष को भोजन - शयनादि निषेध है ।

ग्रहण समय--

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 ग्रहण स्पर्श- ५/५१ बजे सांय🌔

 ग्रहण मध्य -६ / ०६ बजे सांय🌓

 ग्रहण मोक्ष -६ / २० बजे सांय🌑

 पर्वकाल --29 मिनट 🌞

यह खण्ड सूर्यग्रहण सुदूरवर्ती अमेरिका, मंगोलिया ,चीन , नोर्वे , रुस, कनाडा, ग्रीसलैंड आदि स्थानों पर दृश्य होगा । 

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रविवार, 4 अप्रैल 2021

कलयुग का लक्षण

कलयुग का लक्षण---

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कलयुग को युग श्रेष्ठ माना गया है ,जिसमे कम समय मे अधिक फल देने वाला है ,सोचने मात्र से मनुष्य पुण्य अर्जित कर सकता है । कलयुग सभी युगों में तकनीकी मशीनी युग के रूप में अधिक शक्तिशाली होगा । कलयुग में नाना प्रकार के आविष्कार होने से मनुष्य  में आलस्य का प्रभाव  होगा अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अपनो को ही धोका छल के द्वारा अपना ईस्ट सिद्ध करेगा। मनुष्य - मनुष्य में आपसी सामंजस्य का अभाव होगा कलयुग में जिसके पास अधिक धन धान्य होगा वही राजा कहलायेगा ।जैसे -जैसे कलयुग का समय बीतेगा वैसे -वैसे मनुष्य में राक्षसी प्रवृत्ति का प्रादुर्भाव होते जाएगा । आडम्बर ,छल, कपट, चोरी करने वालो की हमेशा जय जयकार होगी वही समाज मे अग्रगण्य पूज्य होगा, दुर्जन समाज में अधिक प्रभावशाली होगा । कलयुग में  महिलाओं को अत्याचार से अपनी सुरक्षा स्वयं करनी होगी । 


कलयुग का लक्षण --

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वेद हीन ब्राह्मण ,रण हीन क्षत्रिय ।

मेघ हीन पानी , यही कलयुग की निशानी ।।

कलयुग में ब्राह्मणों के पास वेद ग्रन्धों के ज्ञान अभाव होते जाएगा ।क्षत्रियों में लड़ने योग्य बाहुबल की कमी हो जाएगी। बादल गर्जना होगी पर बारिश का अभाव रहेगा ।

कलयुग के विषय मे व्यास जी ने कुछ लक्षण बातये है---

१.ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया ।

कालेन बलिना राजन् नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥

कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी.

२.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।

    धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥

कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा!

३.दाम्पत्येऽभिरुचि र्हेतुः मायैव व्यावहारिके ।

   स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥

कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.

४. लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।

    अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वचः ।।

घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान् माना जायेगा.

५. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।

    त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः कलौ नृणाम ।।

कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे. लोगों को कई तरह की चिंताए सताएंगी और बाद में मनुष्य की उम्र घटकर सिर्फ २०-३० साल की रह जाएगी.

६. दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् ।

     उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे धार्ष्ट्यमेव हि॥

कलयुग में लोग दूर के नदी-तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान की तरह जायेंगे, लेकिन अपने ही माता- पिता का अनादर करेंगे. सर पे बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर तरह के बुरे काम करेंगे.

७. अनावृष्ट्या विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः ।

     शीतवातातपप्रावृड् हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥

कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा. मौसम बहुत विचित्र अंदाज़ ले लेगा. कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी. कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी और इन्ही परिस्थितियों से लोग परेशान रहेंगे.

८. अनाढ्यतैव असाधुत्वे साधुत्वे दंभ एव तु ।

     स्वीकार एव चोद्वाहे स्नानमेव प्रसाधनम् ॥

कलयुग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा उसे लोग अपवित्र, बेकार और अधर्मी मानेंगे. विवाह के नाम पे सिर्फ समझौता होगा और लोग स्नान को ही शरीर का शुद्धिकरण समझेंगे.

९. दाक्ष्यं कुटुंबभरणं यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।

  एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥

लोग सिर्फ दूसरों के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म-कर्म के काम करेंगे. कलयुग में दिखावा बहुत होगा और पृथ्वी पे भ्रष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे. लोग सत्ता या शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे.

१०.आच्छिन्नदारद्रविणा यास्यन्ति गिरिकाननम् ।

      शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥

पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर(मंहगाई) और सूखे की वजह से घर छोड़ पहाड़ों पे रहने के लिए मजबूर हो जायेंगे. कलयुग में ऐसा वक़्त आएगा जब लोग पत्ते, मांस, फूल और जंगली शहद जैसी चीज़ें खाने को मजबूर होंगे।


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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
         वसई


   






गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

नव संवत्सर हिन्दू नया साल२०७८

नव संवत्सर हिन्दू नव वर्ष नया साल२०७८

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भारतीय नव संवत्सर यानी नया साल चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होता है । हिन्दू परम्परा सांस्कृतिक विविधता के कारण अनेक काल गणना विस्तार लिए हुआ है ,जैसे विक्रम संवत, शक संवत ,सन, ईसवी, वीर निर्वाण संवत, बंग संवत,आदि भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत को दिया जाता है ।

हिन्दू लोग अपने हर त्यौहार, उत्सव को बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाते है ,नव वर्ष के आगमन पर सभी लोग अपने घरों की दहेली को गाय के गोबर से लीप कर दहेली पर फूल हार  लगाकर घर को सुसज्जित कर नव वर्ष के प्रथम दिन लोग घरों में शोकादि से रहित होकर माँ भगवती दुर्गा जी की प्रतिमा स्थापित कर कुल परम्परा के अनुसार मां दुर्गा जी की आराधना करते है ।


ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा को सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने समस्त सृष्टि की रचना की थी,उसी दिन ब्रह्मा जी का अर्चन पूजन व्रत करने से वर्ष भर मनुष्य को सुख प्राप्त होता है ।

नव संवत्सर के प्रथम दिन ब्राह्मण को घर मे बुलाकर नव संवत्सर के बारे में  व्यक्ति विशेष के विषय मे, दुनिया मे होने वाली हलचल शुभ अशुभ पैट अपैट जानकर ब्राह्मण देवता से आशीर्वाद लेते है । 

सभी हिन्दू अपने बच्चों को सनातन हिन्दू नव संवत्सर नये साल के विषय मे उन्हें अवगत कराएं ।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
सनातन संस्कृति संस्कार
      वसई


शुक्रवार, 19 मार्च 2021

मनुष्य का खाता

मनुष्य का खाता -

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बड़े भाग मानुष तन पावा

मनुष्य जीवन तप्त लोह पिण्ड की भांति है जिस प्रकार के सांचे में ढालों वैसा ही जीवन का पथ चलता रहता है । मनुष्य जीवन कर्म करने के लिए जिसके द्वारा सृष्टि का संचार , निरन्तर उत्थान करने न कि व्यर्थ जीवन यापन करने के लिए नही मिला है ।

तन पवित्र सेवा करी ,धन पवित्र कर दान ।

मन पवित्र हरि भजन सो , त्रिविध होत कल्याण।।


जीव के जन्म लेने के साथ ही उसका जीवन खाता खुल जाता है । उसके अच्छे बुरे सभी कर्मो का लेखा जोखा यमराज के दूत चित्रगुप्त के पास जमा होता रहता है ।

मनुष्य के जीवन मे कितने भी बैंक खाते हौ कितनी भी जमा पूंजी हो सब यही रहेगा। साथ जाएगा शुभ कर्मों द्वारा अर्जित पुण्य , इस लिये मनुष्य को धन के द्वारा धर्म अर्जित करना चाहिए।

कर्मो के द्वारा किया गया शुभ अशुभ कार्य का फल समय-समय पर मनुष्य को मिलता रहता है।

मनुष्य जीवन के शुभ कर्म --

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मनुष्य अपने जीवन यात्रा को सावधानी से निर्वाह करते हुए सर्व प्रथम अपने जीवन की रक्षा करें ,परिवार का रक्षण करें ,नित्य पूजा , जप ,होम ,नित्य ब्राह्मण को दान दे ,नित्य देव दर्शन,गौ को चार खिलायें , पक्षीयों को दाना दे ,गरीब भूखे को खाना खिलायें किया गया परमार्थ धर्म बनकर मनुष्य के खाते में जुड़ता है । किन्तु दिन-रात मेहनत करके कमाया धन यही रह जाता है ।

इसलिए जीवन मे सभी कार्यो को संपादित करते हुए धर्म रूपी पुण्य का रास्ता कभी नही छोड़ें ।जीव के हाथों से किया गया दान पुण्य शुभ कर्म मरने के बाद उसके साथ चलता है। पर जीवन मे कमाया धन जमीन जायदाद यही रह जायेगा। कुछ भी साथ नही होगा सिर्फ धर्म रूपी खाते में जमा पुण्य साथ होगा। तन,मन,धन के द्वारा धर्म रूपी पुण्य अर्जित किया जा सकता है ।

धन सभी साधनों में श्रेष्ठ है धन से धर्म किया जा सकता है पर धर्म खरीदा नही जा सकता ।

इस लिए गृहस्थ का निर्वाह करते हुए जब तक धन अपने हाथ है। तब तक आप अपने धन से तीर्थ, देवदर्शन,यज्ञ,दान,पुण्य कर सकते है।धन के पराधीन होने पर मनुष्य कुछ भी नही कर सकता। इसलिए समय रहते अपने धन से धर्म रूपी पुण्य स्तम्भ तैयार करें ।

मनुष्य के विशेष दो खाते -

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१- पूर्वजन्म कर्म - मान्यताओं के आधार पर मनुष्य को पूर्व जन्मार्जित कर्मों का भोग।


२- पूर्व जन्म कर्म -इस जन्म में किये गए कर्मो का अर्जित कर्मो का भोग इन दोनों कर्मो के आधार पर मनुष्य का भाग्य इंगित होता है। जिससे जीवन में अच्छे बुरे कर्मफल का भोग मनुष्य को करना पड़ता है ।इसलिए जीवन मे शुभ कर्मों को करें अपने मनुष्य जीवन खाता को पुण्य से भरते रहे।



शिवपुराण का वचन --

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पुण्यक्षेत्रे कृतं पुण्यं बहुधा ऋद्धिमृच्छति।

पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं महदण्वति जायते ।।

तत्कालं जीवनार्थश्चेतपुण्येन क्षयमेष्यति।

पुण्यमैश्वर्यदं प्राहु: कायिकं वाचिकं तथा।।

मानसं च तथा पापं तादृशं नाशयेद द्विजः।

मानसं वज्रलेपं तु कल्पकल्पानुगं तथा।।

ध्यानादेव हि तन्नश्येन्नान्यथा नाशमृच्छति।

वाचिकं जपजालेन कायिकं  कायशोषणात।।

बीजांशश्चैव वृद्ध्यंशो भोगांशः पुण्यपापयो:।

ज्ञाननाश्यो हि बीजांशो वृद्धिरुक्तप्रकारतः।।

भोगांशो भोगनाश्यस्तु नान्यथा पुण्यकोटिभिः।

बीजप्ररोहे नष्टे तु शेषो भोगाय कल्पते।।


मनुष्य को अपने जीवन सतत निरन्तर सदैव धर्म और पुण्य कर्मों का आचरण करना चाहिए तथा अधर्म अन्याय और पाप कर्मों से सदैव दूर रहना चाहिए । उसमे से भी जानते हुए या जानबूझकर पाप कर्मों को कभी भी नही करना चाहिए उसमे भी तीर्थ क्षेत्र और धर्मक्षेत्र में तो कभी भी जानबूझकर अधर्म अन्याय और पाप कर्मों का आचरण नही करना चाहिए तीर्थ क्षेत्र और धर्म क्षेत्र में किया हुआ छोटा से पुण्य कर्म भी अनन्त फल देने वाला  तथा पूर्व कृत पापों से मुक्ति देने वाला होता है । 

वही यहां किया हुआ छोटा सा पाप भी पूर्व कृत पुण्यों को नष्ट कर देता है । मनुष्य से कायिक (शरीर के द्वारा ) वाचिक (वचन के द्वारा ) तथा मानसिक (मन के द्वारा सोच विचार और समझ कर) तीन प्रकार के पाप होते है ।

मानसिक पाप वज्रलेप के समान कठोर होता है। जो कई जन्मों तक पीछा नही छोड़ता है। और केवल ध्यान से ही क्षयः संभव होता है ।वाचिक पाप जप से क्षय होता है । तथा कायिक पाप कठोर तप से क्षय होता है। जानबूझकर अतिशय मात्रा में किये गए पापा धर्म कर्मो से अर्जित पुण्य को भी नष्ट कर देते है। वस्तुतः मनुष्य के पाप और पुण्य दोनों का बीजांश वृद्ध्यंश और भोगांश होता है । बीजांश का नाश ज्ञान से वृद्धयांश का नाश ध्यान जप और तप से तथा भोगांश का नाश केवल फल भोग (सुख दुःख स्वर्ग नरक के भोग से)से क्षय होता है।


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मंगलवार, 2 मार्च 2021

नामकरण संस्कार व दोलरोहण

 नामकरण संस्कार मुहूर्त- 

 नामाखिलस्य व्यवहारहेतुः  शुभावह कर्म भाग्यहेतुः ।

 नाम्नैव कीर्ति लभते मनुष्यस्ततः प्रशस्तं खलु नाम कर्म ॥

मनुष्य के नाम की सार्वभौमिकता होने के कारण सूतक - समाप्ति पर कुल देशाचार के अनुरूप १० , ११ ,१२ , १३ , १६ , १ ९ , २२ में दिन नामकरण संस्कार किया जाता है । 

नामकरण संस्कार करने से बच्चे अपने नाम से जाने जाते है ।नाम अनुरूप ही बच्चे में गुण भी आते है

शास्त्रों के अनुसार - विप्र को  ११ या १२ वें दिन , क्षत्रिय को १३दिन , वैश्य को १६ या २० दिन तथा शूद्र को ३० दिन में बालक का नामकरण संस्कार करना चाहिये । नामकरण पिता या कुल में वृद्ध व्यक्ति के द्वारा होना चाहिये । 

“ पिता कुर्यादन्यो वा कुलवृद्धः ”

 कुयोग , विष्टि , श्राद्ध दिन , ग्रहण तथा बालक के निर्बल चन्द्र से अतिरिक्त दिन के पूर्वार्द्ध में जन्म - नक्षत्र के चरणाक्षर से प्रारम्भ होने वाला नाम रखना चाहिये । बालक का नाम कुलदेवता , महान् पुरुष , वेदोचित, कुलोचित्त , मंगलदायक , नमस्कार करने योग्य , गुरु या जन्ममास - संज्ञक , समाक्षरान्वित तथा कर्णमधुर होना चाहिये ।

किसी का यह कथन है कि बालक का नक्षत्र - नाम को गोपनीय रखकर व्यवहार में किसी अन्य नाम का ही प्रयोग करें । 

दोलारोहण मुहूर्त -

बालक को नामकरण के दिन  या कुलपरंपरा से आरामदेह झूले में सुलाना चाहिये । 

 बालक के योग्य झूले में जननी या कुल की कोई सुवासिनी के द्वारा योगशायी भगवान् विष्णु का ध्यान करके पूर्व की ओर सिर रखकर शिशु को सुलाना चाहिये ।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
     ज्योतिषचार्य
         वसई
9004013983

सोमवार, 1 मार्च 2021

कुण्डली मिलान में किन किन बातों का रखें ध्यान

कुण्डली मिलान (जुड़ाना) 

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हिन्दू सनातन धर्म बहुत विस्तार लिए हुए अपने आप मे नाना प्रकार रीति रिवाजों को सँजोये है ,जो वेद पुराण ज्योतिष आदि धर्म शास्त्रों का अनुसरण करते हुए अपने जीवन को प्रकाशित करता है। हिन्दू धर्म जब बच्चा जन्म लेता है तब से मृत्यु तक समय समय पर उसके सोलह संस्कार किये जाते है । इन्ही सोलह संस्कारों में एक विवाह संस्कार है ।

माता पिता के द्वारा लड़के के लिए कन्या का चयन किया जाता है ।कन्या के चयन से पहले लड़का व लड़की की जन्म कुण्डली मिलान किया जाता है ।

कुण्डली मिलान प्रायः दो प्रकार से किया जाता है।

1-नाम 

नाम से कुण्डली मिलान उत्तम पक्ष नही माना जाता है।

2- जन्म राशि व कुण्डली 

जन्म समय के द्वारा किया कुण्डली मिलान उत्तम माना गया है ।

कुण्डली मिलान की विशेषता -- 

सनातन धर्म मे विवाह पवित्र बंधन सात जन्मों का बन्धन माना जाता है ।मान्यताओं के अनुसार कन्या का विवाह जिस लड़के के साथ संपन्न किया जाता है ।तब से सात जन्मों तक यह बन्धन निभाना पड़ता है ।इसलिए योग्य लड़का व लड़की की कुण्डली लिया जाता है 

कुण्डली मिलान (गणना) से दोनों लड़का( वर) व लड़की(वधू) के बीच आपसी सामंजस्य बना रहे, सुख दुःख में एक दूसरे  का सहारा बनें रहे, पारिवारिक सुख आपसी  सामंजस्य कैसा रहेगा । संतान सुख, सौभाग्य सुख ,सास, ससुर ,भाई, बहिन, पति के लिए कन्या शुभ हो ।

विवाह गणना विचार --

कुण्डली मिलान में अष्ट कूट का विचार किया जाता है ।

वर्णो वश्य तथा तारा योनिश्च ग्रह मैत्रकम ।

गणमैत्र भकूटं च नाड़ी चैते गुणाधिकाः ।।

1वर्ण ,2 वश्य ,3 तारा,4 योनि,5 ग्रहमैत्री ,6 गणमैत्री,7 भकूट,8 नाड़ी ये आठ प्रकार के कूट है । जो क्रमशः एक दूसरे से अधिक गुण (अंक) वाले है । जिसके मिलान से 36 गुण प्राप्त होते है । कुण्डली मिलान में कम से कम 18 गुण विवाह के लिये होने चाहिए 18गुण से कम होने पर कुण्डली मिलान अच्छा नही माना जाता है ।इसलिए विवाह में 18 गुण से अधिक होने पर विवाह शुभ होता है ।

18 गुण तक निम्न

24 गुण तक मध्यम

24 से 36 उत्तम माना गया

अधिक गुण प्राप्त होने से कुण्डली के निम्न दोष खत्म हो जाते है ।

कुंडली विचार--

कुंडली मिलान करते समय इन सब बातों पर भी विचार करना चाहिए । विवाह में कुण्डली मिलान परम आवश्यक है।

1-मांगलिक दोष विचार

2- कुण्डली में दोष विचार

3-मुलादि नक्षत्र विचार

5- संतान विचार

6-सौभाग्य सुख विचार

7-वैधव्य दोष विचार

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पं हरीश चंद्र लखेड़ा

   ज्योतिषाचार्य

      वसई

जय बद्री विशाल



ॐ जय गौरी नंदा

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