शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021
सोमवार, 12 अप्रैल 2021
नवरात्र दुर्गापूजा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ कर नवमी तक माँ दुर्गा भगवती की आराधना की जाती है ।माता के नौ अवतार जनजन में पूज्य है।
नव वर्ष के प्रथम दिन से अष्टमी अथवा नवमी तक भक्त माता का पूजन कर कन्याओं को वस्त्रादि भेंट करते है ।
चैत्र शुक्ल वासन्तिक नवरात्र
नवरात्रे स्त्री - पुरुषों दोनों को चाहिए कि वह नवरात्रों के इन नौ दिनों तक व्रत करें। यदि यह संभव न हो सके तो पहले और अन्तिम नवरात्र व्रत करें । नित्य व्रत मे एक समय फलाहार कर सकते है,निराहारी यथाशक्ति व्रत का पालन करे।नित्य पूजा में परिवार के सभी सदस्य पूजा करें और पूजा के बाद ही फल प्रसाद ग्रहण करें ।
पूजा की विधि एवं विधान -
नवरात्रि पूजा घर पर ही किसी एक निश्चित स्थान पर प्रतिदिन की जाती है। पूजास्थल कच्चा होने पर गोबर से लीपकर और पक्का होने पर जल से धोकर शुद्ध करने के बाद वहां लकड़ी का चौरंग या पाट रखा जाता है,उस पाट मेंं लाल कपड़ा बिछाकर चावल से गणपति ,कलश, मातृका ,नवग्रह स्थापन पीठ बनाना चाहिये।
सर्व प्रथम गणेश पूजा करके,लोटा या घड़े में मौली बांधकर नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर कलश को जल से पूर्ण कर पंच पल्लव लगाये कलश के अन्दर सुपारी, हल्दी गांठ, दुर्वा ,पैसा डालकर नारियल रख कलश स्थापन करें।मातृका ,नवग्रह स्थापना के बाद ,भगवती भवानी की नवदुर्गा की फोटो या प्रतिमा को चौरंग में स्थापित कर माता भगवती की विधिवत पूजा करें। माता का आवाहन कर चावल से प्रतिष्ठा करें।माता नवदुर्गा को पाद्य अर्घ्य आचमनी दूध दही घी शहद शक्कर पंचामृत से स्नान करावे,मातारानी को सुन्दर वस्त्र भेंट करें, गंध अक्षत पुष्पहार श्रृंगार चढ़ाये।नैवेद्य फल दक्षिणा चढ़ाकर आरति स्त्रोत्रादि क्षमा नमस्कार करें।नव दुर्गा की प्रसन्नता के लिए ब्राह्मण के द्वारा नित्य सप्तसती पाठ करना चाहिये। नवरात्रि में माता सिंहवाहिनी के नव रूपों की पूजा करें। माता रानी के मण्डप के दोनों ओर किसी बाँस या मिट्टी के पात्र में जौ या सप्तधान्य बोना चाहिये।
कुल परम्परा के अनुसार अष्टमी या नवमी में परिवार के सभी सदस्य हवन में विशेष आहुति प्रदान करते है।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
ज्योतिषाचार्य
वसई
नव वर्ष नव संवत्सर फल संवत २०७८
नव वर्ष नव संवत्सर फल संवत २०७८
नव संवत्सर फल -
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इस वर्ष के प्रारम्भ में आनन्द ' नामक संवत्सर रहेगा । वैशाख कृष्णपक्ष रविवार ( २ मई २०२१ ) राक्षस नामक संवत्सर का प्रवेश होगा , किन्तु वर्ष पर्यन्त संकल्पादि में आनन्द ' संवत्सर का ही विनियोग करना चाहिए । इस वर्ष राजा मंगल तथा मन्त्री भी मंगल ही है । राजा और मन्त्री एक ही होने से सत्तापक्ष में आन्तरिक समरसता बनी रहेगी । प्राकृतिक आपदा से भूकम्प , समुद्री तूफान , कहीं महानगरों में उग्रवाद जन्य , जनधन हानि का संकेत है । विश्व के पश्चिम - दक्षिण भूभाग में भूकम्प , अग्निकाण्ड , यान दुर्घटना या अन्य दैविक प्रकोप से हानि होगी । विश्व व्यापार में परिवर्तन होकर सुधार होने पर भी अनेक राष्ट्रों में महंगाई , बेरोजगारी की समस्यायें उभरेगी । देश के अनेक प्रान्तों में ठगी लूट चोरी आदि की घटनाये वर्ष घटित होगी । कट्टरवादी ताकतें दक्षिणी - पशिमी प्रान्त व देश के मध्य भाग में अनेक उपद्रवकारी घटनाओं को जन्म देगी । वर्षलग्न के विचार शक्तिशाली देशो में अस्तित्व को लेकर बार - बार संघर्ष की स्थितियाँ उत्पन्न होगी ।
सज्जन साधु दुखी होंगे , दुर्जन चोर डकैत मालामाल होंगे। बारिश मध्यम होने से खेत सूख जायंगे खड़ी फसलो को भारी नुकसान होगा ।
वर्षाधिकारी --
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पद - देवता - फल
राजा - मंगल - अग्निभय
मंत्री - मंगल - बीमारियाँ
सस्येश - शुक्र - सुखदाई
धान्येश - बुध - अधिक वर्षा
मेघेश - चंद्र - अधिक लाभ
रसेश- सूर्य - निरसता
निरसेश - शुक्र - लाभ
फलेश- चंद्र - जनधन लाभ
धनेश - गुरु - लाभ
दुर्गेश- चंद्र - आनंद
मेषादि राशि आय व्यय चक्र
विषुवत संक्रान्ति चक्र
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विशेष- इस वर्ष विषुवत संक्रान्ति वामपाद दोष जिन जातकों का जन्म नक्षत्र कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा है उन्हें विषुवत संक्रान्ति अरिष्ट निवारण हेतु चांदी का पैर, वस्त्र,चावल दान कर शिवार्चन करें।
चन्द्रबल अशुद्धि (अपैट)
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विषुवत संक्रांति वृष कन्या मकर राशि के जातकों को अपैट है।
शान्ति के लिए दुर्गासप्तशती पाठ कर वस्त्र,अन्नादि दान करें।।
मेपादि राशियो का वार्षिक फल -
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संवत २०७८
मेष - मेष राशि वालों को इस वर्ष मन में उत्साह मनोबल ऊंचा रहेगा । अनेक उपलब्धि प्राप्त होगी । आर्थिक सम्पन्नता बनी रहेगी । कारोबारी गतिविधियाँ सुचारु रुप से सम्पन्न होंगी । पारिवारिक एवं कुटुम्बीय तनाव में कमी होंगी । वेतनभोगी कर्मचारियों के लिये यह वर्ष सामान्य रहेगा । मानसिक व्यथा रहेगी । स्त्रियों को कष्ट , स्वजनो से विरोध होगा । सट्टा शेयर व्यसनादि से हानि होगी । भाई बहनों के साथ सामंजस्यता कम होगी । सम्पत्ति , वाहन के क्रय विक्रय हेतु वर्ष उत्तम है । सन्तान पक्ष की उन्नति के योग है । न्यायालीय कार्यों में मंदगति से प्रगति होगी । वर्ष के १,४,८,१२ मास नेष्ट है ।
वृष - यह वर्ष वृष राशि वालों के लिये उन्नतिदायक होगा । विलासिता पर व्यय होगा । कुछ संघर्ष पश्चात सफलता मिलेगी । मित्रों से सहयोग प्राप्त होगा । स्वास्थ्य सम्बन्धी अल्प कष्ट संभव है । वाद विवाद से दूर रहे । जठर संबंधी व्याधि होगी । नवीन सम्पत्ति क्रय हेतु वर्ष का उत्तरार्द्ध शुभ है। विद्यार्थीयों को उचित सफलता प्राप्त नहीं होगी । सामाजिक तथा न्यायालीय कार्यों में प्रगति तथा दाम्पत्य में तनाव होगा । धार्मिक कार्य सम्पन्न होगे । कर्मचारीयो के लिए यह वर्ष शुभ है । वर्ष के १,३,५ , ९ मास नेष्ट है ।
मिथुन - मिथुन राशिवालों को अष्टम शनि की ढैया चलेगी । अतः विश्वासघात संभव है । धनहानि , कुटुम्ब सुख में कमी आयेगी । अत्यधिक पूंजी निवेश करने में परहेज करें हानि संभव है तथा अनावश्यक अपव्यय होगा । वाणी में कटुता से विवाद संभव है । भाई बहनों के साथ सामन्जस्यता का अभाव रहेगा । विद्यार्थीयों को उचित सफलता प्राप्त नहीं होगी । कोई अनिच्छित समझौता संभव है । संतान पक्ष से मतभेद होगा । शत्रु से कष्ट संभव है । गृहस्थ जीवन में सामान्य सुख सहयोग बना रहेगा । वर्ष के २,४,६,१० मास नेष्ट है ।
कर्क - कर्क राशिवालों को इस वर्ष कुछ बाधाओं एवं संघर्ष के पश्चात सफलता मिलेगी । सहयोग द्वारा सम्पत्ति अर्जित होगी तथा बाधित कार्य सम्पन्न होंगे । कुटुम्बीय सहयोग मिलेगा । धैर्य में कमी तथा आवेश में किये कार्य द्वारा हानि संभव है । सम्पति , वाहन के क्रय विक्रय में लाभ होगा । राजनैतिक सम्बन्धों में प्रगाढ़ता होगी । माता पिता के स्वास्थ्य में बाधा संभव है । विद्यार्थियों हेतु यह वर्ष उत्तम रहेगा । किसी पर्यटन स्थल की यात्रा संभव है । संतान पक्ष की 3 समस्याएँ कम होंगी । व्यापार में लाभ होगा । उच्चपदाधिकारियो से संबध लाभप्रद होगा । वर्ष के ३,५,७,११ मास नेष्ट है ।
सिंह - यह वर्ष अधिकांशतःलाभप्रद रहेगा । पारिवारिक सुख में वृद्धि होगी । स्वास्थ्य उत्तम रहेगा , कार्यक्षेत्र का प्रसार कष्टों में कमी होगी । प्रतिष्टित जनों से सम्पर्क होगा । उच्चपद की प्राप्ति , राजसम्मान , आर्थिक मामलों में लाभ होगा । बाधित धन की प्राप्ति होगी । भोग विलास पर व्यय होगा । सम्पत्ति के क्रय विक्रय में लाभ होगा । माता - पिता संग धार्मिकयात्रा अथवा पत्नी के संग यात्रा सभव है । विद्यार्थियों के लिये यह वर्ष अध्ययन की दृष्टि से लाभकारी रहेगा । स्त्री से तालमेल बना रहेगा । धार्मिक कार्य सफल होंगे । नौकरी वालों के लिये यह वर्ष लाभकारी रहेगा । वर्ष के ४,६,८,१२ मास नेष्ट है ।
कन्या - यह वर्ष सुखदायी रहेगा । कार्य मंद गति से सम्पत्र होंगे । स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें संभव है । आर्थिक मामलों में सामान्य संघर्ष होगा । धन का अपव्यय होगा । भूमि क्रय का योग है । माता - पिता को शारीरिक कष्ट होगा । कर्मचारियो हेतु वर्ष सामान्य रहेगा । अतिरिक्त लाभ का योग है । व्यापार में अस्थिरता रहेगी । धार्मिक कृत्यों में अभिरुचि रहेगी । बौद्धिक कार्यों में यश की प्राप्ति होगी । न्यायातीय कार्यों में सकारात्मक स्थिति बनेगी । परिवारिक मतभेदो में सुधार होगा । कुटुम्बाय सुख की प्राप्ति होगी । वर्ष के १,५,७ , ९ मास नेष्ट है ।
तुला - तुलाराशि को चतुर्थ शनि की ढैय्या का प्रभाव रहेगा । सभी कार्य मंद गति से सम्पन्न होगें । लघुयात्रा का योग है । मानसिक तनाव रहेगा । अत्यधिक विस्वास हानिप्रद होगा । विलासिता पर व्यय होगा । व्यवसाय में अल्पलाभ वाणी कटुता से विवाद संभव है । भाई बहनों की उन्नति होगी । भूमि मकान , वाहन के क्रय विक्रय में हानि होगी । माता पिता से मतभेद संभव है । विद्यार्थियों को अध्य्यन क्षेत्र में अभिरुचि कम होगी । सन्तान पक्ष से सामान्य सहयोग होगा । वैवाहिक जीवन समान्य । विरोधियो से मित्रता संभव है । न्यायालीय कार्यों में अस्थिरता रहेगी । वर्ष के २,६,८,१० मास नेष्ट है ।
वृश्चिक - वृश्चिकराशि वालों को यह वर्ष अधिकांशत : लाभ एवं उन्नति का होगा । संघर्षित कार्यों एवं कठिन परिस्थितियों का समाधान होगा। स्वजनो से विरोध होगा । कार्यक्षेत्र में नवीन लाभकारी संभावनायें बनेगी । आय के स्रोत में वृद्धि होगी । परिवार में धार्मिक तथा माङ्गलिक कार्य होंगे । प्रतिष्ठित व्यक्तियों से संम्पर्क होगा । विद्यार्थियों को अध्ययन में अभिरुचि होगी । संतानपक्ष से भावनात्मक स्नेह होगा । न्यायालीय कार्यों में मंद प्रगति होगी । संयमित जीवन व्यतीत होगा । धार्मिक कार्यों में अभिरुचि होगी । व्यवसाय में वृद्धि तथा लाभ होगा । नौकरी में सुधार होगा । वर्ष के ३,६,७ , ९ मास नेष्ट है ।
धनु - धनुराशि वालों को शनि की साढ़ेसाती पैर पर रहेगी । मानसिक कष्ट , कार्यों में विलम्ब तथा बाधा आयेगी ।। विरोधियो से व्यर्थ विवाद होगा । अनावश्यक व्यय तथा भागदौड़ से कष्ट संभव है । पारिवारिक कलह से तनाव होगा । वर्ष के मध्य से आय के साधनों में वृद्धि होगी । भाई बहनों को उन्नति के योग है । जठर संबंधी रोग से कष्ट सम्पत्ति , वाहन के क्रय विक्रय से हानि संभव है । वाहन दुर्घटना संभव है । व्यापार का विस्तार होगा । कर्मचारी वर्ग के लिये भविष्य में लाभ अथवा पदोन्नति होने की संभावना है । वर्ष के ४,८,१०,१२ मास नेष्ट है ।
मकर - मकरराशि वालो के लिये शनि की साढ़ेसाती हृदय पर रहेगी । भय की अधिकता तथा रक्तचाप से कष्ट होगा । कार्यक्षेत्र में कष्ट तथा मानसिक तनाव रहेगा । नौकरी में पदच्युति अथवा स्थानान्तरण तथा अल्प स्वास्थ्य सम्बन्धी काए संभव है । उत्तम व्यवहार से लाभ होगा । सामाजिक मान सम्मानमें वृद्धि होगी । माता पिता द्वारा सहयोग । विद्यार्थियों को अध्ययन में अथक परिश्रम होगा , स्त्री द्वारा हानि संभव है । संतानपक्ष से भावनात्मक स्नेह होगा । दाम्पत्य में वैचारिक मतभेद होगा । वर्ष के ५ , ९ , १०,११ मास नेष्ट है ।
कुम्भ - कुम्भ राशिवालों को सिर पर शनि की साढेसाती का प्रभाव रहेग । मानसिक कष्ट तनाव अधिक रहेगा । भौतिक सुख साधनों पर अधिक व्यय होगा । धैर्यतापूर्वक घरेलू समस्याओं का समाधान होगा । भूमि क्रय विक्रय मकान वाहन आदि के लिये सोच विचार कर कार्य करें । विद्यार्थियों के लिये यह वर्ष अच्छा रहेगा । विद्यार्थीयों को अध्ययन में अभिरुचि उत्पन्न होगी सन्तान पक्ष से मतभेद संभव है । न्यायालीय कार्यों में अपव्यय संभव है । दम्पति अपने दायित्वों के प्रति उदासीन रहेगे । व्यापार में लाभ की स्थिति बनी रहेगी । नौकरी करने वालों की समस्याएं बढ़ सकती है । पत्नी का स्वास्थ्य में बाधा आयेगी । वर्ष के | २,६,१०,१२ , मास नेष्ट है ।
मीन - मीन राशिवालों को यह वर्ष लाभकारी है । कुटुम्ब में सुखद वातावरण रहेगा । बाधित धन की प्राप्ति विदेश से लाभ संभव है । आर्थिक उन्नति हेतु प्रयास होगा । लाभ की स्थिति होगी । संगीत के प्रति रुचि बढ़ेगी । भाई बहनों के साथ सौहार्द बना रहेगा । नवीन सम्पत्ति के क्रय विक्रय के लिये वर्ष अच्छा रहेगा । सामाजिक संपर्कों में वृद्धि होगी । विद्यार्थियों के लिये अध्ययन क्षेत्र में अच्छी संभावनाएँ रहेंगी । सन्तान पर की उन्नति के द्वार खुलेंगे । विरोधी पक्ष का दवाव कम होगा । दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी स्वास्थ्य सामान्य रहेगा । नौकरी वालों के लिए पदोन्नति का योग है । व्यापार वालों की उन्नति होगी । वर्ष के १,३,७,११ मास नेष्ट है ।
शनि की साढ़ेसाती तथा ढैय्या विचार
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इस वर्ष में शनि मकर राशि में भ्रमण करेगें।अत : मकर राशि के प्रभाव में धनु , मकर , कुम्भ राशि वालों के लिये शनि की साढ़ेसाती एवं तुला , मिथुन राशिवालों पर शनि की ढैय्या चलेगी । कुम्मराशि के सिर पर , मकरराशि के हृदय पर , धनुराशि के पैर पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा ।
शनि की साढ़ेसाती तथा ढैय्या के प्रभाव वालीराशियों के जातक को शान्त्यर्थ शनि का जपदानादि करना चाहिये तथा शनिस्तोत्रका पाठ करना चाहिये तथा हनुमान जी की आराधना व दर्शन अर्चन , शनिवार को पीपल के मूल में प्रदोषकाल में जलदान व दीपदान करें , बन्दर को चना गुड़ देना चाहिए शनिवार को सुन्दर काण्ड का पाठ तथा काले घोडे का नाल की अंगूठी मध्यमा अंगुली में धारण करें ।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
वसई
रविवार, 11 अप्रैल 2021
वनदुर्गा मंत्र जप प्रयोग
असुर मर्दिनी माँ दुर्गा का ही एक रूप है वनदुर्गा उन्हें जंगलों की देवी बनदेवी या शाकम्भरी भी कहते है ।जो हर जीव की माँ के रूप में रक्षा करती है ।
वनदुर्गा मंत्र जप प्रयोग
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संकल्पः- गोत्रः राशिः शर्माऽहं अमुक गोन्नरय आक राशेः अमुक यजमान्राय श्रीवनदुर्गा कृपाप्रसादेन सकलापच्छान्ति पूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थ श्रीवनदुर्गा प्रीत्यर्थ सुप्रसन्नार्थञ्च न्यासध्यानपूर्वक वनदुर्गा मंत्र जपमहं करिष्ये ।
तत्रादौ निर्विघ्नता संसिद्धर्थ श्री संकटनाशन गणपति स्तोत्र पाठपूर्वकं गणपति स्मरण च करिष्ये ।
विनियोगः ॐ अस्य श्रीवनदुर्गा मंत्रस्य भगवान अरण्यऋषिः अत्यनुष्टुपछन्दः , श्रीवनदुर्गा देवता , बीजम् , स्वाहा शक्तिः सर्वदुर्गविमोचनार्थे न्यासे जपे च विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास करन्यासः
ॐ आरण्यऋषये नमः - शिरसि नमः ।
ॐ आल्पनुष्टुप् फुरत से नमः -मुखे ।
ॐ श्रीवनदुर्गादेवतायै नमः -हृदि ।
ॐदु बीजाय नमः - गुह्ये ।( ह ० प्र ० )
ॐ स्वाहा शक्त्यै नमः - पादयोः । ( ह ० प्र ० )
करन्यासः
ॐ उत्तिष्ठ पुरुषि -अगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ किं स्वपिषि - तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ भयं मे समुपस्थित - मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ यदिशक्यमशक्यं वा - अनामिकाभ्यां नम: ।
ॐ तन्मे भगवति -कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ शमय स्वाहा - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
अंगन्यासः
ॐ उत्तिष्ठ पुरूषि - हृदयाय नमः।
ॐकिं स्वपिषि - शिरसे स्वाहा ।
ॐ भयं में समुपस्थितं वा– शिखायै वषट् ।
ॐ यदिशक्यगशायं वा -कवचाय हुम ।
ॐ तन्मे भगवति -नेत्रत्रयाय बौषट् ।
ॐ शमय स्वाहा -अस्त्राय फट् ।
ध्यानम् :-
सौवर्णाम्बुजमध्यगां त्रिनयनां सौदामिनी सन्निभम्
चक्रं शंख वराभयानिदधती भिन्दोः कलां विभ्रतीम् ।
अवेयाङ्गदहारकुण्डलधरामाखण्डलायैः स्तुतां ध्यायेद्विन्ध्यनिवासिनी शशिमुखी पार्श्वस्यपञ्चाननाम् ।।
मानसोपचारैः सम्पूज्य :-
ॐ लं पृथिव्यात्मकं गंध परिकल्पयामि नमः ।
ॐ हं आकाशात्मक पुष्पं परिकल्पयामि नमः ।
ॐ यं वायवात्मकं धूपं परिकल्पयामि नमः ।
ॐ रं तैजसात्मकं दीपं परिकल्पयामि नमः ।
ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं परिकल्पयामि नमः ।
ॐ सं सर्वात्मकान् समस्त राजोपचारान् परिकल्पयामि नमः ।
ॐ मां माले महामाये सर्वशिक्ति स्वरूपिणि । चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव । ।
जपमंत्र : -
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हूँ उत्तिष्ठ पुरूषि कि स्वपिषि भयं में समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा तन्मे भगवति शमय स्वाहा।
जपान्ते हृदयादि न्यासं ध्यानं च कृत्वा जपं निवेदयेत्
।।अनेन श्री वनदुर्गा मंत्र जपाख्येन कर्मणा तेन श्री वनदुर्गा प्रीयतां न मम । ।
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शनिवार, 10 अप्रैल 2021
धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त
धोबी ,दर्जी व सुदामा माली का पूर्व जन्म वृतान्त---
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धोबी--
त्रेतायुग की बात है , अयोध्यापुरी में श्रीरामचन्द्रजी राज्य करते थे । उनके राज्य काल में प्रजा की मनोवृत्ति एवं दुःख - सुख जानने के लिये गुप्तचर घूमा करते थे । एक दिन उन गुप्तचरों के सुनते हुए किसी धोबी ने अपनी भार्यासे कहा ' तू दुष्टा है और दूसरे के घर मे रहकर आयी है । इसलिये अब तुझे मैं नहीं रक्खूगा । स्त्री के लोभी राजा राम भले ही सीता को रख लें , किंतु मैं तुझे नहीं स्वीकार करूँगा । ' इस प्रकार बहुत से लोगों के मुख से आक्षेप युक्त बात सुनकर श्रीराघवेन्द्र ने लोकापवाद के भय से सहसा सीता को वन में त्याग दिया । रघु - कुल - तिलक श्रीरामने उस धोबीको दण्ड देनेकी इच्छा नहीं की । वही द्वापर के अन्त मे मथुरा पुरी में फिर धोबी ही हुआ । उस ने सीता के प्रति जो कुवाच्य कहा था , उस दोष की शान्तिके लिये श्रीहरि ने स्वयं ही उसका वध किया , तथापि उन श्रीकरुणानिधि ने उस धोबी को मोक्ष प्रदान किया ।
दर्जी--
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पहले मिथिलापुरी मै एक दर्जी था , जो भगवान् श्रीहरि के प्रति भक्तिभाव रखता था । उसने श्रीरामके विवाह के समय राजा जनक की आज्ञा से श्रीराम और लक्ष्मण के दुल्हा वेष के लिये महीन डोरों से कपड़े सीये थे । वह वस्त्र सीने की कला में अत्यन्त कुशल था । राजन् ! करोड़ों कामदेवों के समान लावण्य वाले सुन्दर श्रीराम और लक्ष्मण को देखकर वह महामनस्वी दजी मोहित हो गया था । उसने मन ही मन यह इच्छा की कि मैं कभी अपने हाथोंसे इनके अङ्गों में वस्त्र पहिनाऊँ । श्रीरघुनाथजी सर्वज्ञ हैं । उन्होंने मन - ही मन उसे वर दे दिया कि द्वापरके अन्त मे ब्रजमण्डल में तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा । श्रीरामचन्द्र जी के वरदान से वही यह दर्जी मथुरा में प्रकट हुआ था , जिसने उन दोनों बन्धुओं की वेष रचना करके उनका सारूप्य प्राप्त कर लिया ।
सुदामा --
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राज कुबेर का एक परम रमणीय सुन्दर वन है , जो चैत्ररथ - वनके नाम से प्रसिद्ध है । उसमें फूल लगाने वाला एक माली था , जो हेममाली के नाम से पुकारा जाता था। वह भगवान विष्णु के भजन में तत्पर,शान्त, दानशील महान सत्संगी था। उसने भगवान कृष्ण की प्राप्ति के लिये देवताओं की पूजा की ,पांच हजार वर्षों तक प्रतिदिन तीन सौ कमल पुष्प लेकर वह भगवान शंकर जी के आगे रखता व प्रणाम करता था ।एक दिन करुणानिधि त्रिनेत्रधारी भगवान शिव उसके ऊपर प्रसन्न हो बोले-"परम बुद्धिमान मालाकार तुम इच्छानुसार वर मांगो।" तब हेममाली ने हाथ जोड़कर महादेव जी को नमस्कार किया और परिक्रमा करके सामने मस्तक झुका कर कहा "प्रभु श्रीकृष्ण कभी मेरे घर पधारें औऱ इन नेत्रों से उनका प्रत्यक्ष दर्शन करुँ - ऐसी मेरी इच्छा है
भगवान महादेव ने कहा द्वापर के अंत मे तुम्हारा मनोरथ पूर्ण सफल होगा ।
वही महामना हेममाली द्वापर के अन्त में सुदामा माली हुआ था ।
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गुरुवार, 8 अप्रैल 2021
।।देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम्
॥ देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम् ॥
अयि गिरि नन्दिनि नन्दित मेदिनि विश्व - विनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवर विन्ध्य शिरोधि -निवासिनि विष्णु विलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठ - कुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूतिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१ ।।
सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि कल्मषमोषिणि घोषरते ।
दनुज - निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२ ।।
अयिजगदम्ब ! कदम्ब - वन प्रियवासिनि तोषिणि हासरते
शिखरि - शिरोमणि - तुंगहिमालय - श्रृंग - निजालय मध्यगते ।
मधु मधुरे मधु कैटभ - भञ्जिनि महिष विदारणि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।३ ।।
अयि निजहुँकृति - मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन - धूम्रशते
समर - विशोषित - शोणित - रोषित बीजसमुद्भव बीजलते ।
शिव - शिव शुम्भ - निशुम्भ - महाहव तर्पित - भूत - पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।४ ।।
अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड - गजाधिपते
निज - भुजदण्ड - निपातित-चण्ड विपातित मुण्ड - भटाधिपते ।
रिपुगजगण्ड - विदारण - चण्ड पराक्रम शुण्ड - मृगाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।५ ।।
धनुरनुसंग - रणक्षणसंग परिस्फुरदंग् - नटत्कट के
कनक - पिशंग - पृषत्कनिषंग रसद्भट श्रृंग - हताबटु के ।
हत - चतुरंग - बल - क्षितिरंग घटद् - बहुरंग - रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।६ ।।
अयि रणदुर्मद - शत्रुवधोद्धर दुर्धर - निर्भर - शक्तिभृते
चतुर - विचार - धुरीण - महाशय दूतकृत - प्रमथाधिपते ।
दुरित - दुरीह - दुराशय - दुर्मति दानवदूत - दुरन्तगते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।७ ।।
अयि शरणागत वैरिवधू जन वीरवराभय दायिकरे
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे ।
दुमि दुमितामर दुन्दुभिनाद मुहुर्मुखरीकृत दिङ् निकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।८ ।।
सुरललना - ततथेयित थेयित थाभिनयोत्तर - नृत्यरते
कृतकुकुथा कुकुथोदि दडादिक तालकुतूहल गानरते ।
धुधुकुट - धूधुट - धिन्धिमितध्वनि धीर मृदङ्ग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।९ ।।
जय जय जाप्यजये जयशब्द परस्तुति - तत्पर - विश्वनुते
झण - झण झिंझिम - झिंकृत नूपुर - शिञ्जित मोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध - नटीनटनायक नाटित - नाट्य - सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१० ।।
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोरम - कान्तियुते
श्रितरजनी - रजनी - रजनी रजनी - रजनीकर - वक्त्रवृते ।
सुनयन - विभ्रम - रभ्रम - रभ्रम रभ्रम - रभ्रमराभिदृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।११ ।।
महित - महाहव - मल्लमतल्लिक वल्लित - रल्लित- भल्लिरते
विरचित बल्लि कपालिक पल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते ।
श्रुतकृतफुल्ल - समुल्लसितारुण तल्लज - पल्लव - सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१२ ।।
अयि सुदतीजन - लालस - मानस मोहन - मन्मथ - राजसुते
अविरल - गण्डगलन् - मदमेदुर मत्त - मत्तंगजराजपते ।
त्रिभुवन - भूषण - भूतकलानिधि रूप - पयोनिधि - राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि ! शैलसुते।।१३ ।।
कमलदलामल - कोमलकान्ति कलाकलितामल - भालतले
सकल - विलास कलानिलय - क्रम केलि चलत्कल - हंसकुले ।
अलिकुल संकुल - कुवलय मण्डल मौलिमिलद् - बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि ! शैलसुते।।१४ ।।
करमुरलीरव - वर्जित - कूजित लजित - कोकिल - मंजुमते
मिलित - पुलिंद मनोहर - गुञ्जित रञ्जित - शैल निकुञ्ज गते ।
निजगुण भूत - महाशबरीगण सद्गुण सम्भृत - केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१५ ।।
कटितट - पीत - दुकूल - विचित्र मयूख - तिरस्कृत - चंद्ररुचे
जित कनकाचल मौलि - पदोर्जित निर्झर कुञ्जर - कुम्भ कुचे ।
प्रणत - सुराऽसुर - मौलिमणि स्फुर दंशुक - सन्नख - चन्द्ररुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१६ ।।
विजित - सहस्र - करैक - सहस्र करैक - सहस्र - करैकनुते
कृत - सुरतारक - संगरतारक संगरताकर - सूनुनुते ।
सुरथ - समाधि - समान - समाधि समान - समाधिसुजाप्यरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१७ ।।
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं नभवेत् ।
तव पदमेव परं पदमेमनु शीलयतो ममकि न शिवेः
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१८ ।।
कनक - लसत् - कलशीकजलै रनुषिञ्चति तेऽङ्गण - रंगभुवम्
भजति स कि न शची कुच कुम्भ नटी परिरम्भ - सुखानुभवम् ।
तवचरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१९ ।।
तव विमलेन्दुकलं वदनेन्दुमलं सकलं न नुकूलयते
किमु पुरुहूत - पुरींन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखी क्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमु न क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२० ।।
अयिमयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयाऽसि यथाऽसि तथाअनुमतासिरते ।
यदुचितमत्रभवत्पुरगं कुरुशाम्भवि देवि दयां कुरुमे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि ! रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२१ ।।
स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत् ।
परमया रमयापि निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत्।।२२।।
॥ इति देवी पुष्पांजलि स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
वसई
आरती संग्रह
💐 ॥ गणपति वन्दना ॥ 💐
ॐ जय गौरीनन्दा हरि जय गिरिजानन्दा ।
गणपति आनन्दकन्दा जय चरणनवृन्दा ।। ॐ जय गौरी
सुन्ड सुडाला नेत्र विशाला कुण्डल झलकन्ता ।
कुंकुंम केसरचन्दन सिन्दुर वदनवृन्दा ।।ॐ जय गौरी
सुन्दर मुकुट सुशोभित मस्तक शोभन्ता ।
बइयाँ बाजूवन्दा पौजी सेवन्ता ।। ॐ जय गौरी
रत्नजड़ित सिंहासन शोभित आनन्दा ।
गलमोतियन की माला सुरनर मुनिवृन्दा ।। ॐ जय गौरी
मूषकवाहन राजत शिवसुत आनन्दा ।
कहत शिवानन्द स्वामी भेदत भवफन्दा ।। ॐ जय गौरी
💐॥ श्री गणेश जी की आरती ।। 💐
गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ,
माता जाकी पार्वती , पिता महादेवा।।जै गणेश
एकादंत दयावंत चार भुजाधारी ,
माथे सिंदूर सोहे , मुषे की सवारी ।।जै गणेश
अन्धन को आँख देत , कोढ़िन को काया ,
बाँझन को पुत्र देत , निर्धन को माया ।।जै गणेश
हार चढ़े , फूल चढ़े और चढ़े मेवा ,
लडुवन को भोग लगे , संत करे सेवा । ।जै गणेश
दीनन की लाज राखो , शंभुपुत्र वारी ,
कामना को पूरा करो , जाऊँ बलिहारी । जै गणेश
गजाननं भूत गणादिसेवितम् ,
कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम् ,
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ।।
लम्बोदरं परमसुंदर मेकदंत ,
पीताम्बरं त्रिनयनं परम पवित्र ।
उद्यदिवाकरविभोजलकांतिकांत ,
विघ्नेश्वर सकल विघ्नहर नमामि ।।
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💐॥ श्री लक्ष्मी जी की आरती ।।💐
ॐ जय लक्ष्मी माता , मैय्या जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निशिदिन सेवत हर - विष्णु - धाता।।ॐ ।।
उमा , रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग - माता ।
सूर्य - चन्द्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता।।ॐ ।।
दुर्गारूप निरजनि , सुख - सम्पत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि -सिद्धि -धन पाता।॥ॐ ॥
तुम पाताल - निवासिनि , तुम ही शुभदाता ।
कर्म - प्रभाव - प्रकाशिनि ,भवनिधि को त्राता।।ॐ ।।
जिस घर में तुम रहती , सब सद्गुण आता ।
सब संभव हो जाता , मन नहिं घबराता।।ॐ ।।
तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न हो पाता ।
खान - पान का वैभव सब तुमसे आता।।ॐ ।।
शुभ - गुण - मंदिर सुन्दर , क्षीरोदधि - जाता ।
रत्ल चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।।ॐ ॥
महालक्ष्मी जी की आरती , जो कोई नर गाता ।
उर आनन्द समाता , पाप उतर जाता।।ॐ ॥
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💐॥ दुर्गा जी की आरती ॥ 💐
जय अम्बे गौरी , मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत , हरि ब्रह्मा शिवजी ।। जय अम्बे ...
माँग सिंदूर विराजत , टीको मृगमद को ।
उज्जवल से दोउ नयना , चन्द्रवदन नीको ।। जय अम्बे ...
कनक समान कलेवर , रक्ताम्बर राजे ।
रक्त पुष्प गलमाला , कण्ठन पर साजे ।। जय अम्बे ...
केहरि वाहन राजत , खड्ग खप्परधारी ।
सुर नर मुनि जन सेवत , तिनके दु : ख हारी ।। जय अम्बे ...
कानन कुण्डल शोभित , नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर , राजत सम जोती ।। जय अम्बे ...
शुम्भ - निशुम्भ विदारे , महिषासुर घाती ।
धूम्र - विलोचन नयना , निशिदिन मदमाती ।। जय अम्बे ...
चण्ड - मुण्ड संहारे , शोणित बीज हरे ।
मधु कैटभ दोउ मारे , सुर - भयहीन करे ।। जय अम्बे ...
ब्रह्माणी रुद्राणी , तुम कमला रानी ।
आगम - निगम बखानी , तुम शिव पटरानी ।। जय अम्बे ...
चौंसठ योगिनि गावत , नृत्य करत भैरूँ ।
बाजत ताल मृदंगा , और बाजत डमरू ।। जय अम्बे ...
तुम ही जग की माता , तुम ही हो भर्ता ।
भक्तन की दु : खहर्ता , सुख - सम्पत्ति कर्ता ।। जय अम्बे ...
भुजा चार अति शोभित , वर मुद्राधारी ।
मनवांछित फल पावत , सेवत नर - नारी ।।जय अम्बे ...
कंचन थाल विराजत , अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत , कोटिरतन ज्योति ।।जय अम्बे ...
माँ अम्बे की आरती , जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी , मनवांछित फल पावे ।। जय अम्बे ...
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💐॥ शिवजी की आरती ॥ 💐
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा ।।
ॐ हर हर हर महादेव
महादेव एकानन चतुरानन पचानन राजे ।
हंसासन , गरुड़ासन , वृषवाहन साजे ।।
ॐ हर हर हर महादेव
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें ।
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें ।।
ॐ हर हर हर महादेव
अक्षमाला , वनमाला , रुण्डमालाधारी ।
चंदन , मृदमग सोहें , भाले शशिधारी ।।
ॐ हर हर हर महादेव
श्वेताम्बर , पीताम्बर , बाघाम्बर अंगे ।
सनकादिक , ब्रह्मादिक , भूतादिक संगे ।।
ॐ हर हर हर महादेव
कर मध्ये च कमंडलु, चक्र त्रिशूल धरता ।
जगकर्ता , जगहर्ता , जग पालन कर्ता ।।
ॐ हर हर हर महादेव
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर के मध्ये, ये तीनों एका ।।
ॐ हर हर हर महादेव
काशी में विश्वनाथ विराजे नन्दो ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावे महिमा अति भारी ।।
ॐ हर हर हर महादेव
त्रिगुणनाथ शंकर जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ।।
ॐ हर हर हर महादेव
ॐ जय शिव ओंकारा , भोले हर शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव , अर्धांगी धारा ।।
ॐ हर हर हर महादेव
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~॥ आरती ॐ जय जगदीश हरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे।।ॐ ...
जो ध्यावे फल पावे , दु:ख विनशे मन का ।
सुख सम्पत्ति घर आवे , कष्ट मिटे तन का।।ॐ ...
मात - पिता तुम मेरे , शरण गहूँ किसकी ।
तुम बिन और न दूजा , आस करूँ जिसकी।।ॐ ...
तुम पूरण परमात्मा , तुम अन्तर्यामी ।
पार ब्रह्म परमेश्वर , तुम सबके स्वामी।।ॐ ...
तुम करुणा के सागर , तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख खल कामी , कृपा करो भर्ता।।ॐ ...
तुम हो एक अगोचर , सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय , तुमको मैं कुमति।।ॐ ...
दीन बन्धु दु : खहर्ता , तुम ठाकुर मेरे ।
अपने हाथ उठाओ , द्वार पड़ा तेरे।।ॐ ....
विषय विकार मिटाओ , पाप हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ , सन्तन की सेवा।।ॐ ...
तन , मन , धन अरु जीवन सब कुछ है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण , क्या लागे मेरा।।ॐ ...
नवाम्बोज नेत्रं रमा केलिपत्रं
चतुरबाहु चामी करंचारुगात्रम् ।
जगत्राण हेतुं रिपोधूमकेतुं
सदा सत्यनारायणं स्तोमि देवम् ॥
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॥ आरती श्री कुंजबिहारी जी की ॥
आरती कुंजबिहारी की , श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ।
गले में बैजंती माला , बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला , नंद के आनंद नंदलाला ॥
नंद के आनन्द मोहन बृज चन्द , परमानन्द ,
राधिका रमण बिहारी की श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती ..
गगन सम अंग कांति काली , राधिका चमक रही आली , लतन में ठाढ़े बनमाली ,
भ्रमर - सी अलक , कस्तूरी तिलक , चंद्र - सी झलक ,
ललित छवि श्यामा प्यारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ।।आरती ...
कनकमय मोर मुकुट बिलसै , देवता दरसन को तरसैं , गगन सों सुमन रासि बरसै ,
बजे मुरचंग , मधुर मृदंग , ग्वालिन सग ,
अतुल रति गोप कुमारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ आरती ...
चमकती उज्ज्वल तट रेनू , बज रही बृन्दाबन बेनू ,
चहुँ दिसि गोपि ग्वाल धेनु ,
हँसत मृदु मंद , चाँदनी चंद , कटत भव - फंद ,
टेर सुनु दीन दुखारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती ...
आरती कुंजबिहारी की । श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ।
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💐 ॥ आरती श्री बाँकेबिहारी जी की ॥ 💐
श्री बाँके बिहारी तेरी आरती गाऊँ ।
कुंजबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे ।
प्यारी बंशी मेरो मन मोहे ।।
देखि छवि बलिहारी जाऊँ ।
श्री बाँके बिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
चरणों से निकली गंगा प्यारी ।
जिसने सारी दुनिया तारी ।।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
दास अनाथ के नाथ आप हो ।
दुःख - सुख जीवन प्यारे साथ हो ।।
हरि चरणों में शीश नवाऊँ ।
श्री बाँके बिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
श्री हरिदास के प्यारे तुम हो ।
मेरे मोहन जीवन धन हो ।।
देखि युगल छवि बलि - बलि जाऊँ ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ ।
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ ।।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ ।
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ ।।
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💐श्रीहनुमान जी आरती 💐
आरती कीजै हनुमानललाकी । दुष्टदलन रघुनाथ कलाकी॥ टेक।।
जाके बलसे गिरिवर काँपै । रोग दोष जाके निकट न झाँपै ॥
अंजनिपुत्र महा बलदाई । संतनके प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये । लंका जारि सीय सुधि लाये ।
लंका - सो कोट समुद्र - सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे । सीतारामजीके काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे । आनि सजीवन प्रान उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम - कारे । अहिरावनकी भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुरदल मारे । दहिने भुजा संतजन तारे ॥
सुर नर मुनि आरती उतारे । जय जय जय हनुमान उचारे ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई । आरति करत अंजना माई ॥
जो हनुमानजीकी आरति गावै । बसि बैकुंठ परम पद पावै ॥
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💐आरती श्री बदरीनारायण जी 💐
पवन मंद सुगंध शीतल , हेम मंदिर शोभितम् ।
निकट गंगा बहत निर्मल , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।
शेष सुमिरन करत निशिदिन ध्यान धरत महेश्वरम् ।
श्री वेद ब्रहमा करत स्तुती ,श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।
इंन्द्र चंद्र कुबेर दिनकर , धूप द्वीप निवेदितम् सिद्ध।
मुनिजन करत जय जय , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।
शक्ति गौरी गणेश शारद ,नारद मुनि उच्चारणम् ।
योग ध्यान अपार लीला ,श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।
यक्ष किन्नर करत कौतुक , गान गन्धर्व प्रकाशितम् ।
श्री भूमि लक्ष्मी चंवर डोले , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।
कैलाश में एक देव निरंजन , शैल - शिखर महेश्वरम् ।
राजा युधिष्ठिर करत स्तुती , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।
श्री बदरीनाथ जी की परम स्तुती यह पढत पाप विनाशनम् ।
कोटि - तीर्थ सुपुण्य सुन्दर सहज अति फलदायकम् ।।
पवन मंद सुगंध शीतल , हेम मंदिर शोभितम् ।
निकट गंगा बहत निर्मल , श्री बदरीनाथ विश्वम्भरम् ।।
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।।💐आरती केदारनाथ जी की 💐।।
जय केदार उदार शंकर, भवभयंकर दुःख हरम ।
गौरी गणपति स्कन्द नंदी, जय केदार नमाम्यहम् ।।
शैल सुंदर अति हिमालय, शुभ मंदिर सुन्दरम् ।
निकट मंदाकिनी सरस्वती जय केदार नमाम्यहम् ।।
उदक कुंण्ड है अधम पावन, रेतस कुंण्ड मनोहरम।
हंस कुंड समीप सुंदर, जय केदार नमाम्यहम् ।।
अन्नपूर्णा सह अपर्णा, काल भैरव शोभितम् ।
पांच पांडव द्रोपदी सह, जय केदार नमाम्यहम् ।।
शिव दिगंम्बर भस्मधारी अर्द्धचंन्द्र विभूषितम् ।
शीश गंगा कंठ फणिपति , जय केदार नमाम्यहम् ।।
कर त्रिशूल विशाल डमरु , ज्ञान गान विशारदम् ।
मद्य महेश्वर तुंग ईश्वर , रुद्र कल्प महेश्वरम् ।।
पंच धन्य विशाल आलय , जय केदार नमाम्यहम्
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
ज्योतिषाचार्य
कुमाऊँनी भजन माला
॥ भजन ।।
जै जै हो बदरीनाथा ॥
ॐ जै जै हो बदरीनाथा ,जै काशी केदारा ,जै जै हिमाला।
देवतों की तपोभूमि ,संतों की तपोभूमि ,जै हरि हरिद्वारा ।।
जै जै हिमाला ।
नीलकंठ जै त्रिशूल , जै जै हो चौखम्बा ।
नंदा देवी पंचचूली , जै तेरी गौमुखा ।
शिवजी की तपोभूमि , पार्वती को मैता ।।
जै जै हिमाला ।
यह हमारि स्वर्गभूमि , बदरीनाथ धाम रे ।
ढुंग - माटू में राम - श्याम , डाय - बोटि भगवान रे ।।
बागनाथा जागनाथा , रुद्रनाथा तुंगनाथा ,
भगवती को थाना ।।
जै जै हिमाला ।
जै घन्याल , जै पटवाल , भूमि का भूम्याला रे ।
स्वर्गजनी भूमि मेरि , जै जै हो घन्याल रे ।।
रंग - रंगीलो मुलुक मेरो , देवतों को वासा ।।
जै जै हिमाला ।
जै मैया दुर्गा भवानी ॥
ॐ जै मैया दुर्गा भवानी जै मैया ।
तेरी सिंह की माता सवारी , हाथ चक्र सुदर्शनधारी ।
डान कानौ में तेरो निवास , दूनागिरि में जली रै जोत ।।
जै मैया ...
तेरी जैकार माता उपट्टा , तेरी जै जै हो देवी का धूरा ।
तेरी जैकार माता गंगोली , तेरी जै जै हो कायी गाड़ काली ।।
जै मैया ...
दूनागिरि की सिंहवाहिनी , तेरी जै जै हो चन्द्रबदनी ।
तेरी जैकार हे माता नन्दा , तेरी जै जै हो देवी मानीला ।।
जै मैया ...
तेरा नाना रूपों मैं प्रणाम , दिए भक्ति का हमें तू ज्ञान ।
तेरा भगत जोड़नी हाथ , धरि दिए सबू की तू लाज ।।
जै मैया ...
निर्वाण भजन--
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जपि ले भाई हरिक नाम । अन्त समय जो आल काम ।।
हाथ ओ पैर थाकिला जब । यम का दूत मारीला तब ।।
भाई भतीजा सब कुटुम । दगड़ रये सारे जनम ।।
अन्त समय निआना काम । जपि ले भाई हरिक नाम ।
छोड़दे भाई माया के जाल । एकदिन आल जरूरे काल ।।
तेकड़ी जब काल बुलाल । फांसी लीवेर यमदूत आल ॥
च्यलायो ब्वारी निभाना काम । जपिले भाई हरिक नाम ॥
धन दौलत माल खजान । दगड़ कोई चीज नियान ॥
निकय तीरथ निकय दान । एति रहल सब समान ।।
धरी ढकिया निलाग काम । जपि ले भाई हरिक नाम ।।
जब तक भाई ज्योंन छ जिया । दान धरम करि लैलिया ।
दान धरम भल बुलाण । अन्त सम यइ ली जाण ।।
खिमानन्द क लेखणं काम । जपि ले भाई हरिक नाम ।।
देव परिक्रमा करने का महत्व
परिक्रमा का महत्व
जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान की परिक्रमा जरुर लगाते है । पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है? शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है | यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है।
कैसे करें परिक्रमा -
देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है । बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है | जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है |
किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये ?
वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है | सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं।
1. महिलाओं द्वारा “वटवृक्ष” की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है।
2. शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे खयालात और अनर्गल स्वप्नों का खात्मा होता है। भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को न लांघे।
3. “देवी मां” की एक परिक्रमा की जानी चाहिए।
4. “श्रीगणेशजी और हनुमानजी” की तीन परिक्रमा करने का विधान है गणेश जी की परिक्रमा करने से अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है गणेशजी के विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
5. “भगवान विष्णुजी” एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते हैं।
6. सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं हमें भास्कराय मंत्र का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर “ॐ भास्कराय नमः” का जाप करना देवी के मंदिर में महज एक परिक्रमा कर नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है; इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।
परिक्रमा के संबंध में नियम
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1. परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए; साथ ही परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती।
2. – परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें।
3. उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ परिक्रमा नहीं करनी चाहिये।
इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है। इस प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ती होती है।
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आचार्य हरीश लखेड़ा
वसई
बुधवार, 7 अप्रैल 2021
खग्रास सुर्यग्रहण 10 जून 2021
🌞सूर्यग्रहण - विवरण ( संवत् २०७८ )
* संवत् २०७८ ( सन् २०२१-२२ ) में भूमण्डल पर कुल चार ग्रहण होंगे ।
इनमें - दो सूर्यग्रहण होंगे ।
🌒 पहला खग्रास सूर्यग्रहण- १० जून २०२१ , गुरुवार ( पूर्वी भारत में दृश्य )
🌑भूमण्डलीय खग्रास सूर्यग्रहण
खग्रास सूर्यग्रहण ज्येष्ठ कृष्णपक्ष अमावस्या दिन गुरुवार दि ० १० जून २०२१ को भारत के पूर्वी भागों के दृश्य होगा ।
ज्योतिषीय गणनानुसार यह ग्रहण भूमण्डल पर दिन १:४३ से ६:४१ बजे के मध्य दृश्य होगा। भारत के अधिकतर भागों में यह सूर्यग्रहण दिखाई नहीं देगा इसलिये सूतक सम्बन्धित धार्मिक कृत्य करना आवश्यक नहीं है । नित्य की भांति जप व्रत पूजा पाठ चलता रहेगा ।
इस ग्रहण का सूतक प्रातः ५-५१ से प्रारम्भ होगा । ग्रहण के सूतक में बाल , वृद्ध और अस्वस्थजनों को छोड़कर शेष को भोजन - शयनादि निषेध है ।
ग्रहण समय--
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ग्रहण स्पर्श- ५/५१ बजे सांय🌔
ग्रहण मध्य -६ / ०६ बजे सांय🌓
ग्रहण मोक्ष -६ / २० बजे सांय🌑
पर्वकाल --29 मिनट 🌞
यह खण्ड सूर्यग्रहण सुदूरवर्ती अमेरिका, मंगोलिया ,चीन , नोर्वे , रुस, कनाडा, ग्रीसलैंड आदि स्थानों पर दृश्य होगा ।
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रविवार, 4 अप्रैल 2021
कलयुग का लक्षण
कलयुग का लक्षण---
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कलयुग को युग श्रेष्ठ माना गया है ,जिसमे कम समय मे अधिक फल देने वाला है ,सोचने मात्र से मनुष्य पुण्य अर्जित कर सकता है । कलयुग सभी युगों में तकनीकी मशीनी युग के रूप में अधिक शक्तिशाली होगा । कलयुग में नाना प्रकार के आविष्कार होने से मनुष्य में आलस्य का प्रभाव होगा अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अपनो को ही धोका छल के द्वारा अपना ईस्ट सिद्ध करेगा। मनुष्य - मनुष्य में आपसी सामंजस्य का अभाव होगा कलयुग में जिसके पास अधिक धन धान्य होगा वही राजा कहलायेगा ।जैसे -जैसे कलयुग का समय बीतेगा वैसे -वैसे मनुष्य में राक्षसी प्रवृत्ति का प्रादुर्भाव होते जाएगा । आडम्बर ,छल, कपट, चोरी करने वालो की हमेशा जय जयकार होगी वही समाज मे अग्रगण्य पूज्य होगा, दुर्जन समाज में अधिक प्रभावशाली होगा । कलयुग में महिलाओं को अत्याचार से अपनी सुरक्षा स्वयं करनी होगी ।
कलयुग का लक्षण --
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वेद हीन ब्राह्मण ,रण हीन क्षत्रिय ।
मेघ हीन पानी , यही कलयुग की निशानी ।।
कलयुग में ब्राह्मणों के पास वेद ग्रन्धों के ज्ञान अभाव होते जाएगा ।क्षत्रियों में लड़ने योग्य बाहुबल की कमी हो जाएगी। बादल गर्जना होगी पर बारिश का अभाव रहेगा ।
कलयुग के विषय मे व्यास जी ने कुछ लक्षण बातये है---
१.ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन् नङ्क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥
कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी.
२.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥
कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा!
३.दाम्पत्येऽभिरुचि र्हेतुः मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥
कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.
४. लिङ्गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वचः ।।
घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान् माना जायेगा.
५. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः कलौ नृणाम ।।
कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे. लोगों को कई तरह की चिंताए सताएंगी और बाद में मनुष्य की उम्र घटकर सिर्फ २०-३० साल की रह जाएगी.
६. दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे धार्ष्ट्यमेव हि॥
कलयुग में लोग दूर के नदी-तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान की तरह जायेंगे, लेकिन अपने ही माता- पिता का अनादर करेंगे. सर पे बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर तरह के बुरे काम करेंगे.
७. अनावृष्ट्या विनङ्क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः ।
शीतवातातपप्रावृड् हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥
कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा. मौसम बहुत विचित्र अंदाज़ ले लेगा. कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी. कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी और इन्ही परिस्थितियों से लोग परेशान रहेंगे.
८. अनाढ्यतैव असाधुत्वे साधुत्वे दंभ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे स्नानमेव प्रसाधनम् ॥
कलयुग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा उसे लोग अपवित्र, बेकार और अधर्मी मानेंगे. विवाह के नाम पे सिर्फ समझौता होगा और लोग स्नान को ही शरीर का शुद्धिकरण समझेंगे.
९. दाक्ष्यं कुटुंबभरणं यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥
लोग सिर्फ दूसरों के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म-कर्म के काम करेंगे. कलयुग में दिखावा बहुत होगा और पृथ्वी पे भ्रष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे. लोग सत्ता या शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे.
१०.आच्छिन्नदारद्रविणा यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥
पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर(मंहगाई) और सूखे की वजह से घर छोड़ पहाड़ों पे रहने के लिए मजबूर हो जायेंगे. कलयुग में ऐसा वक़्त आएगा जब लोग पत्ते, मांस, फूल और जंगली शहद जैसी चीज़ें खाने को मजबूर होंगे।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
वसई
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