शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
शनिवार, 25 जुलाई 2020
विवाह मङ्गलाष्टकम्
।।मङ्गलाष्टकम्।।
गंगा गोमति गोपतिर्गणपतिर्गोविन्द गोवर्द्धनो
गीता गोमय गौरिजा गिरिसुता गंगाधरो गौतमः ।
गायत्री गरुडो गदा गिरिगजो गम्भीर गोदावरी
गन्धर्व ग्रह गोप गोकुल गणाः कुर्वन्तु वो मंगलम् ।।१।।
यावत्तोयधरा धरा धर धरा धारा धरा भूधरा
यावच्चारु सुचारु चारु चमरं चामीकरं चामरम् ।
यावद् राघव राम राम रमणं रामायणं श्रूयते
तावद् भोग विभोग भोग भुवन भोगाय ते नित्यशः ।।२।।
ईशानो गिरिशो मृडः पशुपतिः शूली शिवःशंकरः
भूतेशः प्रमथाधिपः स्मर हरो मृत्युञ्जयो धुंर्जटि:।
श्रीकण्ठो वृषभध्वजो हर भवो गंगाधरस्त्र्यम्बकः
श्रीरुद्र सुरवृन्दवन्दित पदः कुर्यात् सदा मंगलम् ।।३।।
लक्ष्मीस्ते पंकजाक्षी निवसतु भवने भारती कंठदेशे,
वर्द्धन्ता बन्धुवर्गः सकलरिपुगणा यान्तु पातालमूलम् ।
देशे देशे च कीर्तिः प्रभवतु भवतां पूर्ण कुन्देन्दुशुभ्रा
जीव त्वं पुत्र पौत्रैः स्वजन परिवृत्तो भुक्ष्व राज्यं विशालम् ।।४।।
सिंहादुत्थाय कोपाद् ध धड़ धड़ धावमाना भवानी
दैत्यानां दिव्यशस्त्रैस्त तड तड़ त्रोटयन्ती शिरांसि ।
तेषां रक्तं पिबन्ती घु घुट घुट प्रेक्षणीया पिशाची
तृप्ता तृप्ता हसन्ती ख खत खत शाम्भवी वः पुनातु।।५।।
गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना गोदावरी नर्मदा
कावेरी सरयू महेन्द्रतनया चर्मण्वती वेदिका ।
क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता गया गण्डकी
पूर्णा पुण्य जलैः समुद्र सहिताः कुर्वन्तु वो मंगलम् ।।६।।
नाना रूप सुरूपिता सुखकरा सामीप्य सायुज्यदा
लाना धाम विराजिता पर पदा पूज्यापरा पापहा ।
नाना नाम सुपूजिता सुफलदा सेव्या सदा सौख्यदा
ध्येया सा भुवनेश्वरी भगवती मातेश्वरी अम्बिका ।।७।।
अन्तर्बाह्य गता च या रिपुकृता बाधा सदा नाशिनी
नाना क्लेशहरा वराभयकरा वाञ्छामनो दायिनी ।
या नित्या करुणामयी मतिमयी माता घनानन्ददा
सा पूज्या जगदीश्वरी भगवती शाकम्भरी अम्बिका ।।८।।
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पट धरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपति हारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशेक पदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहण परिपाटी फलमिदम् ।।९।।
श्रीमत्पङ्कजविष्टरो हरिहरौ वायुर्महेन्द्रोऽनल-
श्चन्द्रो भास्कर वित्तपालवरुणाः प्रेताधिपादिग्रहाः।
प्रद्युम्नो नलकूवरः सुरगजश्चिंतामणिः कौस्तुभः
स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः कुर्वन्तु नो मङ्गलम्।।१०।।
गङ्गा गोमतिगोपतिर्गणपतिर्गोविन्द गोवर्द्धनो
गीतागोमय गौरिजो गिरिसुता गङ्गाधरो गौतमः ।
गायत्री गरुडो गदाधर गया गम्भीर गोदावरी गन्धर्वग्रहगोपगोकुलगणाः कुर्वन्तु नो मङ्गलम् ॥११॥
नेत्राणां त्रितयं शिवं पशुपतेरग्नित्रयं पावनं
पुण्यं विष्णुपद त्रयं त्रिभुवनं ख्यातं च रामत्रयम् ।
गङ्गावाह पथत्रयं सुविमलं देव त्रयं ब्राह्मणं
सन्ध्यानां त्रितयं द्विजैः सुविहितं कुर्वन्तु नो मङ्गलम् ॥१२॥
गौरी श्रीः कुलदेवता च सुभगा भूमिः प्रपूर्णा शुभा
सावित्री च सरस्वती सुरनदी सत्यव्रतारुन्धती ।
सत्या जाम्बवती च रुक्मभगिनी दुःस्वप्नविध्वंसिनी
वेला चाम्बुनिधेः सुमीनमकराः कुर्वन्तु गे मङ्गलम् ।।१३ ।।
अश्वत्थो वटवृक्षचन्दनतरुर्मन्दारकल्पद्रुमौ
जम्बूनिम्बकदम्बआम्रसरला वृक्षाश्च ये क्षीरिणः ।
सर्वे ते फलसंयुताः प्रतिदिनं विम्राजनं राजते
रम्यं चैत्ररथं च नन्दनवनं कुर्वन्तु नो मङ्गलम् ॥१४ ॥
वाल्मीकिः सनकः सनन्दन तरुर्व्यासो वशिष्ठो भृगु-
र्जावालिर्जमदग्निकच्छजनको गर्गाऽङ्गिरा गौतमः ।
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो धन्यो दिलीपो नलः
पुण्यो धर्मसुतो ययातिनहुषौ कुर्वन्तु नो मङ्गलम् ।।१५।।
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा धन्वतरिश्चन्द्रमा
गावः काम दुघाः सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवाङ्गनाः ।
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः शंखो विषं चाम्बुधे
रत्नानीति चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्वन्तु नो मङ्गलम् ।। १६।।
शुक्रवार, 24 जुलाई 2020
कृपानुभूति
जीवन मे अनायास बिना सोच विचार के कोई कार्य घटित हो जाय वह घटना है।घटनाओं का जीवन मे होना रहस्य की तरह होते है।कुछ घटनाओं का अच्छा, बुरा होना जीवन को परिवर्तित कर देते है,और कुछ घटना चिन्तन करने को मजबूर कर देती है।घटना जीवन मे खाते,सोते,जागते,यात्रा करते कभी भी हो सकते है,जिन्हें हम अच्छा,बुरा सोचकर विचार करते है।आमतौर पर हर किसी के जीवन मे कुछ न कुछ रहस्यों से भरी घटनाये होती रहती है।कभी ,कभी हमे घटनाओं के द्वारा संकेत मिलते है।जो हमे सतर्क करती है।
एक घटना तब की है जब में काशी में रहकर पढ़ाई करता था।मेरे मित्र ने कहा आपको आश्विन नवरात्र में उत्तराखंड के जनपद पौड़ी जाना है।मित्र के कहने पर में नवरात्रि में पाठ के लिए यजमान के घर पहुँच गया।विधिवत ढंग से नवरात्र सम्पन्न करके अपने घर जाने लगा तो यजमान मुझे कुछ दूर छोड़ने के लिए आये,यजमान ने रास्ता बताया वो लौट गए।पैदल सुनशान रास्ते पर चलता चला गया ।कुछ दूर जाने पर विशाल जंगल मे प्रवेश किया कुछ दूर जाने पर रास्ता भटक गया ,जंगल से न घर का रास्ता मिला न वापस बाहर जाने का रास्ता ,रात होने में 2 घंटा बाकी था ,कुछ भी समझ नही पा रहा था दूर दूर तक कोई घर गांव इंसान नही दिखाई दे रहे थे।पैदल चलते थकान बहुत हो रही थी। कहते जब सारे रास्ते बन्द हो जाय तो एक रास्ता हमेशा खुला रहता है।वो है भगवान कि शरण,मैंने मन ही मन माता रानी को याद किया आगे चलकर देखा एक बच्चा दिखाई दिया मैने बच्चे से पूछा तुम यहाँ क्या कर रहे हो ,वो कुछ भी नही बोला, में घबराने लगा ,फिर साहस किया ,और पूछा तुम यहाँ क्या कर रहे हो ,तब बच्चे ने एक ओर इशारा किया ,बच्चे ने जिस ओर इशारा किया में उस रास्ते पर चलने लगा ,कुछ आगे चलने पर पीछे मुड़कर देखा जंगल मे कोई नही था ।तब मन मे विश्वास हुआ कि वो बच्चा कोई नही बल्कि माता रानी का चमत्कार था ।जिन्होंने मेरी सहायता की और में आराम से घर पहुँच गया।
हर व्यक्ति घर से बाहर निकलता है,अपने दैनिक कार्यो को संपादित करता है।बनते कार्य बिगड़ना या बिगड़े काम बन जाय ये सब घटना क्रम है।कभी छोटी घटना तो कभी बड़ी दुघर्टना कभी शाररिक कभी सांसर्गिक घटनाऐ जीवन मे अधिक धन कि पिपासा भाग दौड़ ने घटना क्रम को अधिक बढाया जिससे जन धन की हानि होती है।
जीवन मे सत्य पर चलने वाले और भक्ति मार्ग पर चलने वालो कि रक्षा ,सत्य व धर्म के द्वारा होती रहती है।
पुरुषोत्तम वन्दना
सशंखचक्रं सकिरीट कुण्डलं
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम् ।।
सहारवक्षः स्थलकोस्तुभश्रियं
नमामि विष्णु शिरसा चतुर्भुजम् ।।
हे रामाः पुरूषोत्तमा नरहरे नारायणाः केशवाः।
गोविन्दा गरुडध्वजाः गुणनिधेदामोदराः माधवा ।।
हे कृष्णाः कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।
आदौ राम तपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
बैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणम् ।।
बाली निर्दलनं समुद्र तरणं लंकापुरी दाहनम् ।
पश्चात् रावण कुम्भकर्णहननं एतद्धि रामायणम् ।।
आदौ देवकी देवगर्भ जननम् गोपीगृहे वर्द्धनम् ।
मायापूतन जीवितापहरणं गोवर्धनो धारणं ।।
कंसच्छेदन कौरवादि हननं कुन्तीसुता पालनम् ।
एतद्ध श्रीमद्भागवतपुराणकथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम् ।।
आदौ पाण्डव धार्तराष्ट्र जननं लाक्षागृहे दाहनम् ।
द्यूतस्त्रीहरणम् वने विचरणं मत्स्यालया वेधताम् ।।
लीला गोहरणं वने विचरणं संध्या क्रिया वर्धनम् ।
पश्चाद् भीष्म सुयोधनादि हननं चैतन् महाभारतम् ।।
कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभम्।
नासाग्रेवरमौक्तिकं करतले वेणुः करे कंकणम् । ।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितं कण्ठे च मुक्ताबलिः।
गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपाल चूड़ामणि: ।।
फुल्लेन्दी वरकान्ति मिन्दुवदनं वर्हवतंसप्रियं।
श्री वत्सांक मुदार कौस्तुभधरं पीताम्बर सुन्दरम् ।।
गोपीनां नयनत्पलार्चिततनुं गोगोप संघावृतम् ।
गोविन्द कलवेणु वादनपरं दिव्यांगभूषं भजे ।।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं ।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
यं ब्रह्मावरुणेन्द्ररुद्रमरुतःस्तुन्वन्ति दिव्यैःस्तवैः।
वेदैःसांगपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः।।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो।
यस्यान्तं न विदुःसुरासुरगणाः देवाय तस्मै न ।।
एकोपि कृष्णस्य कृत प्रणामो।
दशाश्व मेधा भृथेन तुल्य: ।।
दशाश्व मेधे पुनरेपी जन्म।
कृष्ण प्रणामो न पुनर्भवाम।।
आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
मंगलवार, 21 जुलाई 2020
श्री बजरंग बाण
कुछ दुष्ट अदृश्य शक्तियां कभी कभी चिन्ता व तनावग्रस्त कमजोर मानस वाले व्यक्तियों को ग्रह दशा अथवा अपवित्रता रूपी दोष के कारण सताती हैं । इस प्रकार की बाधाओ को दूर करने के लिए मन मे आत्म विश्वास और मनोबल जगाकर बजरंग बाण का अमोघ अस्त्र है । नियमित पाठ से अनायास उत्पन्न भय ओर सब प्रकार के कष्टों का अंत होता है।
सर्वप्रथम पवित्र हो धूप दीप उपचार से श्री हनुमान जी की पूजा कर उनका अपने हृदय में ध्यान करे ।
अतुलित बल धामं हेम शेलाभदेहं।
दनुज बन कृशानु ज्ञानिनामग्रगण्यम।।
सकल गुण निधानं वानराणामधीशं ।
रघुपति प्रिय भक्तं वातजातं नमामि ।।
।। श्री बजरंग बाण।।
निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करै सन्मान।
तेहि के कारज सकल शुभ सिध्द करै हनुमान ।।
जय हनुमंत संत हितकारी
सुन लीजै प्रभु विनय हमारी
जन के काज विलंब न कीजे
आतुर होहि महासुख दीजे । ।
जैसे कूदि सिन्धु के पारा
सुरसा बदन पैठि विस्तारा
आगे जाय लंकिनी रोका
मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा
सीता निरखि परमपद लीन्हा
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा
अति आतुर जमकातर तोरा । ।
अक्षयकुमार मारि संहारा
लूप लपेटि लंक को जारा
लाह समान लंक जरि गई
जय जय धुनि सुरपुर नभ भई । ।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी
कृपा करहुं उर अंतरयामी
जय जय लखन प्राण के दाता
आतुर हो दुःख कर हु निपाता । ।
जय हनुमान जयति बल सागर
सुर समूह समरथ भटनागर
ॐ हनु हनु हनु हनुमत हठीले
बैरिहि मारू बज्र की कीले ।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीशा
ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि ऊर शीशा
जय अंजनि कुमार बलवंता
शंकर सुवन बीर हमुमन्ता ।।
वदन कराल काल कुल घालक
रामसहाय सदा प्रतिपालक
भूत प्रेत पिशाच निशाचर
अगनि बेताल काल मारी मर ।।
इन्हे मांरू तोहि शपथ राम की
राखु नाथ मरजाद नाम की
सत्य होहु हरि शपथ पाइ के
राम दूत धरू मारि धाई के ।।
जय जय जय हनुमंत अगाधा
दुःख पावत जन केहि अपराधा
पूजा जप तप नेम अचारां
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।
वन उपवन मग गिरि गृह मांही
तुम्हरे बल हो डर पत नाही
जनक सुता हरि दास कहावो
ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
जय जय जय धुनि होत आकाश
सुमिरत होय दुसह दुःख नाशा
चरन पकरि कर जोरी मनावों
येही ओसर अब केहि गोहरावों । ।
उठ उठ चलु तोहि राम दोहाई
पाय परों कर जोरि मनाई
ॐ चम चम चम चम चपल चलंता
ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।
ॐ हँ हँ हाँक देत कपि चंचल
ॐ सँ सँ सहमि पराने खल दल
अपने जन को तुरंत उबारो
सुमिरत होय आनन्द हमारो ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै
ताहि कहो फिर कोन उबारे
पाठ करे बजरंग बाण की
हनुमत रक्षा करै प्राण की । ।
यह बजरंग बाण जो जापै
तासों भूत प्रेत सब कांपे
धूप देय जो जपे हमेशा
ताके तन नहीं रहे कलेशा । ।
दोहा
उर प्रतीति दृढ़ शरण ह्वै पाठ करे धरि ध्यान ।
बाधा सब हर करें सब काम सफल हनुमान ।।
।। पवनसुत हनुमान की जय।।
।।उमापति महादेव की जय।।
रुक्मणि जी ने भगवान कृष्ण जी को पति रूप में पाने के लिये किया पाठ
कन्याओ के विवाह में विलम्भ हो राह हो उन कन्याओ को इन मंत्रो का पाठ करना चाहिए ।पाठ करने से शीघ्र विवाह योग व मन इच्छित वर की प्राप्ति होती है।इसका21 पाठ करने के बाद लिखकर सदक्षिणा ब्राह्मण को दान दे ।शीघ्र मनोकामनापूर्ण होगी।
रुक्मिण्युवाच
श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर शृण्वतां ते
निर्विश्य कर्ण विवरैर्हरतोऽङ्गतापम् ।
रूपं दृशां दृशिमता मखिलार्थ लाभं
त्वय्यच्युता विशति चित्तमपत्रपं मे ॥१।।
का त्वा मुकुन्द महती कुलशीलरूप ।
विद्या वयो द्रविण धाम भिरात्मतुल्यम
धीरा पतिं कुलवती न वृणीत कन्या
काले नृसिंह नरलोक मनोभिरामम् ॥२।।
तन्मे भवान् खलु वृतः पतिरङ्ग जाया
मात्मार्पितश्च भवतोऽत्र विभो विधेहि ।
मावीर भाग मभिमर्शतु चैद्य आराद्
गोमा युवन्मृगपतेर्बलि मम्बुजाक्ष ॥३ ।।
पूर्तेष्ट दत्त नियम व्रत देव विप्र
गुर्वर्चनादि भिरलं भगवान् परेशः ।
आराधितो यदि गदाग्रज एत्य पाणिं
गृह्णातु मे न दमघोष सुतादयोऽन्ये ॥ ४।।
श्वो भाविनि त्वमजितोद्वहने विदर्भान्
गुप्तः समेत्य पृतना पतिभिः परीतः ।
निर्मथ्य चैद्य मगधेन्द्र बलं प्रसह्य
मां राक्षसेन विधिनो द्वह वीर्यशुल्काम् ॥ ५ ।।
अन्तः पुरान्तर चरीमनिहत्य बन्धूं
स्त्वा मुद्वहे कथमिति प्रवदाम्यु पायम् ।
पूर्वे धुरस्ति महती कुलदेवियात्रा
यस्यां बहिर्नववधूर्गिरिजा मुपेयात् ॥६।।
यस्याध्रि पङ्कज रजःस्नपनं महान्तो
वाञ्छन्त्यु मापति रिवात्म तमोऽपहत्यै ।
यर्ह्यम्बुजाक्ष न लभेय भवत्प्रसादं
जह्या मसून् व्रतकृशाञ्छत जन्मभिः स्यात् ॥ ७।।
ब्राह्मण उवाच
इत्येते गुह्यसन्देशा यदुदेव मयाऽऽहृताः ।
आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
वसई मुम्बई
सोमवार, 20 जुलाई 2020
पृथ्वी को धारण करने वाले सात तत्व व उनका महत्व
गोभिर्विप्रैश्च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः ।
अलुब्धैर्दान शीलैश्च सप्तभिर्धार्यते मही ।।
गौ, ब्राह्मण , वेद , सती , सत्यवादी , निर्लोभी और दानशील इन सातो ने पृथ्वी को धारण कर रखा है।
गाय का आध्यात्मिक रूप तो पृथ्वी है ही ,प्रत्यक्ष रूप में भी उसने पृथ्वीको धारण कर रखा है । समस्त मानव - जातिको किसी - न - किसी प्रकार से गौ के द्वारा जीवन तथा पोषण प्राप्त होता है । प्राचीन काल से यज्ञों में घृत की प्रधानता। दैव - पित्र्य आदि समस्त कार्य घृत से ही सुसम्पन्न होते हैं । दुर्भाग्य है कि आज गोघृतके बदले में नकली घी हमारे घरों में आ गया है। गाय, दूध , दही , घी, गोबर , गोमूत्र देती है । उसके बछड़े बैल बनकर सब प्रकार के अन्न आदि उत्पन्न करते हैं । दुःख की बात है। कि हमारी जीवनस्वरूपा वह गौ आज भारतवर्ष में है, प्रतिदिन हजारोंकी संख्यामें कट रही है । अतः आज आवश्यक है कि हम गौ का संरक्षण कर उसकी सेवा करें। अपने जीवन को उत्तम बनायें ।
पता नहीं , किस अतीतकालसे ब्राह्मणने त्यागमय जीवन बिताकर विद्योपार्जन तथा विद्या - वितरण का महान् कार्य आरम्भ किया था , जो किसी न किसी रूप में अब तक चल रहा है। ब्राह्मणने पृथ्वी के लोगों को ज्ञान के प्रकाश का दान न दिया होता तो वे सर्वथा अज्ञानान्धकार में पड़े रहते , अतः मनुष्य मात्र का कर्तव्य है। कि वह अपनी जीवनचर्या में इनके प्रति कृतज्ञ भाव रखे ।
परमात्मा के यथार्थ ज्ञान या ज्ञान कराने वाले ईश्वरीय वचनों का नाम वेद है । यह वेद अनादि है । वेदमें , समस्त ज्ञान भरा है । इतिहास - पुराणादि भी उसी के अनुवाद है।समस्त कर्म पद्धति तथा संस्कार एवं ज्योतिष आदि सभी का उदगम स्थान वेद ही है।
सती स्त्रियाँ पृथ्वी की दृढ़ स्तम्भरूपा है । सतियोंके त्याग , तेज प्रताप से मानव का बड़ा विलक्षण सात्त्विक बल मिलता रहा है ।और अब भी मिल रहा है । सती की स्मृति ही पुण्यदायिनी है । नारियों के लिये पातिव्रत और पुरुषोंके लिये एकपत्नीव्रत भारतीय जीवन में एक गरिमामय अंग है । सतियों की पवित्र सन्तान से ही लोक का संरक्षण अभ्युदय होता है।
जगत्का सारा व्यवहार सत्यपर आधारित है। झूठ बोलनेवाले भी सत्यकी महिमा स्वीकार करते हैं।सत्य भगवान्का स्वरूप है। इस सत्यको स्वीकार करके सत्यभाषणपरायण पुरुषोंने अपनी जीवनचर्यासे जगत्के मानवोंके सामने एक महान् आदर्श रखा , सत्यसम्पन्न जीवनचर्या जीवनको सरल,शुद्ध तथा शक्तिशाली बनानेमें भी सहायता करती है। झूठ भ्रमवश पनपता भले ही दीखे , अन्तमें विजय सत्यकी ही होती है ।
सत्य तथा सत्यवादियोंके द्वारा उपजाये हुए विश्वासपर ही जगत के व्यवहार टिके हैं । जबतक जगत में सत्यवादी मानवोंका अस्तित्व बना रहेगा - चाहे वे थोड़े ही हों , तबतक जगत्की स्थिति रहेगी ।
पापका बाप लोभ है । लोभ के कारण ही विविध प्रकार के नये - नये दुर्गुण , दोष तथा पाप उत्पन्न होते हैं तथा परिणाम में महान् संताप की प्राप्ति होती है । चोरी , बेईमानी , चोरबाजारी , घूसखोरी , डकैती , ठगी , लूट ,
वस्तुओंमें मिलावट आदि चरित्रको भ्रष्ट करनेवाले सारे अपराधोंका मूल लोभ ही है , अतः मनुष्य को अपनी जीवनचर्या में इससे बचना चाहिये । लोभी मानव स्वयं सदा अशान्त तथा दु : खी रहता है और सबको दुःखी बनाता है । वह पृथ्वीके सद्गुणोंका उच्छेदक है । इसके विपरीत जो लोभहीन है , वही सच्चा मानव समस्त दुर्गुणों , दोषों तथा पापोंसे स्वयं बचता तथा सबको बचाता हुआ मानवता का विकास , संरक्षण तथा संवर्धन करता है - इस प्रकार वह पृथ्वी को धारण करता है ।
7.दानशील -
सारी सुख - शान्तिका मूल प्रेम है तथा प्रेम का मूल त्याग है । दानमें त्याग की प्रधानता है । जो मानव अपने धन विद्या ज्ञान अन्य साधन सामग्री का दान करता है ,वही दानशील है।दानशील मानव लोभ,कृपणता, परिग्रहवृति आदि का नाश करता है,लोगो मे सेवा सहायता की भावना उत्पन्न करता है,उदारता का विस्तार होता है।दान इहलोक व परलोक में कल्याणकारी है,मानव को जीवन मे सातो तत्वों को महत्व देते हुए इन्हें जीवन मे धारण करना चाहिये । ये सात तत्व नर को नारायण बना देते है।
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रविवार, 19 जुलाई 2020
षोडश संस्कार
💐 षोडश संस्कार💐
संस्कार पाँच भागोंमें होता है -
१ .गार्भिकसंस्कार ,
२. शैशवसंस्कार ,
३ .शैक्षणिकसंस्कार ,
४. आश्रमिकसंस्कार
५. प्रयाणसंस्कार
( १ ) गर्भीकसंस्कार तीन होते हैं -
१ . गर्भाधानसंस्कार ,
२. पुंसवनसंस्कार और
३. सीमन्तोन्नयनसंस्कार ।
ये तीनों संस्कार माता पिता द्वारा सम्पन्न होते हैं ।
( २ ) शैशवसंस्कार छ : होते हैं -
१ . जातकर्मसंस्कार ,
२. नामकरणसंस्कार ,
३. निष्क्रमणसंस्कार ,
४. अन्नप्राशन संस्कार ,
५. चूडाकर्मसंस्कार ,
६. कर्णवेधसंस्कार ,
ये सभी संस्कार बाल्यकाल में मातापिता द्वारा संपादित किये होते है।
( ३ )शैक्षणिकसंस्कार तीन होते हैं -
१ .उपनयनसंस्कार ,
२. वेदारम्भसंस्कार,
३. समावर्तनसंस्कार ,
ये तीनों संस्कार ब्रह्मचर्य -आश्रम में आचार्य द्वारा सम्पन्न कराये जाते हैं ।
( ४ ) आश्रमिकसंस्कार भी तीन होते हैं -
१ . विवाहसंस्कार ,
२. वानप्रस्थसंस्कार,
३. संन्याससंस्कार,
१. विवाहसंस्कार चाहे पुत्र का विवाह हो या पुत्री का , माता और पिताके द्वारा सम्पन्न कराया जाता है ।
2. वानप्रस्थसंस्कार पुत्रको गृहभार सौंपकर वनमें जाकर सम्पन्न किया जाता है।
3.संन्यास संस्कार स्वयं संपन्न किया जाता है
( ५ ) प्रयाणसंस्कार अंत्येष्टि संस्कार को कहते है।यह संस्कार देहान्त के बाद पुत्रादि द्वारा सम्पन्न कराया जाता है
1.गर्भाधानसंस्कार
सोलह संस्कारों में सर्व प्रमुख गर्भाधान संस्कार है।सन्तानके लिये पुरुष स्त्रीसै विवाह करता है,पुरुष स्त्री गर्भाधान संस्कार के द्वारा सन्तान के लिये अपने कर्तव्य का पालन करते है।
२. पुंसवनसंस्कार
गर्भ के व्यक्त होने पर द्वितीय मास में और गर्भके व्यक्त न होने पर तृतीय अथवा चतुर्थमासमें पुंसवनसंस्कारका विधान है । पुत्रोत्पत्ति की इच्छा से इस संस्कार को किया जाता है।
३. सीमन्तोन्नयनसंस्कार
पति द्वारा पत्नी के केशो में तैल डालकर कंधी द्वारा केशों को उन्नतकर माँग निकालने को सीमन्तोन्नयन कहते है। इसे चौथे मास में सम्पन्न कराने चाहिये।
४. जातकर्मसंस्कार
यह संस्कार शिशु के उत्पन्न होने पर मनाया जाता है । उत्पन्न शिशु को पिता की गोद मे दिया जाता है । शिशुकी जिह्वा पर पिता अपनी अंगुलि से शहद द्वारा ॐ लिखता है और उसके दोनों कानों में ' वेदोऽसि ' वाक्यका उच्चारण करता है । ' शतायुर्भव ' इस वाक्यसे पिता शिशुको आशीर्वाद देता है । महिलाओंद्वारा मांगलिक गीत गायन का विधान है । इस अवसर पर मोदकवितरण किया जाता है।
५. नामकरणसंस्कार
गोभिल और शौनक कृत गृह्यसूत्रों के अनुसार नवजात शिशु का ग्यारहवें दिन नाम रखा जाता है । पुरोहित द्वारा पूजा हवनकर्म के बाद जातकका नाम रखा जाता है , उसे नामकरण संस्कार कहते है। जातक का नाम रखना चाहिए जातक का नाम लौकिक व्यवहारों में उसके भाग्योदय का हेतु है। जातक अपने नामसे जीवनचर्या में कीर्ति प्राप्त करता है।
६. निष्क्रमणसंस्कार
चतुर्थ मास में निष्क्रमण संस्कार किया जाता है ,शिशु को घर के बाहर निकलकर सूर्य नारायण के दर्शन कराया जाता है।
७. अन्नप्राशनसंस्कार
शिशु को छ : महीने के होनेपर अन्न का प्राशन कराया जाता है । खीर चटनी चटानी चाहिये।
८. चूडाकर्मसंस्कार
शिशु के प्रथमवर्ष में अथवा तृतीयवर्ष में केशच्छेदन का विधान है , इसे मुण्डनसंस्कार भी कहते हैं ।
९ . कर्णवेधसंस्कार
शिशु के तृतीय अथवा पंचमवर्षमें उसके कान छेदे जाते हैं , रोग से रक्षा व आभूषण धारण करने के लिए कर्णवेध संस्कार किया जाता है।
१०. उपनयनसंस्कार
उपनयनका अर्थ है समीप में ले जाना ।जातक का आचार्य द्वारा उपनयन किया जाता है। उस जातक को वेदाध्ययन का अधिकार प्राप्त हो जाता है।इस संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार भी कहते है।यज्ञोपवीत होने से हव्य ,कव्य का अधिकार प्राप्त होता है।
११. वेदारम्भसंस्कार
माता पिता अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए। जातक को गुरुकुल में वेदाध्ययन के लिए प्रवेश कराते है।जातक गुरुकल में रह कर बृह्मचर्य का पालन कर ,जीवन की कलाओ को ग्रहण करता है।
१२. समावर्तनसंस्कार
गुरुकल से वेदाध्ययन के बाद आचार्य की आज्ञा से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के लिये आज्ञा प्राप्त कर गृह गमन करता है।।इसे दीक्षान्त संस्कार भी कहते है।
१३. विवाहसंस्कार
विद्याध्ययन के बाद सन्तान की उत्पत्तिके लिये नर द्वारा नारी के पाणिग्रहण को विवाह कहते हैं । इसमें कन्या के माता पिता द्वारा कन्यादान किया जाता है ।वर बधू एक सूत्र के बन्धन से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते है।
१४. वानप्रस्थसंस्कार
विवाहके बाद पुत्रको गृहभार सौंपकर वनगमन को वानप्रस्थसंस्कार कहते हैं । इसमें पचास वर्ष के बाद प्रवेश का विधान है । जो पुरुष वानप्रस्थाश्रम में जगन्नियन्ता परमेश्वर का भजन करते हैं ।वे पापरहित हो परमात्माको प्राप्त करते है।
१५. संन्याससंस्कार
सर्वत्याग को ही सन्यास कहते है।इसमें वानप्रस्थ के नियमो के पालन से साथ सभी आशक्तियों का त्याग करना उपदेश करना उपदेश सुनना दण्डग्रहण और भिक्षा पात्रग्रहण का विधान है ।परम मोक्ष की कामना से देवदर्शन, देवपूजन ,गंगा स्नान जप दान जीव के कल्याण अन्नदान करना चाहिये।
१६. अन्त्येष्टिसंस्कार
यह संस्कार जीव मृत्यु के बाद पुत्रादि के द्वारा पूर्ण किया जाता है ,यहां पर मनुष्य की जीवन यात्रा समाप्त हो जाती है,इसके बाद मनुष्य द्वारा किये शुभ कर्मों से सदैव पूजित होता है। इस प्रकार मनुष्यकी जीवनचर्या में संस्कारों की अन्त्यन्त आवश्यकता है । संस्कारोंसे मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का विकास होता है । मनुष्य के व्यक्तित्व के निर्माण में और अनुशासित जीवन के विधान में संस्कारों की अत्यन्त उपयोगिता है । अतः मनुष्यके जीवनमें संस्कारों का विशेष महत्त्व और उनकी यथाविधि कर्तव्यता होती है , जिससे मनुष्य संस्कारसम्पन्न , चरित्रवान् , सुशील , सदाचारी और सभ्य बनता है । इसलिये जीवनचर्या में संस्कारोंकी प्रधानता है ।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
वसई मुम्बई
मो 9004013983
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English translation
The utmost necessity of rituals is the ultimate utility in life. A person who is rich in culture is cultured and characterful and virtuous. The meaning of the ritual is to purify, the sacrament means sixteen rites in the life of a human being. Human life is a boon given by God, to keep it equipped is the work of the living. Good and bad. One should rejoice in life by living in the rules of the householder by making life happier by the action of karma. When life enters the cycle of cycle, Maya surrounds it. Jeeva must follow the path of religion to escape from Maya, which we should Our sacraments are received. A man of honor is always revered, rites are of paramount importance in Indian culture, this is the way the shodash samskar begins from the womb and ends at the funeral.
💐 hexadecracy
Sanskar is performed in five parts -
1 . Garbheek ceremony,
2. Childhood ceremony,
3.Culturalism,
4. Religious ceremony
5. Prayers
(1) Garbheek ceremony is three -
1. Conception ceremony,
2. Resume and
3. Simultaneous Promotion.
These three rites are performed by the parents.
(2) The six ceremonies are six -
1. Caste work
2. Naming ceremony ,
3. Exodus
4. Annaprashan Sanskar,
5. Chudakarma ceremony,
4. Ear-piercing ceremony
All these rites are performed by the parents during childhood.
(3) There are three educational ceremonies -
1.Upayan Samman,
2. Vedambhaskaram,
3. Inclusion ceremony,
These three rites are performed by the Acharya in Brahmacharya-Ashram.
(4) There are also three religious ceremonies -
1. Wedding ceremony ,
2. Vanaprastha Sanskar,
3. Renunciation
1. Marriage ceremony, whether a son is married or a daughter, is performed by mother and father.
2. Vanaprastha ceremony is done by handing over the house to the son and going to the forest.
3. The renunciation ceremony is performed manually
(5) Prayan Sanskar is called funeral rites. This rite is performed by the son after the death.
1.Galamanda ceremony
Among the sixteen samskaras, the most important conception is rite. For the sake of the child, the male woman marries, the male woman performs her duty for the child through the conception ceremony.
2. Respect
In the second month when the womb is expressed and in the third or fourth month, when the womb is not expressed, there is a law of punsavanamaskar. This rite is performed with the desire of sonship.
3. Limited promotion ceremony
Putting oil in the wife's hair by the husband and expanding the hair by the carding and removing the demand is called Seemantonnayan. It should be completed in the fourth month.
4. Caste work
This rite is celebrated when the baby is born. The baby born is given in the father's lap. On Shishu's tongue, the father writes द्वारा by honey with his finger and pronounces the sentence 'Vedosi' in both his ears. With this sentence, 'Shatayughav' blesses the infant. There is a law to sing Manglik songs by women. Modification is done on this occasion.
5. Naming ceremony
According to the Gobhil and Shaunak kriyasutras, the newborn is named on the eleventh day. Jataka is named after the puja havanakarma by the priest, it is called naming ceremony. Jataka should be named, Jataka is named for his fortune in cosmic practices. The native gets fame in his name.
4. Exodus
Exodus is performed in the fourth month, the child is taken out of the house and seen by Surya Narayana.
4. Annaprashan Sanskar
Food is administered to the infant when he is six months old. Kheer chutney should be chutney.
4. Chudakarma ceremony
There is a law of haircut in the first year or third year of the infant, it is also known as Mundansara.
4. Ear-nail
In the third or fifth year of the infant, his ears are pierced, Karnavedh is performed to protect him from diseases and to wear jewelery.
10. Thread ceremony
Upanayana means to bring near. The native is upanayana by Acharya. That person gets the right of Vedhyayana. This sacrament is also known as Yajnopavit Sanskar. Being a Yajnopavit, one gets the right of Havya, Kavya.
11. Altar ceremony
Parents performing their duties. The Jataka enters the Gurukul for Vedhyayana. The Jataka takes the arts of life by staying in the Gurukul and following Brihacharya.
12. Inclusion ceremony
After Vedhyayan from Gurukal, after receiving the permission of Acharya to enter the Grihastha Ashram, the house moves. It is also called convocation ceremony.
13. Wedding ceremony
Marriage is the marriage of female to male by male for the genesis of children after learning. In this, Kanyadaan is performed by the parents of the girl. Ever Badhu enters the Grihastha Ashram with the bonding of a sutra.
14. Vanaprastha ceremony
After the marriage, the handing over of the son to the son is called Vanaprasthan Sanskar. It has the law of admission after fifty years. Men who worship Lord Jagannata in Vanpastrashram, they receive God without sin.
15. Retirement
Omnipotence is called sanyas. In this, following the rules of Vanaprastha, renouncing all the beliefs along with preaching, listening to sermons is the law of worship and begging and worshiping. Devdarshan, Devpujan, Ganga Snan chanting and donating the welfare of the living creature Want
14. Funeral
This rite is completed by the death of a son after death, here the life journey of a man ends, after which the man is always worshiped with auspicious deeds. In this way, rites are an absolute necessity in the life of man. Rituals develop superior qualities in humans. Rites have great utility in building the personality of man and in the discipline of disciplined life. Therefore, in human life, sanskars have special importance and their proper duty, so that a person becomes sanskriti, characterful, gentle, virtuous and civilized. That is why rites have precedence in life.
Acharya Harish Chandra Lakheda
Vasai Mumbai
Mo 9004013983
शुक्रवार, 17 जुलाई 2020
लिंगाष्टक स्त्रोत्र
शिव जी की प्रसन्नता हेतु लिंगाष्टकम स्त्रोत्र पाठ करने से भुक्ति मुक्ति कामना पूर्ण होती है।
।। अथ लिंगाष्टकम्।।
ब्रह्म मुरारि सुरार्चित लिंगं
निर्मल भासित शोभित लिंगम् ।
जन्मज दुःख विनाशक लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ।।१ ।।
देवमुनि प्रवरार्चित लिंगं
कामदहं करुणाकरलिंगम् ।
रावण दर्प विनाशन लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव - लिंगम् ।। २ ।।
सर्व सुगन्धि सुलेपित लिंगं
बुद्धि - विवर्धन कारण लिंगम् ।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ।।३ ।।
कनक महामणि भूषितलिंगं
फणिपति वेष्टित शोभितलिंगम्।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव-लिंगम् ।। ४।।
कुम - कुम चंदन लेपित लिंगं
पंकजहार सुशोभित लिंगम् ।
संचित पाप विनाशन लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ।।५ ।।
देव गणार्चित सेवित लिंगं
भावै भक्तिभिरे व च लिंगम् ।
दिनकर कोटिप्रभाकर लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम्।।६।।
अष्टदलो परि वेष्टित लिंग
सर्व समुद्भव कारण लिंगम् ।
अष्ट दरिद्र विनाशन लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव -लिंगम् ।।७ ।।
सुरगुरु - सुरवर - पूजितलिंगं
सुरवन पुष्प सदाचिंत लिंगम् ।
परात्परं परमात्मक लिंगं
तत्प्रणमामि सदाशिव-लिंगम्।।८।।
लिगाष्टकमिदं पुण्यं , यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति , शिवेन सह मोदते ।।९ ।।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
हरि ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!
गुरुवार, 16 जुलाई 2020
एकादशी व्रत निर्णय
अग्निपुराण में लिखा है -- गृहस्थ , ब्रह्मचारी , अग्निहोत्री यह दोनों एकादशी को भोजन न करें । यहां कोई कहै कि भोजन के निषेध से व्रतकी विधि प्राप्त हो जायगी , सो उचित नहीं। व्रतका स्वरूप तो ब्रह्मवैवर्त ने लिखा है । एकादशी के प्राप्त होने पर रात्रि में सम्यक् प्रकार से नियम करके नियम पूर्वक दशमी के दिन हीं वैष्णव व्रतका संकल्प करै । यह व्रत शिव के भक्तों को भी करना उचित है । शिवधर्ममें लिखा है - वैष्णव शैव कोई हो , एकादशी व्रत करना चाहिये ।
सौरपुराण में लिखा है - वैष्णव , शैव , सूर्यभक्त कोई हो , यह व्रत करना चाहिये । यह भी नित्य और काम्यभेद से दो प्रकारका है । गरुडमें लिखा है , दोनों पक्षकी एकादशी में नित्य उपवास करना नित्य है ।
नारद कहते हैं प्रत्येक पक्षमें एकादशी का उपवास करना चाहिये। जिसकी विष्णु के सायुज्य की इच्छा हो , अपने कल्याण की इच्छा हो , श्री और सन्तानकी इच्छा हो तो एकादशी दोनों पखवारे में भोजन न करे, दोनों एकादशी का व्रत गृहस्थ से अतिरिक्तों को ही नित्य है । गृहस्थ को तो शुक्ल में ही नित्यव्रत कृष्णा में नहीं कारना,देवल कहते हैं , दोनों पक्षकी एकादशी में भोजन न करे , यह वनवासी और यतियों का धर्म है , और गृहस्थी को शुक्ला का व्रत करना चाहिये ।
यदि कोई कहै कि इस वचन से वानप्रस्थ और संन्यासी के विषय में निषेध के पालनका ही उपसंहार करते हैं व्रतका नहीं , सो उचित नहीं कारण कि यह वाक्य पर्युदासद्वारा व्रतकी विधिका कहने वाला है , यदि यह न मानोगे तो अग्निपुराण के वचनमें निषेधपालनमें जो गृहस्थीको अधिकार लिखा है,अभाव कभी किसी का धर्मभी नहीं हो सकता इस कारण इस सम्पूर्ण सामान्य वाक्य जो एकादशी व्रतके बोधक हैं उनका वनवासी और संन्यास के विषयमें उपसंहार होनेसे गृहस्थ को नित्यव्रत को विधि कृष्णपक्षमें प्राप्त नही होता ॥ और यदि ऐसा है तो क्यों नारदजी ऐसा कहते हैं कि , संक्राति कृष्णपक्षको एकादशी सूर्य चन्द्रमाका ग्रहण इसमें पुत्रवान् गृहस्थी उपवास न करे , इत्यादि वचनोंसे सिद्ध है कि , निषेध प्राप्ति के विना नहीं हो सकता ऐसी शंका पर यह समाधान है कि , देवशयनी और देवोत्थान इन दोनों एकादशियों के मध्य में जो कृष्णपक्ष की एकादशी है वहीं गृहस्थीको करनी चाहिये दूसरी नहीं इस पद्मपुराण के वाक्य से आषाढ और कार्तिक के मध्य में जो कृष्णपक्षीय एकादशी हैं उनमें उपवास करना कहा है। और पुत्र वाले को पूर्व कहे वचन से उसका ही निषेध कहा है ।और कृष्णएकादशी का तो विधान नहीं है।
एकादशी को पुत्रवाला भी गृहस्थी करै । मदनरत्न में भविष्यपुराण का वचन है । जैसी शुक्ला वैसा ही कृष्णा द्वादशी मुझ को सदा प्यारी है , शुक्ला गृहस्थियों को करनी चाहिये यह भोग और सन्तान की बढाने वाली है , मुमुक्षुओं को कृष्णा करनी चाहिये। निषेधका पालन और काम्यव्रत तो सब कृष्णा एकादशियों में सब गृहस्थी करें , ' कारण कि , नारद यह कहते हैं कि , पुत्रवान् भार्यायुक्त और बन्धुसम्पन्न गृहस्थी विष्णु के काम्यव्रत को दोनों पखवारे में करै , वह सब कालादर्श में कहा है कि , विधवा , वानप्रस्थ और संन्यासी यह दोनों एकादशी और पुत्रवान् गृहस्थी शुक्लामें व्रत कर और भोजन का निषेध तो गृहस्थी को कृष्णा में भी है , इससे उसका व्रत सिद्ध होताहै , प्राच्यों का यह कथन है कि , वैष्णव गृहस्थियों को कृष्णा एकादशी भी नित्य है , नारदने यह लिखा है कि , विष्णुको भक्ति में तत्पर मनुष्य प्रत्येक पक्ष में एकादशी का व्रत करै , पुत्र स्त्री बंधु सम्पन्न भक्तिमान् मनुष्य भी दोनों पक्षोंकी एकादशी का व्रत करै।।
आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
जय बद्री विशाल
श्रावण मास में शिव पूजा कैसे करें।और क्यो की जाती है ।
श्रावण मास में रुद्राभिषेक शिव पूजन सोमवार व्रत का विशेष महत्व है।भगवान साम्बसदाशिव अपने भक्तों के लिए कल्याणकारी अमंगलहारी है वे भक्तों की पीड़ा व रक्षा के लिए हमेशा भक्तों साथ मे रहते है। जो मनुष्य सदा शिव पंचाक्षरी,, ॐ नमः शिवाय,, मंत्र का जप करता है।वह जन्मजन्मांतर के दुःखो व पुनरागमन से निवृत हो शिवलोक में वास करता है।भोलेनाथ जी को सावन का महिना प्रिय है।इसलिए भोले बाबा सावन मास में पृथ्वी में वास करते है।जो भी शिव भक्त सावन में शिव जी का जलाभिषेक करता है, भोलेनाथ उसके सारे कष्ट हर लेते है, भक्तो की सारी मनोकामना का पूर्ण करते है।
स्कन्द पुराण में लोमश जी कहते हैं ।जो मनुष्य शिवमन्दिर के ऑगन में झाडू लगाते हैं , वे निश्चय ही भगवान् शिव के लोक में पहुँचकर सम्पूर्ण विश्व के लिये वन्दनीय हो जाते हैं । जो भगवान् शिव के लिये यहाँ अत्यन्त प्रकाशमान दर्पण अर्पण करते हैं , वे आगे चलकर शिवजी के सम्मुख उपस्थित रहनेवाले पार्षद हेंगे । जो लोग देवाधिदेव ,शूलपाणि ,शंकर को चवँर भेट करते हैं।वे त्रिलोकी में जहाँ कही जन्म लेंगे,उन पर चँवर डुलता रहेगा । जो परमात्मा शिव की प्रसनता के लिये धूप निवेदन करते हैं।वे पिता और नाना दोनों के कुलों का उद्धार करते हैं तथा भविष्य में यशस्वी होते हैं। जो लोग भगवान् हरि - हर के सम्मुख दीप दान करते है।वे भविष्य में तेजस्वी होते और दोनों कुलों का उद्धार करते हैं।जो मनुष्य हरि - हरके आगे नैवेद्य निवेदन करते हैं ,वे सम्पूर्ण यज्ञका फल पाते हैं।जो लोग टूटे हुए शिव मन्दिर को पुनः बनवा देते हैं,वे निस्सन्देह द्विगुण फल के भागी होते हैं।जो ईट अथवा पत्थर से भगवान् शिव तथा विष्णु के लिये नूतन मन्दिर निर्माण कराते हैं।वे तब तक स्वर्गलोक में आनन्द भोगते हैं।जबतक इस पृथ्वीपर उनकी यह कीर्ति स्थित रहती है।
श्रावण मास मनुष्यों में ही नही अपितु पशु पक्षियों में भी एक नव चेतना का संचार करता है जब प्रकृति अपने पुरे यौवन पर होती है। नदी तालाब जल से भरपूर होते है। सावन में मौसम का परिवर्तन होने लगता है।प्रकृति हरियाली और फूलो से धरती का श्रुंगार करती है परन्तु धार्मिक परिदृश्य से सावन मास भगवान शिव को ही समर्पित रहता है।
श्रावण महीने में शिवजी का व्रत या उपवास रखा जाता है।श्रावण मास में पुरे माह भी व्रत रखा जाता है। इस महीने में प्रत्येक दिन स्कन्ध पुराण के एक अध्याय को अवश्य पढना चाहिए। यह महीना मनोकामनाओ का इच्छित फल प्रदान करने वाला माना जाता है। पुरे महीने शिव परिवार की विशेष पूजा की जाती है।
सावन मास में रखे गये व्रतो की महिमा अपरम्पार है।जब सती ने अपने पिता दक्ष के निवास पर शरीर त्याग दिया था उससे पूर्व महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। पार्वती ने सावन के महीने में ही निराहार रहकर कठोर तप किया था और भगवान शंकर को पा लिया था। इसलिए यह मास विशेष हो गया और सारा वातावरण शिवमय हो गया।
इस अवधि में विवाह योग्य लडकियाँ इच्छित वर पाने के लिए सावन के सोमवारों पर व्रत रखती है इसमें भगवान शंकर के अलावा शिव परिवार अर्थात माता पार्वती , कार्तिकेय , नन्दी और गणेश जी की भी पूजा की जाती है। सोमवार को उपवास रखना श्रेष्ट माना जाता है।
श्रावण मास में भगवान शिव के कैलाश में आगमन के कारण व श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय होने से की गई समस्त आराधना शीघ्र फलदाई होती है।पद्म पुराण के पाताल खंड के अष्टम अध्याय में ज्योतिर्लिंगों के बारे में कहा गया है कि जो मनुष्य इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करता है, उनकी समस्त कामनाओं की इच्छा पूर्ति होती है। स्वर्ग और मोक्ष का वैभव जिनकी कृपा से प्राप्त होता है।
श्रावण मास भी अपना विशेष महत्व रखता है। संपूर्ण महीने में चार सोमवार, एक प्रदोष तथा एक शिवरात्रि,हरि तालिका तीज, नागपंचमी ये योग एकसाथ श्रावण महीने में मिलते हैं। इसलिए श्रावण का महीना अधिक फल देने वाला होता है।श्रावण में पार्थिव शिवपूजा का विशेष महत्व है। अत: प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार तथा प्रदोष को शिवपूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिये ।
प्रातःकाल स्नान ध्यान से निवृत्त हो मंदिर या घर पर श्री गणेश पंचांग पूजा करके शिव पंचायतन -शिव,पार्वती ,गणपति ,कार्तिकेय नंदी,नाग की पूजा की जाती है।भगवान भोलेनाथ को जल , दूध , दही , घी ,शहद, शक्कर,पंचामृत से स्नान कर रुद्राभिषेक करें ।वस्त्र जनेऊ , चंदन , भस्म,रोली , फूलमाला,बेल पत्र , भांग , धतूरा , आदि से अलंकृत करें।धूप , दीप दिखाकर नैवेद्य अर्पण करें, दक्षिणा आरती प्रदक्षिणा नमस्कार करे।इस प्रकार से भगवान उमापति का पूजन किया जाता है। शिव की महिमा का गुणगान शिव स्त्रोत्र शिव चालीसा शिव पुराण का पाठ करें। इस मास में रुद्राभिषेक , लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ कराना चाहिए।
शास्त्रों और पुराणों में श्रावण मास को अमोघ फलदाई कहा गया है।
-विवाहित महिलाओं को श्रावण मास में व्रत पूजन करने से परिवार में खुशियां, समृद्घि और सम्मान व सन्तान का सुख प्राप्त होता है,
-पुरूषों को व्रत करने से कार्य-व्यवसाय में उन्नति,शैक्षणिक गतिविधियों में सफलता और आर्थिक रूप से मजबूती मिलती है।
-अविवाहित लड़कियां यदि श्रावण के प्रत्येक सोमवार को शिव परिवार का विधि-विधान से पूजन करती हैं तो उन्हें अच्छा घर और वर मिलता है।
हर हर महादेेेव
आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
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