बुधवार, 26 मार्च 2025

💐शैलपुत्री💐

 शैलपुत्री --

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्ध कृत शेखराम् ।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।। 

भगवती शैलपुत्री के मस्तक पर अर्धचन्द्रमा सुशोभित है , वे वृषभ ( बैल ) पर आरूढ़ हैं । हाथ में त्रिशुल हैं । वांछित लाभ देने वाली यशस्विनी माता की हम वन्दना करते हैं ।

नव दुर्गाओं में माँ का पहला स्वरूप शैलपुत्री है । पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री , पार्वती एवं हेमवंती पड़ा । ये पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की कन्या सती भवानी थी । इनका विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ था । एक बार दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया था , उसमें शंकरजी को नहीं बुलाया गया । सती आग्रहपूर्वक वहां पहुंच गई । वहां शंकरजी के प्रति तिरस्कार और अपना भी अपमान देख सती ने अपने शरीर को योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया । इस दारूण दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी कुद्ध हो गये और उन्होंने अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञको विध्वंस कर दिया । अगले जन्म में सती ने शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया । शंकरजी को पति रूप में वरण करने के लिए पार्वती ने कठोर तपस्या की । फिर वे भगवान शिव की अर्धांगिनी बनी । उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्होंने हेमवती स्वरूप से इन्द्रादि देवों को वृत्रासुर गर्वभंजन किया था । एक बार की बात है ब्रह्माजी से वर प्राप्त कर वृत्रासुर ने देवराज इन्द्र को परास्त कर दिया था । तब समस्त देवताओं ने इन्द्र सहित भगवती जगदम्बा की आराधना की । देवी ने उन्हें अभय दान देकर योग माया रूप धर कर वृत्रासुर को मोहित कर दिया । अंत में इन्द्र ने देवी की कृपा से वृत्रासुर को मार डाला । त्रिलोकी में यह बात फैल गई कि देवी ही वृत्रासुर का संहार करने वाली है । उन्होंने इन्द्र के द्वारा इसे मरवाया था ।  शैलपुत्री देवी का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं । नवरात्र पूजन में पहले दिन इन्हीं की पूजा की जाती है । इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं । यहीं से उनकी योगसाधना प्रारंभ होती है ।

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